हर दिल लुभा रहा है, यह आशियाँ हमारा


हर दिल लुभा रहा है, यह आशियाँ हमारा
हर शय से दिलनशी है, यह बागबाँ हमारा

हर रंग-ओ-खुशबुओं से हर सूं सजा हुआ है
गुलशन सा खिल रहा है, हिन्दोस्ताँ हमारा

हो ताज-क़ुतुब-साँची, गांधी-अशोक-बुद्धा
सारे जहाँ में रौशन हर इक निशाँ हमारा

हिंदू हो या मुसलमाँ, सिख-पारसी-ईसाई
यह रिश्ता-ए-मुहब्बत, है दरमियाँ हमारा

सारे जहाँ में छाया जलवा मेरे वतन का
हर दौर में रहा है, भारत जवाँ हमारा

हमने सदा उठाया इंसानियत का परचम
हरदम ऋणी रहा है, सारा जहाँ हमारा

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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ग़ज़ल: मिलने-जुलने का ज़माना आ गया

जब भी तेरा ज़िक्र महफिल में हुआ
मिलने का दिल में बहाना आ गया

उसने जो देखा हमें बेसाख़्ता
मायूसी को मुस्कराना आ गया

आप क्यों बैठे हैं ऐसे ग़मज़दा
मिलने-जुलने का ज़माना आ गया

उसने जो महफ़िल में की गुस्ताखियाँ
हर इक को बातें बनाना आ गया

हम ज़रा सा नर्म लहज़ा क्या हुए
दुनिया को आँखे दिखाना आ गया

अभी तो सोलह भी पूरे ना हुए
आशिक़ों का दिल चुराना आ गया

-शाहनवाज़ 'साहिल'

फ़िलबदीह मुशायरा 042 में लिखी यह ग़ज़ल

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ग़ज़ल: जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगा

जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगा
जहाँ में वही तो मुसलमान होगा

समंदर की लहरे थमी थी जहाँ पर
वहीँ से शुरू फिर से तूफ़ान होगा

हर इक का जो दर्द समेटे हुए हो
नहीं वोह कभी भी परेशान होगा

किया ज़िन्दगी को जो रब के हवाले
हर इक सांस फिर उसका मेहमान होगा

जो दीदार को उसके तड़पेगा 'साहिल'
वही उसके आँगन का मेहमान होगा

- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'



शमीम अंसारी भाई ने मेरी इस ग़ज़ल को बहुत ही बेहतरीन अंदाज़ में अपनी आवाज़ दी है, आप भी सुनिए!


जो राहे ख़ुदा का निगहबान होगाजहाँ में वही तो मुसलमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘समंदर की लहरे थमी थी जहाँ परवहीँ से शुरू फिर से तूफ़ान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘हर इक का जो दर्द समेटे हुए होनहीं वो कभी भी परेशान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘किया ज़िन्दगी को जो रब के हवालेहर इक सांस फिर उसका मेहमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘जो दीदार को उसके तड़पेगा 'साहिल'वही उसके आँगन का मेहमान होगा󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘लेखक ----- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘󾬘आवाज़ ----- शमीम अंसारी
Posted by Mohammad Shamim Ansari on Thursday, January 21, 2016


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पर्यावरण की रक्षा पर दिल्ली ने दम दिखलाया है...

पर्यावरण की रक्षा पर
दिल्ली ने दम दिखलाया है।
बदलाव बड़ा लाने हेतु
#OddEven अपनाया है।

गर आज नहीं कोशिश होगी
तो भविष्य तबाह हो जाएगा।
आने वाली पीढ़ी को
यह कर्ज़ा आज चुकाया है।

जो कहते हैं कुछ नहीं होता,
उन्हें दिल्ली राह दिखाएगी।
आओ देखो दुनिया वालो
बदलाव यहाँ पर आया है।

सेहत वाली सांसों का
सपना दिल्ली ने देखा है।
प्रदुषण से बचने का
अब गीत नया यह गाया है।

-शाहनवाज़ सिद्दिक़ी 'साहिल'

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