सेवक या शासक?

कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे नरेन्द्र मोदी हों या मनमोहन सिंह, वाजपेयी हों या कोई और... कोई भी प्रधानमंत्री, जनता का सेवक तब तक नहीं हो सकता जब तक कि देश की जनता हद दर्जे तक असुरक्षित हो और वोह लाल किले से झंडा फहराने के लिए आए तो 700 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षाबलों के 30-35 हज़ार जवानों से घिरा हो। यहाँ तक कि इतने भारी-भरकम बंदोबस्त के बवाजूद आस-पास के रिहायशी घरों को अपनी खिड़कियाँ बंद करने पर मजबूर किया गया हो।

जबकि देश की महिलाऐं और बच्चे बिना कपड़ो के ज़िन्दगी गुजारते हों और उनके कपड़े देश ही नहीं दुनिया के मशहूर ड्रेस डिज़ाईनर ट्रॉय कॉस्टा जैसों के द्वारा डिज़ाईन किये जा रहे हों! 

माहिलाओं के सम्मान की बात करते हो जबकि ना केवल देश की संसद में अनेकों बलात्कार के आरोपी बैठे हों, बल्कि कैबिनेट में भी बलात्कार के आरोपी मंत्री बने बैठे हो!

पता नहीं वोह राजनेता जनता के सेवक कैसे बन सकते हैं जिनपर देश के लाला उद्योगपति चुनावों में खर्च के नाम पर सट्टा लगाते हों???





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