'सामाजिक सुरक्षा' विषय पर रेडियो तेहरान में मेरी बात


 
अभी पिछले दिनों भारत में 'सामाजिक सुरक्षा' के विषय पर एक प्रोग्राम रेडियो तेहरान पर 'ओन एयर' हुआ था, जिसमें ब्लोगर बिरादरी से मेरे अलावा श्री केवल राम और डॉ पवन मिश्रा ने अपनी राय रखी थी।

इस कार्यक्रम में मैंने कहा कि हमारे देश में सामाजिक सुरक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है, साथ ही साथ कानून का डर भी नहीं है। मेरे हिसाब से सामाजिक सुरक्षा दो ही तरीके से आ सकती है, या तो हमारी परवरिश, हमारी शिक्षा ऐसी रही हो कि हम सामाजिक मूल्यों की कद्र करते हो या फिर कानून इतने सख्त हो कि अपराध के नतीजों से डर पैदा हो। मेरा यह मानना है कि जब तक हम स्वयं भ्रष्टाचार से पीछा नहीं छुटाएंगे, तब यह हमें ज़हरीले सांप की तरह डसता ही रहेगा। हम चाहते हैं कि दूसरे ठीक हो जाएँ और हम वैसे ही रहें। भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहीम के समर्थन पर सारे लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लिख रहे थे, लेकिन हम चाहते हैं कि संघर्ष, भूख हड़ताल जैसे कार्य दूसरे लोग करें और हम केवल दो शब्द लिख कर इतिश्री पा लें। इससे कुछ होने वाला नहीं है, बल्कि बदलाव अपने अन्दर को बदलने के प्रयास से ही आएगा।


Keywords: radio tehran, samajik suraksha, shahnawaz siddiqui, keval ram, dr. pawan mishra

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एनबीटी: भ्रष्टाचार की जड़

भ्रष्टाचार हमारे बीच में से शुरू होता है, हम अक्सर अपने आस-पास इसे फलते-फूलते हुए देखते हैं। बल्कि अक्सर स्वयं भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। हम भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों / अधिकारीयों को तो बुरा-भला कहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं की हम स्वयं भी कितने ही झूट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं!


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दुश्मनों को कुछ ऐसे डराते हैं हमारे गृहमंत्री!

गृहमंत्री: यह हमला केवल मुंबई पर नहीं, बल्कि पुरे देश पर हमला है। यह भारत की एकता, अखंडता और समृद्धि पर किया गया हमला है। पानी सर से ऊपर जा चुका है, देश ऐसी हरकतों को हरगिज़-हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेगा। देश के दुश्मनों पर कड़े से कड़े कदम उठाए जाएँगे!

मैं देशवासियों से आह्वान करता हूँ कि सरकार का अनुसरण करें, आवेश में ना आएँ, एकजुटता और "संयमता" के हथियार से देश में छुपे अथवा पडौसी देश की गोद में बैठे देश के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दें!

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माता-पिता हमारी सामाजिक व्यवस्था के स्तंभ हैं

माता-पिता दुनिया की सबसे बड़ी नेमतों में से एक हैं, बहुत खुशनसीब हैं वह जिनकों यह दोनों अथवा इनमें से किसी एक का भी सानिध्य प्राप्त है। हमारे माता-पिता हमारी सामाजिक व्यवस्था के स्तंभ हैं, पर अफ़सोस आज यह स्तंभ गिरते जा रहे हैं।

वह उस समय हमारी हर ज़रूरत का ध्यान रखते हैं, जबकि हमें इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, लेकिन जब उनको उसी स्नेह की आवश्यकता होती है तो हमारे हाथ पीछे हट जाते हैं। कहावत है कि दो माता-पिता मिलकर दस बच्चों को भी पाल सकते हैं, लेकिन दस बच्चे मिलकर भी दो माता-पिता को नहीं पाल सकते।

मेरे घर में जब मेरी बिटिया 'ऐना' आई तब मैंने अपनी पत्नी के द्वारा रातों को उसकी देखभाल करते हुए देखकर याद किया कि मेरी माँ ने भी इसी तरह मेरी देखभाल की होगी, वोह भी उस ज़माने में जबकि आज की आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थी। किस तरह जद्दो-जहद करके दिल्ली जैसे शहर में उन्होंने हमारे लिए ना केवल आशियाना बल्कि हर एक सुविधा का इंतजाम किया था, मेरे द्वारा फ़्लैट खरीदने पर माता-पिता की आँखों की ख़ुशी को याद करके आज भी खुश होता हूँ।

लेकिन अफ़सोस आज दिन-प्रतिदिन वृद्ध आश्रमों की संख्या बढती जा रही है, उनमें भी अधिकतर वही लोग होतें हैं जिनके बेटे-बेटियां जिंदा और अच्छी-खासी माली हालत में होते हैं। अक्सर उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर घर के बुज़ुर्ग अपने आप को अलग-थलग महसूस करने लगते हैं। संवेदनहीनता के इस दौर में अपने ही इनकी भावनाओं को समझने में नाकाम होने लगते हैं। मुझे आज भी याद है किस तरह मेरे नाना-नानी का रुआब घर पर था, उनकी हर बात को पूर्णत: महत्त्व मिलता था, लेकिन इस तरह का माहौल आज के दौर में विरले ही देखने को मिलता है। आज बुजुर्गों की बातों को अनुभव भरी सलाह नहीं बल्कि दकियानूसी समझा जाता है। उनकी सलाहों पर उनके साथ सलाह-मशविरे की जगह सिरे से ही नकार दिया जाता है।

एक घटना याद आ गई, बात उस समय की है जब में दक्षिण कोरिया में था, हमें एक शिपमेंट भेजनी थी। उसके लिए जो कंटेनर बुलाया गया था, उसका ड्राइवर काफी उम्र का था। रास्ते में हमने उससे मालूम किया कि क्या आपके पुत्र-पुत्रियाँ नहीं हैं? उसने कहा कि उसके दो बेटे और एक बेटी है। तब मैंने मालूम किया कि फिर आप इस उम्र में इतनी मेहनत का काम क्यों करते हैं? आपके बच्चे आपको रोकते नहीं? तो उसने बताया कि उसके बेटे-बेटी अपने-अपने घर में रहते हैं और वह और उसकी पत्नी अपने घर का खर्च चलाने के लिए काम करते हैं। जब हमने उसे अपने वतन हिन्दुस्तान के बारे में बताया कि वहां पर आज भी बुज़ुर्ग मजबूरी में मेहनत नहीं करते हैं, तो उस बुज़ुर्ग की आँखों में आंसू भर गए। उसने कहा कि आपका समाज कितना अच्छा है, जहाँ बुजुर्गों का ध्यान रखने वाले घर पर मौजूद होते हैं।

लेकिन आज के माहौल और दिन-प्रतिदिन गिरती मानवीय संवेदना को देखकर लगता है कि हमारे वतन में भी वोह दिन दूर नहीं जब बुजुर्गों की सुध लेने वाला कोई नहीं होगा! जबकि हर एक धर्म में बुजुर्गों से मुहब्बत और उनका ध्यान रखने की शिक्षाएं हैं, लेकिन बड़े-बड़े धार्मिक व्यक्ति भी इस ओर अक्सर बेरुखें ही हैं। क्योंकि उन्होंने धर्म को आत्मसात नहीं किया बल्कि केवल दिखावे के लिए ही उसका प्रयोग किया।

धार्मिक बातें चाहे लोगो को उपदेश लगे या किसी की समझ में ना आएं, लेकिन मैं हमेशा उनको दूसरों तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ। क्योंकि मानता हूँ कि अगर इसी तरह बताता रहा तो कम से कम मैं तो अवश्य ही उनपर अमल करने वाला बन जाऊंगा।
एक बार एक शख्स ने मुहम्मद (स.) से कहा कि मैं मैं हज करने के लिए जाना चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं है। आप (स.) ने मालूम किया कि क्या तुम्हारे घर में तुम्हारे माता-पिता दोनों अथवा उनमें से कोई एक जिंदा है, उस शख्स ने कहा कि माँ बाहयात हैं। आप (स.) ने फ़रमाया कि उनकी सेवा करो।

वहीँ एक बार फ़रमाया कि अपनी माता अथवा पिता को मुहब्बत की नज़र से देखना ऐसे 'हज' के पुन्य जैसा है जो कि कुबूल हो गया हो।
एक शख्स ने मालूम किया कि किसी के जीवन पर सबसे ज़्यादा मुहब्बत का अधिकार किसका है? आप (स.) ने फ़रमाया कि माँ का, उसने मालूम किया कि उसके बाद, तब आप (स.) ने फिर से फ़रमाया कि उसकी माँ का। उस शख्स ने तीसरी बार मालूम किया तब भी आप (स.) ने फ़रमाया कि उसकी माँ का और बताया कि चौथा नंबर पिता का है तथा उसके बाद अन्य लोगों का नंबर आता है।

वहीँ एक बार फ़रमाया कि अपने माता-पिता के इस दुनिया से जाने के बाद उनसे मुहब्बत यह है कि उनके रिश्तेदार और दोस्तों के साथ भी वैसा ही सुलूक किया जाए जैसी मुहब्बत माता-पिता के साथ है। एक बहुत ही मशहूर वाकिये में आप (स.) ने फ़रमाया था कि माँ के क़दमों तले जन्नत है

इसी प्रण के साथ बात को समाप्त करता हूँ, कि आजतक जितनी भी गलतियाँ, ज्यादतियां माँ-बाप के साथ की, भविष्य में उन गलतियों से दूरियां बनाने की पुरज़ोर कोशिश करूँगा। अगर इस प्रयास में सफल रहा तो अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझूंगा, वर्ना दिन तो गुज़र ही जाएँगे और मेरे बच्चे भी बड़े होंगे।

- शाहनवाज़ सिद्दीकी

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क्या इतना आत्मविश्वास कभी देखा है?

दुनिया में आपने बहुत-बहुत बड़े आत्मविश्वासी देखें होंगे, लेकिन मैंने अपने जीवन में किसी में इतना आत्मविश्वास कभी नहीं देखा...

क्या आपने इतना आत्मविश्वास कभी देखा है?

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कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? - भाग 4

पिछले भाग पढने के लिए क्लिक करें:
भाग - 1
भाग - 2
भाग - 3

अभी तक हमने ब्लॉग बनाने के 'ब्लॉगर' तथा 'वर्ड प्रेस' तकनीक को जानने की कोशिश की, अब आगे ब्लॉग अथवा वेबसाइट में प्रयोग होने वाले कुछ तकनीकी शब्दों के बारे में जान लेते हैं।

डोमेन नेम (Domain Name): 

यह किसी वेबसाइट अथवा ब्लॉग के पते के लिए प्रयोग होता है। अगर तकनीकी भाषा में बात करें तो डोमेन नेम किसी एक अथवा एक से अधिक IP Address का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात जब हम किसी वेबसाइट अथवा ब्लॉग को खोलने के लिए उसका पता ब्राउज़र में लिखते हैं तो हम उससे जुड़े IP Address तक पहुंच जाते हैं और वहां मौजूद वेब प्रष्ट हमारे कंप्यूटर में खुल जाता है। इन्टरनेट डोमेन नेम की जगह IP Address के आधार पर कार्य करता है इसलिए डोमेन नेम को IP Address में बदलने के लिए हर वेब सर्वर पर एक DNS (Domain Name System) की आवश्यकता होती है।

डोमेन नेम URL के साथ प्रयोग होता है, उदहारण के लिए URL http://www.example.com में example.com एक डोमेन नेम है। हर डोमेन नेम में एक प्रत्यय (suffix) होता है, जो इंगित करता है कि यह किस TLD (Top Level Domain) से सम्बंधित है। TLD को हम निम्नलिखित उदहारण से समझ सकते हैं:

com - वाणिज्यिक कारोबार (सबसे अधिक प्रचलित)
net - नेटवर्क संगठनों
gov - सरकार एजेंसियों
edu - शैक्षिक संस्थानों
org - संगठन (nonprofit)
mil - सैन्य
mobi - मोबाइल
in - भारत
th - थाईलैंड


वेब प्रष्ट होस्टिंग (Hosting):

वेब होस्टिंग उस सेवा को कहते हैं जिसके अंतर्गत किसी वेब प्रष्ट को संचित (Save) करने के लिए जगह (Space) का आवंटन होता है। वेब प्रष्टों को ऐसे कंप्यूटर सर्वर में संचित किया जाता है जो कि 24 घंटे इन्टरनेट से जुड़े होते हैं, जिससे की कोई भी वेबसाइट 24 घंटे प्रदर्शित होती रहे।

सर्वर बहुत ताकतवर कंप्यूटर होते हैं, इनकी हार्ड ड्राइव बहुत अधिक जगह (space) वाली होती हैं। यह जगह (space) उन्हें किराए पर दी जाती है जो अपनी वेबसाइट को इन्टरनेट पर दिखाना चाहते हैं। हर एक सर्वर की एक अलग सांख्यिक संख्या (IP Address) होती है।

जैसा की हमने पहले भी बताया था की ब्लॉग के लिए कुछ कम्पनियाँ मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं, जिसमें blogger.com तथा Wordpress.com प्रमुख हैं। इनकी सुविधाएं लेने के लिए आपको डोमेन नेम अथवा होस्टिंग पैकेज खरीदने की आवश्यकता नहीं है। 

Tag: 

टेग अथवा कीवर्ड (Keyword) को विषय की संक्षिप्त व्याख्या के रूप में प्रयोग किया हैं, यह वह शब्द होते हैं जिनके द्वारा पाठक सर्च इंजन के द्वारा ब्लॉग अथवा वेबसाईट पर पहुँचते हैं। अगर पोस्ट के विषय से सम्बंधित कुछ शब्द पोस्ट के विषय में लिखने से छूट गए हैं तो उन्हें टेग में लिखा जा सकता है। लेकिन अगर वह शब्द पोस्ट के विषय में मौजूद है तो उन्हें टेग के रूप में नहीं लिखना चाहिए, क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होगा। टेग में इंग्लिश के शब्दों का प्रयोग भी एक अच्छा तरीका हो सकता है, क्योंकि सर्च इंजन पर अक्सर पाठक इंग्लिश के शब्दों के द्वारा विषय सामग्री को ढूंढते हैं।

ब्लॉग संकलक: 

ब्लॉग संकलक जिसे फीड रीडर, न्यूज़ रीडर या एग्रीगेटर कहा जाता है, सामान्यत: ऐसी वेबसाईट होती हैं जहाँ विभिन्न  ब्लॉग्स का संकलन किया जाता है। इसके साथ-साथ एग्रीगेटर एक डेस्कटॉप कम्प्यूटर भी हो सकता है। सर्च इंजन के साथ-साथ पाठक ब्लॉग संकलक के द्वारा भी ब्लॉग-पोस्ट को पढ़ते हैं। ब्लॉग संकलक फीड के द्वारा ब्लॉग-पोस्ट को अपने प्रष्ट में प्रकाशित करते हैं, ब्लॉग पोस्ट को टेग के द्वारा श्रेणीबद्ध भी किया जा सकता है। जहाँ सर्च इंजन से पुरानी पोस्ट ही अधिक पढ़ी जाती है वहीँ ब्लॉग संकलकों के माध्यम से ताज़ा पोस्ट तक पाठक आसानी से पहुँच जाते हैं।

वेब फीड: 

वेब फ़ीड (Web Feed) या समाचार फ़ीड एक डेटा प्रारूप होता है जिसके द्वारा पाठकों / उपयोगकर्ताओं के लिए ब्लॉग की अद्यतित सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। वेब फीड को सामान्यत: आर.एस.एस (RSS) अथवा एटम (ATOM) के रूप में जाना जाता है।




[नोट: टिप्पणियों का विकल्प पोस्ट के विषय से सम्बंधित विचार-विमर्श के लिए ही खुला हुआ है, विषय से अलग टिप्पणियों को आप मेरे ईमेल-पते shnawaz(at)gmail.com पर भेज सकते हैं]

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एक पौधे की हत्या

टूटू एक छोटे से अनोखे पौधे का नाम है, उसका यह नाम रिंकू ने रखा था। रिंकू पास के गांव में रहने वाला एक छोटा बच्चा है, एक दिन सुबह-सुबह तितलियां पकड़ते हुए उसके यह सुंदर पौधा दिखाई दिया। उसी दिन से दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। टूटू बहूत ही खूबसूरत है तथा उसके अंदर से भीनी-भीनी खुशबू आती है। उसकी सुंदरता और खुशबू रिंकू को बहुत पसंद है। रिंकू ने पापा से कहा कि उसका एक दोस्त है टूटू, वह एक छोटा सा पौधा है, जोकि तालाब के पास रहता है। उसने पापा से मालूम किया कि पापा क्या टूटू हमारे साथ हमारे घर पर नहीं रह सकता है? पापा ने कहा कि बिलकुल रह सकता है, मैं आज शहर जा रहा हूं, कल टूट को घर पर ले आएंगे।

रिंकू खुशी-खुशी भागता हुआ टूटू के पास पहुंचा और उसको खुशखबरी सुनाई, टूट भी बहुत खुश था, लेकिन अपनी भावानाएं रिंकू के सामने व्यक्त करने में बेबस था। कुदरत ने उसको यह ताकत नहीं दी थी, लेकिन वह फिर भी खुश था। उसको अन्य जानवरों की तरह भोजन और पानी के लिए भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती थी, वह हिलझुल नहीं सकता था, इसलिए कुदरत ने उसके लिए सारा इंतज़ाम वहीं किया था।

वहां से एक बाबा निकले, टूटू को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बाबा ने रिंकू से कहा कि यह पौधा उनको चाहिए, इसकी उनको काफी दिनों से तलाश थी। रिंकू ने कहा कि यह उसका दोस्त टूटू है, वह उसकी हत्या नहीं करने देगा। बाबा ने कहा कि यह तो एक पौधा है और पेड़-पौधों की हत्या कैसे हो सकती है? रिंकू ने कहा कि पेड़-पौधो को काटना भी हत्या है, उसके घर में नीम का पेड़ है। लेकिन घर बनते समय भी पापा ने उसे काटने नहीं दिया। पापा कहते हैं कि पेड़ भी हमारी तरह ही होते हैं। उनमें भी जीवन होता है, बस बोल और चल नहीं सकते हैं। पापा ने यह भी बताया था कि कई पेड-पौधे तो बोलते भी हैं, अपनी रक्षा के लिए हिल भी सकते हैं, इसलिए उनको काटना नहीं चाहिए। आपाको पता है कि घर पर मेंरी एक दोस्त झुईमुई भी है, जब में उसके पत्तों को हाथ लगाता हूं तो वह शरमाकर अपने पत्तों को बंद कर लेती है।

बाबा ने रिंकू से कहा कि यह बहुत गुणकारी पौधा है, कई बीमारियों में इसकी दवा बनाई जा सकती है। मानव हित के लिए इसका प्रयोग होगा, बल्कि तुम्हारा दोस्त तो खुश होगा कि वह लोगों के काम आ पाएगा। उन्होंने समझाया कि नीम जैसे बड़े पेड बिना काटे ही इन्सान के काम आते हैं, इसलिए उन्हे नहीं काटा जाता है। लेकिन रिंकू बाबा से सहमत नहीं हुआ, उसने साफ-साफ कहा कि वह टूटू को नहीं काटने देगा। बच्चे की हट देखकर बाबा को भी वहां से चले जाना ही समझदारी लगी, इसलिए वह वहां से चले गए। रिंकू भी कुछ देर खेल कर शाम को आने वादा करके घर चला गया, वह बाबा के चले जाने से भी निश्चिंत था।

लेकिन जब वह शाम को टूटू के पास गया तो देख कर अवाक रह गया। उसका प्यारा दोस्त वहां नहीं था, वह बहुत दुखी हो गया था, उसको समझ आ गया था कि वह बाबा कहीं गए नहीं थे और उसके जाने के बाद टूटू को तोड़ कर ले गए थे। रिंकू बहुत ही मायूसी के साथ बहुत देर तक वहां बैठा रहा और उसके बाद रोता हुआ घर आया। उसकी आँखों में आंसू देखकर मम्मी ने समझाया, लेकिन रिंकू हा रोना रूक ही नहीं रहा था। दिन भर उसने कुछ नहीं खाया, शाम को पापा ने आकर उसको समझाया कि बेटा उस छोटे पौधे को तुमसे ज़्यादा बीमार लोगो को ज़रूरत थी। वह मरा नहीं है, बल्कि सेहत बन कर कितने ही लोगों के शरीर में ज़िंदा रहेगा।


- शाहनवाज़ सिद्दीकी
email: shnawaz(at)gmail.com

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देश की चूलें हिला रहा है धार्मिक भ्रष्टाचार

आज जहाँ सामाजिक भ्रष्टाचार देश को ज़हरीले सांप की तरह डस रहा है वहीँ धार्मिक भ्रष्टाचार भी देश की बुनियाद की चूलें हिलाने का काम कर रहा है। मैं हमेशा से ही मानता रहा हूँ कि भ्रष्टाचार हमारे अन्दर से शुरू होता है. इसके फलने-फूलने में सबसे अधिक सहायक हम स्वयं ही होते हैं बल्कि कहीं ना कहीं हम स्वयं इसका हिस्सा होते हैं। आज सभी चाहते हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए, लेकिन कोई भी यह नहीं चाहता कि उसके अन्दर का भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए।

धार्मिक भ्रष्टाचार भी आम जनता के कारण ही फलता-फूलता है। आज इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के ज़माने में हर इंसान पैसा कमाने के लिए रात-दिन एक कर देता है, हर इक दूसरों से आगे निकल जाना चाहता है। परन्तु ऐसे समय में भी अपने खून-पसीने से कमाए पैसों को मंदिर, मस्जिद, आश्रमों और दरगाहों में बर्बाद कर देता है। बर्बाद इसलिए कह रहा हूँ, कि ऐसे संस्थानों के कर्ता-धर्ता अधिकतर मामलों में उन पैसों का प्रयोग समाज के उद्धार की जगह स्वयं का उद्धार करने में करते हैं। आज के दौर में धर्म भी एक तरह का नशा हो गया है, या यह कहें कि बना दिया गया है। इस युग में भी लोग बिना सोचे-समझे धार्मिक गुरुओं पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं, जबकि उनके अनैतिक कृत्य खुले-आम नज़र आते हैं। जनता-दिन प्रतिदिन गरीब होती जा रही है और धर्म के यह तथा-कथित सेवक दिन-प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं। रोजाना धार्मिक स्थलों पर करोडो का चढ़ावा  चढ़ाया जाता है और बेशर्मी की हद यह है कि इन धार्मिक स्थलों द्वारा जोर-शोर से चढ़ावे में मिलने वाली अकूत दौलत का गुडगान कर-करके दुनिया को बताया जाता है। गौर करने की बात है कि अगर दान अथवा चढावे का यह पैसा गरीबों के उत्थान, बीमारों के इलाज अथवा अनाथ बच्चों के पोषण तथा शिक्षा जैसी जगह में खर्च हो तो देश और समाज का कितना उद्धार हो सकता है। बल्कि सही मायनों में यही पुन्य की प्राप्ति और पैसे का सदुपयोग है, अन्यथा इस तरह पैसों को बर्बाद करके पुन्य की खुशफहमी में जीने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा।

धर्म की आड़ में एक और धंधा जोरो पर है, आप इन संस्थानों को  कितना भी दान दीजिए और उसके बदले तीन-चार गुना अधिक की रसीद आपको मिल जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे संस्थानों से कोई कर वसूला नहीं जाता, बल्कि दान देने वालों को भी आयकर में छूट दी जाती है। डेढ़ लाख रूपये तक सालाना कमाने वाले आम नागरिकों पर तो सरकार टेक्स की भरमार कर देती है परन्तु करोड़ों कमाने वाले इन संस्थानों पर कोई टेक्स नहीं?

गरीब जनता को बीच मंझदार में छोड़ देने वाली सरकार इनके आगे-पीछे घूमती दिखाई देती है। करोड़ों की सरकारी ज़मीन ऐसे संस्थानों को कोडियों के दामों दे दी जाती है, जबकि अनाथालयों के लिए जगह मांगने वाले संस्थान, सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा-लगा कर थक जाते हैं। बल्कि कई राज्यों की सरकारों ने अनाथालयों की ज़मीन ऐसे संस्थानों को बाँट रखी है।

आज देश में गरीब के लिए स्कूल तथा अस्पतालों की संख्या गिनी जा सकती है जबकि धर्मस्थलों की संख्या अनगिनत है। नैतिकता का ढोल पीटने वाले धार्मिक संस्थान को जगह-जगह सार्वजानिक ज़मीन पर कब्ज़ा जमाए हुए देखा जा सकता है। कोई सरकार इन तथाकथित धार्मिक स्थलों के खिलाफ कुछ नहीं करती। हद तो तब होती है कि अगर सरकार ऐसी अवैध जगहों को ढहाने का काम करती भी है तो आम जनता ही सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने लगती है और सरकार भी वोट बैंक के लालच में इनके आगे झुक जाती है। यह कैसे धर्म हैं, जहाँ ईश्वर अवैध कब्ज़ा करके बनाए गए धार्मिक स्थल पर पूजा करने वालों से खुश होता है? क्या धर्म अनैतिक हो सकता है? आखिर इस दिखावे के साथ कब तक जीते रहेंगे?



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