क्या हैं अरब देशों की क्रांति के मायने

"दशकों से तानाशाही झेल रहे लोग अब देखना चाहते हैं लोकतंत्र"

कट्टरपंथ में जकड़े एवं तानाशाही का दंश झेल रहे अरब महाद्वीप की जनता में अचानाक आए गुस्से के इस उबाल के गहरे मायने हैं, जिसके चलते तानाशाहों की सत्ता की चूलें हिलने लगीं हैं। पुरे अरब महादीप में फैले इन तानाशाओं को जनता जनार्दन के इशारों को समझ कर अपने आप ही सत्ता से दूरी बना लेनी चाहिए। दिसंबर माह में मोहम्मद बौजीजी के आत्मदाह करने के बाद ट्यूनीशिया  की जनता में सरकार के खिलाफ क्रांति की चिंगारी भड़क उठी थी। खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं के कारण मध्य जनवरी तक धरना-प्रदर्शनों का दौर जारी रहा। 


राष्ट्रपति जैनुअल अबीदेन बेन अली 23 साल तक ट्यूनीशिया की सत्ता पर काबिज़ रहे, आखिरकार जनता ने जैस्मीन क्रांति के द्वारा ऐसा सबक सिखाया कि देश छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा। क्रांति की यह फिज़ा उत्तर अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया से मिस्र तक कब पहुँच गई किसी को खबर ना हुई। मिस्र के लोग भी तानाशाही को तीस वर्षो से झेलते-झेलते थक चुके थे। जैस्मीन क्रांति से उन्हें भी एक नई राह दिखाई दी, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी एवं भुखमरी से त्रस्त मिस्र के जनता ने तानाशाही और दमन के खिलाफ बिगुल बजा कर मुबारक सरकार को उखाड़ फैका।


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हालाँकि हुस्नी मुबारक ने कई सुधार-वादी कदम उठाए थे, जिसके तहत कैबनेट को भंग करके वायुसेना प्रमुख को प्रधानमंत्री तथा गुप्तचर प्रमुख को उपराष्ट्रपति बनाया गया।  लेकिन लोगो के गुस्से की आग शांत होने की जगह और भी अधिक भड़कती गई, क्योंकि उनके मन में तानाशाही से छुटकारे की उमंगें अंगडाइयां ले रही थी। चौकाने वाली बात यह थी सउदी अरब शाह के हुस्ने-मुबारक और बेन अली के समर्थन में उतर आने का भी दोनों देशों की जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ा। ट्यूनीशिया से शुरू हुई इस आग की तपिश धीरे-धीरे यमन और जोर्डन में भी महसूस होने लगी है। असंतोष और राजनीतिक बदलाव की यह बयार मिस्र के बाद अब जंगल की आग की तरह मध्य-पूर्व देशों में फैलती जा रही है। मिस्त्र और टयूनीशिया में लोगों के धरना-प्रदर्शनों से मिली कामयाबी को देखते हुए मध्य पूर्व के अन्य देशों की जनता को भी इस राह पर कामयाबी नज़र आ रही है।


यमन के राष्ट्रपति अली अब्दुल्ल सलेह को भी घोषणा करनी पड़ी कि वर्ष 2013 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में वह शामिल नहीं होंगे। बीस वर्षो तक शासन करने वाले सलेह पिछले तीन हफ्तों से लोगों के धरना-प्रदर्शन का सामना कर रहे है। यह देखना रोचक होगा कि राष्ट्रपति द्वारा दी गई रियायतों से लोग कहां तक प्रभावित होते है! प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सुधार को लेकर किए गए वादें लागू हों। उधर जॉर्डन की जनता भी पूरी तरह से राजनीतिक बदलाव के लिए जूझ रही है। जार्डन में लोगों के विरोध प्रदर्शनों के भय से शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने सुधारों को लागू करने के लिए नई सरकार की जरूरत बताते हुए अपने पूरे मंत्रिमंडल को भंग करके नई सरकार के गठन करने की घोषणा की थी।


लीबिया के राष्ट्रपति कर्नल गद्दाफी तो जनता के द्वारा किये जा रहे प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से कुचलने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। लीबिया में हुए खून-खारबे की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई आलोचना पर उन्होंने कहा कि उन्हें किसी की आलोचना की परवाह नहीं है। इस बीच उनके देश छोड़कर भाग जाने की अफवाहें भी उडती रही। उन्होंने अपने समर्थकों से बाहर आने और सड़कों की सुरक्षा करने का आह्वान किया है, हालाँकि उनके इस आह्वान से देश में हिंसक मुठभेड़ों की आशंका बढ़ गई है। देखने वाली बात यह है कि वह कब तक जनता की उम्मीदों के खिलाफ सत्ता पर ज़बरदस्ती कब्ज़े को बरकरार रख पाते हैं।


सीरिया में अभी प्रदर्शनकारी सड़कों पर नहीं आए है लेकिन सोशल नेटवर्किग वेब साईट्स  पर लोगों में सरकार विरोधी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार सीरियावासी भी आजादी और नागारिक अधिकारों को हासिल करना चाहते है। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असाद का कहना है कि असंतुष्टों से उन्हे कोई भय नहीं है क्योंकि उनकी सरकार लोगों के सहयोग से चल रही है। सुडान के राष्ट्रपति उमर अल बसीर को भी हाल ही में हुए जनमत संग्रह से गहरा झटका लगा है जिसमें अधिकतर लोगों ने उत्तरी सुडान से अलग होने की इच्छा जताई थी।

अरब देशों के तानाशाहों से त्रस्त आ चुकी जनता के गुस्से के उबाल में शासकों के भ्रष्टाचार और अमेरिका के वरदहस्त ने आग में घी का काम किया है। ज्ञात रहे कि 1979 में ईरान के शाह रजा पहलवी को भी इसी तरह सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। अमेरिका सहित पश्चिम जगत में यह भी आशंका जताई जा रही है कि प्रदर्शनों और सत्ता परिवर्तनों का फायदा मिस्र के मुसलिम ब्रदरहुड जैसे कट्टरपंथी संगठन ना उठा लें। हालाँकि इन संगठनों ने अभी तक सत्ता पाने की हड़बड़ी नहीं दिखाई है। बात अगर मुस्लिम ब्रदरहुड की करें तो मिस्र में प्रतिबंधित यह संगठन अरब जगत के सबसे पुराने इस्लामी संगठनों में से एक है। ज्ञात रहे कि अरब देशों के सभी कट्टरपंथी संगठन अमेरिका के धुर-विरोधी है, शायद इसीलिए अमेरिका नहीं चाहता कि सत्ता परिवर्तनों  की सूरत में कट्टरपंथी संगठनों को नेतृत्व का मौका मिले। मिस्र के मुसलिम ब्रदरहुड और लेबनान के चरमपंथी संगठन हिजबुल्ला में आंतरिक सम्बन्ध है, वहीँ इन दोनों के गाजा के हमास जैसे अन्य चरमपंथी संगठनों से गहरे सम्बन्ध हैं। अमेरिका कि चिंता यह है कि अगर सत्ता की कमान इनके हाथों में आई तो पूरे क्षेत्र में इजरायल विरोधी लहर फैल सकती है। मुसलिम ब्रदरहुड सन 1928 में स्वरुप में आया था, इस संगठन पर मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति कर्नल नासिर की हत्या की कोशिश और राष्ट्रपति अनवर सदात की हत्या जैसे संगीन आरोप हैं। पूर्व राष्ट्रपति मुबारक ने मुस्लिम ब्रदरहुड पर बैन लगा रखा था, हालांकि संगठन इन आरोपों को खारिज करता है। दिलचस्प बात यह कि प्रतिबन्ध के बावजूद 2005 में हुए चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे ब्रदरहुड ने 20 फीसदी सीटों पर कब्जा किया था। 

इन सब अटकलों के बीच बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस क्रांति से यह मतलब निकला जाए कि अरब देशों की जनता भी इंडोनेशिया अथवा मलयेशिया की तरह लोकतंत्र की ओर बढ़ रही है?

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ब्लॉगर्स की नई ABC

अब जब ब्लॉगर्स दुनियां में अजूबा चीज़ हैं तो हमारी हर अदा, हटके ही होनी चाहिए. अब देखिये न ब्लॉगर्स स्कूल में ABC की किताब भी कुछ हटकर ही है!!!




A: APPLE






B: BLOG


 

C: CHAT






D: DOWNLOAD



E: E MAIL





F: FACEBOOK






G: GOOGLE




H: HEWLETT PACKARD





I: iPHONE





J: JAVA





K: KINGSTON






L: LAPTOP




M: MESSENGER





N: NERO



O: ORKUT





P: PICASSA




Q: QUICK HEAL



R: RAM





S: SERVER




T: TWITTER




U: USB




V: VISTA






W: WiFi





X: Xp





Y: YOU TUBE







Z: Zorpia

चलिए एक चीज़ तो कम से कम पुरानी ही है 'ए फॉर एप्पल' !!!!!!!!!!!!!!!!

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हरिभूमि: गरीब सांसदों को सस्ता भोजन

दैनिक हरिभूमि में दिनांक 1 फ़रवरी को प्रष्ट संख्या 4 पर प्रकाशित मेरा व्यंग्य

हमारे प्यारे देश भारत में एक जगह ऐसी भी हैं जहाँ गरीब लोगो के लिए सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन इसका मतलब घटिया नहीं बल्कि फर्स्ट क्लास भोजन और बेहद सस्ता। बस एक ही कमी है, ऐसा भोजन केवल एक ही केन्टीन में उपलब्ध है, और यह सुविधा केवल उस क्षेत्र के गरीबों के लिए ही है। यह ऐसे गरीब हैं जिनकी मासिक आय केवल अस्सी-नब्बे हज़ार रुपये है, यह और बात है कि साथ में भारी बोनस घोटालों के रूप में मिल जाता है। बोनस के मामले में पहले बहुत थोडा सा पैसा (केवल कुछ लाख या कुछ करोड़) ही मिलता था, लेकिन आजकल इसमें थोडा इजाफा हुआ है। अब यह कुछ हज़ार करोड़ तक पहुँच गया है, फिर भी गरीब हैं तो सरकार का दायित्व बनता है कि इनके लिए उचित दर पर भोजन की व्यवस्था की जाए! हमें अपनी सरकार को इस कार्य के लिए बधाई देनी चाहिए कि उसने कम से कम इन बेचारों के लिए तो यह बंदोबस्त कर ही दिया है। आखिर हमारी सरकार इतनी निकम्मी थोड़े ही है।

अब इतनी उत्सुकता दिखा रहे हैं तो चलिए संसद भवन में मौजूद इस कैंटीन की भोजन दरें आप को भी बता देते हैं। यहाँ चाय जहाँ केवल एक रुपये में मिलती हैं, वहीँ सूप मात्र साढ़े पांच रुपये में ही उपलब्ध है। अच्छा दाल भले ही अन्य गरीबों को रुला देती हो परन्तु यहाँ केवल डेढ़ रुपया प्लेट ही है। वैसे भी कहावत है कि गरीब लोग ज्यादा खाते हैं, इसलिए सरकार ने ऐसा बंदोबस्त किया है कि चपाती के लिए एक रुपया और मील के लिए मात्र दो रूपये ही खर्च करने पड़ेंगे। और तो और डोसा खाने का मन हो तो बस चार रुपये खर्च होते हैं और अगर मुंह में वेज बिरयानी को देखकर पानी आ जाए तो ललचाना नहीं पड़ता, केवल आठ रूपये खर्च में बिरयानी उपलब्ध है।

सरकार ने इन गरीबों के लिए शाकाहार के साथ-साथ मांसाहार का भी उचित प्रबंध किया है। जहां फिश केवल तेरह रूपये में उपलब्ध है, वहीँ चिकन के लिए मात्र चौबीस रूपये पचास पैसे ही खर्च करने पड़ेंगे। अब तो आपको विशवास हो ही गया होगा की हमारे म्म्ममतलब  जनता के यह सेवक जनता की इतनी सेवा कैसे कर लेते हैं? अब जनता के खून-पसीने की कमाई से जो सुविधाएं मिल रही हैं, तो उसका बदला तो चुकाएंगे ही ना?  वैसे इनकी मेहनत के सामने तो यह कुछ भी नहीं है, शायद यही सोच कर यह कुछ और सुविधाएँ भी हड़प कर लेते हैं। आप क्यों मुंह बनाकर बैठे हैं? अरे इन गरीब लोगों को थोड़ी सी सुविधाएं क्या दे दी सरकार ने तो आपको जलन होने लगी? जब देखों जेब का रोना रोते रहते हैं। भय्या, जब सरकार गरीब लोगो के लिए इतना कुछ कर रही है तो कम से कम हम लोगो को आय कर देने में तो दुःख का अहसास बिलकुल भी नहीं होना चाहिए, आखिर हमारा भी तो कुछ कर्तव्य बनता है।

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दूर तक जाएगी मिस्र की यह आग!


तानाशाही का दंश झेल रहे अरब महाद्वीप की जनता में अचानाक गुस्से का उबाल आ गया है और इसी उबाल के चलते वहां के तानाशाहों की सत्ता की चूलें हिलने लगीं हैं। ट्यूनीशिया के शासक बेन अली 23 साल तक वहां की जनता पर काबिज़ रहे, लेकिन जनता जनार्दन ने पिछले महीने हुई जैस्मीन क्रांति के द्वारा उसको ऐसा सबक सिखाया कि देश छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा। जंगल की आग की तरह भड़की यह आग ट्यूनीशिया से मिस्र तक कब पहुँच गई किसी को खबर ना हुई। मिस्र के लोग भी हुस्ने-मुबारक की तानाशाही को तीस वर्षो से झेलते-झेलते थक चुके थे। ट्यूनीशिया की जैस्मीन क्रांति से उन्हें भी एक नई राह दिखाई दी, यह राह थी आज़ादी की और वह भी बह गए आज़ादी की क्रांति की इस हवा में।

भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी एवं भुखमरी से त्रस्त मिस्र के लोगों ने मुबारक सरकार को नेस्त-नाबूद करने का बीड़ा उठा लिया है। हालाँकि हुस्ने-मुबारक ने इन दिनों कई सुधार-वादी कदम उठाएं हैं। अपनी पूरी कैबनेट भंग करके वायुसेना प्रमुख को प्रधानमंत्री तथा अपने गुप्तचर प्रमुख को उपराष्ट्रपति बनाया है, लेकिन लोगो के गुस्से की आग है कि शांत होने की जगह और भी अधिक भड़क रही है। यहाँ तक कि इस आग की तपिश यमन और जोर्डन में भी महसूस होने लगी है। सउदी अरब शाह के हुस्ने-मुबारक के समर्थन में उतर आने का भी वहां की जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ा है, ज्ञात रहे कि ट्यूनीशिया के शासक बेन अली को भी सउदी अरब के शाही परिवार ने ही शरण दी है।

काहिरा सहित पुरे मिस्र में हुई हिंसा एवं सशस्त्र बलों के साथ हुई झडपों में अब तक 150 से अधिक लोग मौत का शिकार हो चुके हैं, और इसी बात से तंग आकर वहां की सेना ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्यवाही ना करने का ऐलान कर दिया है। मिस्र के राष्ट्रपति हुस्ने-मुबारक के लिए वहां की सेना के द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करने का एलान ही अब तक का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। अब तक अमेरिका से मिले अनुदान के ज़रिये सेना का पोषण करने वाले हुस्ने-मुबारक के खिलाफ सेना का रवैय्या अंतरराष्ट्रिय जगत के लिए चौकाने वाला है। शायद मुबारक को यह डर सताने लगा है कि कहीं जो काम उन्होंने 30 साल पहले वायु सेना के कमांडर रहते किया था, वहीँ काम आज की सेना भी ना कर दे। उन्होंने उस समय अनवर सादात को मरवा कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था। अपने इसी डर के चलते मुबारक ने अपने पुत्र को पहले ही देश से बाहर भेज दिया है।

अरब देशों के तानाशाहों से पहले ही त्रस्त आ चुकी जनता के गुस्से के उबाल में शासकों के भ्रष्टाचार और अमेरिका के वरदहस्त ने आग में घी जैसा काम किया है। ज्ञात रहे कि 1979 में ईरान के शाह रजा पहलवी को भी इसी तरह सत्ता से बेदखल कर दिया गया था।

बड़ा सवाल यह है कि क्या इस क्रांति से यह मतलब निकला जाए कि अरब देशों की जनता भी इंडोनेशिया अथवा मलयेशिया की तरह लोकतंत्र की ओर बढ़ रही है?

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कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? भाग - 1

आज के इस दौर में अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने का सबसे आसान माध्यम ब्लॉग है, जिसे हिंदी में "चिटठा" भी  कहा जाता है. ब्लॉग बनाना बहुत आसान है, इसके लिए प्रोग्रामिंग भाषा (Programing Language) की जानकारी होना आवश्यक नहीं है, बल्कि बहुत थोड़ी सी तकनीकी जानकारी ही काफी होती है, अगर तकनीकी जानकारी भी नहीं नहीं तब भी काम चल जाता है.

ब्लॉग के लिए कुछ कम्पनियाँ मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं, जिसमें blogger.com तथा wordpress प्रमुख हैं. इनकी सुविधाएं लेने के लिए आपको ना तो डोमेन नेम खरीदना पड़ेगा और ना ही होस्टिंग पैकेज. बस इनकी साईट पर जाकर अपना अकाउंट बनाना है, अपने ब्लॉग का नाम चुनना है और इसके बाद आप अपनी भावनाओं को ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं.

आइये सबसे पहले blogger.com की सेटिंग समझते हैं:-

1. सबसे पहले http://blogger.com/ पर क्लिक करिए अथवा अपने इन्टरनेट ब्राउज़र के एड्रेस बार में blogger.com लिख कर एंटर दबाइए.
2. अगर आपका गूगल अकाउंट है तो (ऊपर दर्शाए गए चित्रानुसार) यहाँ अपने गूगल अकाउंट से लोगिन करना है अथवा "Don't have a Google Account? के नीचे लिखे "Get started"  पर क्लिक करके अपना गूगल अकाउंट बनाना है. अकाउंट बन जाने के बाद फिर यहीं आकर लोगिन करिए.
 3. ऊपर दिए गए चित्र अनुसार आपका देश बोर्ड खुल जाएगा. अब आपको चित्र में सर्कल के द्वारा दर्शाए गए लिंक "Create a Blog" पर क्लिक करना है.


4. ऊपर दर्शाए गए चित्र अनुसार खुलने वाले प्रष्ट में "Blog title" के सामने अपने ब्लॉग नाम लिखना है, जैसे की मेरी ब्लॉग साईट का नाम है "प्रेम रस" इसे आप अपने ब्लॉग की भाषा में भी लिख सकते हैं. अर्थात अगर आप हिंदी में अपना ब्लॉग बनाना चाहते हैं तो अपने ब्लॉग का टाइटल हिंदी में लिख सकते हैं.

5. "Blog address (URL)" के सामने बने बॉक्स में आप को अपने ब्लॉग का पता भरना है, उदहारण: myblog. याद रखिये यहाँ पर आपको पता इंग्लिश के शब्दों में भरना है, जिससे की आपके पाठकों को आप तक पहुँचने में आसानी रहे. 

6. नीचे लिखे "Check Availability" पर क्लिक करके जाँच सकते हैं कि आपके द्वारा भरा गया पता उपलब्ध है अथवा किसी और ने पहले ही यह नाम रख रखा है.

7. अगर आपका पता उपलब्ध है तो ठीक है अन्यथा दूसरा पता लिख कर फिर से जाँच करिए. पता मिल जाने पर उसके नीचे लिखे "Word Verification" के सामने लिखे अक्षरों को नीचे बने बॉक्स में लिख डालिए. यह शब्द सिक्योरिटी जाँच के लिए होते हैं और इससे सिस्टम को पता चलता है कि फॉर्म भरने वाला कोई मनुष्य है ना कि कंप्यूटर सोफ्टवेयर. अब नीचे लिखे "Continue"  पर क्लिक करिए. 



8. इसके बाद ऊपर दर्शाए गए चित्रानुसार ब्लॉग की थीम अर्थात उसकी साज-सज्जा के विकल्प दिखाई देने लगेंगे. अब आपको अपनी रूचि अनुसार इसमें से किसी भी विकल्प पर क्लिक करके सबसे नीचे तीर के निशान में लिखे "Continue" पर क्लिक करना है.

इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद आपका ब्लॉग बन जाएगा. उदहारण के लिए अगर आपने पता "myblog" रखा तो आपके ब्लॉग का पूरा पता (अर्थात URL) myblog.blogspot.com होगा.


 9. इस प्रक्रिया के बाद ऊपर दिखाई दे रहा प्रष्ट खुलेगा जिसमें तीर के निशान में लिखे "Start blogging" पर क्लिक करने से आपकी ब्लॉग पोस्ट करने वाला प्रष्ट खुल जाएगा, जो कुछ इस तरह का दिखाई देगा.


10. यहाँ "Title" में आपको अपनी ब्लॉग की पोस्ट का शीर्षक लिखना है तथा नीचे की ओर बने हुए बड़े से बॉक्स में अपनी पोस्ट लिखनी है. इस बॉक्स में ऊपर बने विभिन्न तरह के आइकन्स को आपने अपनी पोस्ट की सजावट के लिए प्रयोग कर सकते हैं. आइकन "अ" पर क्लिक करने से आप हिंदी में लिख सकते हैं, इस पर क्लिक करते ही आप जैसे ही अपने कीबोर्ड से कुछ भी टाइप करेंगे वह अपने आप ही हिंदी में बदल जाएगा, जैसे कि "ham" टाइप करने से यह इसे  "हम" में बदल देगा.

... जारी


blogger.com के बारे में अन्य जानकारियाँ में आगे कुछ और पोस्ट में देने की कोशिश करूँगा, अगर आप कुछ जानना चाहें तो नीचे टिपण्णी बॉक्स में लिख कर मालूम कर सकते हैं अथवा मेरे ईमेल पते shnawaz (at) gmail.com पर लिख कर मालूम कर सकते हैं.


स्वयं की ब्लॉग साईट: 
आप अपना स्वयं का ब्लॉग भी बना सकते हैं, जिसके लिए आपको एक डोमेन नेम अर्थात अपने ब्लॉग का नाम खरीदना पड़ेगा, जैसे मेरे ब्लॉग का नाम www.premras.com है, और साथ ही अगर आप अपनी ब्लॉग-पोस्ट को अपने स्पेस में रखना चाहें तो होस्टिंग पैकेज भी खरीद सकते. होस्टिंग के अंतर्गत उपलब्ध जगह (स्पेस) और डाटाबेस के द्वारा ही ब्लॉग-पोस्ट को सेव किया जाता है.  

किसी अच्छी कंपनी से डोमेन नेम खरीदने का तकरीबन 600 रूपये का खर्च आता है. अगर आप केवल डोमेन नेम ही खरीदना चाहते हैं तो अपनी ब्लॉग पोस्ट blogger.com के द्वारा ही प्रकाशित कर सकते हैं. इसके लिए आपको डोमेन नेम खरीदने के बाद उसकी सेटिंग में कुछ बदलाव करने पड़ेंगे तथा blogger.com की सेटिंग में भी कुछ बदलाव करने पड़ेंगे, जिन्हें मैं अगली पोस्ट में समझाने की कोशिश करूँगा. 

अगर आप डोमेन के साथ ही होस्टिंग पैकेज भी खरीदना चाहते हैं तो इसके लिए आपको 100 से 150 MB डिस्क स्पेस के लिए तकरीबन 1500 रूपये  खर्च करने पड़ेंगे. इसके उपरान्त आप अपनी ब्लॉग साईट का कंटेंट डिज़ाइन करवा सकते हैं अथवा wordpress का सेटअप भी प्रयोग कर सकते हैं. wordpress सेटअप मुफ्त में उपलब्ध होता है, लेकिन इसको सर्वर पर अपलोड करने  के साथ ही कुछ सेटिंग भी करनी पड़ती हैं. इसके साथ ही इन्टरनेट पर हज़ारों मुफ्त थीम (साज-सज्जा) भी उपलब्ध हैं तथा आप प्रोफेशनल थीम खरीद भी सकते हैं अथवा अपनी इच्छा अनुसार डेवलेप भी करा सकते हैं, जिसका खर्च कार्य के अनुसार ही आएगा.

अधिक जानकारी के लिए आप shnawaz(at)gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं.




Keyword: How to create a blog site?

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