उफ़ यह ब्लागिंग!

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  • Shah Nawaz
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  • यूँ तो ब्लॉग जगत में 2007 में ही आ गया था, सबसे पहले मैंने अपना ब्लॉग 'All Delhi" बनाया था, जो कि अंग्रेजी भाषा में था. इसके द्वारा में दिल्ली के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध कराता था, जिसे बाद में http://alldelhi.com/ में बदल दिया. लेकिन मेरे ब्लॉग लेखन में एक दिन क्रांतिकारी परिवर्तन आया, यह वह दिन था जब में पहली बार "ब्लागवाणी" से रु-बरु हुआ था. अपने ब्लोगिंग के सफ़र में ब्लागवाणी का मैं बहुत बड़ा योगदान मानता हूँ, हालाँकि ब्लागवाणी के जाने के बाद की कमी को चिट्ठाजगत ने बखूबी भरा, फिर भी बस यही कहूँगा कि उसकी जगह लेना बहुत मुश्किल है.  मैं उस समय ऑरकुट पर सक्रिय था, ऑरकुट की हिंदी कम्युनिटी के मोडरेटर के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगा हुआ था. ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत  पर अनेकों हिंदी ब्लॉग्स पढने के बाद मैंने अपने ब्लॉग 'प्रेम रस' पर लिखना शुरू किया.

    'प्रेम रस' पर मेरा  सबसे पहला लेख था "उर्दू और हिंदी अलग-अलग नहीं है!"  इस लेख के बाद से आज तक मैंने जितने भी लेख लिखे उसमें मुझे ब्लॉग जगत के सभी साथियों का भरपूर प्रेम और साथ मिला. धर्म पर लिखने का मुझे शुरू से शौक था और इसी कारण मैं 'हमारी अंजुमन' का सदस्य बना तथा अपने ब्लॉग 'सन्देश' में भी कुछ लेख लिखे. मैं इस्लाम धर्म के खिलाफ फैलाई जा रही भ्रांतियों को मिटाने का हमेशा ही इच्छुक रहा हूँ और इन लेखों के द्वारा मेरा प्रयास भी यही था. चाहे बात मेरे निजी जीवन की हो अथवा लेखन की, आजतक मैंने कभी किसी की आस्था को बुरा अथवा गलत नहीं कहा और दूसरों को यही समझाया भी कि इस्लाम धर्म इसकी इजाज़त नहीं देता है.

    मैंने हमेशा सही को सही और गलत बात को गलत कहा है, चाहे वह बी. एन शर्मा ने कही हो अथवा सलीम खान ने. सुरेश चिपलूनकर हमेशा विषय के साथ पूरा न्याय करते हुए खोजपूर्ण रिपोर्ट लिखते हैं, लेकिन जब भी उन्होंने गलत लिखा मैंने उसे गलत कहा. वहीँ शरीफ खान  साहब को भी बताया कि आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने के नाम पर गलती केवल मिडिया की ही नहीं बल्कि हमारी भी है और उन्होंने इसकी सराहना भी की.

    मैंने अपने ब्लॉग 'प्रेम रस' के द्वारा हमेशा सामाजिक मुद्दों को उठाने का प्रयास किया है. ब्लॉग जगत से ही मुझे  अविनाश वाचस्पति जी, अजय झा जी, जय कुमार झा जी, खुशदीप भाई, इरफ़ान 'कार्टूनिस्ट', महफूज़ अली, डॉ. अनवर जमाल, शहरोज़ कमर, सतीश सक्सेना जी, तारकेश्वर गिरी, अलबेला खत्री, डॉ, अयाज़, सलीम खान और महक भवानी जैसे बहुत सारे मित्र और अज़ीज़ मिले (लिस्ट बहुत लम्बी है). इसके साथ-साथ हरीश कुमार तेवतिया, साजिद अली, पवन कुमार, लियाक़त अली तथा वंदना सिंह जैसे कई नए लेखकों को ब्लॉग जगत में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.

    लेकिन आज इस मोड़ पर आकर मेरा मन बहुत विचलित है, कई दिनों के सोच-विचार के बाद भी मुझे समझ में नहीं आया कि आखिर मैंने कहाँ गलती की? कब किसी की आस्था अथवा व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखा? आखिर क्यों कुछ लोग मुझे जिहादी जैसे शब्दों से पुकार रहे है? (हालाँकि जिहाद एक पवित्र शब्द है, लेकिन ब्लॉग जगत में नफरत के स्वरुप में प्रयोग हो रहा है) क्यों मेरा नाम  ब्लॉग जगत के कुछ तथाकथित गुटों के साथ जोड़ा जाता है?

    आज से मैं अपनी रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी नोर्मल ब्लागिंग को अलविदा कह रहा हूँ. केवल चुनिन्दा लोगों के ब्लॉग ही पढूंगा और उनपर ही टिपण्णी करूँगा. जिस ब्लॉग में भी किसी धर्म अथवा व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखा जाता है उनको नहीं पढूंगा.

    -शाहनवाज़ सिद्दीकी

    61 comments:

    1. i just detest when bloggers who follow muslim faith try to say the hindus are orthodox and hindus follow wrong customs and practice

      all religions are in principle orthodox and what gives some muslim faith followers a right to critsize hindu faith followers

      make improvement in all religions .
      a particular set of muslim faith followers in name of education are critising hinduism which is wrong

      lets be honest like suresh chiplunkar and salim also both take a stand and stand with it

      you should not leave blogging but try to make improvements in it


      if you are an indian you dont have to prove it
      its your country as its mine and lets make it a better place to live by removing ills that are there in all religions and

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    2. भाई शाहनवाज़,

      इन छोटी व फ़ाल्तू बातों पर ध्यान न दो,मै जानता हूं आप सच के कायल रहे है,इस्लाम के सहिष्णु रूप के प्रतिनिधि है, दूसरों की बात छोडो, जिन्हें मुख्यधारा शब्द से ही नफ़रत है,
      और लोग जो आपको कट्टर देखना पसंद करते है,उन सभी से मुंह मोडो,पर ब्लोग जगत से नहिं
      अन्यथा इस्लाम को कुछ तो सही प्रस्तूत करने वाला गया तो। बाकि तो वाद-विवाद,आरोप-प्रत्यारोप,गाली-गलोच वाले ही बचेंगे। जो कि इस्लाम का ही नुक्सान होगा।

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    3. कभी-कभी जब अपनो से ठेस लगती है तो
      मन में आता है कि अलविदा कह दिया जाए।
      हमने भी कह दिया था और पूरे एक माह ब्लाग पर नहीं आए। फ़िर बाद में सुरेश चिपलुनकर जी एक जगह कमेंट की थी, उसको पढकर ब्लाग-राग समझ में आया। तो सोचा कि हमने अलविदा कह के गलत किया था।


      "जो भी परिस्थितियां आएं उनका डट कर मुकाबला करो और अपने स्थान पर टिके रहो।
      मेरी यही कामना है।"

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    4. @शाहनवाज़ भाई

      ऐसा गज़ब क्यों ढा रहें हैं आप ,आपके ब्लॉग्गिंग को अलविदा कहने का मतलब होगा एक अच्छे और निष्पक्ष इंसान की ब्लॉग जगत में कमी करना

      आखिर ऐसा क्या हुआ है जो आप इतना विचलित और दुखी हुए हैं ? कौन कह रहा है की आपने किसी की आस्था एवं व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखा और कौन आपको जेहादी या किसी गिरोह का सदस्य बता रहा है ??

      कृपया अवश्य बताएं ,जब तक आप बताएँगे नहीं तब तक पता कैसे चलेगा ?

      और आपने अंत में ब्लॉग संसद का नाम लिया है ,इसका मतलब आपको वहाँ पर किसी वजह से दुःख पहुंचा है तो मेरी आपसे विनती और प्रार्थना हैं की पूरी बात बताएं की आखिर ऐसा हुआ क्या है जो आपको ऐसा और हमें दुखी करने वाला निर्णय लेना पड़ा ??

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    5. सीधे कह देते कि ब्‍लोगवाणी नहीं तो ब्‍लागिंग नहीं,
      मजा नहीं आ रहा है

      खेर

      तुम गया वक्‍त तो हो नहीं कि आ न सको

      ब्‍लोगवाणी लौट आयगी तो तुम्‍हें सुचित कर दिया जाएगा

      इस लिए
      अलविदा

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    6. अगर आप जैसे अच्छे विचारो वाले लेखक इस तरह कुछ असामाजिक तत्वों से डरेंगे तो हमारा क्या होगा। कुछ लोगो का तो काम हैं धर्म का दुष्प्रचार करना, लेकिन हमारा भी कर्त्तव्य बनता हैं कि ऐसे लोगो को मुंह तोड़ जबाब दे। हर धर्म के अन्दर ऐसे धार्मिक गद्दार पड़े हुए हैं जो नहीं चाहते कि इन्सान एक साथ रहे.

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    7. यार आपको जिहादी कह दिया हमको फ़सादी कह दिया तो क्या करें?शराफ़त के प्रमाणपत्र की चाहत में इतने परेशान हो। ये वो लोग हैं जो कहते हैं कि गधे पर बैठे तो क्यों बैठे और उतर गये तो क्यों उतरे..... इनसे परेशान हो गये तो ये आपकी कमज़ोरी है। जब शक्तिसंचय कर लें तब दोबारा आ जाइयेगा। शोले के वीरू की तरह टंकी पर तो नहीं चढ़े है न???
      शुभकामनाएं शांत रहिए, प्रसन्न रहिए...।

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    8. शाहनवाज़ भाई आप अपने फैसले पर गंभीरता से फिर विचार करें। क्योकि कहने वाले तो कहते ही रहेंगे ।

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    9. ये सही नहीं है. पुनर्विचार करें अपने फैसले पर. शुभकामनाएँ.

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    10. हर वर्ष सैंकडों नये लोगों से परिचय होता है। हर वर्ष सैंकडों नये-पुराने ब्लॉग हम पढते हैं। लेकिन कुछ केवल उंगलियों पर गिने जाने लायक ही हमारे जेहन में जगह बनाते हैं और उनकी याद बनी रहती है।
      नांगलोई ब्लॉगर मीट के बाद से निरन्तर आपके लेख पढता रहा हूँ। मुझे कभी भी आपके लेखन में या विचारों से असहमति नहीं हुई है या कभी भी ऐसा नहीं लगा कि कहीं भी, किसी की भी धार्मिकता को ठेस पहुंची होगी। एक निष्पक्ष विचारधारा के धनी हैं आप। सचमुच आपके लेखों, विचारों की हमें जरुरत है।
      कृप्या श्री सुज्ञ जी, श्री ललितजी, श्री तारकेश्वर जी की टिप्पणियों को बार-बार पढें और आप अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
      आप यहां रहेंगें और आपके लेख हमें पढने को मिलेंगें तो आभार होगा।

      प्रणाम स्वीकार करें

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    11. अच्छी रचना!!!!!!!!!!!!!
      लम्बी रेस का घोड़ा है है भाई अपन शाहनवाज़.. जाना है अभी ऊँचा हद ए परवाज़ से!!
      रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
      समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
      http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html

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    12. शाहनवाज़ भाई, हमारे और आपके ऊपर इलज़ाम लगाने वाले ऐसे लोग हैं जिन्हें बाप तो दूर खुद अपने नाम का नहीं पता. वरना अनोनिमस बनकर हरगिज़ टिप्पणी न करते. ऐसे लोग दूसरों को जिहादी कहते हैं और खुद सबसे बड़े फसादी होते हैं जिनकी सामने आते हुए भी नानी मरती है. ऐसे लोगों की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से उड़ा देना चाहिए. वैसे आपका यह डिसीज़न सही है की जहां धर्म के खिलाफ उल्टा सीधा बका जा रहा है वहाँ जाने की ज़रुरत ही नहीं (तार्किक बहस की बात अलग है.) लेकिन मैं नहीं समझता की ब्लॉग्गिंग छोड़ने की ज़रुरत है जबकि महक जी और तारकेश्वर जी जैसे अच्छे लोग हमारे साथ हैं.

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    13. जो लोग डरते हैं उन्‍हें डराया जाता है और फिर भगाया जाता है। आप फैसला करें कि क्‍या आप डरते हैं? एक जगह से डरे तो मान कर चलिए दुनिया में कदम कदम पर डरना पडेगा और भागना पडेगा। कहाँ-कहाँ से भागिएगा?

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    14. शाहनवाज जी आप एक सुलझे हुए और समझदार ब्लोगर हैं और आपकी ब्लॉग जगत को ही नहीं बल्कि इस देश और समाज को भी जरूरत है ,इसलिए मेरा आपसे आग्रह है की आप ब्लोगिंग को अलविदा मत कहिये और देश के गंभीर मुद्दों पर एक पोस्ट रोज जरूर लिखिए | इन छोटी मोटी बातों से घबराने और मैदान छोरने की कोई जरूरत नहीं है ,परेशान तो मैं भी हूँ लेकिन देश के भ्रष्ट,लूटेरे और कमीने मंत्रियों से ये ब्लोगर तो हमारे आपके भाई हैं बस फर्क इतना है की कोई थोडा समझदार है और कोई हम आप जैसा कम समझदार ,इसलिए ब्लोगरों के किसी बात का अगर आपको बुरा लगा हो तो मैं माफ़ी मांगता हूँ ...!

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    15. मैं ब्लोगिंग से पूर्णत: नहीं बल्कि सामान्यत: जो ब्लोगिंग करता था उसे अलविदा कह रहा हूँ, पिछले कई महीनो से मेरा रूटीन यह था, कि कम्प्यूटर खोलते ही ब्लागवाणी अथवा चिट्ठाजगत पर जा कर मुख्य प्रष्ट के तथा हॉट लिस्ट के सभी लेखों को पढता था. लेकिन अब मैं यह सब नहीं करूँगा.

      जैसा की मैंने ऊपर लिखा है कि अब मैं केवल चुनिन्दा लोगो के ब्लॉग ही पढ़ा करूँगा. जिस ब्लॉग में भी किसी धर्म अथवा व्यक्ति विशेष के खिलाफ दुर्भावना पूर्ण सोच से लिखा जाता है अब उनको नहीं पढूंगा.

      आप सब मेरे ब्लॉग पर आए और मुझे प्रोत्साहन दिया, इसके लिए मैं बहुत आभारी हूँ.

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    16. सब आपने अपने उद्देश्य को लेकर लिखते हैं इनके कमेन्ट पढ़ कर अपने आप को भूल जाना ...क्या यह कमजोरी नहीं है शाहनवाज !
      कुछ लोगों की आलोचना में वज़न होता है उन्हें ही ध्यान से देखिये और अगर अपनी भूल हो तो स्पष्टीकरण दे देने अथवा भूल स्वीकार की जानी चाहिए मगर कुछ लोग सिर्फ आपको नीचा दिखने के लिए अथवा अपने आपको हाई लाईट करने के लिए लिखते हैं और आपको दुःख पहुंचाने के लिए लिखते हैं उनसे क्या घबराना ?? उन्हें न पढना ही ठीक है और अगर फिर भी न माने तो उन्हें बताना कि कौन बेईमान है बहुत आवश्यक होता है !
      अन्याय सहकर बैठ जाना यह महा दुष्कर्म है
      न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है !
      आशा है आप जैसा समझदार व्यक्ति कायरता पूर्ण कार्य न करेगा बल्कि किसी को करने भी न देगा !
      हार्दिक शुभकामनायें !

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    17. पलायन आपको कचोटेगा।

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    18. शहनवाज़ भाई,
      अभी अभी आपसे हमरा रिस्ता बना था (मतलब हमारे तरफ से) और आप अलविदा कहने लगे.. देखिए हमरा नाम त कोनो ओतना बड़ा नाम नहीं है जिनका नाम आप लिखे हैं..लेकिन मन बोला कि आपके साथ जुड़ सकते हैं अऊर हम जुड़ गए.. फैसला आपका है, लेकिन किसी के कहने से आप अईसा करेंगे ई बात ठीक नहीं... ऊ लोग इसीलिए त बोला होगा ई बात अऊर आप उनका मन का काम कर दिए... खैर जादा बात त हमको नहीं मालूम है. इसलिए गुजारिस कर सकते हैं..दोबारा सोचकर देखिए!!

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    19. भुक्तभोगी हूँ, जानता हूँ कि ठेस पहुँचती ही है।

      संतुलित, सीमित लेखन बेशक करें किन्तु ऐसे ही विचारों वाले अपने साथियों समान अन्य ब्लॉगों पर निगाह रख टिप्पणी देते हुए अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते रहें।

      शुभकामनाएँ

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    20. भाई शाहनवाज़,

      इन छोटी व फ़ाल्तू बातों पर ध्यान न दो,मै जानता हूं आप सच के कायल रहे है,इस्लाम के सहिष्णु रूप के प्रतिनिधि है, दूसरों की बात छोडो, जिन्हें मुख्यधारा शब्द से ही नफ़रत है,
      और लोग जो आपको कट्टर देखना पसंद करते है,उन सभी से मुंह मोडो,पर ब्लोग जगत से नहिं
      अन्यथा इस्लाम को कुछ तो सही प्रस्तूत करने वाला गया तो। बाकि तो वाद-विवाद,आरोप-प्रत्यारोप,गाली-गलोच वाले ही बचेंगे। जो कि इस्लाम का ही नुक्सान होगा।

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    21. कभी-कभी जब अपनो से ठेस लगती है तो
      मन में आता है कि अलविदा कह दिया जाए।



      "जो भी परिस्थितियां आएं उनका डट कर मुकाबला करो और अपने स्थान पर टिके रहो।
      मेरी यही कामना है।"

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    22. @शाहनवाज़ भाई

      ऐसा गज़ब क्यों ढा रहें हैं आप ,आपके ब्लॉग्गिंग को अलविदा कहने का मतलब होगा एक अच्छे और निष्पक्ष इंसान की ब्लॉग जगत में कमी करना

      आखिर ऐसा क्या हुआ है जो आप इतना विचलित और दुखी हुए हैं ? कौन कह रहा है की आपने किसी की आस्था एवं व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखा और कौन आपको जेहादी या किसी गिरोह का सदस्य बता रहा है ??

      कृपया अवश्य बताएं ,जब तक आप बताएँगे नहीं तब तक पता कैसे चलेगा ?

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    23. अगर आप जैसे अच्छे विचारो वाले लेखक इस तरह कुछ असामाजिक तत्वों से डरेंगे तो हमारा क्या होगा। कुछ लोगो का तो काम हैं धर्म का दुष्प्रचार करना, लेकिन हमारा भी कर्त्तव्य बनता हैं कि ऐसे लोगो को मुंह तोड़ जबाब दे। हर धर्म के अन्दर ऐसे धार्मिक गद्दार पड़े हुए हैं जो नहीं चाहते कि इन्सान एक साथ रहे.

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    24. शाहनवाज़ भाई आप अपने फैसले पर गंभीरता से फिर विचार करें। क्योकि कहने वाले तो कहते ही रहेंगे ।

      A

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    25. ये सही नहीं है. पुनर्विचार करें अपने फैसले पर. शुभकामनाएँ.

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    26. हर वर्ष सैंकडों नये लोगों से परिचय होता है। हर वर्ष सैंकडों नये-पुराने ब्लॉग हम पढते हैं। लेकिन कुछ केवल उंगलियों पर गिने जाने लायक ही हमारे जेहन में जगह बनाते हैं और उनकी याद बनी रहती है।
      नांगलोई ब्लॉगर मीट के बाद से निरन्तर आपके लेख पढता रहा हूँ। मुझे कभी भी आपके लेखन में या विचारों से असहमति नहीं हुई है या कभी भी ऐसा नहीं लगा कि कहीं भी, किसी की भी धार्मिकता को ठेस पहुंची होगी। एक निष्पक्ष विचारधारा के धनी हैं आप। सचमुच आपके लेखों, विचारों की हमें जरुरत है।
      कृप्या श्री सुज्ञ जी, श्री ललितजी, श्री तारकेश्वर जी की टिप्पणियों को बार-बार पढें और आप अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
      आप यहां रहेंगें और आपके लेख हमें पढने को मिलेंगें तो आभार होगा।

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    27. शाहनवाज़ भाई, हमारे और आपके ऊपर इलज़ाम लगाने वाले ऐसे लोग हैं जिन्हें बाप तो दूर खुद अपने नाम का नहीं पता. वरना अनोनिमस बनकर हरगिज़ टिप्पणी न करते. ऐसे लोग दूसरों को जिहादी कहते हैं और खुद सबसे बड़े फसादी होते हैं जिनकी सामने आते हुए भी नानी मरती है. ऐसे लोगों की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से उड़ा देना चाहिए.

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    28. जो लोग डरते हैं उन्‍हें डराया जाता है और फिर भगाया जाता है। आप फैसला करें कि क्‍या आप डरते हैं? एक जगह से डरे तो मान कर चलिए दुनिया में कदम कदम पर डरना पडेगा और भागना पडेगा। कहाँ-कहाँ से भागिएगा?

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    29. शाहनवाज जी आप एक सुलझे हुए और समझदार ब्लोगर हैं और आपकी ब्लॉग जगत को ही नहीं बल्कि इस देश और समाज को भी जरूरत है ,इसलिए मेरा आपसे आग्रह है की आप ब्लोगिंग को अलविदा मत कहिये और देश के गंभीर मुद्दों पर एक पोस्ट रोज जरूर लिखिए | इन छोटी मोटी बातों से घबराने और मैदान छोरने की कोई जरूरत नहीं है ,परेशान तो मैं भी हूँ लेकिन देश के भ्रष्ट,लूटेरे और कमीने मंत्रियों से ये ब्लोगर तो हमारे आपके भाई हैं बस फर्क इतना है की कोई थोडा समझदार है और कोई हम आप जैसा कम समझदार ,इसलिए ब्लोगरों के किसी बात का अगर आपको बुरा लगा हो तो मैं माफ़ी मांगता हूँ ...!

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    30. सब आपने अपने उद्देश्य को लेकर लिखते हैं इनके कमेन्ट पढ़ कर अपने आप को भूल जाना ...क्या यह कमजोरी नहीं है शाहनवाज !
      कुछ लोगों की आलोचना में वज़न होता है उन्हें ही ध्यान से देखिये और अगर अपनी भूल हो तो स्पष्टीकरण दे देने अथवा भूल स्वीकार की जानी चाहिए मगर कुछ लोग सिर्फ आपको नीचा दिखने के लिए अथवा अपने आपको हाई लाईट करने के लिए लिखते हैं और आपको दुःख पहुंचाने के लिए लिखते हैं उनसे क्या घबराना ?? उन्हें न पढना ही ठीक है और अगर फिर भी न माने तो उन्हें बताना कि कौन बेईमान है बहुत आवश्यक होता है !
      अन्याय सहकर बैठ जाना यह महा दुष्कर्म है
      न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है !
      आशा है आप जैसा समझदार व्यक्ति कायरता पूर्ण कार्य न करेगा बल्कि किसी को करने भी न देगा !
      हार्दिक शुभकामनायें !

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    31. शहनवाज़ भाई,
      अभी अभी आपसे हमरा रिस्ता बना था (मतलब हमारे तरफ से) और आप अलविदा कहने लगे.. देखिए हमरा नाम त कोनो ओतना बड़ा नाम नहीं है जिनका नाम आप लिखे हैं..लेकिन मन बोला कि आपके साथ जुड़ सकते हैं अऊर हम जुड़ गए.. फैसला आपका है, लेकिन किसी के कहने से आप अईसा करेंगे ई बात ठीक नहीं... ऊ लोग इसीलिए त बोला होगा ई बात अऊर आप उनका मन का काम कर दिए... खैर जादा बात त हमको नहीं मालूम है. इसलिए गुजारिस कर सकते हैं..दोबारा सोचकर देखिए!!

      A

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    32. भुक्तभोगी हूँ, जानता हूँ कि ठेस पहुँचती ही है।

      संतुलित, सीमित लेखन बेशक करें किन्तु ऐसे ही विचारों वाले अपने साथियों समान अन्य ब्लॉगों पर निगाह रख टिप्पणी देते हुए अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते रहें।

      शुभकामनाएँ

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    33. सारे कौपीड कमेन्ट को मैं सपोर्ट करता हूँ.... अब अपनी एक बात कहूँगा जिगरी दोस्त होने के नाते......

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    34. भाई.......तुम बेवकूफ......... हो..... सुना नहीं है क्या....कुत्ते भौंकते हैं....और हाथी चलते हैं.... हैसियत में छोटे लोग तुम्हे परेशां करेंगे..... ताकि तुम भी उन्ही की हैसियत पर आ जाओ....

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    35. तुम्हे लात मारनी नहीं आती....

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    36. एक बात का ध्यान रखो,..... हमेशा यह कहना अपने विरोधियों से........कि ......अगर मेरी तरह हिम्मत है तो.... कि ..मारना तो गोली मारना ...... झापड़ या हाथों से नहीं.... क्यूंकि मैं जब मारूंगा तो सीधा गोली मारूंगा.... मेरे ऊपर कई मुकदमों का होना इस बात का सबूत है.... जब तक के यह ऐतित्युद नहीं रखोगे तो हमेशा लात ही खाओगे....

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    37. और एक बात और........ ज़िन्दगी में कभी डरना मत....... अगर डरोगे तो लोग डरायेंगे........ लात मारना सीखो....... और अपने से कमज़ोर लोगों से कभी मत उलझो....... कमज़ोर तुम्हे तुम्हरी कमोजोरी बताएगा.... और कमज़ोर करेगा.... यह तुम्हारी गलती थी कि तुमने गलत लोगों का साथ किया.... और आज इस नौबत पर आये.... कि अलविदा कहना पडा........

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    38. मुझे कमोजोर लोग नहीं पसंद हैं.... चाहे वो हैसियत में ...हों.... या फिर ताक़त में.... मुझे गरीब और शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर इंसान नापसंद हैं....

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    39. मैं तुम्हे ताक़तवर देखना चाहता हूँ....... इस तरह की बुजदिली बातें करने वाला नहीं...........

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    40. जो दोस्त तुम्हारा तुमसे नाराज़ हो जाए........ वो कभी दोस्त हो ही नहीं सकता.... दोस्त हमेशा ऊपर उठाता है.... नाराजगी में भी साथ रहता है....

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    41. हमेशा दो लोगों को लात मारनी चाहिए.... एल गरीब आदमी को......... दूसरा ..... जो पीठ में छूरा घोंपे.... गरीब को इसलिए लात मारनी चाहिए.... क्यूंकि इंसान गरीब अपनी करनी से होता है.... इन पर दया नहीं करनी चाहिए.... और छूरा घोंपने वाले पर तो लात अपने आप ही बरसती है....

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    42. इतना भाषण इसलिए दे रहा हूँ.... क्यूंकि मैं अपने दोस्त को कमज़ोर नहीं देखना चाहता.... और तुम उन लोगों में से हो.... जो मेरे बारे में पर्सनली जानता है.... अब बंद करता हूँ भाषण........... दैट्स ऑल.......

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    43. महफूज़ अली के यह कमेन्ट अगर एक लेख के रूप में पढ़े जाएँ तो गलत न होगा यह सिर्फ शाहनवाज के लिए ही नहीं बल्कि सामान्यता आम व्यवहार के लिए भी बहुत सदुपयोगी हैं ! मह्फूज़ली अधिकतर अपनी मस्ती के लिए जाने जाते हैं मगर आज वे अपने स्वभाव के विपरीत बहुत सही लिख गए हैं उम्मीद है लोग इसे उचित मान देंगे !
      धन्यवाद महफूज़ मियाँ ! !

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    44. परिस्थितियों से अपने तरीके से ही निपटा जाता है ..पलायन कोई हल नहीं ...जो न अच्छा लगे मत पढ़िए ... कौन आपको ज़बरदस्ती पढवा देगा ?

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    45. शाहनवाज भाई फैसला आपका
      अच्‍छा लगा
      जबकि जीवन में करना चाहिए यही
      राह सही है यही
      सही को सही रहने दें
      गलत को सही करने की कोशिश करते रहें
      और सही पढ़ते-चलते रहें
      आता हूं जैसे ही दिल्‍ली में
      करता हूं आपसे बात
      बहुत लंबा रहेगा अपना साथ
      सच्‍चाई का साथ सदा स्‍थाई
      मैंने तो अब यही समझा है भाई।

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    46. अगर मैंने सही पढ़ा है तो आपने लिखा है कि आप गंभीर ब्लॉग्गिंग की तरफ रुख कर रहे हैं तो ये तो अच्छी बात है - पलायन ठीक नहीं - चलायमान रहना ही जीवन है !!

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    47. मित्र...इस तरह...अचानक ब्लोग्गिं को छोड़ देना या उसे सीमित परिधि के दायरे में बाँध देना मेरे ख्याल से सही नहीं है...एक बार पुन:अपने फैसले पर विचार करें...
      इस हिन्दी ब्लॉगजगत में कुछ ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो चाहती हैं कि अच्छे लोगों का ...अच्छे लेखकों का यहाँ से नामोनिशान मिट जाए..इसलिए बेनामी टिप्पणियों के जरिये कभी अजय झा को परेशान किया गया तो कभी ललित जी को...अब आपका नंबर आया है...
      इनसे घबरा कर अपनी अभिव्यक्ति को लगाम लगा देना मेरे ख्याल से सही नहीं है...
      पु: आपसे निवेदन कि अपने इस ब्लोग्गिं छोड़ने के फैसले को अमल में ना लाएं

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    48. . रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाए...

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    49. BHAI ABHI NA JAO CHHOD KAR KI ABHI YEH DIL BHARA NAHIN !

      IMAAN KO ITNA KAMZOR NA BANAYEN...

      YAHAN MLA SB, SAJID SB ,SALEEM SB AUR ANWAR SB KE COMENT NA PAAKAR AFSOS HO RAHA HAI.AUR HAAN SHAHARYAR BHI GAYAB HAIN !

      APNA KAM KAREN BLOG KI DINIYA ME YUN BHI AISE HI LOG HAIN JAHAN VICHAR BADLON KEE OT SE KABHI TAPAK GAYA TO TAPAK GAYA AUR AISA TAPAKTA HAI KI BAARISH SE BEEMARI HI PHAILTI HAI!!


      FIZUL KE COMMENT PAR DHYAN HI NA DEN.

      JNAYI POST DEKH KAR ACHCHA LAGA KI AAPNE FAISLA BADAL LIYA HAI!

      AUR HAN MAHFOOZ SB NE KAMAL KIYA HAI !
      KHUDA INHAIN MAHFOOZ HI RAKHEGA APNI BATON SE !

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    50. गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
      वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले...
      उम्मीद है के आगे भी आप के लेख पढने मिलते रहेंगे !

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    51. हार मानना ठीक नही ... इससे तो वो सफल होंगे जो ऐसा चाहते हैं ....

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    52. शाह नवाज़ जी, मैंने तुम्हारे थोड़े ही लेख पढ़े हैं लेकिन उससे ही अंदाज़ा हो गया था की बहुत अच्छा लिखते हो. मेरे ख़याल से आपको लोगो के बातो में नहीं आना चाहिए, लोग तो हमेशा ही टांग खीचते हैं... आप परेशान क्यों होते हैं आपने खुद ही तो कहा है की जिहाद एक पवित्र शब्द है तो फिर तो यह आपके लिए गर्व की बात होनी चाहिए. जिन्हें जिहाद का मतलब नहीं पता वाही आपके लिए ऐसा बोलते हैं, आपका फ़र्ज़ है की उन्हें जिहाद का मतलब समझाएं, ना की समझना बंद करे. आपको जितना भी वक़्त हो सबके ब्लॉग पढने चाहिए.

      आपका दोस्त
      शहरयार

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    53. लोगो के कमेन्ट पढ़ कर लगा की लोग आपसे कितनी मोहब्बत करते हैं, फिर आपको परेशान होने की क्या ज़रूरत है?

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    54. आपके ब्लॉग्गिंग को अलविदा कहने का मतलब होगा एक अच्छे और निष्पक्ष इंसान की ब्लॉग जगत में कमी करना

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    55. आज मै आपके ब्लॉग पर आई बहुत अच्छा लिखते हैं आप, साथ ही पढ़ा कि आप ब्लॉग जगत को अलविदा कह रहे है...मैं एक ही बात पर अमल करती हूं जो मुझे सही लगता है मैं वही करती हूं। जहां गलत होती हूं वहां क्षमा मांगती हूं और और जहां गलती नहीं है वहां मैं समझौता कभी नहीं करती। आपके बारे में मैं ज्यादा नहीं जानती...पर टिप्पणियों से यह साफ जाहिर है कि आपसे लोग दिल से जुड़े हैं और आपको पढ़ना चाहते हैं तो आपके भी यह हक नहीं है कि आप अपने मित्रों को नजरंदाज करें। रहा सवाल तोहमत लगाने का, अगर सच है, तो आप बेशक अलविदा कहिए लेकिन अगर गलत है तो आपको पैर जमाकर खड़े रहना होगा और कहने वालों को जवाब देना होगा....फैसला निश्चित रूप से आपका ही होगा...

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    56. main kisi se khafaa nahin, khud se khafaa hoon !

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    57. किसी के कुछ कहने पर कुछ छोड देने भर से कुछ नहीं बदलेगा । अगर बदलना हैं तो लडना तो पडेगा ही ।

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