खतरनाक आयटम!



मम्मी के हाथों कुछ ही देर पहले पिटा बच्चा पिता के आते ही उनसे बोला- 



"डैडी! क्या आप कभी अफ्रिका गए हो?"


छोटी सी बात है, अगर मेरे ब्लॉग "छोटी बात" पर पूरा पढना चाहें तो यहाँ क्लिक करें...





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कांग्रेसी नेताओं की अन्ना हज़ारे को धमकी



कांग्रेसी नेताओं ने अन्ना हज़ारे को धमकी दी - 
अन्ना उत्तर प्रदेश आए तो देख लेंगे...
आखिर अपनी रोज़ी छिनना कौन बर्दाश्त करेगा भाई?





वहीँ एक नेता ने कहा कि
अगर अन्ना ने राहुल बाबा को कुछ कहा तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे.

बात भी सही है, अगर युवराज पर इलज़ाम लगेगा तो उसके राज्य की जनता चुप कैसे बैठेगी? फिर हर एक को अपने नंबर बढाने का भी तो हक है...

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कोलकाता जैसे हादसों के ज़िम्मेदार हम हैं!

कोलकाता के हादसे ने कितने ही लोगो की जान ले ली, बल्कि हमारे देश में तो रोज ही हज़ारों लोग इस तरह की लापरवाही तथा भ्रष्ठ तंत्र के शिकार बनते हैं. 'मेरा काम आसानी से होना चाहिए', और 'यहाँ तो ऐसे ही चलता है' जैसी सोच ही इस लापरवाही और भ्रष्ठ तंत्र की ज़िम्मेदार है.

सरकार अथवा प्रबंधन को कोस कर, कुछ दिन के लिए लोग जागरूक बन जाएँगे. अपने आस-पास की कमियों पर नज़र जाएगी, तब्सरे होंगे, शिकायते होंगी... और उसके कुछ दिन बाद फिर से वही सब पुराने ढर्रे पर चलने लगेगा, अगले हादसे तक...

क्योंकि 'यहाँ तो ऐसे ही चलता है', दुनिया जाए भाड़ में 'मेरा काम आसानी से होना चाहिए'

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अलविदा प्यारी बहन तब्बू, बहुत याद आओगी...

पिछले कुछ दिनों से व्यस्तता बहुत ज्यादा बढ़ी हुई थी, दीपावली के चलते दफ्तर में काम बहुत अधिक था, ऊपर से एम.बी.ए. की परीक्षा चल रही थी। इधर हमारीवाणी के अपने सर्वर पर स्थानांतरण के कारण वहां पर भी टेक्नीकल काम करने थे। लेकिन ना केवल मुझे बल्कि पूरे घर को चिंता थी मेरी छोटी मामाज़ाद बहन 'इरम' की शादी की तैयारियों की, जो कि 20 नवम्बर को तय हुई थी। सारा घर खुशियों से भरा हुआ था और तैयारियों में व्यस्त था, लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि उससे केवल दो दिन पहले मेरा एम.बी.ए. का इम्तहान था।

बात 8 नवम्बर की है, शाम को दफ्तर से आते ही मैं पढने की तैयारियों में जुट रहा था, तभी खबर मिली की मेरी प्यारी लाडली बहन 'तबस्सुम' अचानक इस दुनिया से चली गयी। 3 महीने पहले पीलिया हुआ था, ईद से अगले दिन अचानक तबियत खराब हुई, गाँव में चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण शहर ले जाया गया, लेकिन उसकी सांसे रास्ते में ही जवाब दे गयी। उस वक़्त का मंज़र बयान करना नामुमकिन है। 'तबस्सुम' 'इरम' से छोटी थी और मामा साहब की जान थी। वह तबस्सुम को अपना बेटा कहते थे। भाई-बहनों की पढाई से लेकर घर तथा खेती का हिसाब-किताब तक वही संभालती थी।

बड़ी बहन 'इरम' की शादी की सारी की सारी तैयारी तबस्सुम ने खुद ही की थी। हर एक छोटी से छोटी चीज़ वोह खुद ही बड़ी हसरतों से खरीदकर लाई थी और खुद बड़ी बहन की विदाई से पहले ही विदा हो गयी। कहाँ घर में बड़ी बहन के ससुराल जाने की तैयारी चल रही थी और कहाँ हमें उसके 10-12 दिन पहले ही छोटी को विदा करना पड़ा और वह भी हमेशा के लिए...! 

शादी की सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी, सारे कार्ड बांटे जा चुके थे,  इसलिए तय किया गया कि 'शादी को तय समय के अनुसार ही किया जाए, जो कि 20 तारिख को अल्हम्दुलिल्लाह मुक़म्मल हो गयी।

तबस्सुम और इरम दोनों ही का बचपन हमारे घर में गुज़रा है इसलिए खासतौर पर इन दोनों से ही जुड़ाव बहुत अधिक रहा, तबस्सुम को मैं प्यार से 'तब्बू' कहा करता था। तब्बू पढने लिखने में बहुत तेज़ थी, बिजनौर से एल.एल.बी की पढाई कर रही थी और बड़ी होकर मजिस्ट्रेट बनना चाहती थी। उसको चित्रकारी के साथ-साथ ना'त, हमद, नज़्म इत्यादि पढने का बहुत शौक था। नीचे उसी की कुछ दिन पहले ही पढ़ी हुई एक नज़्म का लिंक दे रहा हूँ, इस नज़्म को पढ़ते समय जब तब्बू 'जब मेरी रूह निकलेगी, रोएंगे घर वाले' पर पहुंची तो उसका गला भर आया था, जैसे उसे जल्द आने वाले इस मंज़र का इल्म हो गया हो...!!! 

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जानवरों की कुर्बानी क्या है?

जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्ट में बता चूका हूँ कि इस्लाम के अनुसार अन्य जानवरों के साथ-साथ पेड़-पौधों में भी जीवन होता है , चाहे जानवर हो या पेड़-पौधे, दोनों को ही दुःख का अहसास होता है, यह अलग बात है की वह अपने दुःख का प्रदर्शन करने में असमर्थ हैं। अन्य जानवरों की ही तरह पेड़-पौधों का साँस लेना, खाना-पीना,  प्रकृति को आगे बढाने के लिए अंडे देना बिलकुल अन्य जीवों की ही तरह होता है और यह केवल इस्लाम ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म तथा विज्ञान का भी मत है। लेकिन हर एक जीव को जीवित रहने के लिए दूसरे को भोजन बनाना प्रकृति का नियम है। ठीक इसी तरह मरने के बाद दफ़नाने के विधि में शरीर ज़मीन के अन्दर रहने वाले दूसरे जीवों के भोजन के काम में आता है।

अगर बात कुर्बानी की करें तो इसमें एक बात तो यह है कि मुसलमान कुर्बानी केवल ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर ही नहीं बल्कि आम जीवन में अक्सर करते रहते हैं। जो कि कई तरह की होती है जैसे इमदाद के लिए जानवर की कुर्बानी, सदके के लिए कुर्बानी और ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर कुर्बानी इत्यादि।
  • इसमें से इमदाद अर्थात मदद करने की नियत से की गई कुर्बानी के द्वारा अपने घर वालों, रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है और इस तरह के भोजन को केवल घरवालो को ही नहीं खिलाया जाता बल्कि गरीब रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों को भी भोजन कराया जाता है।
  • दूसरी तरह की कुर्बानी अर्थात सदके के लिए की गई कुर्बानी से बनने वाले भोजन को केवल और केवल गरीब लोगों को खिलाया जाता है, इसमें घरवालों का हिस्सा नहीं होता।
  •  तथा तीसरी तरह की कुर्बानी अर्थात ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) वाली कुर्बानी के लिए अच्छा तरीका यही है कि मांस अथवा पके हुए भोजन के तीन हिस्से किये जाए और उसमें से एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए, दूसरा हिस्सा गरीब रिश्तेदारों के लिए तथा तीसरा हिस्सा अन्य गरीब लोगों के लिए निकाला जाए। हालाँकि इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं है, बल्कि जिसकी जैसी आस्था है वह उस हिसाब से भी बंटवारा कर सकता है।

कुर्बानी क्या है?
इसमें बहुत सी अन्य दलीलों के अलावा एक बात यह भी है कि इन तीनो ही तरीकों में कोई भी मर्द / औरत चाहता / चाहती तो उसके द्वारा अपने जानवर अथवा पैसे को खुद अपने काम में प्रयोग किया जा सकता था। लेकिन उसने अपने अन्दर के लालच को कुर्बान करके अपने घरवालो, गरीब रिश्तेदारों तथा अन्य गरीबों को लिए भोजन की व्यवस्था की।

अगर बात कुर्बानी के तरीके की जाए तो यह जान लेना आवश्यक है कि मुसलमान हर एक धार्मिक कार्य पैगम्बर मुहम्मद (स.) के तरीके पर करते है, जिसे कि सुन्नत अथवा सुन्नाह कहा जाता है। सुन्नत के अनुसार ऊपर के दोनों तरीकों में भोजन के लिए मांसाहार अथवा शाकाहार दोनों में से किसी भी तरीके को अपनाया जा सकता है, लेकिन ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) के मौके पर केवल कुछ जानवरों को ही भोजन के तौर पर प्रयोग करने की इजाज़त है और वह भी कुछ शर्तों के साथ।

साथ ही यह बात भी जान लेना आवश्यक है कि इस्लाम में जानवरों और पेड़-पौधों पर खासतौर पर रहम और मुहब्बत का हुक्म है और भोजन जैसी आवश्यकता को छोड़कर उनका वध करना वर्जित है। यहाँ तक कि इसको बहुत बड़ा गुनाह और नरक में पहुंचाने वाला बताया गया है। बल्कि पेड़ों को पानी डालना तथा प्यासे जानवर को पानी पिलाने जैसे कामों के बदले में बड़े-बड़े गुनाहों को माफ़ करने जैसे ईनाम है।

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ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर ऐतराज़

ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) का मौका आते ही मांसाहार के खिलाफ विवादित लेख लिखे जाने शुरू हो जाते हैं और ऐसा साल-दर-साल चलता आ रहा है। हालाँकि बात अगर तार्किक लिखी गयी हो तो किसी भी तरह के लेख से किसी को भी परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हर किसी को शाकाहारी अथवा मांसाहारी होने का हक है और इसी तरह अपने-अपने तर्क रखने का भी हक है। लेकिन किसी भी सभ्य समाज में इसकी आड़ में किसी धर्म को निशाना बनाए जाने का हक किसी को भी नहीं होना चाहिए। जब मैं नया-नया हिंदी ब्लॉग जगत में आया था, तब किसी ना किसी विषय हिन्दू-मुस्लिम वाक्-युद्ध आम बात थी, जिसके कारण दिन-प्रति दिन कडुवाहट बढती जा रही थी। लेकिन कुछ अमन पसंद ब्लॉगर्स के प्रयास से धीरे-धीरे लोग दोनों तरफ से लिखे जाने वाले विवादित लेखों से दूर हटने लगे। हालाँकि इस बीच लगातार इस तरह के लेख लिखकर आग भड़काने की कोशिश की जाती रही। बकराईद के विरोध में लिखे लेखों को भी मैं इसी कड़ी में देखता हूँ।

हर एक धर्म को मानने वाला अलग-अलग परिवेश में बड़ा होता है, उनके खान-पान, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास में भिन्नता होती है, लेकिन हम अक्सर दूसरे धर्म की बातों को अपनी मान्यताओं  और अपनी सोच के पैमाने पर तोलते हैं। और किसी भी बात को गलत पैमाने से जांचे जाने की सोच के साथ हर एक धर्म की हर एक बात पर ऊँगली उठाई जा सकती है और अगर ऐसा होने लगा तो यह समाज के लिए बहुत ही दुखद स्थिति होगी।

जहाँ तक बात ईद-उल-ज़ुहा अर्थात बकराईद पर ऐतराज़ की है, तो सभी तरह के एतराज़ का जवाब पहले ही दिया जा चूका है। ईद-उल-ज़ुहा कुर्बानी का त्यौहार है, क्योंकि मांस अक्सर मुसलमानों के द्वारा भोजन के तौर पर प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस दिन बकरा, भेड़, ऊंट इत्यादि जानवरों का मांस अपने घरवालों, गरीब रिश्तेदारों  तथा अन्य गरीबों में बांटा जाता है। हालाँकि गाय की कुर्बानी की इस्लाम में इजाज़त है, लेकिन भारत में हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए मुग़ल साम्राज्य के दिनों से ही गाय की कुर्बानी की मनाही है, दारुल-उलूम-देवबंद जैसे इस्लामिक संगठन भी इसी कारण हर वर्ष मुसलमानों से गाय की कुर्बानी ना करने की अपील करते हैं।

अगर जानवरों की कुर्बानी पर एतराज़ की बात की जाए तो इसमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि इस्लामी मान्यता के अनुसार (बल्कि हिन्दू धर्म की मान्यता और विज्ञान के अनुसार भी) केवल जानवरों में ही नहीं बल्कि हर एक पेड़-पौधे में भी जीवन होता है, वह भी साँस लेते हैं, भोजन करते हैं, बातें करते हैं, यहाँ तक कि पेड़-पौधों में अहसास भी होता है, वह भी अन्य जीवों की तरह मसहूस कर सकते हैं।  अर्थात किसी पेड़-पौधे और अन्य जीव में अंतर नहीं होता और वह भी जीव ही की श्रेणी में आते हैं। जैसे जानवर अंडे / दूध  देते हैं उसी तरह पेड़-पौधे फल / दलहन / बीज देते हैं, जिससे की उनकी नस्ल आगे बढती रहे।

लेकिन यह सब जानने के बावजूद पढ़े-लिखे, यहाँ तक कि चिकित्सा और अध्यापन जैसे पेशे से जुड़े लोग भी जान-बूझकर ऐसे एतराज़ उठाते हैं जो कि लोगो की भावनाओं को भड़काने का काम करते हैं। बल्कि दिव्या जी तो इससे भी आगे बढ़कर मांसाहार करने वालों को दरिन्दे और आतंकवादियों की श्रेणी में रखती हैं, क्या यह कहीं से भी तर्कसंगत है?

हालाँकि ऐसे भड़काऊ लेख दोनों ही तरफ से लिखे जाते हैं और ज़रूरत ऐसे लेख लिखने वालो को हतोस्ताहित करने की है, लेकिन अक्सर ऐसे लेखों को पढने वालों एवं टिपण्णी करने वालों की संख्या दूसरे लेखों के मुकाबले कहीं अधिक होती है, जो कि लेखक के लिए उर्जा का कार्य करती है।

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दीपावली का आया है त्यौहार शब-ओ-रोज़


दीपों के त्यौहार दीपावली पर हमारा पूरा शहर कई दिन पहले से फिजा में खुशियों के रंग बिखेरने शुरू कर देता है, हफ़्तों पहले से शहर की रातें जगमगाना शुरू कर देती हैं और खुशियों का माहौल दीपावली के कई दिन बाद तक चलता रहता है, खुदा से दुआ है कि मेरे मुल्क में इसी तरह खुशियाँ और भाई चारा फलता फूलता रहे... अमीन!

इसी दुआ के साथ आप सभी को दीपवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!


अमनों-ख़ुशी का छाया है ख़ुमार शब-ओ-रोज
दीपावली का आया है त्यौहार शब-ओ-रोज़ 

कंदीलों की झुमकियाँ भी झूमती है बार-बार
हर एक शय पे आया है निखार शब-ओ-रोज़

हर कूचा-ए-गली में रौनकों की है बहार
हर दिल को आज आया है करार शब-ओ-रोज़

मस्ती की रवानी है शब-ओ-रोज़ मुल्क में
खुशियों का ऐसे आया है बुखार शब-ओ-रोज

- शाहनवाज़ 'साहिल'





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'बेतुकी' नहीं है गरीबी की प्रस्तावित परिभाषा

काफी दिनों से हो हल्ला मच रहा है कि योजना आयोग (Planning Commission) ने गरीबों के लिए नई परिभाषा का प्रस्ताव दिया  है.  जिसमें शहर में 32  रूपये प्रतिदिन तथा गाँव में 26 रूपये प्रतिदिन कमाने वालों को गरीब नहीं माना जाएगा, जिसको लेकर योजना आयोग के डिप्टी चैरमैन   श्री अहलूवालिया की काफी निंदा भी की जा रही है.

मैंने जब उस शपथ पत्र को पढ़ा तो पाया कि उसमें "4824 रुपये मासिक व्यय करने वाले पांच सदस्यीय परिवार" को गरीबी रेखा से नीचे नहीं रखने का प्रस्ताव है. जबकि कुछ लोग "32 रूपये प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति आय"  की बात करके जान बूझकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं. हमारे देश में सामान्यत: परिवार में मुखिया ही कमाता है, इसलिए इससे यह सन्देश गया कि शपथ पत्र में एक परिवार के लिए 32  रूपये प्रति दिन आय की धारणा ली गई है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है, अगर प्रति दिन का हिसाब भी लगाया जाए तो यह एक पांच सदस्यीय परिवार के लिए 161 रूपये प्रति दिन है, और यहाँ खर्च की बात की जा रही है, आय की नहीं.
यहाँ यह जान लेना भी आवश्यक है कि हर सरकार समय-समय पर गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो का निर्धारण करती है, जिससे कि सही लोगो तक सब्सिडी पहुंचाई जा सके.  हालांकि 4824 रुपये मासिक व्यय की गरीबी की परिभाषा को कहीं से भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए इसे बेतुका भी नहीं कहा जा सकता है.


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जामा मस्जिद का इमाम कोई बुखारी ही क्यों?

आखिर जामा मस्जिद में इमाम की नियुक्ति में परिवारवाद क्यों चलता आ रहा है? जबकि यह इस्लाम का तरीका भी नहीं है.

किसी भी मस्जिद के इमाम को नियुक्त करने की ज़िम्मेदारी वहां की कमेटी की होती है, इस्लाम में मस्जिद की इमामत तो क्या मुल्क की देखभाल करने (जिसे आप राज करना भी कह सकते हैं) जैसे महत्वपूर्ण कामों में भी पारिवारिक दखल की कोई गुंजाइश नहीं होती, बल्कि यह निर्णय काबिलियत के एतबार से होता है. फिर आखिर कोई बुखारी परिवार का सदस्य ही क्यों जामा मस्जिद की इमामत संभालता हैं? हैरत की बात है की कहीं कोई विरोध भी नहीं है?

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बेचारे ड्राइवर रहते हैं चौबीस घंटे बस में :-)


एक यात्री ने उत्सुक्तावश  ड्राइवर से मालूम किया: 

ड्राइवर साहब आप बस में कितने घंटे रहते हैं?




ड्राइवर भी हाज़िर जवाब था, फट से यात्री से बोला: 

चौबीस घंटे।



यात्री ने हैरानगी दिखाते हुए मालूम किया:

यह कैसे संभव है?



ड्राइवर फट से बोला:

मित्र, आठ घंटे सरकार की बस में और सौलह घंटे पत्नी के बस में!

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सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

इंसान अकेला ही इस दुनिया में आया है और अकेला ही जाएगा... एक मशहूर कहावत है कि "खाली हाथ आएं है और खाली हाथ जाना है।" फिर भी हम हर वक्त, इसी जुस्तजू में रहते हैं कि कैसे हमारा माल एक का दो और दो का चार हो जाएँ! जबकि सभी जानते हैं कि हम एक मुसाफिर भर हैं, और सफ़र भी ऐसा कि जिसकी हमने तमन्ना भी नहीं की थी। और यह भी पता नहीं कि कब वापिसी का बुलावा आ जाए! और वापिस जाना-ना जाना भी हमारे मर्ज़ी से नहीं है। कितने ही हमारे अपने यूँ ही हँसते-खेलते चले गए। वापिस जाने वालों में ना उम्र का बंधन होता  है, ना रुतबे-पैसे का। इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सच यह है कि यहाँ गरीब बिना इलाज के मर जाते हैं और अमीर इलाज करा-करा कर।

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं,
सामान सौ बरस का है, पल की खबर नहीं।

आज पैसे और रुतबे के लोभ में इंसान बुरी तरह जकड़ा हुआ है। इस लोभ ने हमें इतना ग़ुलाम बना लिया है कि आज हर कोई बस अमीर से अमीर बन जाना चाहता है। और इस दौड़ में किसी के पास यह भी देखने का समय, या यूँ कहें कि परवाह  नहीं है कि पैसा किस तरीके से कमाया जा रहा है।  एक ही कोशिश है कि चाहे किसी भी तरह हो, बस कमाई होनी चाहिए। चाहे हमारे कारण कोई भूखा सोए या किसी के घर का चिराग बुझ जाए। हमें इसकी परवाह क्यों हो? मेरे घर पर तो अच्छे से अच्छा खाना बना है, पड़ौसी भूखा सो गया तो मुझे क्या? मेरे बच्चे बढ़िया स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, खूबसूरत लिबास उनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं। कोई अनाथ हो तो तो हो? भीख मांगने पर मजबूर हो तो मेरी बला से? मेरे और मेरे परिवार के लिए तो अच्छा घर, आरामदायक बिस्तर मौजूद है न, तो क्या हुआ अगर कुछ गरीब सड़कों पर सोने के लए मजबूर हैं। और यही सोच है जिसने आज ईमानदारी को बदनाम कर दिया है। आज के युवाओं की  प्रेरणा के स्त्रोत मेहनत और ईमानदारी नहीं रही बल्कि शॉर्टकट के द्वारा कमाया जाने वाला पैसा बन गया है। बल्कि ईमानदारों को तो आजकल एक नया ही नाम मिल गया है और वह है "बेवक़ूफ़"!

"इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में थकना मना है" कि तर्ज़ पर आज के समाज का फंडा है कि "इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सोचना मना है।" इतने व्यस्त रहो कि यह सोचने का मौका ही ना मिले कि हमने गलत किया है या सही। लेकिन इस व्यस्तता में इंसान को यह भी पता नहीं चलता कि उसकी ज़िन्दगी की दौड़ खत्म हो गयी और अब पछताने का भी समय नहीं मिला, अगर समय  मिला भी तो पछताने का कोई फायदा नहीं रहा। क्योंकि बेईमानी से जो कमाया था उसपर लड़ने के लिए और मौज उड़ाने के लिए तो अब दूसरे लोग तैयार हैं। इंसान तो खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा...

इस मौजूं पर नज़ीर अकबराबादी की बंजारानामा में लिखी एक बहुत ही महत्वपूर्ण रचना याद आ रही है।

गर तू है लक्खी बंजारा
और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता
इक और बड़ा ब्योपारी है

क्या शक्कर मिसरी क़ंद गरी,
क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख मुनक़्क़ा सोंठ मिरच,
क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

तू बधिया लादे बैल भरे,

जो पूरब-पच्छिम जावेगा,
या सूद बढ़ा कर लावेगा,

या टोटा घाटा पावेगा

कज्ज़ाक अज़ल का रस्ते में
जब भाला मार गिरावेगा,
धन दौलत, नाती-पोता क्या,

एक कुनबा काम न आवेगा,
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

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छोटी बात: प्रणव दा की गुगली पर चिदम्बरम पगबाधा!

प्रणव दा ने अपनी गुगली से चिदम्बरम पर पगबाधा आउट की ज़बरदस्त अपील की हैं. अम्पायर फैसला बैट्समैन के हक में दे रहे हैं, हालाँकि सभी खिलाड़ी और दर्शक जानते हैं कि बैट्समैन आउट...

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एक विचार


मिटटी के कच्चे बर्तन में रखा दूध ज्यादा अच्छा है,
किसी सोने के बर्तन में रखे ज़हर मिले खाने से।

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प्रणव दा की गुगली पर चिदम्बरम पगबाधा!

प्रणव दा ने अपनी गुगली से चिदम्बरम पर पगबाधा आउट की ज़बरदस्त अपील की हैं. अम्पायर फैसला बैट्समैन के हक में दे रहे हैं, हालाँकि सभी खिलाड़ी और दर्शक जानते हैं कि बैट्समैन आउट है या नॉट-आउट! 

अगर अम्पायर ने आउट करार नहीं दिया तो तीसरे अम्पायर से अपील की जा सकती है.

बहरहाल मैच का रुख चाहे जो भी हो, लेकिन मैच के बाद भी इस विकेट की गूंज देर तक सुनाई दिए जाने की संभावना है. क्योंकि यहाँ विकेट अपनी टीम के ही सदस्य ने उड़ाने की कोशिश की है.

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पसोपेश में मोदी


अजीब मुसीबत में फंस गए हैं नरेन्द्र मोदी, सद्भावना मिशन के तौर-तरीके से हिन्दू संगठन नाराज़ हो गए हैं और टोपी प्रकरण से मुस्लिम...

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दमन में नई सुबह

दमन में नई सुबह तैयार है दिल्ली के एक ब्लॉगर का स्वागत करने के लिए, या यूँ कहूँ की झेलने के लिए...

कल रात दिल्ली से मुबई पहुंचा तथा रात को ही दमन के लिए निकल गया था, देर रात दमन पहुंचा. रात के 1 बजे सूनसान सा था दमन, देखते हैं दिन में कैसा होगा?


अभी नाश्ता करके तैयार हूँ, बल्कि यूँ कहूँ कि बेताब हूँ दमन से रुब-रु होने के लिए.





दमन में अगर कोई ब्लॉगर बंधू है तो संपर्क करे... :-)





Keywords: Daman & Div, journey

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कांग्रेस को नानी याद आ गई!


घर में चार दिन औरत ना हो तो घर का हल कैसा हो जाता है... यह तो कोई कांग्रेस से पूछे... :-)

क्या हाल बना रखा था अन्ना के अनशन के कारण. हर दांव उल्टा पड़ रहा था. आखिरकार विपक्ष का सहारा लेना पड़ा.

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ईद की ढेरों मुबारकबाद!

खुशियाँ और भाईचारे के त्यौहार 'ईद' पर सभी को बहुत-बहुत मुबारकबाद। यह ईद-उल-फ़ित्र है, इसे रमजान (रमादान) के पवित्र महीने की समाप्ति पर मनाया जाता है। रमजान के महीने में धैर्य, विन्रमता और अनुशासन के साथ ज़िन्दगी जीने का अभ्यास किया जाता है, जिससे कि इन गुणों को आत्मसात किया जा सके...

ब्लॉग जगत के सभी लेखकों, टिप्पणीकारों तथा पाठकों को ईद-उल-फित्र के मौके पर ढेरों मुबारकबाद!





इस मौजूं पर मेरा लेख: 



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जनता फांसे नेताओं को, नेता जनता को फांसे

जनता चाहती हैं  कि भ्रष्टाचारी नेताओं को लोकपाल जैसे सख्त कानून में फांस ले और नेताओं ने व्यवस्था ऐसी बना दी है जिसमें जनता खुद ही भ्रष्टाचारी बन रही है, जिससे वह मौज लेते रहे. 

देखिये कार्टून: 


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धार्मिक ठेकेदारो की दादागीरी

आजकल समाज में धर्म के कुछ ऐसे ठेकेदार घूम रहें हैं जिनका धर्म से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह लोग समाज पर अपनी दादागिरी दिखाने के लिए ना केवल धर्म का सहारा लेते हैं, बल्कि अपने अनैतिक कार्यों से धर्म को भी बदनाम करते हैं। अभी कुछ दिन पहले शबे-बारात नामक त्यौहार पर कुछ ऐसे ही हुड़दंगियों ने दिल्ली जैसे कई शहरों में कानून को अपनी बपौती समझते हुए रात भर सड़कों पर हंगामा किया। हज़ारों की तादाद में निकले इन युवकों को दंभ था कि पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है, क्योंकि वह यह सब धर्म के नाम पर कर रहे थे। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ हो, बल्कि यह सिलसिला साल दर साल चलता आ रहा है।

अक्सर धर्मस्थलों में पूजा-अर्चना के नाम पर सड़कों पर कब्ज़ा कर लिया जाता है। बात चाहे मंदिर के बाहर लगने वाली श्रद्धालुओं की लम्बी-लम्बी कतारों की हो या फिर मस्जिदों के बाहर नमाज़ अता करने वालों की, इस कार्य में सभी धर्मों के मानने वाले बराबर के शरीक हैं। कहीं आम जनता को यात्राओं, रैलियों अथवा झांकियों के नाम पर परेशान किया जाता है तो कभी बंद अथवा अनशन के नाम पर पुरे शहर को बंधक बना लिया जाता है। उनको इस बात से कुछ भी परवाह नहीं होती की सड़क पर चलने वाले सामान्य नागरिकों का भी उस सड़क पर उतना ही हक़ है!


अभी कुछ दिन पहले कांवड़ यात्रा के नाम पर दिल्ली और आसपास के इलाके में जमकर हुड़दंग मचाया गया। जहां से यह लोग निकल रहे थे वहां पड़ने वाली सिग्नल लाईट को बंद कर दिया जाता था, अगर कोई राहगीर बीच में आ जाता है तो उसको डंडे से मारकर सड़क से ज़बरदस्ती हटाया जाता है। एक जगह तो एक पुलिस अफसर के उपर डाक कांवड़ के नाम से चल रहे ट्रक पर बैठे हुड़दंगी युवकों ने दिनदहाड़े केवल इसलिए पानी डाल दिया गया क्योंकि वह उनके ट्रक के आने पर चैक से भीड़ को नहीं हटा पाया! जगह-जगह लगने वाले पंडाल के कारण रास्तों के बंद होने से जिन लोगो को ज़बरदस्त परेशानी का सामना करना पड़ा होगा, क्या वह इस देश के नागरिक नहीं है? क्या उनका इन सड़कों पर चलने और चैराहों पर अपनी बत्ती होने पर पार करने को कोई हक़ नहीं हैं? यहां तक कि हरिद्वार-दिल्ली राजमार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। हज़ारों-लाखों की तादाद में लोग नौकरी के लिए सहारनपुर, मुज़फ्फर नगर, मेरठ और मोदी नगर जैसी जगहों से गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, दिल्ली और गुडगांव जैसे शहरों में आते हैं। क्या इन तथाकथित श्रद्धालुओं और सरकार ने कभी सोचा होगा कि रात को थकहार कर नौकरी से लौट रहे लोगों को घर पहुंचने में किस तरह भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा? आखिर यह कैसा धर्म और हम कैसे धार्मिक हैं जहां नैतिकता का कोई स्थान नहीं है?

किसी भी धर्म का कोई भी अनुष्ठान अनैतिकता को बढ़ावा दे ही नहीं सकता है। ऐसी इबादत / पूजा का कोई अर्थ ही नहीं है जिस के कारण आम जनों को असुविधा हो, उनका हक छीना जाए। धर्म तो हमें समाज में जीने का तरीका बताता है, फिर यह समाज से जीने के हक छीनने का कारण कैसे बन सकता है? आज के युग में लोगों ने धर्म को केवल अपनी महत्त्वकांशाओं को पूरा करने का साधन बना लिया है, आज ऐसे लोगों और उनके कार्यों को पहचानने की आवश्यकत है।


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यह मूल लेख त्रुटिवश डिलीट हो गया था,  जबकि इसके विषय पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ था. गूगल से प्राप्त  टिप्पणियों को नीचे लिखा जा रहा है:

14 comments:

नीरज जाट said...
शाह नवाज भाई, आपकी बातें जायज हैं। मैं खुद पांच बार कांवड ला चुका हूं। अब या तो इस देश के पढे लिखे लोग या सरकार यह कहे कि कांवड लाना ही बन्द कर दो। कोई क्यों नहीं कहता कि कांवड लाना धर्म विरुद्ध है, इससे कांवड ना लाने वाले अन्य लोगों को परेशानी होती है, इसलिये सडक बन्द करने की बजाय इस यात्रा को ही बन्द कर देना चाहिये। ऐसा करने से एक बार दंगा फसाद तो जरूर होगा लेकिन उसके बाद सदा के लिये शान्ति कायम हो जायेगी और सडकें भी बन्द करने की नौबत नहीं आयेगी। अब जब कांवड यात्रा बन्द करने की कोई नहीं कहता तो भईया, सडकें बन्द होनी तय हैं। गिने चुने दोपहिया वाहन या तथाकथित डाक कांवड वाहन भी अत्यधिक भीड के कारण ढंग से नहीं चल पाते तो बसें और ट्रक क्या चलेंगे। कभी कांवडिये यह फरमाइश नहीं रखते कि इस तारीख से इस तारीख तक सडक बन्द होनी चाहिये। वो तो सरकार ही इसे बन्द करती है। हां, मैं बता रहा था कि मैं पांच बार कांवड ला चुका हूं। जहां दस आदमी इकट्ठे होंगे तो उनमें हर तरह के आदमी होंगे फिर यहां तो संख्या लाखों में होती है। इनमें भी हर तरह के आदमी होते हैं। जहां कानून हाथ में लेने वाले लोग होते हैं तो कानून व्यवस्था बनाने वाले लोग भी होते हैं। अब हमें आवाज उठानी चाहिये कि यह यात्रा ही बन्द होनी चाहिये। इस यात्रा का प्रबल हिमायती होने के बावजूद भी मैं यह बात सच्चे मन से कह रहा हूं। तभी यात्रा के कारण होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। है कोई इस यात्रा को बन्द करने के लिये मेरे साथ आवाज उठाने वाला????
AlbelaKhatri.com said...
सचमुच यह चिन्ता का विषय है और इसका हल निकलना ही चाहिए.......... एक उम्दा पोस्ट और उतनी ही उम्दा नीरज जाट की टिप्पणी........मैं सहमत हूँ आप दोनों से जय हिन्द !
एस.एम.मासूम said...
शाहनवाज़ भाई आपने इस लेख़ को अच्छे मकसद से लिखा है यह मैं जानता हूँ. लेकिन पूर्णतया सहमत नहीं. क्या नेताओं कि यात्राएं इस श्रेणी मैं नहीं आती? ऐसी यात्राओं और सभाओं के लिए नियम है कि पहले से पुलिस स्टेशन मैं खबर करनी होती है और इजाज़त मिलने पे ही निकाली जाती है. यदि कोई सभा या यात्रा सरकारी इजाज़त ले के निकाली जा रही है तो इसमें अनैतिक क्या है? नमाज़ तो वैसे भी बिना इजाज़त किसी कि भी ज़मीन पे पढना चाहे वो सरकारी ही क्यों ना हो मना है.हाँ बिना इजाज़त सड़कों पे कि गयी नमाज़ या किसी भी धर्म का जुलूस सही नहीं और ऐसे जुलूसों मैं ज़रुरत से ज्यादा शोर मचाना, शराब पी के नाचना सही नहीं और इसको सरकार संभाल सकती है .जब बेशर्मी मोर्चे को ४०० पुलिस का प्रोटेक्शन मिल सकता है तो इन यात्राओं और सभाओं को क्यों नहीं? शाहनवाज़ भाई श्रधा के साथ निकले गए किसी भी जुलूस को ,यात्रा को ,जो सरकारी इजाज़त के बाद निकला हो हुडदंगियों का जुलूस कहना सही नहीं.
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
कमजोरी हमारे समाज और राजनैतिक व्यवस्था में है। इस देश में धर्म के नाम पर कोई भी ब्लेकमेल कर सकता है। निश्चित रूप से धर्म का दायरा व्यक्तिगत होना चाहिए। उस के सभी सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबंधित होना चाहिए।
डॉ टी एस दराल said...
हमारा समाज धर्मभीरु लोगों से भरा पड़ा है भाई । और सबसे आगे होते हैं नेता । अब कौन किसको रोकेगा ?
सतीश सक्सेना said...
अफ़सोसजनक है यह, धर्म के नाम पर नंगा नाच और हम सब बुजदिलों की तरह देखते रह जाते हैं ! प्रशासन और आम पब्लिक किसी को भी इस भीड़चाल में, बोलने की परमीशन नहीं है ! मीडिया चटपटी ख़बरों को और तेज बना कर केवल हाथ सेंकती है ! इस बुजदिल और मूर्खता पूर्ण माहौल में एक ही रास्ता नज़र आता है कि हम लोग भी इस हुडदंग में शामिल हो जाएँ और तालियाँ बजाएं ! बेहद खेदजनक माहौल है ....लोकतंत्र खलने लगा है ! शुभकामनायें आपको !
DR. ANWER JAMAL said...
सदाचार का विपरीत है भ्रष्टाचार। सदाचार होता है धार्मिक और भ्रष्टाचार होता है अधार्मिक। यह एक बारीक अंतर है जिसे धर्म को जानने वाला ही समझ सकता है। धर्म के नाम पर अधर्म करने से वह अधर्म धार्मिक कार्य नहीं हो जाता चाहे दुनिया उसे धार्मिक कार्य मानने लगे। कई बार लोग घबराते हैं अधर्म के कार्यों से और छोड़ बैठते हैं धर्म को। अधर्म प्रायः स्वभाव से ही अप्रिय लगता है जबकि धर्म प्रिय । इस लफ़्ज़ को तत्काल सुधार लिया जाय !
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...
best
Kajal Kumar said...
धर्म एक धंधा हो गया है...
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
आज धार्मिक आयोजनों में भक्ति कम और दिखावा ज्‍यादा होता है। इनके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाई जानी चाहिए। ------ कम्‍प्‍यूटर से तेज़! इस दर्द की दवा क्‍या है....
Khushdeep Sehgal said...
देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो. धर्म का नाम बदनाम न करो... धर्म कोई भी हो ये इजाज़त कभी नहीं देता कि दूसरों को परेशान किया जाए...सियासत ने इसे ज़रूर अफ़ीम की गोली बनाकर बंटाधार कर दिया... जय हिंद...
Tarkeshwar Giri said...
बहुत ही सुन्दर लेख, और उससे भी सुन्दर टिप्पड़ियाँ. मेरे हिसाब से कुछ हद तक में भईया जाट महोदय से सहमत हूँ. पूरी तरह से ना सही लेकिन डाक कांवड़ और बाइक से कांवड़ लाने वालो को तो जरुर. रोक देना चाहिए. जंहा डाक कांवड़ लाने वाले अपनी दादागिरी दिखाने से पीछे नहीं हट ते वोंही बाइक सवार ईस तरह से बाइक चलाते हैं जैसे वो किसी रेस में भाग ले रहे हों. हरिद्वार प्रशासन पूरी तरह से डाक और बाइक कांवड़ को सम्भालने में लग जाता हैं और जब मौका मिलता हैं तो डाक कांवड़ लाने वालो को दौड़ा- दौड़ा के पीटता भी हैं डाक कांवड़ में इस्तेमाल किये जाने वाले टेम्पो चालक ईस कदर से गाड़ी भागते हैं मानो वो मायावती के काफिले के मंझे हुए चालक हो. .
anshumala said...
राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है वरना इन सब चीजो पर नियंत्रण करना इतने भी मुश्किल नहीं है और राजनीतिक इच्छा शक्ति इसलिए कम है क्योकि यहाँ हर चीज को वोट बैंक के तराजू में तौल कर देखा जाता है धर्म तो सबसे ऊपर है | हा जब सरकार पर आती है तब वो किसी चीज को नहीं देखती है |
चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...
यह दादागिरी त्योहारों के समय अधिक मुखर हो जाती है, शायद सड़क चलने में भी बाधा बने :(

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उसने बख्श दी आँखे - हैवानियत को तमाचा

ईरान में रहने वाली अमीना बहरामी नामक युवती ने कोर्ट के द्वारा अदालत में 7 साल लम्बी जद्दोजहद के बाद इन्साफ मिलने पर मुजरिम माजिद की आँखों में तेज़ाब डालने की सज़ा को बख्श कर उसकी हैवानियत के मुंह पर तमाचा मारा है. हालाँकि माजिद को सामान्य कानून के अनुसार 10 वर्ष की सज़ा भी हुई है. अपने इस फैसले से अमीना ने दिखा दिया कि कमज़ोर दिखने वाली औरत कमज़ोर होती नहीं, बल्कि अपने आप को मज़बूत समझने वाले मर्दों के मुकाबले ज़हनी तौर पर कई गुना मज़बूत होती है.

वर्ष 2004 में माजिद ने अमीना के मुंह पर केवल इसलिए तेज़ाब फेंक दिया था क्योंकि अमीना ने उसके शादी के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया था. अमीना ने अपने चेहरे को ठीक करने के लिए दुनिया के कई मुल्कों के चिकित्सकों से संपर्क किया, लेकिन सभी जगह से उसे निराशा ही हाथ लगी थी. उस एक लम्हे ने अमीना की ज़िन्दगी को नरक बना दिया था, जब वह घर से बाहर निकलती थी तो लोग उसे देखकर डर जाते थे. वह एक-एक लम्हा उसी दुःख के साथ जीने को मजबूर थी, अमीना ने फैसला किया अपने ऊपर हुए ज़ुल्म का बदला लेने का. उसने अदालत से गुहार लगाईं कि जिसने उसे पल-पल मरने पर मजबूर किया उसको वैसे ही सजा दी जाए. ईरान की अदालत ने उसकी बात को मानते हुए माजिद को दोनों आँखों में एक-एक बूँद तेज़ाब डालने का हुक्म दिया तथा इस सज़ा को वहां की सर्वोच्च अदालत ने भी बरकरार रखा. 
 
लेकिन इस फैसले के बाद अमीना ने विरोध करने वालों पर तथा माजिद जैसी हैवानियत वाली मानसिकता रखने वालों पर उसकी सज़ा को बख्श कर ऐसा खामोश तमाचा जड़ दिया, जिसकी गूँज काफी दिनों तक महसूस होती रहेगी. उसने कहा कि बदला लेना उसका मकसद नहीं था और ना ही कभी उसकी मंशा माजिद की आंखे छीनने की रही थी. बल्कि वह चाहती थी कि माजिद को यह सज़ा सुनाई जाए, ताकि उसको भी उस दुःख का एहसास हो जो कि उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुका है.  
कुछ लोगो ने इस सजा को क्रूरता का दर्जा दिया था, मैं उन लोगो से मालूम करना चाहता हूँ कि आखिर सजा को क्षमा अथवा कम करने का नैतिक हक भुक्त-भोगी के सिवा किसी और को कैसे हो सकता है? क्या भुक्त-भोगी के सिवा कोई और इंसान इस जैसी अनेकों महिलाओं के एक-एक पल को महसूस कर सकता है? इसलिए मेरे विचार से तो अदालत का कार्य ऐसे खौफनाक जुर्म की वैसी ही सज़ा देना होना चाहिए.

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'सामाजिक सुरक्षा' विषय पर रेडियो तेहरान में मेरी बात


 
अभी पिछले दिनों भारत में 'सामाजिक सुरक्षा' के विषय पर एक प्रोग्राम रेडियो तेहरान पर 'ओन एयर' हुआ था, जिसमें ब्लोगर बिरादरी से मेरे अलावा श्री केवल राम और डॉ पवन मिश्रा ने अपनी राय रखी थी।

इस कार्यक्रम में मैंने कहा कि हमारे देश में सामाजिक सुरक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है, साथ ही साथ कानून का डर भी नहीं है। मेरे हिसाब से सामाजिक सुरक्षा दो ही तरीके से आ सकती है, या तो हमारी परवरिश, हमारी शिक्षा ऐसी रही हो कि हम सामाजिक मूल्यों की कद्र करते हो या फिर कानून इतने सख्त हो कि अपराध के नतीजों से डर पैदा हो। मेरा यह मानना है कि जब तक हम स्वयं भ्रष्टाचार से पीछा नहीं छुटाएंगे, तब यह हमें ज़हरीले सांप की तरह डसता ही रहेगा। हम चाहते हैं कि दूसरे ठीक हो जाएँ और हम वैसे ही रहें। भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहीम के समर्थन पर सारे लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लिख रहे थे, लेकिन हम चाहते हैं कि संघर्ष, भूख हड़ताल जैसे कार्य दूसरे लोग करें और हम केवल दो शब्द लिख कर इतिश्री पा लें। इससे कुछ होने वाला नहीं है, बल्कि बदलाव अपने अन्दर को बदलने के प्रयास से ही आएगा।


Keywords: radio tehran, samajik suraksha, shahnawaz siddiqui, keval ram, dr. pawan mishra

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एनबीटी: भ्रष्टाचार की जड़

भ्रष्टाचार हमारे बीच में से शुरू होता है, हम अक्सर अपने आस-पास इसे फलते-फूलते हुए देखते हैं। बल्कि अक्सर स्वयं भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। हम भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों / अधिकारीयों को तो बुरा-भला कहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं की हम स्वयं भी कितने ही झूट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं!


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दुश्मनों को कुछ ऐसे डराते हैं हमारे गृहमंत्री!

गृहमंत्री: यह हमला केवल मुंबई पर नहीं, बल्कि पुरे देश पर हमला है। यह भारत की एकता, अखंडता और समृद्धि पर किया गया हमला है। पानी सर से ऊपर जा चुका है, देश ऐसी हरकतों को हरगिज़-हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेगा। देश के दुश्मनों पर कड़े से कड़े कदम उठाए जाएँगे!

मैं देशवासियों से आह्वान करता हूँ कि सरकार का अनुसरण करें, आवेश में ना आएँ, एकजुटता और "संयमता" के हथियार से देश में छुपे अथवा पडौसी देश की गोद में बैठे देश के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दें!

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माता-पिता हमारी सामाजिक व्यवस्था के स्तंभ हैं

माता-पिता दुनिया की सबसे बड़ी नेमतों में से एक हैं, बहुत खुशनसीब हैं वह जिनकों यह दोनों अथवा इनमें से किसी एक का भी सानिध्य प्राप्त है। हमारे माता-पिता हमारी सामाजिक व्यवस्था के स्तंभ हैं, पर अफ़सोस आज यह स्तंभ गिरते जा रहे हैं।

वह उस समय हमारी हर ज़रूरत का ध्यान रखते हैं, जबकि हमें इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, लेकिन जब उनको उसी स्नेह की आवश्यकता होती है तो हमारे हाथ पीछे हट जाते हैं। कहावत है कि दो माता-पिता मिलकर दस बच्चों को भी पाल सकते हैं, लेकिन दस बच्चे मिलकर भी दो माता-पिता को नहीं पाल सकते।

मेरे घर में जब मेरी बिटिया 'ऐना' आई तब मैंने अपनी पत्नी के द्वारा रातों को उसकी देखभाल करते हुए देखकर याद किया कि मेरी माँ ने भी इसी तरह मेरी देखभाल की होगी, वोह भी उस ज़माने में जबकि आज की आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थी। किस तरह जद्दो-जहद करके दिल्ली जैसे शहर में उन्होंने हमारे लिए ना केवल आशियाना बल्कि हर एक सुविधा का इंतजाम किया था, मेरे द्वारा फ़्लैट खरीदने पर माता-पिता की आँखों की ख़ुशी को याद करके आज भी खुश होता हूँ।

लेकिन अफ़सोस आज दिन-प्रतिदिन वृद्ध आश्रमों की संख्या बढती जा रही है, उनमें भी अधिकतर वही लोग होतें हैं जिनके बेटे-बेटियां जिंदा और अच्छी-खासी माली हालत में होते हैं। अक्सर उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर घर के बुज़ुर्ग अपने आप को अलग-थलग महसूस करने लगते हैं। संवेदनहीनता के इस दौर में अपने ही इनकी भावनाओं को समझने में नाकाम होने लगते हैं। मुझे आज भी याद है किस तरह मेरे नाना-नानी का रुआब घर पर था, उनकी हर बात को पूर्णत: महत्त्व मिलता था, लेकिन इस तरह का माहौल आज के दौर में विरले ही देखने को मिलता है। आज बुजुर्गों की बातों को अनुभव भरी सलाह नहीं बल्कि दकियानूसी समझा जाता है। उनकी सलाहों पर उनके साथ सलाह-मशविरे की जगह सिरे से ही नकार दिया जाता है।

एक घटना याद आ गई, बात उस समय की है जब में दक्षिण कोरिया में था, हमें एक शिपमेंट भेजनी थी। उसके लिए जो कंटेनर बुलाया गया था, उसका ड्राइवर काफी उम्र का था। रास्ते में हमने उससे मालूम किया कि क्या आपके पुत्र-पुत्रियाँ नहीं हैं? उसने कहा कि उसके दो बेटे और एक बेटी है। तब मैंने मालूम किया कि फिर आप इस उम्र में इतनी मेहनत का काम क्यों करते हैं? आपके बच्चे आपको रोकते नहीं? तो उसने बताया कि उसके बेटे-बेटी अपने-अपने घर में रहते हैं और वह और उसकी पत्नी अपने घर का खर्च चलाने के लिए काम करते हैं। जब हमने उसे अपने वतन हिन्दुस्तान के बारे में बताया कि वहां पर आज भी बुज़ुर्ग मजबूरी में मेहनत नहीं करते हैं, तो उस बुज़ुर्ग की आँखों में आंसू भर गए। उसने कहा कि आपका समाज कितना अच्छा है, जहाँ बुजुर्गों का ध्यान रखने वाले घर पर मौजूद होते हैं।

लेकिन आज के माहौल और दिन-प्रतिदिन गिरती मानवीय संवेदना को देखकर लगता है कि हमारे वतन में भी वोह दिन दूर नहीं जब बुजुर्गों की सुध लेने वाला कोई नहीं होगा! जबकि हर एक धर्म में बुजुर्गों से मुहब्बत और उनका ध्यान रखने की शिक्षाएं हैं, लेकिन बड़े-बड़े धार्मिक व्यक्ति भी इस ओर अक्सर बेरुखें ही हैं। क्योंकि उन्होंने धर्म को आत्मसात नहीं किया बल्कि केवल दिखावे के लिए ही उसका प्रयोग किया।

धार्मिक बातें चाहे लोगो को उपदेश लगे या किसी की समझ में ना आएं, लेकिन मैं हमेशा उनको दूसरों तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ। क्योंकि मानता हूँ कि अगर इसी तरह बताता रहा तो कम से कम मैं तो अवश्य ही उनपर अमल करने वाला बन जाऊंगा।
एक बार एक शख्स ने मुहम्मद (स.) से कहा कि मैं मैं हज करने के लिए जाना चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं है। आप (स.) ने मालूम किया कि क्या तुम्हारे घर में तुम्हारे माता-पिता दोनों अथवा उनमें से कोई एक जिंदा है, उस शख्स ने कहा कि माँ बाहयात हैं। आप (स.) ने फ़रमाया कि उनकी सेवा करो।

वहीँ एक बार फ़रमाया कि अपनी माता अथवा पिता को मुहब्बत की नज़र से देखना ऐसे 'हज' के पुन्य जैसा है जो कि कुबूल हो गया हो।
एक शख्स ने मालूम किया कि किसी के जीवन पर सबसे ज़्यादा मुहब्बत का अधिकार किसका है? आप (स.) ने फ़रमाया कि माँ का, उसने मालूम किया कि उसके बाद, तब आप (स.) ने फिर से फ़रमाया कि उसकी माँ का। उस शख्स ने तीसरी बार मालूम किया तब भी आप (स.) ने फ़रमाया कि उसकी माँ का और बताया कि चौथा नंबर पिता का है तथा उसके बाद अन्य लोगों का नंबर आता है।

वहीँ एक बार फ़रमाया कि अपने माता-पिता के इस दुनिया से जाने के बाद उनसे मुहब्बत यह है कि उनके रिश्तेदार और दोस्तों के साथ भी वैसा ही सुलूक किया जाए जैसी मुहब्बत माता-पिता के साथ है। एक बहुत ही मशहूर वाकिये में आप (स.) ने फ़रमाया था कि माँ के क़दमों तले जन्नत है

इसी प्रण के साथ बात को समाप्त करता हूँ, कि आजतक जितनी भी गलतियाँ, ज्यादतियां माँ-बाप के साथ की, भविष्य में उन गलतियों से दूरियां बनाने की पुरज़ोर कोशिश करूँगा। अगर इस प्रयास में सफल रहा तो अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझूंगा, वर्ना दिन तो गुज़र ही जाएँगे और मेरे बच्चे भी बड़े होंगे।

- शाहनवाज़ सिद्दीकी

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क्या इतना आत्मविश्वास कभी देखा है?

दुनिया में आपने बहुत-बहुत बड़े आत्मविश्वासी देखें होंगे, लेकिन मैंने अपने जीवन में किसी में इतना आत्मविश्वास कभी नहीं देखा...

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कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? - भाग 4

पिछले भाग पढने के लिए क्लिक करें:
भाग - 1
भाग - 2
भाग - 3

अभी तक हमने ब्लॉग बनाने के 'ब्लॉगर' तथा 'वर्ड प्रेस' तकनीक को जानने की कोशिश की, अब आगे ब्लॉग अथवा वेबसाइट में प्रयोग होने वाले कुछ तकनीकी शब्दों के बारे में जान लेते हैं।

डोमेन नेम (Domain Name): 

यह किसी वेबसाइट अथवा ब्लॉग के पते के लिए प्रयोग होता है। अगर तकनीकी भाषा में बात करें तो डोमेन नेम किसी एक अथवा एक से अधिक IP Address का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात जब हम किसी वेबसाइट अथवा ब्लॉग को खोलने के लिए उसका पता ब्राउज़र में लिखते हैं तो हम उससे जुड़े IP Address तक पहुंच जाते हैं और वहां मौजूद वेब प्रष्ट हमारे कंप्यूटर में खुल जाता है। इन्टरनेट डोमेन नेम की जगह IP Address के आधार पर कार्य करता है इसलिए डोमेन नेम को IP Address में बदलने के लिए हर वेब सर्वर पर एक DNS (Domain Name System) की आवश्यकता होती है।

डोमेन नेम URL के साथ प्रयोग होता है, उदहारण के लिए URL http://www.example.com में example.com एक डोमेन नेम है। हर डोमेन नेम में एक प्रत्यय (suffix) होता है, जो इंगित करता है कि यह किस TLD (Top Level Domain) से सम्बंधित है। TLD को हम निम्नलिखित उदहारण से समझ सकते हैं:

com - वाणिज्यिक कारोबार (सबसे अधिक प्रचलित)
net - नेटवर्क संगठनों
gov - सरकार एजेंसियों
edu - शैक्षिक संस्थानों
org - संगठन (nonprofit)
mil - सैन्य
mobi - मोबाइल
in - भारत
th - थाईलैंड


वेब प्रष्ट होस्टिंग (Hosting):

वेब होस्टिंग उस सेवा को कहते हैं जिसके अंतर्गत किसी वेब प्रष्ट को संचित (Save) करने के लिए जगह (Space) का आवंटन होता है। वेब प्रष्टों को ऐसे कंप्यूटर सर्वर में संचित किया जाता है जो कि 24 घंटे इन्टरनेट से जुड़े होते हैं, जिससे की कोई भी वेबसाइट 24 घंटे प्रदर्शित होती रहे।

सर्वर बहुत ताकतवर कंप्यूटर होते हैं, इनकी हार्ड ड्राइव बहुत अधिक जगह (space) वाली होती हैं। यह जगह (space) उन्हें किराए पर दी जाती है जो अपनी वेबसाइट को इन्टरनेट पर दिखाना चाहते हैं। हर एक सर्वर की एक अलग सांख्यिक संख्या (IP Address) होती है।

जैसा की हमने पहले भी बताया था की ब्लॉग के लिए कुछ कम्पनियाँ मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं, जिसमें blogger.com तथा Wordpress.com प्रमुख हैं। इनकी सुविधाएं लेने के लिए आपको डोमेन नेम अथवा होस्टिंग पैकेज खरीदने की आवश्यकता नहीं है। 

Tag: 

टेग अथवा कीवर्ड (Keyword) को विषय की संक्षिप्त व्याख्या के रूप में प्रयोग किया हैं, यह वह शब्द होते हैं जिनके द्वारा पाठक सर्च इंजन के द्वारा ब्लॉग अथवा वेबसाईट पर पहुँचते हैं। अगर पोस्ट के विषय से सम्बंधित कुछ शब्द पोस्ट के विषय में लिखने से छूट गए हैं तो उन्हें टेग में लिखा जा सकता है। लेकिन अगर वह शब्द पोस्ट के विषय में मौजूद है तो उन्हें टेग के रूप में नहीं लिखना चाहिए, क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होगा। टेग में इंग्लिश के शब्दों का प्रयोग भी एक अच्छा तरीका हो सकता है, क्योंकि सर्च इंजन पर अक्सर पाठक इंग्लिश के शब्दों के द्वारा विषय सामग्री को ढूंढते हैं।

ब्लॉग संकलक: 

ब्लॉग संकलक जिसे फीड रीडर, न्यूज़ रीडर या एग्रीगेटर कहा जाता है, सामान्यत: ऐसी वेबसाईट होती हैं जहाँ विभिन्न  ब्लॉग्स का संकलन किया जाता है। इसके साथ-साथ एग्रीगेटर एक डेस्कटॉप कम्प्यूटर भी हो सकता है। सर्च इंजन के साथ-साथ पाठक ब्लॉग संकलक के द्वारा भी ब्लॉग-पोस्ट को पढ़ते हैं। ब्लॉग संकलक फीड के द्वारा ब्लॉग-पोस्ट को अपने प्रष्ट में प्रकाशित करते हैं, ब्लॉग पोस्ट को टेग के द्वारा श्रेणीबद्ध भी किया जा सकता है। जहाँ सर्च इंजन से पुरानी पोस्ट ही अधिक पढ़ी जाती है वहीँ ब्लॉग संकलकों के माध्यम से ताज़ा पोस्ट तक पाठक आसानी से पहुँच जाते हैं।

वेब फीड: 

वेब फ़ीड (Web Feed) या समाचार फ़ीड एक डेटा प्रारूप होता है जिसके द्वारा पाठकों / उपयोगकर्ताओं के लिए ब्लॉग की अद्यतित सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। वेब फीड को सामान्यत: आर.एस.एस (RSS) अथवा एटम (ATOM) के रूप में जाना जाता है।




[नोट: टिप्पणियों का विकल्प पोस्ट के विषय से सम्बंधित विचार-विमर्श के लिए ही खुला हुआ है, विषय से अलग टिप्पणियों को आप मेरे ईमेल-पते shnawaz(at)gmail.com पर भेज सकते हैं]

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एक पौधे की हत्या

टूटू एक छोटे से अनोखे पौधे का नाम है, उसका यह नाम रिंकू ने रखा था। रिंकू पास के गांव में रहने वाला एक छोटा बच्चा है, एक दिन सुबह-सुबह तितलियां पकड़ते हुए उसके यह सुंदर पौधा दिखाई दिया। उसी दिन से दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। टूटू बहूत ही खूबसूरत है तथा उसके अंदर से भीनी-भीनी खुशबू आती है। उसकी सुंदरता और खुशबू रिंकू को बहुत पसंद है। रिंकू ने पापा से कहा कि उसका एक दोस्त है टूटू, वह एक छोटा सा पौधा है, जोकि तालाब के पास रहता है। उसने पापा से मालूम किया कि पापा क्या टूटू हमारे साथ हमारे घर पर नहीं रह सकता है? पापा ने कहा कि बिलकुल रह सकता है, मैं आज शहर जा रहा हूं, कल टूट को घर पर ले आएंगे।

रिंकू खुशी-खुशी भागता हुआ टूटू के पास पहुंचा और उसको खुशखबरी सुनाई, टूट भी बहुत खुश था, लेकिन अपनी भावानाएं रिंकू के सामने व्यक्त करने में बेबस था। कुदरत ने उसको यह ताकत नहीं दी थी, लेकिन वह फिर भी खुश था। उसको अन्य जानवरों की तरह भोजन और पानी के लिए भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती थी, वह हिलझुल नहीं सकता था, इसलिए कुदरत ने उसके लिए सारा इंतज़ाम वहीं किया था।

वहां से एक बाबा निकले, टूटू को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बाबा ने रिंकू से कहा कि यह पौधा उनको चाहिए, इसकी उनको काफी दिनों से तलाश थी। रिंकू ने कहा कि यह उसका दोस्त टूटू है, वह उसकी हत्या नहीं करने देगा। बाबा ने कहा कि यह तो एक पौधा है और पेड़-पौधों की हत्या कैसे हो सकती है? रिंकू ने कहा कि पेड़-पौधो को काटना भी हत्या है, उसके घर में नीम का पेड़ है। लेकिन घर बनते समय भी पापा ने उसे काटने नहीं दिया। पापा कहते हैं कि पेड़ भी हमारी तरह ही होते हैं। उनमें भी जीवन होता है, बस बोल और चल नहीं सकते हैं। पापा ने यह भी बताया था कि कई पेड-पौधे तो बोलते भी हैं, अपनी रक्षा के लिए हिल भी सकते हैं, इसलिए उनको काटना नहीं चाहिए। आपाको पता है कि घर पर मेंरी एक दोस्त झुईमुई भी है, जब में उसके पत्तों को हाथ लगाता हूं तो वह शरमाकर अपने पत्तों को बंद कर लेती है।

बाबा ने रिंकू से कहा कि यह बहुत गुणकारी पौधा है, कई बीमारियों में इसकी दवा बनाई जा सकती है। मानव हित के लिए इसका प्रयोग होगा, बल्कि तुम्हारा दोस्त तो खुश होगा कि वह लोगों के काम आ पाएगा। उन्होंने समझाया कि नीम जैसे बड़े पेड बिना काटे ही इन्सान के काम आते हैं, इसलिए उन्हे नहीं काटा जाता है। लेकिन रिंकू बाबा से सहमत नहीं हुआ, उसने साफ-साफ कहा कि वह टूटू को नहीं काटने देगा। बच्चे की हट देखकर बाबा को भी वहां से चले जाना ही समझदारी लगी, इसलिए वह वहां से चले गए। रिंकू भी कुछ देर खेल कर शाम को आने वादा करके घर चला गया, वह बाबा के चले जाने से भी निश्चिंत था।

लेकिन जब वह शाम को टूटू के पास गया तो देख कर अवाक रह गया। उसका प्यारा दोस्त वहां नहीं था, वह बहुत दुखी हो गया था, उसको समझ आ गया था कि वह बाबा कहीं गए नहीं थे और उसके जाने के बाद टूटू को तोड़ कर ले गए थे। रिंकू बहुत ही मायूसी के साथ बहुत देर तक वहां बैठा रहा और उसके बाद रोता हुआ घर आया। उसकी आँखों में आंसू देखकर मम्मी ने समझाया, लेकिन रिंकू हा रोना रूक ही नहीं रहा था। दिन भर उसने कुछ नहीं खाया, शाम को पापा ने आकर उसको समझाया कि बेटा उस छोटे पौधे को तुमसे ज़्यादा बीमार लोगो को ज़रूरत थी। वह मरा नहीं है, बल्कि सेहत बन कर कितने ही लोगों के शरीर में ज़िंदा रहेगा।


- शाहनवाज़ सिद्दीकी
email: shnawaz(at)gmail.com

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देश की चूलें हिला रहा है धार्मिक भ्रष्टाचार

आज जहाँ सामाजिक भ्रष्टाचार देश को ज़हरीले सांप की तरह डस रहा है वहीँ धार्मिक भ्रष्टाचार भी देश की बुनियाद की चूलें हिलाने का काम कर रहा है। मैं हमेशा से ही मानता रहा हूँ कि भ्रष्टाचार हमारे अन्दर से शुरू होता है. इसके फलने-फूलने में सबसे अधिक सहायक हम स्वयं ही होते हैं बल्कि कहीं ना कहीं हम स्वयं इसका हिस्सा होते हैं। आज सभी चाहते हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए, लेकिन कोई भी यह नहीं चाहता कि उसके अन्दर का भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए।

धार्मिक भ्रष्टाचार भी आम जनता के कारण ही फलता-फूलता है। आज इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के ज़माने में हर इंसान पैसा कमाने के लिए रात-दिन एक कर देता है, हर इक दूसरों से आगे निकल जाना चाहता है। परन्तु ऐसे समय में भी अपने खून-पसीने से कमाए पैसों को मंदिर, मस्जिद, आश्रमों और दरगाहों में बर्बाद कर देता है। बर्बाद इसलिए कह रहा हूँ, कि ऐसे संस्थानों के कर्ता-धर्ता अधिकतर मामलों में उन पैसों का प्रयोग समाज के उद्धार की जगह स्वयं का उद्धार करने में करते हैं। आज के दौर में धर्म भी एक तरह का नशा हो गया है, या यह कहें कि बना दिया गया है। इस युग में भी लोग बिना सोचे-समझे धार्मिक गुरुओं पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं, जबकि उनके अनैतिक कृत्य खुले-आम नज़र आते हैं। जनता-दिन प्रतिदिन गरीब होती जा रही है और धर्म के यह तथा-कथित सेवक दिन-प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं। रोजाना धार्मिक स्थलों पर करोडो का चढ़ावा  चढ़ाया जाता है और बेशर्मी की हद यह है कि इन धार्मिक स्थलों द्वारा जोर-शोर से चढ़ावे में मिलने वाली अकूत दौलत का गुडगान कर-करके दुनिया को बताया जाता है। गौर करने की बात है कि अगर दान अथवा चढावे का यह पैसा गरीबों के उत्थान, बीमारों के इलाज अथवा अनाथ बच्चों के पोषण तथा शिक्षा जैसी जगह में खर्च हो तो देश और समाज का कितना उद्धार हो सकता है। बल्कि सही मायनों में यही पुन्य की प्राप्ति और पैसे का सदुपयोग है, अन्यथा इस तरह पैसों को बर्बाद करके पुन्य की खुशफहमी में जीने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा।

धर्म की आड़ में एक और धंधा जोरो पर है, आप इन संस्थानों को  कितना भी दान दीजिए और उसके बदले तीन-चार गुना अधिक की रसीद आपको मिल जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे संस्थानों से कोई कर वसूला नहीं जाता, बल्कि दान देने वालों को भी आयकर में छूट दी जाती है। डेढ़ लाख रूपये तक सालाना कमाने वाले आम नागरिकों पर तो सरकार टेक्स की भरमार कर देती है परन्तु करोड़ों कमाने वाले इन संस्थानों पर कोई टेक्स नहीं?

गरीब जनता को बीच मंझदार में छोड़ देने वाली सरकार इनके आगे-पीछे घूमती दिखाई देती है। करोड़ों की सरकारी ज़मीन ऐसे संस्थानों को कोडियों के दामों दे दी जाती है, जबकि अनाथालयों के लिए जगह मांगने वाले संस्थान, सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा-लगा कर थक जाते हैं। बल्कि कई राज्यों की सरकारों ने अनाथालयों की ज़मीन ऐसे संस्थानों को बाँट रखी है।

आज देश में गरीब के लिए स्कूल तथा अस्पतालों की संख्या गिनी जा सकती है जबकि धर्मस्थलों की संख्या अनगिनत है। नैतिकता का ढोल पीटने वाले धार्मिक संस्थान को जगह-जगह सार्वजानिक ज़मीन पर कब्ज़ा जमाए हुए देखा जा सकता है। कोई सरकार इन तथाकथित धार्मिक स्थलों के खिलाफ कुछ नहीं करती। हद तो तब होती है कि अगर सरकार ऐसी अवैध जगहों को ढहाने का काम करती भी है तो आम जनता ही सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने लगती है और सरकार भी वोट बैंक के लालच में इनके आगे झुक जाती है। यह कैसे धर्म हैं, जहाँ ईश्वर अवैध कब्ज़ा करके बनाए गए धार्मिक स्थल पर पूजा करने वालों से खुश होता है? क्या धर्म अनैतिक हो सकता है? आखिर इस दिखावे के साथ कब तक जीते रहेंगे?



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कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? - भाग 3

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भाग - 1
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डिज़ाइन (Design): यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कॉलम है, जिसके अंतर्गत साज-सज्जा से सम्बंधित कार्य आते है। "पृष्ठ तत्व" (Page Elements) में ब्लॉग के लेआउट से सम्बंधित कार्य आते हैं, "हैडर" (header) को संपादित (Edit) करके ब्लॉग के मुख्य प्रष्ट के उपरी भाग को डिजाईन किया जाता है, यहाँ आप कोई फोटो अथवा डिजाईन भी लगा सकते हैं। "ब्लॉग सन्देश" (Blog Post) के संपादन के द्वारा अन्य विकल्पों के साथ-साथ यह भी तय किया जा सकता है कि कितनी पोस्ट पहले प्रष्ट पर दिखाई जाएं, इसमें दिए अन्य विकल्पों को स्वयं के संदेशों के साथ अपने पाठकों को दिखाया जा सकता है।

"गैजेट जोड़ें" (Add a Gadget) के द्वारा Follower जैसे अनेकों विकल्पों का चुनाव किया जा सकता है, इसके अंतर्गत आने वाले विकल्प "HTML/JavaScript" के विकल्प पर क्लिक करके खुलने वाली विंडो में बाहरी कोड डाले जाते हैं, जैसे कि ब्लॉग एग्रीगेटर्स, स्टेट काउंटर, किसी अन्य साईट/ब्लॉग का लोगो, विडियो अथवा फोटो इत्यादि के कोड्स।

HTML संपादित करें (Edit HTML) : इसमें अगर कोडिंग की जानकारी है तो ब्लॉग की साज-सज्जा (theme) को पसंद के अनुरूप बदला जा सकता है तथा बाज़ार में मौजूद Themes को ब्लॉग पर लगाया जा सकता है। 

टेम्‍पलेट डिज़ाइनर (Template Designer): इस विकल्प में जाकर blogger के द्वारा उपलब्ध कराई गई अनेकों Themes का प्रयोग किया जा सकता है। 

(Monetize): यह विकल्प गूगल एडसेंस के विज्ञापन के द्वारा आय के लिए होता है, अब हिंदी भाषा के ब्लॉग पर यह सुविधा उपलब्ध है।

आँकड़े (Stats): इस विकल्प से पता चलता है की किसी एक पोस्ट अथवा सम्पूर्ण ब्लॉग पर किस दिन/सप्ताह/माह में कितने पाठक आए और कहाँ से आए।



आइए वर्डप्रेस के बारे में जाने:

वर्डप्रेस ब्लॉगर के मुकाबले अधिक सुविधाएं उपलब्ध करता है, वर्डप्रेस ब्लॉग्स के लिए संकलक का कार्य भी करता है। अंग्रेजी के लिए wordpress.com तथा हिंदी के लिए hi.wordpress.com पर जा सकते हैं। वर्डप्रेस के मुख्य प्रष्ट पर पहुँच कर "Sign Up Now!" पर क्लिक करना है तथा खुलने वाले प्रष्ट में ब्लोगर की ही तरह सम्बंधित जानकारयाँ भर कर ब्लोगिंग का आनंद ले सकते हैं। इस प्रष्ट के द्वारा आप मुफ्त अकाउंट के साथ-साथ डोमेन नेम खरीदकर भी अपना ब्लॉग शुरू कर सकते हैं। 

फार्म भरने के बाद Sign-up पर क्लिक करना है, वर्डप्रेस एक ईमेल आपके ईमेल पते भर भेजता है जिसके द्वारा आप अपना अकाउंट सक्रीय कर सकते हैं। यहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि वर्डप्रेस का अकाउंट मेल में भेजे लिंक पर क्लिक करके दो दिन के भीतर ही सक्रीय करना आवश्यक है, अन्यथा फिर से अकाउंट बनाना पड़ेगा। अकाउंट सक्रीय करने के बाद रजिस्ट्रेशन वाले प्रष्ट पर वापिस आकर अपने बारे में जानकारी भरकर "Save Profile" पर क्लिक करना है, जिसके बाद लोगिन करके ब्लोगिंग शुरू की जा सकती है।

लोगिन के बाद खुलने वाले प्रष्ट पर पहुँच कर एक और ब्लॉग बनाया जा सकता है अथवा ऊपर "My Account" पर क्लिक करके प्रोफाइल जैसे विकल्पों में बदलाव किए जा सकते हैं। "My Blog" पर क्लिक करके डेश बोर्ड पर पहुंचा जा सकता है या फिर नई पोस्ट के विकल्प पर सीधे पहुंचा जा सकता है।  डेश बोर्ड पर पहुँच कर पोस्ट टेब के अंतर्गत "Add  New" पर क्लिक करके नई पोस्ट लिखी जा सकती है। यहाँ पर पोस्ट लिखने का तरीका काफी कुछ ब्लोगर जैसा ही है, ऊपर बने बॉक्स में शीर्षक तथा नीचे पोस्ट का विषय लिखना है। दाई ओर बने बॉक्स में Tag के कॉलम में पोस्ट से सम्बंधित Tag लिखे जाते हैं तथा Category कॉलम में पोस्ट के विषय से सम्बंधित श्रेणी पर क्लिक किया जाता है।  "Posts" में ही "Add New"  के नीचे लिखे Category पर क्लिक करके पोस्ट के लिए विषय से सम्बंधित अलग-अलग श्रेणियां बनाई जा सकती हैं। 

Apprearance के अंतर्गत Themes के विकल्प में जाकर पसंद के अनुसार सज-सज्जा (Theme) बदली जा सकती है। Widgat में पहुँच कर एक ओर "Available Widgets" दिखाई देगा, जिसमें विजेट के विकल्प दिखाई देंगे तथा दूसरी ओर लिखे "Primary Widget Area" में अपनी पसंद के विजेट को उठा कर रखना है।

User में पहुंचकर दुसरे लेखकों को अपने ब्लॉग में लिखने के लिए निमंत्रित किया जा सकता है तथा अपनी प्रोफाइल इत्यादि में बदलाव किए जा सकते हैं। Tools में पहुँच कर Iimport / Export के विकल्पों के द्वारा ब्लॉग की XML फाइल को निर्यात अथवा किसी दुसरे ब्लॉग की XML फाइल को आयात किया जा सकता है।  तथा Setting में उपलब्ध अनेकों विकल्पों में आवश्यकता के अनुरूप बदलाव किए जा सकते हैं।






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