मेरा वजूद बदलता दिखाई देता है

उधर से चिलमन सरकता दिखाई देता है
इधर नशेमन फिसलता दिखाई देता है

तुझे पता क्या तेरे फैसले की कीमत है
मेरा वजूद बदलता दिखाई देता है

उमड़-उमड़ के जो आते हैं मेघ आँगन में
फटा सा आँचल तरसता दिखाई देता है

कई रातों से भूखा सो रहा था जो बच्चा
आज फिर माँ से उलझता दिखाई देता है

झूठे वादों की लोरियों से परेशां है जो
वही हाकिम से झगड़ता दिखाई देता है

अरे पैसों के गुलामों कभी तो यह देखो
क़ैद में पंछी तड़पता दिखाई देता है

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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कहो कब तलक यूँ सताते रहोगे


कहो कब तलक यूँ सताते रहोगे  
कहाँ तक हमें आज़माते रहोगे  

सवालों पे मेरे बताओ ज़रा तुम  
यूँ कब तक निगाहें झुकाते रहोगे  

हमें यूँ सताने को आख़ीर कब तक  
रक़ीबों से रिश्ते निभाते रहोगे  

वो ग़म जो उठाएँ हैं सीने पे तुमने  
बताओ कहाँ तक छुपाते रहोगे 

- शाहनवाज़ 'साहिल' 

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पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल

हज़ारों साज़िशें कम हैं सियासत की अदावत की
हर इक चेहरे के ऊपर से नकाबों को हटाता चल

कभी सच को हरा पाई हैं क्या शैतान की चालें?
पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल

करो कुछ काम ऐसे भी अदावत 'इश्क़' हो जाएं
रहे इंसानियत ज़िंदा, मुहब्बत को निभाता चल

भले कैसा समाँ हो यह, बदल के रहने वाला है
कभी मायूस मत होना, यूँही खुशियाँ लुटाता चल

- शाहनवाज़ 'साहिल' 

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मेरे वतन में तो 'मज़हब' हैं दोस्ती के लिए...

यह हमारा हिन्दोस्तां है, जहाँ मज़हब दोस्ती का सबब है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग साथ रहते हैं, खाते हैं, पढ़ते हैं और साथ ही अपनी-अपनी पूजा भी कर लेते हैं....

हज़ारों साज़िशें कमतर हैं दुश्मनी के लिए
मेरे वतन में तो 'मज़हब' हैं दोस्ती के लिए
- शाहनवाज़ 'साहिल'


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उन जवानों का कर्ज़ा चुकाएंगे कब?

सियाचिन ग्लैशियर में हिमस्खलन से हुई हमारे जवानों शहादत की खबर ग़मगीन कर गई! देश की हिफाज़त की ख़ातिर सरहदों पर लड़ने वाले हमारे जवानों की जज़्बे और शहादत को सलाम...


हम यूँ आज़ादियों की हर इक जद में हैं
क्योंकि क़ुर्बानियाँ उनके मक़सद में है

उन जवानों का कर्ज़ा चुकाएंगे कब?
जो हमारी हिफाज़त को सरहद पे हैं

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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ग़ज़ल: सच अगर आया ज़ुबाँ पर फासला हो जाएगा

यूँ ना देखो दुनियाभर में तब्सिरा हो जाएगा 
फ़क़्त बस बैठे-बिठाए मसअला हो जाएगा 

होंट हिलते ही नहीं हैं आप हो जब सामने
आप ही कोशिश करो तो हौसला हो जाएगा 

रेत पर बच्चे की मेहनत लहरों से टकरा गई
पर 'घरौंदा' टुटा तो वो ग़मज़दा हो जाएगा 

दिल अभी महफूज़ है महफ़िल के कारोबार से
आप गर चाहेंगे तो यह मुब्तिला हो जाएगा 

आ करूँ में आज तुझसे दिलरुबा यह फैसला
और भी कुछ ना हुआ तो तजरुबा हो जाएगा 

ग़ैर के तो ऐब हमने रात-दिन देखा किये
अपने देखेंगे तो यह दिल आईना हो जाएगा 

चापलूसी पर टिकें हैं 'साहिल' रिश्ते आज के
सच अगर आया ज़ुबाँ पर फासला हो जाएगा 

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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हर दिल लुभा रहा है, यह आशियाँ हमारा


हर दिल लुभा रहा है, यह आशियाँ हमारा
हर शय से दिलनशी है, यह बागबाँ हमारा

हर रंग-ओ-खुशबुओं से हर सूं सजा हुआ है
गुलशन सा खिल रहा है, हिन्दोस्ताँ हमारा

हो ताज-क़ुतुब-साँची, गांधी-अशोक-बुद्धा
सारे जहाँ में रौशन हर इक निशाँ हमारा

हिंदू हो या मुसलमाँ, सिख-पारसी-ईसाई
यह रिश्ता-ए-मुहब्बत, है दरमियाँ हमारा

सारे जहाँ में छाया जलवा मेरे वतन का
हर दौर में रहा है, भारत जवाँ हमारा

हमने सदा उठाया इंसानियत का परचम
हरदम ऋणी रहा है, सारा जहाँ हमारा

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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ग़ज़ल: मिलने-जुलने का ज़माना आ गया

जब भी तेरा ज़िक्र महफिल में हुआ
मिलने का दिल में बहाना आ गया

उसने जो देखा हमें बेसाख़्ता
मायूसी को मुस्कराना आ गया

आप क्यों बैठे हैं ऐसे ग़मज़दा
मिलने-जुलने का ज़माना आ गया

उसने जो महफ़िल में की गुस्ताखियाँ
हर इक को बातें बनाना आ गया

हम ज़रा सा नर्म लहज़ा क्या हुए
दुनिया को आँखे दिखाना आ गया

अभी तो सोलह भी पूरे ना हुए
आशिक़ों का दिल चुराना आ गया

-शाहनवाज़ 'साहिल'

फ़िलबदीह मुशायरा 042 में लिखी यह ग़ज़ल

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ग़ज़ल: जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगा

जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगा
जहाँ में वही तो मुसलमान होगा

समंदर की लहरे थमी थी जहाँ पर
वहीँ से शुरू फिर से तूफ़ान होगा

हर इक का जो दर्द समेटे हुए हो
नहीं वोह कभी भी परेशान होगा

किया ज़िन्दगी को जो रब के हवाले
हर इक सांस फिर उसका मेहमान होगा

जो दीदार को उसके तड़पेगा 'साहिल'
वही उसके आँगन का मेहमान होगा

- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'



शमीम अंसारी भाई ने मेरी इस ग़ज़ल को बहुत ही बेहतरीन अंदाज़ में अपनी आवाज़ दी है, आप भी सुनिए!


जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगाजहाँ में वही तो मुसलमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘समंदर की लहरे थमी थी जहाँ परवहीँ से शुरू फिर से तूफ़ान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘हर इक का जो दर्द समेटे हुए होनहीं वो कभी भी परेशान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘किया ज़िन्दगी को जो रब के हवालेहर इक सांस फिर उसका मेहमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘जो दीदार को उसके तड़पेगा 'साहिल'वही उसके आँगन का मेहमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘लेखक ----- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘आवाज़ ----- शमीम अंसारी
Posted by Mohammad Shamim Ansari on Thursday, January 21, 2016


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पर्यावरण की रक्षा पर दिल्ली ने दम दिखलाया है...

पर्यावरण की रक्षा पर
दिल्ली ने दम दिखलाया है।
बदलाव बड़ा लाने हेतु
#OddEven अपनाया है।

गर आज नहीं कोशिश होगी
तो भविष्य तबाह हो जाएगा।
आने वाली पीढ़ी को
यह कर्ज़ा आज चुकाया है।

जो कहते हैं कुछ नहीं होता,
उन्हें दिल्ली राह दिखाएगी।
आओ देखो दुनिया वालो
बदलाव यहाँ पर आया है।

सेहत वाली सांसों का
सपना दिल्ली ने देखा है।
प्रदुषण से बचने का
अब गीत नया यह गाया है।

-शाहनवाज़ सिद्दिक़ी 'साहिल'

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