खेलों में सेक्स और संगीत का तड़का

कल परिवार के साथ IPL देखने गए, हालाँकि टीम दिल्ली डेयरडेविल हार गई लेकिन हमने बच्चों के साथ खूब इंजॉय किया। पुरानी यादें ताज़ा हुई, स्कूल के दिनों में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रिकेट सीखने और प्रेक्टिस करने आया करते थे। पत्नी को बताया कि कहाँ क्या किया करते थे, इंटरनेश्नल मैच होने पर प्रेक्टिस सेशन में किस-किस खिलाड़ी की मदद करते थे। श्रीमती कहने लगी कि सब पता है, पिछले छह साल में सब कुछ कई बार सुन चुकी हूँ! 

तब से अब तक क्रिकेट कितना बदल गया है! तब अक्सर स्टेडियम में हमारे तीन दिवसीय मैच हुआ करते थे, उन दिनों लोग पाँच दिवसीय टेस्ट मैचों के लिए इंतज़ार किया करते थे परन्तु आजकल तो 20-20 ओवर के मैच में भी लोगो को जमाए रखने के लिए सेक्स और संगीत का तड़का लगाया जा रहा है बीच-बीच में तेज़ संगीत के साथ बदन पर नाम मात्र के कपडे पहने हुए देशी-विदेशी बालाओं का थिरकना समझ से परे है  आखिर इन खेलों के संयोजक और प्रायोजक आने वाली पीढ़ी को क्या सन्देश देना चाहते हैं? क्या यह लोगों को खेलों से जोड़ने की कोशिश हैं या फिर खेलों को भी प्रोडक्ट की तरह बेचा जा रहा हैं?

इधर फ़ुटबाल, टेनिस और क्रिकेट जैसे खेलों की देखा-देखी बेडमिन्टन में भी ग्लेमर्स का तड़का लगाने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं अंतर्राष्ट्रीय बेडमिन्टन महासंघ ने लड़कियों को छोटी सी स्कर्ट पहनकर मैच खेलने का आदेश दिया है उनका तर्क है कि खिलाड़ियों का इस तरह अंग प्रदर्शन करने से ज्यादा लोग बेडमिन्टन देखने आएँगे मैं मालूम करना चाहता हूँ कि अगर फिर भी लोग मैच देखने को उत्सुक नहीं हुए तो क्या लड़कियों को और भी ज्यादा कपडे उतारने के आदेश दिए जाएँगे? हालाँकि खिलाड़ी क्या पहने यह उनका फैसला होना चाहिए, लेकिन इस तरह खिलाड़ियों के बदन को ज़बरदस्ती नंगा करके हैवानो की भीड़ जुटाना कैसे तर्कसंगत है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या ऐसे खेल खेलने वाले खिलाड़ियों की आत्मा मर चुकी है? या उनमें भी ग्लेमर्स बनने का नशा छा रहा है? कम से कम सायना नेहवाल से तो इस पर विरोध की उम्मीद की ही जा सकती है

मेरे विचार से तो सरकार को अब खेलों में भी 'ए' सर्टिफिकेट जारी करने चाहिए क्योंकि खेल भी अब बच्चों के साथ जाकर देखने की जगह नहीं रह गए हैं



चलिए आप कल के कुछ फोटो देखिये:

मैच में दिल्ली की पकड़ नहीं थी, इसलिए दर्शकों में उत्साह भी कम ही था

फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम शाम के समय

रात के समय
छोटी बिटिया 'बुशरा' उर्फ़ 'ज़ोया'


बड़ी बेटी 'ऐना'


कोल्ड ड्रिंक और बर्गर ना मिलने के कारण बिटिया नाराज़ हो गयी



बड़ी मुश्किल से मनाया... यह और बात है कि जेब ढीली करनी पड़ गयी :-) 
 


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जनसंदेश टाइम्स में ‘प्रेम रस’ की समीक्षा

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शाहनवाज़ ने भले ही ब्‍लॉगिंग की शुरूआत अंग्रेजी से की हो, पर उनकी जड़ें आज भी अपनी मातृभूमि और मातृभाषा में गहराई तक समाई हुई हैं। यही कारण है कि वे राष्‍ट्रभाषा के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखते हैं और अंग्रेजीदां लोगों की मानसिकता पर चोट करने में भी पीछे नहीं रहते...

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को लोकप्रिय बनाने में जहां पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होने वाले लेखों ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं इसमें सभी ब्‍लॉगों की अपडेट की जानकारी देने वाले एग्रीगेटरों (ब्‍लॉग की नवीनतम स्थितियां बताने वाली वेबसाइटें) का रोल भी महत्‍वपूर्ण रहा है। इनमें सबसे महत्‍वपूर्ण रहे हैं ब्‍लॉगों की टी0आर0पी0 बताने वाले कॉलम। ब्‍लॉगों की यह टी0आर0पी0 जहां नए पाठक को चमत्‍कृत करती है, वहीं नये ब्‍लॉगर्स को अपनी ओर खींचती भी है। ..और इसी आकर्षण का प्रतिफल है शाहनवाज़ सिद्दीकी का ब्‍लॉग ‘प्रेम रस’।

मधुर वाणी का महत्त्व
शाहनवाज़ विज्ञापन के क्षेत्र से जुड़े हैं और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं। उन्‍होंने ब्लॉगिंग की शुरुआत हालांकि 2007 में ही कर दी थी। तब वे इंग्लिश में लिखा करते थे। किन्‍तु उनके मन में बचपन से ही हिंदी के प्रति एक लगाव सा था, जो मार्च 2010 में ‘प्रेम रस’ के रूप में फलीभूत हुआ। शाहनवाज़ जहां एक ओर व्‍यंग्‍यकार के रूप में हमारे सामने आते हैं, वहीं दूसरी ओर वे समसामयिक परिस्थितियों को विश्‍लेषित करने वाले चिंतक के रूप में भी दिखाई पड़ते हैं। उनका मानना है कि अगर व्‍यक्ति के जीवन में प्रेम नहीं है, तो कुछ भी नहीं है। वे अपनी पोस्‍ट ‘मधुर वाणी का महत्त्व’ में कहते हैं कि ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है। यही हर धर्म का सन्देश भी है। वे प्रेम के महत्‍व को रेखांकित करते हुए कहते हैं: ‘प्रेम की तो अजीब ही लीला है। स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है और इससे स्वयं प्रभु खुश होते हैं। ..कुरआन के अनुसार जब प्रभु किसी से खुश होते हैं तो अपने फरिश्तों से कहते हैं कि मैं उक्त मनुष्य से प्रेम करता हूँ। तुम भी उससे प्रेम करो और पूरे ब्रह्माण्ड में यह खबर फैला दो।’

चूहे की महिमा और मुख्यमंत्री जी
शाहनवाज़ आम आदमी के पैरोकार हैं। उन्‍हें जहां भी मौका मिलता है, वे आम आदमी के दर्द को बयां करने से नहीं चूकते। अपनी एक व्‍यंग्‍य आधारित पोस्‍ट ‘चूहे की महिमा और मुख्यमंत्री जी’ में उन्‍होंने एक चूहे के बहाने आम आदमी की स्थितियों को बखूबी बयां किया है, ‘हमारे यहां तो उन्हें बची हुई सूखी रोटी ही मिलती होगी और वह भी कभी-कभी। हाँ उनके यहां अवश्य ही देसी घी के लड्डू मिल जाते होंगे। फिर वहां हिसाब रखने वाला भी कौन होगा कि लड्डू गायब कैसे हो गए। हमें तो पता रहता है कि हमने दो रोटी बनाई थी और उसमें से आधी बचा दी थी कि सुबह उठ कर खा लेंगे।’

भ्रष्टचार की जड़
आम आदमी आज जिस चीज से सबसे ज्‍यादा त्रस्‍त है, वह है हमारे समाज में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार।शाहनवाज़ ने अपनी पोस्‍ट ‘भ्रष्टचार की जड़’ में उसके कारणों की पड़ताल करने की ईमानदार कोशिश की है। वे इसकी वजहों को विश्‍लेषित करते हुए कहते हैं कि भ्रष्टाचार हमारे बीच से ही शुरू होता है। हम अक्सर इसे अपने आस-पास फलते-फूलते हुए ही नहीं देखते हैं, बल्कि अक्सर खुद भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। शाहनवाज़ सवाल उठाते हुए कहते हैं कि हम नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों इत्यादि को तो कोसते हैं, लेकिन हम स्वयं भी कितने ही झूठ और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं? उनका मानना है कि अगर हम वास्‍तव में समाज से इस दानव का नामो-निशान मिटाना चाहते हैं, तो पहले हमें अपने अंदर के भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा। शुरुआत अपने से और अपनों से हो तभी भ्रष्टाचार का यह दानव समाप्त हो सकता है।

निवेश के नाम पर ठगी
शाहनवाज़ जीवन की उन छोटी-छोटी बातों पर बारीक नजर रखते हैं, जो हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं, फिर चाहे वे ‘फुटपाथ पर होती दुर्घटनाएँ’ हों अथवा विभिन्‍न कम्‍पनियों द्वारा की जाने वाली ‘निवेश के नाम पर ठगी’। एक ओर जहां वे फुटपाथ पर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए सरकार की गलत नीतियों की वजह से रोजगार में आए हुए असंतुलन के कारण शहरों में बढ़ती भीड़ को मानते हैं, वहीं समाज में होने वाली ठगी की घटनाओं के लिए मनुष्‍य के मन में समाई लालच की भावना को जिम्‍मेदार ठहराते हैं। वे ठगी के लिए बनाई जाने वाली नित नई स्‍कीमों के बारे में बताते हुए कहते हैं: ‘दरअसल ऐसी कंपनियां मनोविज्ञान में माहिर होती हैं और जानती है कि मध्यवर्गीय लोगों की नस कहां है। ..ऐसी कंपनियां चलाने वाले जानते हैं कि मध्यमवर्गीय लोगों को लाभ के लोभ में फंसा कर अक्ल से अंधा किया जा सकता है और इसके लिए उनका विश्वास जीतना सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। एक बार विश्वास जमा, तो रात-दिन पैसा कमाने की धुन में परेशान लोगों के पास समय ही नहीं बचता है यह देखने के लिए कि कंपनी उनके पैसे का प्रयोग कैसे कर रही है।’

खानदानी पेशा जिसे सुन कर रूह भी कांप उठे
अपने एक लेख ‘खानदानी पेशा जिसे सुन कर रूह भी कांप उठे’ में शाहनवाज़ ने देह व्‍यापार की काली पर्तों को उधेड़ने का प्रयास किया है। वे शोषण के इस गंदे खेल के बारे में बताते हुए कहते हैं कि आज के युग में भी सबसे अधिक शोषण का शिकार नारी ही हो रही है। कहीं उन्हें सरेआम फैशन की दौड़ के बहाने लूटा जाता है, तो कहीं देह व्यापार की अंधी गली में धकेल दिया जाता है। वे भारत के देह व्यापार के 20 से 25 प्रतिशत के हिस्से ‘पारिवारिक देह व्यापार’ के सच को उकेरते हुए बताते हैं कि हद तो तब होती है जब लड़कियों के माता-पिता, मामा, भाई, चाचा जैसे सगे रिश्तेदार ही महिलाओं को इस दलदल में फंसने पर मजबूर कर देते हैं। वे देह व्‍यापार के एक घातक पक्ष को वर्णित करते हुए कहते हैं कि लड़कियों को देह व्यापार के धंधे में जल्द से जल्द झोंकने के चक्कर में उन्‍हें आक्सीटॉसिन के इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जिससे उनके शरीर के हार्मोन बिगड़ जाते हैं, जिससे उन्‍हें 11-12 साल की उम्र में ही देह व्यापार की भट्टी में झोंक दिया जाता है। वे आक्‍सीटॉसिन के कुप्रभावों को रेखांकित करते हुए कहते हैं, ‘आक्सीटॉसिन वह इंजेक्शन है जो भैंसो को अधिक तथा जल्दी दूध देने के लिए तथा मुर्गियों को जल्दी बड़ा बनाने के चक्कर में लगाए जाते हैं। ऐसे इंजेक्शन से अक्सर शरीर के हार्मोन बिगड़ जाते हैं, जो कि बाद में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं।’

क्या मंदिर-मस्जिद इंसान की जान से बढ़कर है?
भारत में रहने वाले प्राय: प्रत्‍येक व्‍यक्ति ने अपने जीवन में कभी न कभी साम्‍प्रदायिकता के डंक का सामना किया है। यह वह बीमारी है, जो आजादी के पहले से हमारा पीछा नहीं छोड़ रही है। दु:ख का विषय यह है कि आज भी तमाम राजनैतिक पार्टियां अपनी वोट की रोटियां सेकने के चक्‍कर में सैकड़ों लोगों को इसका जहर पिलाती रहती हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसे में शाहनवाज़ फिर इससे कैसे अछूते रह सकते हैं। वे अपनी पोस्‍ट ‘क्या मंदिर-मस्जिद इंसान की जान से बढ़कर है?’ में कैंसर और एड्स से भी खतरनाक इस व्‍याधि की तह में जाते हुए सवाल उठाते हैं कि दुनिया में कोई भी मस्जिद या मंदिर किसी इंसान की जान से बढ़कर कैसे हो सकता है? वे इसके लिए सिर्फ राजनीतिक दलों को कटघरे में खड़ा किये जाने और उनके उद्धार में इसका हल नहीं देखते। उनका स्‍पष्‍ट मानना है कि बुराई इन लोगो में नहीं बल्कि कहीं न कहीं हमारे अन्दर है। ..क्या कभी हमने इसके विरोध की कोशिश की? आज समय दूसरों को बुरा कहने की जगह अपने अन्दर झाँक कर देखने का है। मेरे विचार से शुरुआत मेरे अन्दर से होनी चाहिए।

विश्व में आतंकवाद का बढ़ता दायरा
शाहनवाज़ दुनिया में तेजी से बढ़ती हिंसक गतिविधियों और आतंकवादी घटनाओं से भी समान रूप से चिंतित हैं। उनका मानना है कि अलग-अलग देशों में हिंसक गतिविधियों के अनेकों कारण हो सकते हैं,परन्तु आमतौर पर ये प्रतिशोध की भावना से शुरू होती हैं और सरकार द्वारा सही ढ़ंग से उपचारित न किये जाने के कारण बढ़ती जाती हैं। वे ‘विश्व में आतंकवाद का बढ़ता दायरा’ पोस्‍ट में इसकी सम्‍यक पड़ताल करते हुए कहते हैं कि आंदोलन चाहे छोटे स्तर पर हों अथवा आतंकवाद का रूप ले चुके हों,इनको सिर्फ शक्ति बल से नहीं दबाया जा सकता। क्‍योंकि ऐसे मामलों में अक्‍सर शक्ति बल का प्रयोग उल्‍टे परिणाम लाता है। आमतौर से आतंकवादी संगठन अपने ऊपर किये गये शक्ति बल को अपने वर्ग में सरकारी ज़ुल्म के रूप में प्रचारित करते हैं और आसानी से लोगों को बेवकूफ बना लेते हैं। वे इस सम्‍बंध में अपना सुझाव देते हुए कहते हैं, ‘आतंकवादी तथा हिंसक आंदोलनों के मुकाबले के लिए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा बल प्रयोग जैसे सभी विकल्पों को एक साथ लेकर चलना ही सबसे बेहतर विकल्प है।’

दूर तक जाएगी मिस्र की यह आग
अपनी पारखी दृष्टि एवं सशक्‍त लेखनी के द्वारा शाहनवाज़ हिन्‍दी के सभी चर्चित समाचार पत्रों में जगह पाते रहे हैं। यही कारण है कि चाहे समाचार पत्रों में लिखे उनके लेख हों अथवा ब्‍लॉग पर किया गया सामयिक चिंतन, वे सभी जगह सराहे जाते रहे हैं। एक ओर शाहनवाज़ जहां अपने आसपास के माहौल पर पूरी निगाह रखते हैं, वहीं वे वैश्विक स्‍तर पर होने वाले बदलावों और घटनाओं को भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते। वे ‘दूर तक जाएगी मिस्र की यह आग’ पोस्‍ट में अरब देशों में फैले जन विद्रोह की वजह तलाश करते हुए लिखते हैं कि अरब देशों के तानाशाहों से पहले ही त्रस्त जनता के गुस्से में शासकों के भ्रष्टाचार और अमेरिकी वरदहस्त ने आग में घी जैसा काम किया है। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि इस विद्रोह को हल्‍के में नहीं लिया जा सकता क्‍योंकि 1979 में ईरान में हुए विद्रोह में वहां के शाह रजा पहलवी को भी सत्ता से बेदखल होना पड़ा था।

शाहनवाज़ ने भले ही ब्‍लॉगिंग की शुरूआत अंग्रेजी से की हो, पर उनकी जड़ें आज भी अपनी मातृभूमि और मातृभाषा में गहराई तक समाई हुई हैं। यही कारण है कि वे राष्‍ट्रभाषा के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखते हैं और अंग्रेजीदां लोगों की मानसिकता पर चोट करने में भी पीछे नहीं रहते। उनका स्‍पष्‍ट मानना है कि अपनी मातृभाषा को छोड़कर विदेशी भाषा के प्रति दीवानगी दिखाना गलत ही नहीं देश के साथ गद्दारी है। वे कहते हैं कि अपनी भाषा को छोड़कर प्रगति करने के सपने देखना बिलकुल ऐसा ही है जैसे अपनी माँ का हाथ छोड़ किसी दूसरी औरत का हाथ पकड़ कर चलने की कोशिश करना। वे दावे के साथ कहते हैं कि ऐसे लोग कभी कामयाब नहीं हो सकते, क्‍योंकि विश्‍व में कोई भी देश ऐसा नहीं है, जिसने अपनी मातृभाषा को त्‍याग कर तरक्‍की की सीढि़यां चढ़ने में कामयाबी पाई हो।

बेहद कम समय में वैश्विक स्‍तर पर मान्‍य ‘एलेक्‍सा रैंकिंग’ में ऊँची उछाल दर्ज करने वाला शाहनवाज़ का ब्‍लॉग ‘प्रेम रस’ अपनी जनपक्षधरता और स्‍पष्‍टबयानी के कारण आम आदमी के ब्‍लॉग के रूप में सामने आया है। यह ब्‍लॉग कंट्रोवर्सी से दूर रहता है, आम आदमी के हितों की बात करता है और उसके जीवन में प्रेम के रस को घोलने के प्रयत्‍न करता प्रतीत होता है। यह छोटे-छोटे सूत्र ही इसकी पहचान हैं और यही इसके कामयाबी के राज़ भी हैं।

- जाकिर अली 'रजनीश'

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कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? - भाग 2



आइए इस बार ब्लॉग सेटिंग (Setting) के बारे में जानने की कोशिश करते हैं:
डेश बोर्ड से किसी ब्लॉग की सेटिंग सेक्शन में जाने के लिए सबसे पहले ब्लॉग के नाम के नीचे लिखे "सेटिंग्स" (Settings) पर क्लिक करना है।

मूलभूत (Basic) : सेटिंग के प्रष्ट पर पहुँच कर सबसे पहले "Basic" की कुछ महत्वपूर्ण बातों पर नज़र डालते हैं, इसमें "ब्लॉग उपकरण" (Blog Tools) के अंतर्गत "ब्लॉग आयात करें - ब्लॉग का निर्यात करें - ब्लॉग हटाएँ" (Import blog - Export blog - Delete Blog) नज़र आएँगे। हर एक ब्लॉग की सभी पोस्ट और टिप्पणियां एक XML फाइल में सुरक्षित (Save) होती है। अपने ब्लॉग XML फाइल को आप कभी अपने कम्प्यूटर में कॉपी (डाउनलोड) कर सकते हैं अथवा अपने कंप्यूटर से अपने ब्लॉग पर अपलोड कर सकते हैं। "ब्लॉग आयात करें" (Import Blog): XML फाइल कंप्यूटर से ब्लॉग के सर्वर पर अपलोड करने के लिए तथा "ब्लॉग का निर्यात करें" (Export blog) ब्लॉग की XML फाइल कंप्यूटर में Save अर्थात (डाउनलोड) करने के लिए प्रयोग किया जाता है। अगर भविष्य में कभी भी ब्लॉग को समाप्त करना चाहेंगे तो इसे "ब्लॉग हटाएँ" (Delete Blog) पर क्लिक करके समाप्त किया जा सकता है।

प्रकाशन (Publishing): अगर आप अपने ब्लॉग के पते के साथ blogspot.com को हटाना चाहते हैं तो डोमेन नेम खरीद कर इस टेब के द्वारा बिना होस्टिंग खरीदे अपनी वेबसाइट चला सकते हैं, इसके अतिरिक्त किसी ब्लॉग को नए पते के साथ भी जोड़ा जा सकता है। अगर डोमेन नेम खरीदना है तो यह गूगल से भी खरीदा जा सकता है अथवा अपनी पसंद की किसी और कंपनी से भी खरीद सकते हैं। इसके लिए "प्रकाशन" (Publishing) पर क्लिक करने के बाद "कस्टम डोमेन" (Custom Domain) पर क्लिक करना है, अगर डोमेन गूगल से खरीदना चाहते है तो यहाँ नाम के उपलब्ध होने की जांच की जा सकती है, किसी और कंपनी से खरीदना चाहते हैं या पहले से खरीदा हुआ है तो "उन्नत सेटिंग्स पर जाएँ" (Switch to advanced settings) पर क्लिक करना है। नए खुलने वाले प्रष्ट पर लिखे "सेटअप निर्देश" (setup instructions) पर क्लिक करके डोमेन की सेटिंग की जानकारी मिल सकती है। डोमेन सेटिंग पूरी करने के बाद "आपका डोमेन" (Your Domain) के आगे खरीदे गए डोमेन का पता भर कर प्रष्ट के नीचे लिखे "सेटिंग्स सहेजें" (Save) पर क्लिक कर दीजिये। अब आपका वही पुराना ब्लॉग आपके खरीदे गए डोमेन नेम पर खुलने लगेगा।

प्रारूपण (Formatting): इसके अंतर्गत "समय क्षेत्र" (Time Zone) पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा पोस्ट का समय गलत दिखाई देगा। अगर आप भारत में हैं तो (जीएमटी+5:30) भारतीय मानक समय [(GMT+5:30) Indian Standard टाइम] चुने अन्यथा अपने "समय क्षेत्र" (Time Zone) के अनुसार विकल्प को चुने।

टिप्पणियाँ (Comments): के अंतर्गत टिप्पणियों तथा "संग्रहण" (Archiving) में पुराने लेखों की सूची को दर्शाने से सम्बंधित सेटिंग आती है, विकल्पों का पसंद के अनुसार चयन किया जा सकता है।

अनुमतियाँ (Permissions): सेटिंग के अंतर्गत यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण टेब है, जिसके अंतर्गत ब्लॉग में किसी अन्य लेखक को सम्मिलित किया जा सकता है। इसके साथ ही यह भी निर्णय लिया जा सकता है कि आप अपना ब्लॉग किस-किस को दिखाना चाहते हैं, अर्थात इस विकल्प के द्वारा किसी ब्लॉग को केवल सीमित पाठकों के लिए भी बनाया जा सकता हैं।

(नोट: अगर कुछ छूट गया है तो कृपया ईमेल अथवा टिप्पणियों के माध्यम से सूचित करें)


Keyword: How to create a blog site? -2

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गै़रज़िम्मेदार इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया

सनसनी पैदा करना ही एकमात्र लक्ष्य बन कर रह गया है इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया का

हमारे देश का इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया टीआरपी के फेर में पड़ कर गै़रज़िम्मेदार होता जा रहा है, जिसका ताज़ा उदाहरण हाल में संपन हुआ विश्व कप आयोजन है। एक ओर फाइनल मैच जीतने से पहले जहां पूरा मीडिया भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को पूरी तरह अक्षम सिद्ध करने पर तुला हुआ था, उनको खलनायक के तरह प्रायोजित किया जा रहा था। पियूष चावला को खिलाने जैसे मुद्दों पर ऐसे शब्दबाण चलाए जा रहे थे, जैसे न्यूज़ एंकर स्वयं भारतीय कप्तान से अधिक चतुर खिलाड़ी हो। हालांकि पियूष चावला की प्रतिभा में किसी को शक नहीं है, लेकिन हर खिलाड़ी हर समय नहीं चलता है और केवल इसी डर से किसी प्रतिभावान खिलाड़ी को बिना मौका दिए बाहर नहीं बैठाया जा सकता है। फिर किसी खिलाड़ी को मैच में खिलाना अथवा ना खिलाना उस दिन की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वहीं दूसरी ओर भारतीय टीम के विश्वकप जीतने पर यही मीडिया धोनी के द्वारा उठाए गए साहसिक कदमों का गुणगान करते नहीं थक रहा है। देखने से साफ पता चलता है कि लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ माना जाने वाली पत्रकारिता का यह हिस्सा आजकल केवल ब्रेकिंग न्यूज़ में विश्वास रखता है। कुकरमुत्तों की तरह उग गए चैनल्स की भीड़ सनसनी पैदा करने की होड़ में एक दूसरे से आगे निकल जाना चाहती है। वहीं उपभोक्तावाद की दौड़ में शब्दों और विषय के चयन में मर्यादाओं को ताक पर रखा जा रहा है।

भारत-पाकिस्तान के मैच को युद्ध की तरह दर्शाकर भावनाओं का खेल खेला जा रहा था, ढूंढ-ढूंढकर खिलाड़ियों के बीच हुई तकरार के विडिओ को बार-बार दिखाया जा रहा था। यहां तक कि स्टूडियों में बैठे पूर्व खिलाड़ियों से उगलवाया जा रहा था कि मैदान में कैसे-कैसे अपशब्दों का प्रयोग होता है। और यह सब केवल न्यूज़ चैनल्स की टी.आर.पी बढाने के उद्देश्य से क्या जा रहा था? कई चैनल्स सौ घंटे के एपिसोड चला कर यह दर्शाना चाहते थे कि उनके लिए देश में और कोई खबर अब बची ही नहीं है? सरकार पर चलने वाले भ्रष्टाचार के सभी तीरों की धार कुंद हो गई थी या फिर देश में बड़ी से बड़ी घटना-दुर्घटना चैनल्स को बड़ी नहीं लग रही थी? भारत-पाक मैच के दरमियान युद्ध जैसे हालात पैदा करके लोगों को बार-बार टी.वी. चैनल्स खोलने के लिए ललचाना क्या पत्रकारिता कहा जा सकता है?
  
भारत ही नहीं विश्व के महान खिलाड़ी माने जाने वाले सचिन तेंडुलकर को क्रिकेट का भगवान बताकर हर मैच से पहले शतकों के शतक की भविष्यवाणी की जा रही थी। कैसी बचकानी सोच है? खिलाड़ी केवल खिलाड़ी होता है, किसी खिलाड़ी को क्रिकेट के भगवान के रूप में महिमा मंडित करना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? क्या जवाब होगा अगर इनसे मालूम किया जाए कि सचिन केवल एक खिलाड़ी ना होकर क्रिकेट के भगवान हैं तो आखिर उनका शतकों का शतक क्यों नहीं लगा? इससे यह भी पता चलता है कि इन चैनल्स की अपनी कोई सोच है ही नहीं, मुंह से शब्द निकलते हैं तो केवल बाज़ार का रुख देखकर। 

मीडिया के इस अंग में से अधिकतर को अन्ना हजारे जैसी किसी शख्सियत अथवा भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे से मतलब नहीं है, इन्हें तो केवल अपनी दुकान चलाने के लिए रोज़ कोई नायक अथवा खलनायक चाहिए। इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया के बारे में मशहूर है कि यह जिसे चाहे अर्श पर बैठा दे और जिसे चाहे फर्श पर ले आए। शायद इसी इमेज का फायदा उठाया जा रहा है और इसी कारण भरष्टाचार के आरोपों की उँगलियाँ इस ओर भी उठ रही हैं।

क्या पत्रकारिता के इस हिस्से को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ जैसी श्रेंणी में रखा जा सकता है?

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