कुछ भी तो नहीं बदला है



इतने नारों और इतनी कवायदों के बाद भी कुछ नहीं बदला है... शर्म का मुकाम तो यह है कि हम पुरुष आज भी सड़कों पर लड़कियों को घूरते, उनपर फिकरे कसते नज़र आ रहे हैं... बलात्कारी आज भी टारगेट तलाश रहे हैं और उन्हें रोक सकने वाले आज भी मुंह को सिल कर और हाथों को बाँध कर अपने-अपनी राह पकड़ रहे हैं... 



लड़कियां आज भी घरों से निकलते हुए डरती हैं... और समाज आज भी बलात्कार पीड़ित लड़कियों को ही गुनाहगार समझ कर रोजाना बे-आबरू  कर रहा है... 


यहाँ तक कि पुरुष बलात्कार का तमगा लगाए गर्व से टहल रहे हैं, घर वाले, जान-पहचान वाले आज भी बलात्कारियों का बचाव करते नज़र आ रहे हैं...


कुछ भी तो नहीं बदला है... कहीं उम्मीदें बेमानी तो नहीं हैं...

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पता नहीं उनका क्या मकसद था?


कुछ लोग दिल्ली में चलती बस में हुए गैंग रेप की पीड़िता को इन्साफ दिलाने  के लिए प्रदर्शन में हिस्सा लेने गए थे, तो कुछ लोग बस यूँ ही गए थे, सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने. 

लेकिन मेरे जैसे बहुत सारे लोग केवल उस गैंग रेप पीड़िता को ही इन्साफ दिलाने की नियत से नहीं बल्कि देश की हर एक महिला को 'महिला' होने का अंजाम भुगताने को आतुर लोगो के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाने और उसको जल्दी से जल्दी अमल में लाने की प्रक्रिया के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए गए थे. 

बल्कि महिलाओं ही क्यों, मेरा आन्दोलन तो हर एक को जल्द से जल्द न्याय और मुजरिमों को सख्त से सख्त सज़ा के लिए है. 


और विश्वास करिये हम लोग हिंसक नहीं थे, क्योंकि हम तो खुद हिंसा के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे.... लेकिन यह भी सच है कि हम से कहीं ज़्यादा संख्या में लोग वहां हिंसक प्रदर्शन कर रहे थे, पता नहीं उनके उस प्रदर्शन का क्या मकसद था?


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'पुरुष' होने का दंभ

बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए पुरुषों में 'पुरुष' होने का दंभ भी एक कारण है। पुरुषों को बचपन से यह ही यह अहसास दिलाया जाता है कि वह पुरुष होने के कारण महिलाओं से 'अलग' हैं, उनका होना ज्यादा अहमियत रखता है।

अगर हम बचपन से बेटों को विशेष होने और लड़कियों को कमतर होने का अहसास कराना बंद कर दें तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती है। क्योंकि इसी अहसास के साथ जब वह बाहर निकलते हैं तो लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार करने में मर्दानगी समझते हैं। उनकी नज़रों में लड़कियां 'वस्तु' भर होती हैं।

यह सब इसलिए है क्योंकि बचपन से बेटों और बेटियों में फर्क किया जाता है। समाज बेटियों को 'सलीकेदार' और बेटों को 'दबंग' बनते देखना चाहता हैं। बेटियां घर का काम करेंगी, बेटे बाहर का काम करेंगे... बचपन से सिखाया जाता है कि खाना बनाना केवल बेटियों को सीखना चाहिए। सारे संस्कार केवल बेटियों को ही सिखाये जाते हैं, कैसे चलना है, कैसे बैठना है, कैसे बोलना है, इत्यादि। क्या हम यह सोचते हैं  कि जिन्हें हमने शुरू से ही निरंकुश बनाया है, वह बड़े होकर शिष्टाचार फैलाएंगे? आज समय इस खामखयाली से बाहर आने का है।

हमें प्रण लेना चाहिए कि अपने घर में बेटों और बेटियों में फर्क करना बंद करें। बेटों में पुरुष होने के दंभ को ना पनपने दें, बल्कि एक-दूसरों का सम्मान करना सिखाएं।  बचपन से ही सामाजिक जिम्मेदारियों को ना केवल समझाने बल्कि उसको आचरण में लाने पर मेहनत की आवश्यकता है। समाज में हमें कैसे रहना चाहिए यह सीखने-सीखाने की मश्क हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा होना चाहिए।

घर के हर काम-काज में दोनों की बराबर भागीदारी सुनिश्चित करें, घर और बाहर के कामों के लिए दोनों में एक सी निपुणता आज के समय की मांग भी है। साथ-ही-साथ बेटियों को शारीरिक तौर पर अपनी सुरक्षा स्वयं करने में सक्षम बनाने की भी कोशिशें होनी चाहिए। और यह केवल नाम मात्र के लिए नहीं बल्कि प्राइमरी कक्षा से लेकर कॉलेज की पढ़ाई तक, शारीरिक अभ्यास के लिए समय निर्धारित होना चाहिए, बल्कि इसको एक अनिवार्य विषय घोषित होने की आवश्यकता है।

जब तक पुरुषों को ताकतवर और महिलाओं को कमज़ोर समझने की धारणा रहेगी, तब ऐसी घटनाओं का समाप्त होना मुश्किल है।

केवल सख्त कानून, जल्द सज़ा और पुलिस की मुस्तैदी भर से बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों को नहीं रोका जा सकता है। हर बलात्कारी को पता है कि वह एक ना एक दिन पकड़ा ही जाएगा, उसके बावजूद बलात्कार की घटनाएं इस कदर तेज़ी से बढ़ रही हैं। अमेरिका, इंग्लैण्ड, स्वीडन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में पुलिस भी मुस्तैद है, कानून भी सख्त है और फैसले भी जल्दी होते है, इसके बावजूद बलात्कार के सबसे ज़्यादा मामले इन्ही देशों में होते हैं। बल्कि हिन्दुस्तान से कई गुना ज़यादा होते हैं।

आज ज़रूरत बड़े-बड़े नारों या बड़े-बड़े वादों की नहीं है। बल्कि असल ज़रूरत चल रही कवायदों के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर जागरूकता पैदा करने की है, महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की है।

अगर हम बदलाव लाना चाहते है तो शुरुआत हमें अपने से और अपनों से ही करनी होगी। वर्ना  कहने-सुनने के लिए तो कितनी ही बातें हैं... यूँ ही कहते-सुनते रहेंगे और होगा कुछ भी नहीं!





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आई आई "एफ डी आई"




जो लोग रिटेल में एफ.डी.आई. का समर्थन कर रहे हैं वह ज़रूरत से ज़्यादा उमीदें पाल रहे हैं  और जो विरोध कर रहें वह कुछ ज़्यादा ही नकारात्मकता दिखा रहे हैं। एफ.डी.आई. देश के लिए अच्छी हो सकती है, बशर्ते बहुत ही ज़्यादा सतर्कता और सजगता अपनाई जाए। 

अनेकों फायदे नुकसानों के बावजूद वैश्विक व्यापारिक समीकरणों को देखकर लगता है कि आज नहीं तो कल, इसे अपनाना ही पड़ेगा। ।

यहाँ तक कि भाजपा जैसे जो राजनैतिक दल विरोध कर रहे हैं, उनका विरोध भी केवल दिखावा भर है। 

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धर्म के नाम पर अधर्म कब तक?

धर्म का मकसद इंसान का ताल्लुक पालनहार से जोड़ना है और धर्म इंसानों से मुहब्बत सिखाता है। लेकिन धर्म की सही जानकारी नहीं रखने वाले लोग दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। उन्हें कोई परवाह नहीं होती कि  उनके कारण चाहे किसी को कितनी भी परेशानी होती रहे।

मुहर्रम के नाम पर कल रात साड़े ग्याराह बजे (11.30 p.m.) तक लोग हमारे घर के सामने कान-फोडू ढोल के साथ हुडदंग मचाते रहे, और उसके बाद आगे निकल गए और लोगो को परेशान करने के लिए। उनके चेहरों की मस्ती बता रही थी कि उन्हें शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन (रज़ी.) की शहादत के वाकिये से कोई वास्ता नहीं था।  उनका वास्ता था, तो केवल और केवल अपने हुडदंग और मस्ती से, जिसे धर्म के नाम पर ज़बरदस्ती बाकी लोगो पर थोपा जा रहा था। 

अजीब बात है कि आम मुसलमानों को यह दिखाई  नहीं देता कि यह लोग शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन को अपनी श्रद्घांजलि देने की जगह उनके नाम पर मस्ती और हुडदंग मचाते है। और ऐसा किसी खास धर्म या समुदाय के लोग ही नहीं करते, बल्कि हर धर्म में ऐसे लोग मौजूद हैं।

सुबह सही से होने भी नहीं पाई थी, तड़के 5 बजे प्रभातफेरी के नाम पर लाउडस्पीकर के साथ शोर मचाना शुरू कर दिया गया। धार्मिक स्थलों पर रोजाना सुबह-सुबह इसी तरह लोगो को परेशान किया जाता है। पूजा-अर्चना / इबादत का ताल्लुक स्वयं से होता है, मगर अपनी इबादत में ज़बरदस्ती दूसरों को शामिल क्यों किया जता है? मेरा घर तो फिर भी थोडा दूर है, सोचता हूँ कि जिनका घर बिलकुल करीब है वह कैसे प्रतिदिन इस कडवे घूँट को पीते होंगे। हिंदुस्तान जैसे धर्म प्रधान देश में इस तरह कडवे घूँट पीना मज़बूरी है, क्योंकि जो विरोध करता है उसे धर्म विरोधी ठहरा दिया जाता है। 

एक दूसरों के धार्मिक स्थल के करीब पहुँच कर तो इस तरह की हुडदंग और भी बढ़ जाती है, देश में सबसे अधिक दंगे इस तरह की प्रवित्तियों के कारण ही होते हैं।

शहर में अक्सर लोग रात की ड्यूटी करके आते हैं, लेकिन इन लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है, चाहे कोई बीमार हो, किसी की नींद खराब हो या फिर किसी की पढ़ाई को नुक्सान हो रहा हो। आखिर यह धर्म के नाम पर अधर्म हम पर कब तक थोपा जाएगा? 

परेशानी का सबब तो यह है कि इस दिखावे नामक अधर्म को धर्म के नाम पर परोसा जा रहा है,  हमारे देश में इन तथाकथित धार्मिक लोगो पर कानून का कोई डर नहीं होता। और सरकार से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी है।




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धर्म का दिखावा



मुहर्रम के नाम पर कल रात साड़े ग्याराह बजे (11.30 p.m.) तक लोग हमारे घर के सामने ढोल-तमाशों के साथ हुडदंग मचाते रहे, और उसके बाद आगे निकल गए और लोगो को परेशान करने के लिए। उनके चेहरों की मस्ती बता रही थी कि उन्हें शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन (रज़ी.) की शहादत के वाकिये से कोई वास्ता नहीं था।  उनका वास्ता था, तो केवल और केवल अपने हुडदंग और मस्ती से, जिसे धर्म के नाम पर ज़बरदस्ती बाकी लोगो पर थोपा जा रहा था। 

अजीब बात है कि आम मुसलमानों को यह दिखाई  नहीं देता कि यह लोग शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन को अपनी अश्रुपूरित श्रद्घांजलि देने की जगह उनके नाम पर मस्ती और हुडदंग मचाते है।

और ऐसा किसी खास धर्म या समुदाय के लोग ही नहीं करते, बल्कि हर धर्म में ऐसे लोग मौजूद हैं।

सुबह सही से होने भी नहीं पाई थी, 5 बजे प्रभातफेरी के नाम पर लाउडस्पीकर के साथ शोर मचाना शुरू कर दिया गया। पूजा-अर्चना / इबादत का ताल्लुक स्वयं से होता है, मगर अपनी इबादत में ज़बरदस्ती दूसरों को शामिल क्यों किया जता है?

उफ़ यह धर्म के नाम पर अधर्म कब तक थोपा जाएगा? दिल्ली जैसे शहर में तो अक्सर लोग रात की ड्यूटी करके आते हैं, लेकिन इन लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है, चाहे किसी की नींद खराब हो या फिर किसी की पढ़ाई को नुक्सान हो। 

परेशानी का सबब तो यह है कि इस दिखावे नामक अधर्म को धर्म के नाम पर परोसा जा रहा है,  हमारे देश में इन तथाकथित धार्मिक लोगो पर कानून का कोई डर नहीं होता। और सरकार से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी है।

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पुरुष प्रधान समाज हैं महिलाओं के दोयम दर्जे का ज़िम्मेदार

हमारा समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है और इसी पुरुष प्रधान समाज ने धर्मों को अपनी सहूलत के एतबार से इस्तेमाल किया, जहाँ दिल किया वहीँ कृतिम डर दिखा कर नियमों को ऐसे तब्दील कर दिया कि पता भी नहीं चले कि असल क्या है और नक़ल क्या। यहाँ तक कि बड़े से बड़ा दीनदार (धार्मिक व्यक्ति) भी यह सब इसलिए सहता है कि यह सब नियम पुरुष प्रधान ठेकेदारों ने धर्म की आड़ लेकर बनाएं हैं। धर्म के नाम पर कट्टरता दिखाने वाले भी यह मानने को तैयार नहीं होते कि महोलाओं का शोषण करने वाले नियम किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि पुरुष प्रधान सोच के ठेकेदारों की अपने दिमाग की उपज है।

और ऊपर से तुर्रा यह कि अगर कोई इनके खिलाफ आवाज़ उठाए तो सही राह पर होकर भी अधर्मी है।




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शर्तों पर दोस्ती


मैं दोस्ती इस शर्त पर नहीं करता कि उनकी हाँ में हाँ मिलाऊं और ना ही इस उम्मीद पर कि मेरे दोस्त मेरी हाँ में हाँ मिलाएं।

हर किसी की अपनी शख्सियत, अपनी सोच और अपनी अक्ल है। ऐसे में यह बेमानी शर्त विचारों के साथ ज़बरदस्ती सी लगती है!

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मीडिया का फंडा 'एक और एक ग्यारह'


जबसे इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया ने देश में पैर पसारे हैं, तब से खबर को सनसनी बनाने और केवल सनसनी को ही खबर के रूप में दिखाने का कल्चर भी पैर पसार गया है. किसी भी खबर को सनसनी बनाने के चक्कर में मीडिया 'एक और एक दो' को 'एक और एक ग्यारह' और कई बार 'एक सौ ग्यारह' बनाने में तुला रहता है, जिसके कारण बात का बतंगड बनते देर नहीं लगती.



जिसके चलते मीडिया की रिपोर्ट पर आँख मूंद कर विश्वास करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है...


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मेरी बिटिया 'ऐना' का जन्म दिन



आज मेरी प्यारी सी बेटी 'ऐना' का जन्म दिन है, माशाल्लाह आज वोह पूरे सात वर्ष की हो गयी है.

और हाँ उसने एक छोटी सी कविता लिखी है, जिसे मैंने उसी समय मोबाइल पर टाइप कर लिया था। आज उसने उस कविता को अपने ब्लॉग पर भी शेयर किया है. आप उसके ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं.

फूलों की तरह महको 
चिड़िया की तरह चहको।




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आप कैसे नेता हैं?


एक नेता के बेटे ने नेता जी से मालूम किया -


"पिता जी आप तो कहते थे कि आप भी राजनीति में हैं"


नेता जी ने कहा  - 
"वो तो मैं हूँ"






बेटा तपाक से बोला

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"आप कैसे नेता हैं? केजरीवाल ने तो एक बार भी आपके घोटालों की पोल नहीं खोली!"

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मलाला युसूफजई प्रकरण - क्या बदल पाएगी लोगो की सोच?

मलाला युसूफजई के जज्बे और कोशिशों को सलाम और साथ ही उसका समर्थन करने वाली पाकिस्तानी अवाम पाईन्दाबाद। बस मलाला जैसी कोशिशें करने वालों की तादाद कम ना होने पाए और इसका समर्थन करने वाले दुनिया भर के लोग बस 'समर्थन भर' करने की जगह उसकी सोच को अपनी सोच बना लें, सही और गलत का फर्क करना सीख जाएं, यही रब से दुआ है।

लेकिन इसके साथ-साथ इसकी उड़ान को रोकने की कोशिश करने वालों के खिलाफ भी तो सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। इस बच्ची के समर्थन में तो वहां की सरकार नज़र आ रही है, लेकिन उन लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई? और उन जैसी सोच रखने वाले लोगो का क्या? उनकी सोच को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है? इस तरफ भी तो कदम बढाने की आवश्यकता है।

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बिना तथ्य के आरोप लगाने से किसको फायदा?

कानून मंत्री  की प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुझे इस बात में कोई संदेह नज़र नहीं आता है कि उनके ट्रस्ट ने विकलांगों को सामान बांटने के लिए कैम्प लगाए. हालाँकि हस्ताक्षर असली हैं या नकली यह साबित होना बाकी है. इसलिए मैं अपने फेसबुक स्टेटस को वापिस लेता हूँ जिसमें मैंने कहा था कि -

 

Shah Nawaz
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विकलांगों को भी नहीं बख्शते सत्ताधीश... आम आदमी की तो बिसात ही क्या!




हालाँकि कोई और तथ्य सामने आएगा तो इस स्टेटस पर भी विचार किया जा सकता है।

साथ ही मैं आरोप लगाने वालों से अनुरोध करता हूँ कि बिना जल्दबाजी के तथा तथ्यों की पूरी जांच-परख करके ही किसी पर कोई आरोप लगाएँ जाएँ। सियासी नफा-नुक्सान के लिए हलके स्तर के आरोप लगाना सियासी लोगो का काम है और इसी कारण उनपर जल्दी से कोई विश्वास नहीं करता है। इस तरह के तथ्य रहित आरोपों से उल्टा सियासतदानों को ही फायदा पहुँचने वाला है।

मेरा मानना है कि बदलाव की कोशिश करने वालों को लीक से हटकर नई सोच के साथ काम करना चाहिए।

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पुरुषों में 'विशेष' होने का अहम्



अगर हम बचपन से बेटों को विशेष होने और लड़कियों को कमतर होने का अहसास कराना बंद कर दें तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती है... क्योंकि इसी अहसास के साथ जब वह बाहर निकलते हैं तो लड़कियों को मसल देने में मर्दानगी समझते हैं... उनकी नज़रों में लड़कियां 'वस्तु' भर होती हैं।

यह सब इसलिए होता है कि हम बचपन से बेटों और बेटियों में फर्क करते हैं.... बेटियां घर का काम करेंगी, बेटे बाहर का काम करेंगे... बचपन से सिखाया जाता है कि खाना बनाना केवल बेटियों को सीखना चाहिए... सारे संस्कार केवल बेटियों को ही सिखाये जाते हैं, कैसे चलना है, कैसे बैठना है, कैसे बोलना है, इत्यादि।  जिन्हें शुरू से ही निरंकुश बनाया गया है, वह बड़े होकर निरंकुशता ही फैलाएंगे.

अगर हम बदलाव लाना चाहते है तो शुरुआत हमें अपने से और अपनों से ही करनी होगी। वर्ना करने के लिए तो कितनी ही बातें हैं... यूँ ही करते रहेंगे और होगा कुछ भी नहीं...

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चंद्रमौलेश्वर जी - उनका संदेसा उनके जाने के बाद आया!


ख़ुशी का झोंका आंसुओं को साथ लाया।
उनका संदेसा उनके जाने के बाद आया।


आज अचानक अपने इस ब्लॉग का कमेन्ट 'स्पैम फोल्डर' चेक कर रहा था दो देखा हैदराबाद के प्रमुख ब्लॉगर चंद्रमौलेश्वर जी, जिनका देहांत पिछले महीने की 9 तारिख को हुआ है, की नए साल की मुबारकबाद वाली टिप्पणी वहां पड़ी हुई है...





आँखों में आंसू भर आये - उनकी शुभकामनाएँ मुझे उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद मिली...


आपकी टिप्पणियाँ आपकी याद दिलाती रहेंगी चंद्रमौलेश्वर जी...

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केजरीवाल के आरोप और कांग्रेस की बेचेनी

अगर रॉबर्ट वाड्रा पर केजरीवाल के आरोप झूठे हैं तो फिर कांग्रेस में इतनी बेचेनी क्यों है? 

और अगर आरोप सही हैं तो फिर केजरीवाल मीडिया के द्वारा सनसनी फैलाने की जगह जाँच के लिए सबूतों के साथ सी.बी.आई जैसी किसी जाँच एजेंसी या फिर न्यायलय के पास क्यों नहीं गए?

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धार्मिक वैमनस्य और परेशानी का सबब


परेशानी का सबब यह है कि हमेशा दूसरों के धर्म को अपनी मान्यताओं के चश्मे से देखा जाता है.

दूर की निगाह के चश्में से पास का या पास की निगाह के चश्में से दूर का नज़ारा साफ़ दिखाई दे सकता है क्या?

यह झगड़ों की एक बड़ी वजह है!

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अरविन्द केजरीवाल और बदलाव की उम्मीद


अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में देश को बदलाव की उम्मीद नज़र आती है। लेकिन इस बदलाव के लिए उन्हें राजनेताओं के घिसे-पिटे तरीके से हट कर चलना होगा। उन्हें साबित करना होगा कि वह देश के वर्तमान नेताओं से अलग हैं, उनके पास केवल वादे या विरोध नहीं है बल्कि नीतियाँ हैं।

अगर अरविन्द यह कहते हैं कि "एफडीआई देश के गरीबों के खिलाफ है", या यह कि "डीज़ल पर सब्सिडी वापिस ली जानी चाहिए" तो ऐसा तो अन्य  राजनैतिक दलों के नेता भी बोलते हैं। बल्कि उनसे तो देश को यह अपेक्षा है कि वह बताते कि एफ.डी.आई. आखिर कैसे देश के गरीबों के खिलाफ है? इससे देश के गरीबों, किसानो खुदरा व्यापारियों को क्या-क्या नुक्सान उठाने पड़ेंगे। उन्हें यह समझाना चाहिए था कि 'वालमार्ट' ने अपनी सप्लाई-चैन को जिस तरह से सर्वश्रेष्ठ बनाया वह उससे भी अधिक मज़बूत बनाना जानते हैं। उन्हें प्लान देना चाहिए था कि आखिर कैसे वह भारतीय किसानो और खुदरा व्यापारियों के बिचौलियों को समाप्त करेंगे जिससे किसानो को उनका सही हक मिल सके। बल्कि उन्हें प्लान लेकर आना चाहिए कि वह किस तरह मिलावट करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे, जिससे कि आज पूरा देश त्रस्त है। अगर देश को 'वालमार्ट' की कमियों के कारण 'वालमार्ट' नहीं चाहिए तो उसकी खूबियों को कैसे भारतीय कंपनियों का हिस्सा बनाया जाएगा?

अगर वह यह मानते हैं कि विदेशी कम्पनियाँ देश में नहीं आनी चाहिए तो फिर वह कैसे भारतीय कंपनियों को इस बात पर अमादा करेंगे की वह अपने कर्मचारियों को उनकी योग्यता अनुसार अधिक से अधिक वेतन देकर अपने लाभ को कम करें। अगर वह बदलाव की आशा जगाते हैं तो उन्हें इसका हल निकालना ही होगा कि किस तरह आज भी लाला कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को निम्नतम वेतन पर रखकर उनकी मज़बूरी का फायदा उठाती है और इसी कारण कितनी ही भारतीय प्रतिभाएं देश से पलायन पर मजबूर हो जाती हैं।

समझदारी केवल यह कह लेने भर में नहीं है कि  "डीज़ल / रसोई गैस पर सब्सिडी वापिस ली जानी चाहिए" बल्कि इसमें है कि वह समझाएं कि आखिर  डीज़ल / रसोई गैस  पर सब्सिडी क्यों हटाई जानी चाहिए? या सब्सिडी कम ना करने से होने वाले नुक्सान के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। किस तरह आम आदमी के खून-पसीने की कमाई को अमीर ट्रांसपोर्टर्स और महंगी डीज़ल कार अथवा बिजली जेनरेटर्स  के मालकों को फायदा उठाने से रोका जाएगा।

उन्होंने कहा कि दिल्ली में बिजली महंगी करने में सरकार और बिजली कंपनियों में सांठ-गाँठ है। यहाँ भी उन्हें सबूत अथवा तथ्य पेश करने चाहिए, तभी देश को उनमें और दूसरे नेताओं में फर्क पता चलेगा।

केवल 'आरोप लगाने के लिए आरोप' तो मैं कम से कम पिछले 25 वर्ष से हर एक नेता से सुनता आ रहा हूँ। तो फिर उन्हें यह अपने तर्कों और योजनाओं के प्रारूप सामने रखकर यह दर्शना चाहिए कि बदलाव के लिए उनपर ही भरोसा क्यों करूँ?




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ग़ज़ल: नयन उनके जबसे हमें भा गए हैं




नयन उनके जबसे हमें भा गए हैं
वो तबसे निगाहें चुराते गए हैं

हर इक शाम कटती थी कूचे में मेरे
कहीं और के रास्ते भा गए हैं

वो यूँ जाने वाला कहाँ तक चलेगा,
जो हरसू लगेगा कि हम आ गए हैं

हुई महफ़िलों में तबाही की बातें
जो पर्दा उठा करके वोह आ गए हैं

मेरी आशिकी की कशिश देखिये तो
नज़र नीची करके वो शरमा गए हैं

अभी तक थे मशहूर जलवे सनम के
मगर आज अपने गज़ब ढा गए हैं

- शाहनवाज़ 'साहिल'





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टीम अन्ना का राजनीती में स्वागत है

टीम अन्ना के राजनीती में आने का स्वागत होना चाहिए, फिर इसके चाहे सद्परिणाम निकलें या दुष्परिणाम, कम से कम ज़िम्मेदारी तो होगी. अभी तो जो दिल ने चाहा कह दिया, जो मन में आया कर दिया. लेकिन टीम अन्ना को राजनीती में आने के बाद बात की गंभीरता का अहसास होगा, क्योंकि जो बोला जाएगा उसे कर दिखाने का मौका भी मिल सकता है. इसलिए हवा-हवाई की जगह तौल-मौल के बोलना पड़ेगा.

किसी भी बात पर अड़ने के मैं पहले भी खिलाफ था, हमारा काम प्रदर्शन करना, लोगो को जागरूक करना, सरकार को अपने मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश करना होना चाहिए. सरकार जो भी कार्य करती है उसके अच्छे या बुरे परिणामों पर उसकी ज़िम्मेदारी होती है, इसलिए संविधानी मर्यादाओं के अंतर्गत उसे किसी भी फैसले को करने या करने का हक़ होना चाहिए... साथ ही साथ जनता में भी जागरूक होकर अपने खिलाफ फैसले करने वाली सरकार को उखाड फैकने का माद्दा होना चाहिए.

राजनैतिक सिस्टम को सुधारने का यही एकमात्र तरीका है...

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पारिवारिक देह व्यापार का घृणित जाल

आज दुनिया जिस तेज़ी से विकास के पैमाने तय कर रही है, उसी तेज़ी से इंसान का चरित्र गिरता जा रहा है। आज के युग में जहां पैसा ही भगवान नज़र आ रहा है, उसे देखकर दुनिया का भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। आधुनिकता के इस युग में यूँ तो हर एक धन बटोरने की होड़ के चलते दूसरों का शोषण करने में प्रयासरत हैं, लेकिन आज के युग में भी सबसे अधिक शोषण का शिकार हमेशा से शोषित होती आयी नारी ही है। कहीं उन्हें सरेआम फैशन की दौड़ में लूटा जाता है तो कहीं देह व्यापार की अंधी गली में धकेल दिया जाता है। हद तो तब होती है, जब उनके अपने माता-पिता, चाचा-मामा, भाई जैसे सगे-संबंधी ही रिश्तों की मर्यादा को तार-तार करते हुए महिलाओं को इस दलदल में फंसने पर मजबूर कर देते हैं। पूरे-पूरे खानदान और गांव के गांव देह व्यापार के धंधे में शामिल हो जाते हैं।
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पारिवारिक देह व्यापार का घृणित जाल

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मुनव्वर राना साहब से ख़ुसूसी मुलाक़ात

एक ऐसे शायर से मुलाकात जिसकी जुबान पर महबूब के पांव की खामोशी नहीं बल्कि कान छिदवाती गरीबी होती है... मिलिए मुनव्वर राना से इस बार के हम लोग में।




कल मेरी ज़िन्दगी को मशहूर शायर जनाब मुनावार राना  साहब के साथ मुलाक़ात का ताउम्र ना भूलने वाला मौका मयस्सर हुआ। इस लुफ्त-अन्दोज़ मुलाक़ात के सफ़र में दीगर हज़रात के साथ जनाब संतोष त्रिवेदी और सानंद रावत जी मेरे हम-कदम थे। एनडीटीवी के प्रोग्राम 'हमलोग' में उनकी आमद की खबर संतोष भाई ने मुझे दी और मालूम किया कि क्या आप आना चाहते हैं... भला इसका जवाब ना में कैसे दिया जा सकता था?

उनसे मिलना, उनको अपनी आँखों के सामने सुनना, मेरे लिए ख्वाब जैसा था, इसलिए बिना सोचे समझे ही हाँ कर दी। इस मुलाक़ात के लिए मैं संतोष भाई का तहे-दिल से आभारी हूँ...

उम्मीद है उनको देख-सुन कर आपको भी एक अजब सा लुत्फ़ मिला होगा!


मुनव्वर राना साहब के साथ खाकसार




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धौखा है हज सब्सिडी

हज सब्सिडी के नाम पर मुसलमानो को धोखा दिया जा रहा है। हमारे देश से हज यात्रा के लिए डेढ़ लाख से अधिक लोग हर वर्ष साउदी अरब की यात्रा पर जाते हैं। जिसमें से सवा लाख लोग हज कमेटी से तथा बाकी अलग-अलग प्राइवेट टूर्स ऑपरेटर्स के ज़रिये जाते हैं।

हमारे देश की सरकार इस यात्रा पर किराए में सब्सिडी देने की बात करती है, जो कि पूरी तरह धौखा है। हज के लिए जेद्दाह जाने का जो किराया आम दिनों में 16-17 हज़ार होता है, इंडियन एयर लाइन्स के द्वारा सरकार वही किराया हज के दिनों के करीब आते-आते कई गुना बढ़ा देती है। पिछले वर्ष यह किराया तकरीबन 52 हज़ार था, इस साल यह करीब 55 हज़ार तक पहुँचने की उम्मीद है।

आम दिनों में पवित्र शहर मक्का में "उमरा" के लिए 20 दिन की यात्रा का खर्च तकरीबन 33-35 हज़ार रूपये ही आता है लेकिन हज के दिनों में यही खर्च बढ़कर दुगने से भी अधिक हो जाता है। हज यात्रा आम तौर पर 40 दिन तक चलती है और इसमें खर्च सवा लाख रूपये के आस-पास होता है। ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि हज पर जाने के लिए केवल एयर इंडिया तथा सउदी एयरवेज़ को ही इजाज़त है। सरकार सउदी अरब सरकार के साथ मिलकर यह गोरखधंधा चला रही है, इसी मोनोपोली का फायदा उठाकर हर साल किराया इतना बढ़ा दिया जाता है जिससे कि मुसलमानों को सब्सिडी के नाम पर ठगा जा सके।

यह खुली लूट नहीं है तो और क्या है? अगर डेढ़-दो लाख लोग एक साथ मिलकर किसी भी एयर लाइन्स से टिकट लें तो क्या वहां किराए में छूट नहीं मिलेगी? लेकिन सरकार द्वारा नियुक्त हज कमिटी इस मसले पर चुप है, आखिर क्यों? उन्हें साफ़ करना चाहिए कि वह हाजियों की नुमाइंदगी करती हैं या सरकार की।

इस कदम से सरकार की नियत का अंदाजा लग जाता है, कि वह केवल मुसलमानों की मदद करने का ढोंग करती है, अगर सरकार वाकई मुसलमानों का की मदद करना चाहती तो इस गलत रास्ते को क्यों चुनती है?

जिस छूट पर हज यात्रियों का हक़ है, सरकार उसी हक को सब्सिडी नामक भीख के तौर पर देती है। कम से कम हज यात्रियों का पैसा ही उन्हें छूट नामक झूट के नाम से देती तो भी चलता लेकिन सब्सिडी के नाम से तो यह सरकार की खुली लूट है।

आज ज़रूरत है कि यह आवाज़ उठाई जाए कि या तो हमारा हक दो नहीं तो कम से कम इस सब्सिडी नाम की भीख को समाप्त करो। वैसे भी हज जैसी पवित्र यात्रा के किराए पर सरकार की (झूठी) मदद जायज़ ही नहीं है, हज के लिए जाने वाले जहाँ डेढ़-दो लाख रूपये प्रति व्यक्ति खर्च करते हैं, क्या वह थोडा और पैसा खर्च नहीं कर सकते हैं?



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ग़ज़ल: "अँधेरी रात है खुद का भी साया साथ नहीं"


अँधेरी रात है खुद का भी साया साथ नहीं
कोई अपना ना हो, ऐसी भी कोई बात नहीं

साथ है जो, वोह ज़रूरी तो नहीं साथ ही हो
बात ऐसी भी नहीं, मिलते हो जज़्बात नहीं

कैफियत रात की कुछ ऐसी हुई जाती है
पास लेटा है जो, उससे ही मुलाक़ात नहीं

रिश्ता नयनों का हुआ बारिशों के साथ ऐसा
बादलों को ही यह पहचानती बरसात नहीं

टूटकर चाहा मगर चाहने का हासिल क्या
उसकी नज़रों में जो यह चाहतें सौगात नहीं

अपनी हस्ती को फ़ना कर दिया जिसकी धुन में
उसकी नज़रों में लड़कपन है यह सादात* नहीं

- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'

*सदात = बुज़ुर्गी, गंभीरता



यह ग़ज़ल मैंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखी थी...




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सीने की बुझी राख में अंगारों की दमक बाकी है




सीने की बुझी राख में अंगारों की दमक बाकी है
हौसले पस्त क्यों हों, जोशीली खनक बाकी है


नादां ना कर गुमां, कि बूढ़ा हो चला है शेर
वोह बाजुओं का ज़ोर और दांतों की चमक बाकी है


मुझको सफ़र का थक चुका रहबर न समझना
हम-कदम रहो, अगर चलने की सनक बाकी है

- शाहनवाज़ 'साहिल'

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क्या 'हलाला' शरिया कानून का हिस्सा है?

योजना बनकर 'हलाला' करना शरीयत का हिस्सा नहीं है बल्कि इस्लाम के खिलाफ है। मैंने पिछली पोस्ट में बताया था कि इस्लाम के अनुसार तलाक़ क्या होती है और एक बार तलाक़ होने के बाद कोई भी महिला अपनी मर्ज़ी से दूसरा विवाह करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होती है। हाँ अगर किसी महिला की या उसके पति की उससे नहीं बनती और बदकिस्मती से फिर से तलाक़ की स्थिति आ जाती है। तो ऐसी अवस्था में वह महिला अपनी इच्छा से फिर से पहले पति से शादी कर सकती है। 


क्या 'हलाला' शरिया कानून का हिस्सा है?


तलाक़ को इसलिए सख्त बनाया गया है कि पुरुष महिलाओं पर ज्यादतियां करने की नियत से इसका मज़ाक ना बना लें, जब चाहे तलाक़ दिया और फिर जब चाहे दुबारा विवाह कर लिया। इसीलिए तलाक़ के बाद वापिस दुबारा शादी की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है। यहाँ यह भी बताता चलूँ कि इस्लाम में तलाक़ को सबसे ज्यादा नापसंदीदा काम माना गया है और केवल विशेष परिस्थितियों के लिए ही इसका प्रावधान है।

एक बार तलाक़ होने के बाद कोई भी महिला अपनी मर्ज़ी से दूसरा विवाह करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होती है। हाँ अगर किसी तलाकशुदा महिला का अपने पति या उसके पति का उसके साथ तालमेल नहीं बैठता और बदकिस्मती से फिर से तलाक़ की स्थिति आ जाती है। तो ऐसी अवस्था में वह महिला अपनी इच्छा से फिर से पहले पति से शादी कर सकती है, जिसे 'हलाला' कहा जाता है। अगर कोई जानबूझकर इस प्रक्रिया अर्थात 'हलाला' को दूबारा शादी के लिए इस्तेमाल करता है तो इस्लामिक कानून के मुताबिक उनके लिए बेहद सख्त सज़ाओं का प्रावधान है। सन्दर्भ के लिए यह लिंक देखा जा सकता हैं.

http://www.islamawareness.net/Talaq/talaq_fatwa0008.html




निकाह की हर एक सूरत में महिला और पुरुष दोनों की 'मर्ज़ी' आवश्यक है

इस्लामिक विवाह की रीती में किसी भी स्थिति में बिना किसी महिला अथवा पुरुष की मर्ज़ी के शादी हो ही नहीं सकती है। अगर किसी महिला / पुरुष से ज़बरदस्ती 'हाँ' कहलवाई जाती है और हस्ताक्षर करवाए जाते हैं तो इस सूरत में विवाह नहीं होता है। और क्योंकि ऐसी स्थिति में क्योंकि विवाह वैध नहीं होता है इसलिए अलग होने के लिए तलाक़ की आवश्यकता भी नहीं होती है। उपरोक्त संदर्भो से यह साफ़ हो जाता है कि योजनाबद्ध तरीके से किये गए हलाला की इस्लाम में रत्ती भर भी जगह नहीं है।

मैंने तीन बार तलाक़ हो जाने पर दुबारा विवाह को लगभग नामुमकिन इसलिए कहा था क्योंकि किसी भी महिला की मर्ज़ी के बिना पहली या दूसरी शादी हो ही नहीं सकती है और कोई भी महिला 'योजना बनाकर हलाला करने' जैसी घिनौनी हरकत को जानबूझकर क़ुबूल नहीं करेगी। अगर किसी महिला या पुरुष का इस्लाम धर्म में विश्वास है तब तो वह ऐसा गुनाह बिलकुल भी नहीं करेंगे और अगर विश्वास ही नहीं है तो उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता ही नहीं है, वह देश के सामान्य कानून के मुताबिक कोर्ट में शादी कर सकते हैं।


इस विषय के सन्दर्भ को समझने तथा टिप्पणियों के माध्यम से विचारों के आदान-प्रदान के लिए मेरी पिछली पोस्ट पढ़ें.

तलाक़ पर लेख और मेरी प्रतिक्रिया





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गायब होती टिप्पणियों का राज़ - शाहनवाज

हमने ब्लॉग बुलेटिन पर गायब होती टिप्पणियों का राज़ क्या बताया, गूगल बाबा हमसे नाराज़ हो गए और हमारी पोस्ट की फीड को गूगल रीडर पर अपडेट करने से इंकार कर दिया. दोपहर ब्लॉग बुलेटिन पर पोस्ट डाली थी और फीड है कि अब तक अपडेट नहीं हुई है. अब जब फीड अपडेट नहीं हुई है तो पाठकों तक नई पोस्ट की खबर कैसे पहुंचेगी भला? बताता चलूँ कि हर एक ब्लॉग की पोस्ट गूगल रीडर के द्वारा ही फोलोवर्स तक पहुँचती है, चाहे वोह सीधे रीडर पर जाकर, ब्लोगर डेश बोर्ड पर अथवा अपने ब्लॉग पर लगे विजेट पर ताज़ा पोस्ट पढ़ पाते हैं. यहाँ तक कि हमारीवाणी जैसे ब्लॉग संकलक भी तभी पोस्ट अपडेट कर पाते हैं.

इस अकस्मक समस्या के हल के लिए हमने यह रास्ता निकला है. अब देखते हैं गूगल बाबा नज़रे करम करते हैं कि नहीं. आप तब तक नीचे दिए लिंक पर जाकर देखिये गायब होती टिप्पणियों का राज़ तथा ब्लॉग जगत की ताज़ा हलचल.

ब्लॉग बुलेटिन: गायब होती टिप्पणियों का राज़ - शाहनवाज़






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मुस्लिम समाज में तलाक़ का प्रावधान

सबसे पहले तो हमें यह पता होना चाहिए कि इस्लाम में विवाह एक कोंट्रेक्ट मैरिज होती है जिसमें क़ाज़ी, वकील तथा 2 गवाहों के सामने कुबूल कर लेने से निकाह हो जाता है तथा विशेष परिस्थितिओं में विवाह को 'तलाक' अथवा 'खुला' के द्वारा विच्छेद किया जा सकता है। मुस्लिम विवाह में गवाह, वकील तथा क़ाज़ी केवल इसलिए होते हैं जिससे कि कोई भी पक्ष विवाह से मुकर ना जाए।

ठीक इसी तरह जब यह एहसास हो जाए कि अब साथ रहना नामुमकिन है और ज़िन्दगी की गाडी को आगे बढाने के लिए अलग होना ही एकमात्र तरीका बचा है, तब ऐसे हालात के लिए तलाक़ का प्रावधान है।

तलाक़ का इस्लामिक तरीका यह है कि जब यह अहसास हो कि जीवन की गाडी को साथ-साथ चलाया नहीं जा सकता है, तब क़ाज़ी मामले की जाँच करके दोनों पक्षों को कुछ दिन और साथ गुज़ारने की सलाह दे सकता है अथवा गवाहों के सामने पहली तलाक़ दे दी जाती है, उसके बाद दोनों को 30 दिन (माहवारी की समयसीमा) तक अच्छी तरह से साथ रहने के लिए कहा जाता है। अब अगर उसके बाद भी उन्हें लगता है कि साथ रहना मुश्किल है तो फिर दूसरी बार गवाहों के सामने "तलाक़" कहा जाता है, इस तरह दो "तलाक" हो जाती हैं और फिर से 30 दिन तक साथ रहा जाता है। अगर फिर भी लगता है कि साथ नहीं रहा जा सकता है तब जाकर तीसरी बार तलाक़ दी जाती है और इस तरह तलाक़ मुक़म्मल होती है।

इसके अलावा 1 तलाक़ देने के बाद तीन महीने तक भी इंतज़ार किया जा सकता है और तीन महीने पूरे होने से पहले साथ रहने या नहीं रहने का फैसला किया जाता है, अगर साथ नहीं रहना है तो तलाक़ हो जाती है। इस हालत में अगर कुछ दिनों या महीनों के बाद दोनों को अगर लगता है कि तलाक़ देकर गलती की है तो दुबारा निकाह किया जा सकता है, पर इस तरीके से भी अलग-अलग बार तीन बार तलाक़ देने के बाद फिर से शादी का हक़ ख़त्म हो जाता है।

इसमें सुन्नी मुस्लिम समाज का 'हनफी', 'शाफ़ई' तथा 'मालिकी' मसलक में एक ही समय में "तीन तलाक़" को भी सही माना जाता हैं, हालाँकि वह भी इस तरीके को अच्छा तरीका नहीं मानते। अन्य मुस्लिम उलेमा एक समय में तीन तलाक़ दिए जाने को "तलाक़" नहीं मानते हैं और कई मुस्लिम देशों में इस तरह से तलाक देने पर व्यक्ति के विरुद्ध सज़ा का प्रावधान है।



महिलाओं को तलाक़ का हक

यह कहना गलत है कि महिलाओं को तलाक़ का हक नहीं है। अगर किसी महिला को पति पसंद नहीं है या फिर वह शराबी, जुआरी, नामर्द, मार-पीट करने वाला, बुरी आदतों या स्वाभाव वाला या किसी ऐसी सामाजिक बुराई में लिप्त है जो कि समाज में लज्जा का कारण हो तो उसे सम्बन्ध विच्छेद का हक है। इसके लिए उसे भी क़ाज़ी के पास जाना होता है। महिला के आरोप सही पाए जाने की स्थिति में विवाह विच्छेद का अधिकार मिल जाता है, जिसको 'खुला' कहा जाता है।

इस विषय में कुछ लोगो का यह कहना है कि जब विवाह पति-पत्नी की मर्ज़ी से होता है तो तलाक़ किसी एक की मर्ज़ी से कैसे हो सकता है। मेरे विचार से ऐसा कहना व्यवहारिक नहीं है, सम्बन्ध हमेशा दो लोगो की मर्ज़ी से ही बनते हैं परन्तु किसी एक की भी मर्ज़ी ना होने से सम्बन्ध समाप्त हो सकते हैं। ज़रा सोचिये अगर किसी महिला का पति उस पर ज्यादतियां करता है, यातनाएं देता है और तलाक़ देने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है तो क्या ऐसे में बिना उसकी मर्जी के तलाक़ के प्रावधान का ना होना जायज़ कहलाया जा सकता है?

एक पुरुष और महिला के दिलों का मिलना और साथ-साथ सामाजिक बंधन में बंध कर रहना विवाह है तो रिश्तों में तनाव या अन्य किसी कारण से साथ-साथ ना रह पाने की स्थिति का नाम 'तलाक़' है।



[इस लेख की अगली कड़ी "हलाला" के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें]

क्या 'हलाला' शरिया कानून का हिस्सा है?






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एक शाम ढली, फिर सुबह नई


15 मार्च, अर्थात अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार आज मेरा जन्मदिवस है, हालाँकि भारतीय कैलेंडर के अनुसार तो मेरा जन्मदिवस 'चैत्र मास' की पहली तिथि अर्थात रंगों की होली के दिन पड़ता है... आज सुबह से मूड बहुत अच्छा है, सब कुछ नया-नया सा है... मैंने अपनी भावनाओं को यूँ ही कुछ शब्दों की माला में पिरो दिया है.


एक शाम ढली, फिर सुबह नई,
उम्मीद नई, शुरुआत नई

वोह चमकीला सा ख्वाब नया
जज़्बात नए, हर आस नई

हर आंसू गिर कर सूख गया,
अब खुशियों की हो बात नई

यूँ मद्धम-मद्धम चलती सी
यह खुशियों की बारात नई

फिर जीवन खुलकर झूम उठा,
लम्हा-लम्हा सौगात नई

अब रब की पनाह में है 'साहिल'
हर मौज नई, सादात* नई


- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'



*सादात = बुज़ुर्गी


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ब्लॉग को वेबसाइट में कैसे बदलें? - ब्लॉग बुलेटिन

आजकल ईमेल तथा ब्लॉग हैकिंग की खबरे आम हैं, इसलिए अक्सर अपने ब्लॉग का बैकअप लेते रहिये. इसके लिए  ब्लॉग सेटिंग ((Settings) में जाना पड़ेगा, डेश बोर्ड से किसी ब्लॉग की सेटिंग सेक्शन में जाने के लिए सबसे पहले ब्लॉग के नाम के नीचे लिखे "सेटिंग्स" (Settings) पर क्लिक करना है।


सेटिंग में पहुँच कर सबसे पहले "Basic" प्रष्ठ खुलता है, इसमें "ब्लॉग उपकरण" (Blog Tools) के अंतर्गत "ब्लॉग आयात करें  (Import blog) - ब्लॉग निर्यात करें (Export blog) - ब्लॉग हटाएँ" (Delete Blog) नामक 'टेब' नज़र आएँगे। हर एक ब्लॉग की सभी पोस्ट और टिप्पणियां एक XML फाइल में सुरक्षित (Save) होती है। अपने ब्लॉग XML फाइल को आप कभी भी अपने कम्प्यूटर में कॉपी (डाउनलोड) कर सकते हैं अथवा अपने कंप्यूटर से अपने ब्लॉग पर अपलोड कर सकते हैं। 

"ब्लॉग आयात करें" (Import Blog): XML फाइल कंप्यूटर से ब्लॉग के सर्वर पर अपलोड करने के लिए तथा 
"ब्लॉग का निर्यात करें" (Export blog): ब्लॉग की XML फाइल कंप्यूटर में Save अर्थात (डाउनलोड) करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इन दो टूल्स के द्वारा आप कभी भी अपनी ब्लॉग पोस्ट तथा टिप्पणियों का बैकअप अपने कंप्यूटर में सहेज कर रख सकते हैं और किसी दुर्घटनावश पोस्ट डिलीट होने पर उसी फाइल से वापस अपने ब्लॉग पर अपलोड कर सकते हैं.

अगर भविष्य में कभी भी ब्लॉग को समाप्त करना चाहेंगे तो इसे "ब्लॉग हटाएँ" (Delete Blog) पर क्लिक करके समाप्त किया जा सकता है।

आज के दौर में अधिकतर ब्लॉगर अपने ब्लॉग को blogspot.com नाम की जगह अपने खुद के डोमेन नेम के साथ खोलना चाहते हैं. इसके लिए बहुत ज्यादा तकनिकी जानकारी की आवश्यकता नहीं है.


स्वयं की ब्लॉग साईट: 
अपनी स्वयं की साईट बनाने के लिए आपको एक डोमेन नेम अर्थात अपने ब्लॉग का नाम खरीदना पड़ेगा, जैसे मेरे ब्लॉग का नाम www.premras.com है, और साथ ही अगर आप अपनी ब्लॉग-पोस्ट को अपने स्पेस में रखना चाहें तो होस्टिंग पैकेज भी खरीद सकते. होस्टिंग के अंतर्गत उपलब्ध जगह (स्पेस) और डाटाबेस के द्वारा ही ब्लॉग-पोस्ट को सेव किया जाता है.  

किसी अच्छी कंपनी से डोमेन नेम खरीदने का तकरीबन 600 रूपये का खर्च आता है. अगर आप केवल डोमेन नेम ही खरीदना चाहते हैं तो अपनी ब्लॉग पोस्ट blogger.com के द्वारा ही प्रकाशित कर सकते हैं. इसके लिए आपको डोमेन नेम खरीदने के बाद उसकी सेटिंग में कुछ बदलाव करने पड़ेंगे तथा blogger.com की सेटिंग में भी कुछ बदलाव करने पड़ेंगे.

इसके लिए उपरोक्त विधि द्वारा सेटिंग में पहुँचने के बाद प्रकाशन (Publishing) पर क्लिक करना है, आइये प्रकाशन टेब को समझते हैं. 

प्रकाशन (Publishing): अगर आप अपने ब्लॉग के पते के साथ blogspot.com को हटाना चाहते हैं तो डोमेन नेम खरीद कर इस टेब के द्वारा बिना होस्टिंग खरीदे अपनी वेबसाइट चला सकते हैं, इसके अतिरिक्त किसी ब्लॉग को नए पते के साथ भी जोड़ा जा सकता है। अगर डोमेन नेम खरीदना है तो यह गूगल से भी खरीदा जा सकता है अथवा अपनी पसंद की किसी और कंपनी से भी खरीद सकते हैं। इसके लिए "प्रकाशन" (Publishing) पर क्लिक करने के बाद "कस्टम डोमेन" (Custom Domain) पर क्लिक करना है, अगर डोमेन गूगल से खरीदना चाहते है तो यहाँ नाम के उपलब्ध होने की जांच की जा सकती है, किसी और कंपनी से खरीदना चाहते हैं या पहले से खरीदा हुआ है तो "उन्नत सेटिंग्स पर जाएँ" (Switch to advanced settings) पर क्लिक करना है। नए खुलने वाले प्रष्ट पर लिखे "सेटअप निर्देश" (setup instructions) पर क्लिक करके डोमेन की सेटिंग की जानकारी मिल सकती है। 

अगर आप अपने ब्लॉग को टॉप लेवल डोमेन (top-level domain) जैसे कि www.premras.com पर होस्ट करना चाहते हैं तो जिस कंपनी से डोमेन खरीदा है वहां लोगिन करके डोमेन की सी-नेम (CNAME) सेटिंग में www में लिखकर उसके होस्ट नेम में  ghs.google.com लिखना है. 

इसके साथ ही साथ आप चाहें तो 'ए रिकोर्ड्स' (A-records) में भी बदलाव कर सकते हैं. क्योंकि अगर ए रिकोर्ड्स नहीं डाला जाता है तो बिना www के साईट का नाम लिखने पर ब्लॉग नहीं खुलता है.  

इसके लिए ए रिकोर्ड्स (A-records) की सेटिंग में जाकर फॉर्मेट में डोमेन नेम (जैसे कि premras.com) लिखकर 'ए' (A) सेक्शन में गूगल की 4 निम्नलिखित आई.पी. एड्रेस को भरना है.

216.239.32.21
216.239.34.21
216.239.36.21
216.239.38.21


डोमेन सेटिंग पूरी करने के बाद "आपका डोमेन" (Your Domain) के आगे खरीदे गए डोमेन का पता भर कर प्रष्ट के नीचे लिखे तथा पर "yourdomain.com को www. yourdomain.com पर अग्रेषित करें" (Redirect yourdomain.com to www. yourdomain.com)  के आगे बने बॉक्स में क्लिक करके  "सेटिंग्स सहेजें" (Save) पर क्लिक कर दीजिये। अब आपका वही पुराना ब्लॉग आपके खरीदे गए डोमेन नेम पर खुलने लगेगा।

अपनी साईट / ब्लॉग को ब्लॉगर प्रोफाइल से जोड़ें:
इसके अलावा अगर आपने अपना ब्लॉग वर्डप्रेस अथवा किसी और सेटअप पर बनाया हुआ है तब भी आप उसे अपनी ब्लॉगर प्रोफाइल के साथ जोड़ सकते हैं. इसके लिए उपरोक्त सेटिंग में केवल  "आपका डोमेन" (Your Domain) के आगे अपनी साईट अथवा वर्डप्रेस ब्लॉग का पता भरना है और "सेटिंग्स सहेजें" (Save) पर क्लिक करना है. इससे आपकी साईट आपकी ब्लॉगर प्रोफाइल के साथ जुड़ जाएगी.



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आज के दौर में जानकारी ही बचाव है - ब्लॉग बुलेटिन









तकनिकी चर्चा, technical post, personal domain with blogger blogspot.कॉम

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गरीबी में लाचार बचपन

गरीबी बचपना आने ही नहीं देती है, बच्चे अपने परिवार का भार उठाने की मज़बूरी में बचपन में ही जवान हो जाते हैं और जवानी से पहले बूढ़े. हालाँकि ध्यान से देखो तो वह बच्चे भी अपने ही लगते हैं, उनमें भी अपने ही बच्चों का अक्स नज़र आता है. कुछ बच्चों के पास सबकुछ है और कुछ के पास है केवल लाचारी...



गरीब बच्चो का
ख्वाब होता है
बचपन

कब पैदा हुए
कब जवान
और कब चल दिये
अनंत यात्रा पर

याद भी नहीं
क्या है ज़िन्दगी

शायद हसरतो का
नाम है,
या फिर उम्मीदों का

हसरतें
कब किसकी पूरी हुई हैं?
और
उम्मीदें तो होती ही
बेवफा हैं


ऊँची इमारतें की
क्या खता है
आखिर ऊँचाइयों से
कब दीखता है
धरातल

'कुछ' कुलबुलाता सा
नज़र आता है
'कीड़ों' की तरह

या कुछ परछाइयाँ
जो अहसास दिलाती हैं
शिखर पर होने का

किसी का बच्चा
कई दिन से भूखा है
तो हुआ करे

ज़िद करके
मेरे बच्चे ने तो
पीज़ा खा लिया है

ठिठुरती ठण्ड को कोई
सहन ना कर पाया
मुझे क्या,
मेरा बच्चा तो
नर्म बिस्तर से रूबरू है

क्यों ना हो,
आखिर 'हम' कमाते
किसके लिए हैं?
'अपने' बच्चो के लिए ही ना!

जब गरीबों की कोई
ज़िन्दगी ही नहीं
तो 'बचपन' कैसा?


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थायरॉइड डिस्ऑर्डर और "ब्लॉग बुलेटिन" पर मेरी पहली ब्लॉग चर्चा

लिखावट में मेरी गरचे, निशाने जुनूँ नज़र आए.
तो मैं समझू फ़क़त, मेहनत मेरी कामयाब हो गयी. 

सभी मित्रों को शाहनवाज़ सिद्दीकी का 'प्रेम रस' में डूबा हुआ आदाब. यह मेरी पहली ब्लॉग्स चर्चा है, कुछ बेहतरीन ब्लॉग-पोस्ट से आप सभी को रु-बरु कराने की कोशिश करूँगा. मेरी इस पहली चर्चा की थीम स्वास्थ्य है, इसलिए सबसे पहले बात करते हैं स्वास्थ्य से जुडी कुछ जानकारियों की.

अगर आपका वज़न अचानक तेज़ी से घट या बढ़ रहा है तो यह थायरॉइड डिस्ऑर्डर का लक्षण हो सकता है, थायरॉइड डिस्ऑर्डर के प्रमुख लक्षणों में वज़न के घटने, बढ़ने के आलावा काम में मन ना लगना, उदास रहना, हड्डियों अथवा जोड़ों में दर्द प्रमुख हैं.

क्या होता है थायरॉइड?
हमारी बॉडी में बहुत-से एंडोक्राइन ग्लैंड्स (अंत: स्रावी ग्रंथियां) होते हैं, जिनका काम हॉर्मोन्स बनाना होता है। इनमें से थायरॉइड भी एक है, जो कि गर्दन के बीच वाले हिस्से में होता है। थायरॉइड से दो तरह के हॉर्मोन्स निकलते हैं : T3 और T4, जो हमारी बॉडी के मेटाबॉलिज्म को रेग्युलेट करते हैं। T3 10 से 30 माइक्रोग्राम और T4 60 से 90 माइक्रोग्राम निकलता रहता है। एक तंदुरुस्त आदमी के शरीर में थायरॉइड इन दोनों हॉर्मोन्स को सही मात्रा में बनाता है, जबकि गड़बड़ी होने पर ये बढ़ या घट जाते हैं। थॉयराइड डिस्ऑर्डर के कारण महिलाओं में बांझपन और पीरियड्स के अनियमित होने की प्रॉब्लम हो जाती है। शरीर में इन दोनों के लेवल को TSH हॉर्मोन कंट्रोल करता है। THS (Thyroid Stimulating Harmone) पिट्यूटरी ग्लैंड से निकलने वाला एक हॉर्मोन है।

क्या है थायरॉइड डिस्ऑर्डर?
थायरॉइड ग्लैंड से निकलने वाले T3 और T4 हॉर्मोन्स का कम या ज्यादा होना थायरॉइड डिस्ऑर्डर कहलाता है।

कैसे होता है
- ज्यादातर मामलों में यह खानदानी होता है।
- खाने में आयोडीन के कम या ज्यादा होने से।
- ज्यादा चिंता करने, अव्यवस्थित खानपान और देर रात तक जागने से।
- कुछ दवाइयों से, जैसे Amiodarone जो कि दिल के मरीजों को दी जाती है और Lithium जो कि मूड डिस्ऑर्डर यानी मानसिक रूप से परेशान मरीजों को दी जाती है। इन दवाइयों को लंबे समय तक लेने से हॉर्मोन्स का लेवल कम-ज्यादा हो जाता है, जिससे थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो जाता है।

कैसे पता चलता है
किसी को थायरॉइड डिस्ऑर्डर है या नहीं, इसके लिए यह चेक किया जाता है कि बॉडी में T3, T4 और TSH लेवल नॉर्मल है या नहीं। पहले लक्षणों और फिर जांच (थायरॉइड प्रोफाइल टेस्ट) से इसका पता चलता है।

कितने तरह का होता है :
मोटे तौर पर थायरॉइड डिस्ऑर्डर को दो भागों में बांटा जाता है :

1. हाइपोथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब T3 और T4 हॉर्मोन लेवल कम हो जाए तो उसे हाइपोथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें TSH बढ़ जाता है।

2. हाइपरथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब T3 और T4 हॉर्मोन लेवल अगर बढ़ जाए तो हाइपरथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें TSH घट जाता है।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर में पहले TSH चेक किया जाता है और अगर उसमें कोई घट-बढ़ पाई जाती है तो फिर T3 और T4 टेस्ट किया जाता है। पहली बार थायरॉइड टेस्ट कराने के बाद दूसरी बार टेस्ट तीन से छह महीने बाद करा सकते हैं। आजकल हॉमोर्न लेवल घटने यानी हाइपोथायरॉयडिज्म के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं। इसमें TSH बढ़ जाता है।

हाइपोथायरॉयडिज्म के कारण
- आयोडीन 131 ट्रीटमेंट से। यह ट्रीटमेंट हाइपरथायरॉइडिज्म के मरीजों को दिया जाता है, जो थायरॉइड के सेल्स को मारता है। इस ट्रीटमेंट में डोज के ज्यादा या कम होने से।

- थायरॉइड की सर्जरी से।

- गले की रेडिएशन थेरेपी से, जो कि ब्लड और गले का कैंसर होने पर दी जाती है।

- दवाइयों जैसे Lithium मानसिक रूप से परेशान मरीजों को दी जाती है, Anti-Thyroid Drugs थायरॉइड डिस्ऑर्डर को नॉर्मल करने के लिए, Interferon-Alfa हेपेटाइट्स और कैंसर के मरीजों को दी जाती है और Amiodarone जो कि दिल के मरीजों को दी जाती है, आदि से। ये दवाएं लंबे समय तक लेने से ही दिक्कत होती है।

- अगर पैदाइशी रूप से थायरॉइड ग्लैंड में हॉर्मोन बनने में गड़बड़ी हो या फिर थायरॉइड ग्लैंड हो ही न।

- अगर कोई पहले से ही थायरॉइड का ट्रीटमेंट ले रहा हो और उसे अचानक से बंद कर दे।

- TSH की कमी से।

- अगर किसी को हाइपोथैलमिक बीमारी हो। हाइपोथैलमस ब्रेन का ही एक पार्ट होता है, जिसमें किसी भी तरह की बीमारी जैसे ट्यूमर, रेडिएशन आदि होने से हाइपोथैलमिक बीमारी होती है, जिससे हाइपोथायरॉइडिज्म हो जाता है।


हाइपोथायरॉइडिज्म के लक्षण

बड़ों में
- भूख कम लगती है, पर वजन बढ़ता जाता है।
- दिल की धड़कन कम हो जाती है।
- गले के आसपास सूजन हो जाती है।
- हर काम में आलस जैसा लगने लगता है, थकावट जल्दी हो जाती है और कमजोरी आ जाती है।
- डिप्रेशन होने लगता है।
- पसीना कम आने लगता है।
- स्किन ड्राई हो जाती है।
- ठंड ज्यादा लगना (गर्मी में भी ठंड लगती है)
- बाल ज्यादा झड़ने लगते हैं।
- याददाश्त में कमी आ जाती है।
- कब्ज
- महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं। कुछ मामलों में पहले पीरियड्स कम होते हैं, फिर धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं।
- कुछ लोगों में सुनने की शक्ति भी कम हो जाती है।

इलाज
पहले लीवोथॉयरोक्सिन (ये हॉर्मोन्स होते हैं) दिया जाता है, जिसकी डोज 50 माइक्रोग्राम से शुरू की जाती है और फिर TSH लेवल और जरूरत के मुताबिक इसकी डोज बढ़ाई जाती है। इसके साथ अगर मरीज की कोई ऐसी दवा चल रही हो, जोकि थायरॉइड के लेवल को घटा रही हो जैसे : Lithium, Amiodarone तो ऐसी दवाओं को रोक दिया जाता है क्योंकि ये दवाइयां हाइपोथायरॉइडिज्म करती हैं। इलाज का असर हो रहा है या नहीं, इसे दो तरह से आंक सकते हैं : पहला : ऐसे सुधार, जिन्हें मरीज खुद देख सकता है जैसे सूजन में कमी आना और दूसरा : जिसमें हॉर्मोन्स में सुधार आता है और जिनकी पहचान सिर्फ डॉक्टर ही कर सकता है।

बच्चों में
हाइपोथायरॉइडिज्म से पीड़ित पैदा नॉर्मल होता है लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसमें लक्षण दिखने लगते हैं। आमतौर पर यह आयोडीन की कमी से होता है।

- बच्चा गूंगा-बहरा पैदा होता है।
- बौना होता है, यानी उसकी उम्र के हिसाब से लंबाई कम होती है।
- लंबे समय तक पीलिया रहने लगता है।
- सामान्य बच्चों की तुलना में उसकी जीभ बड़ी होती है।
- हड्डियों का विकास धीमा होता है।
- नाभि फूलती जाती है।
- आई क्यू सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है।

जब कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो बच्चे को थायरॉइड न हो, इसके लिए मां को आयोडीन नमक वाला खाना दिया जाता है। लेकिन अगर पैदा होने के बाद बच्चे को थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो जाता है तो उसे Iodized Oil दिया जाता है। इसमें एक एमएल में 480 मिली ग्राम आयोडीन होता है। आजकल थॉयरोक्सिन यानी Eltroxin टैब्लेट भी दी जाती हैं। 5 साल से कम के बच्चों को 8 से 12 माइक्रोग्राम से शुरू करते हैं और दिन में एक बार देते हैं। यह तब तक दी जाती है, जब तक बच्चा नॉर्मल न हो जाए।

हाइपरथायरॉइडिज्म
हाइपरथायरॉइडिज्म : इसकी जांच में T3, T4 बढ़ा हुआ और THS घटा हुआ रहेगा। साथ ही इसमें Thyroid Stimulating Immunoglobulin मिलता है। यह एक तरह का प्रोटीन होता है, जोकि थायरॉइड ग्लैंड में जाकर उसे ज्यादा निकालता है। इसी की वजह से यह बीमारी होती है।

कारण
- ग्रेव्स बीमारी से। यह आमतौर पर 20 से 50 साल तक की उम्र के लोगों में पाई जाती है और ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर से होती है। इसमें सारे लक्षण हाइपरथायरॉयडिज्म के होते हैं, जिसके ट्रीटमेंट में एंटी-थायरॉइड ड्रग सर्जरी की जाती है।
- ज्यादा मात्रा में आयोडीन खाने से।
- थायरॉइड हॉर्मोन ज्यादा लेने से।
- टॉक्सिक मल्टिनॉड्युलर ग्वाइटर और टॉक्सिक एडिनोमा हो जाने से। ग्लैंड में बहुत-सी गांठें होती हैं, जिनमें बहुत तेजी से हॉर्मोन्स बनने लगते हैं।

बड़ों में लक्षण
- वजन कम हो जाता है।
- दिल की धड़कन तेज होने लगती है।
- हर काम में जल्दी रहती है।
- चिड़चिड़ापन रहने लगता है।
- पसीना ज्यादा आने लगता है।
- स्किन में नमी ज्यादा रहती है।
- दिमागी तौर पर स्मॉर्टनेस और इंटेलिजेंस बढ़ जाती है।

थायरॉइड की सर्जरी के अलावा आयोडीन 131 और एंटी-थायरॉइड ड्रग्स जैसे Carbimazole, Methimazole और Propranolol आदि दी जाती हैं।

बच्चों में लक्षण
बच्चों में हाइपरथायरॉइडिज्म के मामले लगभग 5 पर्सेंट ही होते हैं, यानी उनमें हाइपरथायरॉइडिज्म के बजाय आमतौर पर हाइपोथायरॉइडिज्म ज्यादा होता है।

- गॉइटर (घेंघा) यानी गर्दन का साइज बढ़ जाना।
- मानसिक रूप से परेशान रहने लगेगा।
- बच्चे का किसी भी काम में, पढ़ाई और खेलकूद में ध्यान न लगना।
- भूख बढ़ जाना लेकिन वजन कम होना। मतलब, बच्चा खाना ज्यादा खाएगा लेकिन उसका वजन घटेगा।
- प्रोप्टोसिस यानी आंखों का ज्यादा बाहर आ जाना।

इसमें एंटी-थायरॉइड ड्रग जैसे Propylthioucacil और Methimazole दी जाती है। एक बार थायरॉइड लेवल नॉर्मल हो जाने पर दवाओं की डोज कम-से-कम स्तर पर ले जाते है। कितने लेवल पर ले जाना है, यह डॉक्टर तय करता है। इन्हें हॉर्मोन्स लेवल को कंट्रोल करने के लिए दिया जाता है।

होम्योपैथ
होम्योपैथ में भी थायरॉइड का इलाज मरीज के लक्षणों जैसे पर्सनैलिटी, बॉडी टाइप (मोटा-पतला), मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, फैमिली मेडिकल हिस्ट्री, मरीज के शरीर की संवेदनशीलता आदि के आधार पर ही किया जाता है। होम्योपैथ में TSH को नॉर्मल करने के लिए दवा दी जाती है।

दवाएं
लांकि लक्षणों को देखकर ही दवा और डोज दी जाती है। लेकिन कुछ दवाएं हैं, जो आमतौर पर थायरॉइड के सभी मरीजों को दी जाती है। वे हैं :

- Calcarea Carb 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Graphites 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Thuja Occ 30 , 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Phosphorus 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Lachesis 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

ध्यान रखें : दवा खाने से 15-20 मिनट पहले और बाद में कुछ भी न खाएं। मुंह में कोई भी तेज खुशबू वाली चीज होगी तो दवा असर नहीं करेगी।

आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी ज्यादा चिंता, शोक में रहना और अव्यवस्थित खानपान को थायरॉइड डिस्ऑर्डर का मुख्य कारण माना गया है।

लक्षणों को देखकर ही इलाज किया जाता है लेकिन सामान्य रूप से इसके लिए आरोग्यवर्द्धनी वटी (एक गोली), गुग्गुल (एक गोली), वातारि रस (एक गोली) और पुनर्नवादि मण्डूर (एक गोली) दवा दी जाती है। ये दवाएं सुबह-शाम गर्म पानी से कम-से-कम तीन महीने लेनी होती हैं। थायरॉइड डिस्ऑर्डर में घरेलू नुस्खों से ज्यादा फायदा नहीं होता।

योग
थायरॉइड डिस्ऑर्डर गले से जुड़ी बीमारी है, इसलिए जो भी प्राणायाम आदि गले में खिंचाव, दबाव या कंपन पैदा करे, उन्हें मददगार माना जाता है।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर होने पर :

- कपालभाति क्रिया के तीन राउंड पांच मिनट तक करें।

- उज्जयिनी प्राणायाम 15 से 20 बार दोहराएं।

- गर्दन की सूक्ष्म क्रियाएं करें, जिसमें गर्दन को आगे-पीछे और लेफ्ट-राइट घुमाएं।

- लेटकर सेतुबंध, सर्वांग और हलासन, उलटा लेटकर भुजंग और बैठकर उष्ट्रासन, जालंधर बंध आसन करें। सभी आसन 2 से 3 बार दोहराएं।

नोट : सर्वांग और हलासन गर्दन, कमर दर्द, हाई बीपी और हार्ट की बीमारियों में न करें। बाकी आसन कर सकते हैं।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो ही न, इसके लिए इन सभी आसनों और प्राणायाम को रोजाना करने के साथ ही रोजाना सैर पर जाएं। रेग्युलर ऐसा करने से थायरॉइड डिस्ऑर्डर कुछ ही दिनों में कंट्रोल हो जाता है।

क्या खाएं
- हल्का खाना जैसे दलिया, उबली सब्जियां, दाल-रोटी आदि खाएं।
- हरी सब्जियां और कम घी-तेल और मिर्च-मसाले वाला खाना खाएं।

क्या न खाएं
- बैंगन, चावल, दही, राजमा, अरबी आदि।
- खाने की किसी भी चीज को ज्यादा ठंडा और ज्यादा गर्म न खाएं।
- तला खाना जैसे समोसे, टिक्की आदि न खाएं।

INMAS (Istitute of Nuclear Medicine and Allied Science)
यह मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस का एक इंस्टिट्यूट और खासकर थायरॉइड का बड़ा हॉस्पिटल है।

- यहां जनरल ओपीडी नहीं है। सिर्फ किसी एम. डी. डॉक्टर के रेफर पर ही यहां इलाज किया जाता है।

- सुबह 7:30 से 11 बजे तक नंबर मिलते हैं, 8:30 से 11 बजे तक कार्ड बनाए जाते हैं और सुबह 9 से 11:30 बजे तक डॉक्टर मरीजों को देखते हैं।

- कार्ड 10 रुपये में बनता है और इसी पर इलाज के पूरे होने तक दवाइयां लिखी जाती है, जोकि बाहर से खरीदनी होती हैं।

फोन नंबर : 011- 2390 5327

पता : INMAS, तीमारपुर-लखनऊ रोड, तीमारपुर, दिल्ली-110 054, दिल्ली यूनिवर्सिटी मेट्रो स्टेशन के पास।

एक्सपर्ट्स पैनल :
- डॉ. के. के. अग्रवाल, सीनियर कंसलटेंट, मूलचंद हॉस्पिटल
- डॉ. ओमप्रकाश सिंह, मेडिकल ऑफिसर, ई. एस. आई. हॉस्पिटल
- डॉ. शुचींद्र सचदेवा, सीनियर होम्योपैथ
- एल. के. त्रिपाठी, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक
- सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु

नोट : ऊपर बताई गई एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक किसी भी दवा को डॉक्टर की सलाह के बिना अपने आप न लें। एलोपैथी में बताई गई सभी दवाइयों के नाम उनके जेनरिक नेम हैं। बाजार में ये अलग-अलग नामों से मिलती हैं।

साभार: नवभारत टाइम्स





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मैं स्वयं हाइपरथायरॉइडिज्म का शिकार रहा हूँ, खुदा का शुक्र है कि इससे निजात पा सका...

मैंने भी अपने डॉक्टर की सलाह से इसका इलाज इनमास (INMAS) से ही कराया है. बहुत ही बेहतरीन अस्पताल है. इसलिए तभी सोचा था कि थायरॉइड डिस्ऑर्डर के ऊपर जानकारी इकठ्ठा करके सभी के सम्मुख रखूँगा.


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