ओबामा पर चढ़ा भारतीय रंग

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए तो भारतीय रंग में पूरी तरह रम गए थे, आप भी देखिए सचित्र वर्णन...


कलाम साहब से कलाम किया और बस उन्ही के हो लिए.. 


मैडम के जादू से कौन बच पाया है?


लगता है इनको 2G घोटाले के पूरी खबर थी इसलिए पहले सोनिया G और अब राहुल G



मुंबई आना है तो ठाकरे साहब को कैसे ठुकराया जा सकता है?


नोर्थ, साउथ, इस्ट और वेस्ट ---------- इंडिया इज द बेस्ट!


लालू जी से चारा और रेल मेनेजमेंट के गुर जो सीखने थे...


ममता दी के गुस्से से डर गए क्या?


अब माया से कौन दूर भाग सकता है भला?




और अंत में..............  
 एकदम असली इंडियन:

"सरदार ओबामा सिंह"




Keywords : obama in india, avatar as indian politicians, cartoons, critics

Read More...

हरिभूमि में: "निगम की चाल!"

दैनिक हरिभूमि के कल दिनांक 23 नवम्बर को प्रष्ट संख्या 4 पर प्रकाशित मेरा व्यंग्य



पड़ोस का मकान नगर निगम वाले ढहा गए! शेख जी ने खुशखलकी से शेखानी को खबर दी। वह बोली ‘अरे! ऐसा कैसे? ‘बिना नक्शा पास और इजाज़त लिए जो बना था।’ शेखानी चैंकी ‘लेकिन हमारी कॉलोनी में तो एक भी मकान नक्शा पास करवाकर नहीं बना।?‘ शेख जी ने शोखी में बोला ‘अपने नगर निगम वाले भी आजकल प्रोफेशनल स्टाईल में काम करते हैं। पहले घूम कर मोटी पार्टी ढूंढते हैं, फिर घर पर धावा बोल देते हैं। आमतौर पर मकान गिराने की धमकी से ही वसूली हो जाती है, अगर फिर भी कुछ कमाई ना हो तो भी कोई परेशानी नहीं! घर पर एक-दो नोटिसं भेजकर डराने का चांस जो रहता है। और अगर कोई फिर भी ना माने तो घर तो कभी भी गिराया ही जा सकता है।’

‘कहीं हमें भी नोटिस आ गया तो’ शेखानी बोली! ‘अब इतने मोटे-मोटे शिकार देखकर हम जैसे मरियलों के यहां कौन आएगा, सो डरना छोड़ो और धड़ल्ले से कुछ भी करो। फिर अपना तो पुराना मकान है और पुराने पाप माफ होते हैं।’ ‘ऐसा कैसे? कानून तो सबके लिए बराबर है’ शेख जी ने भी लेक्चर पूरा करने की तैयारी के साथ जवाब देने का मूड बनाया ‘जब हम कॉलोनी में आए थे तो क्या एक भी दुकान थी सड़क पर?’ शेखानी बोली ‘नहीं’। ‘अब कितनी हैं?’ ‘अब तो बाहर की सड़क से घर तक आने में आधा घण्टा लग जाता है’। ‘तो क्या तुमने सुना की एक भी दुकान बंद हुई या गिराई गई?’

‘गिराई क्यों जाएगी भला, दुकानें तो लोगो के फायदे के लिए बनी हैं?’ ‘हां फायदा हो तो रहा है, मकान लेते समय सोचा था कितनी खुली और साफ-सुथरी कॉलोनी है। परंतु भीड़भाड़ की आदत के कारण दिल ही नहीं लगता था। ना दुकानों की चकाचैंध, ना हॉकर्स की चिल्ल-पौं। माना देश में बिजली की कमीं है लेकिन अगर दुकानों में इतनी लाईट्स ना झिलमिलाए तो फिर रौनक ही क्या? जीवन एकदम फीका और बकवास! उपर से पैदल चलने की आदत ही समाप्त होती जा रही थी, भला हो हमारे बाज़ारों का पांच मिनट का रास्ता आधा घण्टे में तय करने का मौका मिल जाता है। बोर होने से बचाने का भी पूरा इंतज़ाम होता है, सामान बेचने के लिए बड़ी हसीन आवाज़ें निकाल कर राहगीरों का मनोरंजन करते है। 
अब तुम ही बताओं इतना फायदा पहुचाने वाले अगर थोड़ा सा कानून तो़ड़ कर रिहायशी इलाके में दुकान बना ले तो कोई गुनाह है क्या? अरे इन दुकानदारो की कृपा दृष्टि से कितने ही गरीब कर्मचारियों आज अमीरों की फेहरिस्त में आते हैं। और सिर्फ वह ही क्यों बल्कि हम जैसे गरीबों को भी किराए के रूप में तगड़ा पैसा मिलता है, प्रोपर्टी डिलरों की पौं-बारह हुई सो अलग। अब जिनको फायदा नहीं होता वह चिल्लाता रहता है, इतने उपकार करने वालों के खिलाफ नारेबाज़ी करके नेतागिरी चमाकाते हैं।

लेकिन यहां भी डरने की कोई बात नहीं है, ऐसे फालतू लोगो की आवाज़ नक्कार खाने में तूती बजाने जैसी ही होती है।’

- शाहनवाज़ सिद्दीकी






Keywords : critics, vyangy, haribhumi newspaper

Read More...

रोहतक ब्लोगर मिलन

बाएँ से: डॉ अरुणा कपूर जी, निर्मला कपिला जी, संजू तनेजा, संगीता पुरी जी, योगेंद्र मौदगिल जी.
ऊपर की लाइन (बाएँ से) : सतीश सक्सेना जी, केवल राम जी, राज भाटिया जी, ललित शर्मा जी, संजय भास्कर, खुशदीप सहगल (पीछे की ओर), मैं (शाहनवाज़ सिद्दीकी), अजय कुमार झा और राजीव तनेजा.
[यह फोटो देखकर चौंकिएगा मत, मैंने यह फोटो सतीश जी और मेरे द्वारा खिंची गई अलग-अलग दो फोटों को मिला कर बनाई है, तभी तो एक ही फोटो में मैं और सतीश जी साथ-साथ नज़र आ रहे हैं :-) ]

मूंछों में मेरा नया अवतार!
नुक्कड़ द्वारा आयोजित दिल्ली ब्लोगर विमर्श की ही तरह रोहतक ब्लोगर्स मिलन भी कई मायने में ज़बरदस्त रहा. जहाँ एक ओर नए-पुराने ब्लॉग लेखक एक खुशनुमा माहौल में मिले और एक दुसरे के बारे में जाना, वहीँ कई सार्थक बातें भी सामने आई. खुशदीप जी के प्रस्ताव पर बहुत से ब्लोगर्स ने अपनी कमियां बताई, अधिकतर ने बिना लाग-लपेट के बताया कि टिप्पणियों से उन्हें फर्क पड़ता है. बात-चीत से पता चला कि हिंदी ब्लॉग जगत एक परिवार के तरह विकसित होता जाता रहा है, लोग यहाँ की खुशियों से खुश और दुखों से दुखी होते हैं, ललित शर्मा जी की तो ब्लोगिरी के कारण शुगर तक कंट्रोल में रहती है. निर्मला कपिला जी ने बताया कि कैसे उन्हें कंप्यूटर की तकनिकी जानकारी ना होने के कारण मुश्किलें पेश आती हैं, कुछ-कुछ यही कमजोरी डॉ. अरुणा कपूर जी ने भी बताई.

संजय भास्कर भाई ने वर्तिनी में होने वाली गलतियों को अपनी कमजोरी बताया, वहीँ राज भाटिया जी भी इसे ही अपनी कमजोरी मानते हैं. उपस्थित सभी साथियों की यही राय थी, कि ब्लोगिंग के ज़रिए ना केवल भाषा में सुधर हो रहा है बल्कि कई और महत्त्वपूर्ण बातों को सीखने का मौका मिल रहा है. नीरज जाट जी जैसे ब्लोगर्स केवल ब्लॉग लेखकों के लिए ही नहीं वरन अलग-अलग क्षेत्रों के ज़रूरतमंद लोगों के लिए वरदान होंगे और हो भी रहे हैं.
योगेन्द्र मौदगिल जी की एकता और सौहार्द पर लिखी लाजवाब पंक्तियाँ "मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से, संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से.." पढ़कर सतीश सक्सेना जी ने उनका परिचय कराया. वहीँ पता चला कि केवल राम जी तो ब्लॉग पर पूरी पी.एच.डी. ही कर रहे हैं.

अजय कुमार झा जी ने बताया कि कैसे अब लोग ब्लोग्वानी की तरह चिटठाजगत की भी टांग खींचने लगें हैं, आखिर यह सब कैसे रुकेगा? उनका सुझाव था कि हमें सभी ब्लॉग-संकलकों पर अपना ब्लॉग सम्मिलित करना चाहिए. ललित जी ने बताया कि कुछ ब्लोगर ब्लोगिंग के ज़रिये अच्छा-खासा पैसा कम रहे हैं, वह जानने के इच्छुक थे कि आखिर कैसे? उनकी इसके लिए एक कार्यक्रम भी रखने की योजना है. वहीँ मैंने बताया कि मेरे ब्लॉग प्रेमरस.कॉम का लक्ष्य तो है प्रेम और सौहार्द फैलाना लेकिन मैं अपनी विज्ञापन पृष्ठभूमि के कारण ब्लॉग जगत में ब्लोगर्स के आर्थिक लाभ की संभावनाओं को तलाशता रहता हूँ. मैंने ललित जी वादा किया कि जल्द ही इस पर पूरी तरह शोध करके सभी संभावनाओं को सबके सामने रखूँगा. हालाँकि मेरा भी यह मानना है कि व्यक्तिगत रूप में हिंदी ब्लॉग जगत में आर्थिक लाभ ढूँढना अभी दूर की कोडी है, लेकिन सामूहिक रूप से प्रयास होने पर यह आज भी असंभव नहीं है. इस पर मेरा विचार यह भी था, कि इस तरह का प्रोग्राम ऐसे डिजाईन होना चाहिए जिससे कि तकनिकी जानकारी ना रखने वाले ब्लोगर बंधू भी आसानी से इसका फायदा उठा सकें.

राज भाटिया जी ने ज़बरदस्त मेहमान नवाजी की, वहीँ अंतर सोहिल की मेहनत भी काबिले तारीफ़ थी, राज भाटिया जी के भतीजे चित्रांश (लकी) ने भी अपनी मेहनत से सबका मन मोह लिया. हमें आगे डॉ. दाराल साहब के पास जाना था, इसलिए  अलबेला खत्री जी नहीं मिल पाए. जाते समय हरदीप राणा (कुंवर जी) से भी बहुत थोड़ी ही बात हो पाई, जिसका मुझे अभी तक मलाल है. :-(

रोहतक के घमासान में भिड़ने वाले पहलवान ब्लोगर्स थे:
खुशदीप सहगल भाई
राज भाटिया जी
योगेंद्र मौदगिल जी
निर्मला कपिला जी
संगीता पुरी जी
सतीश सक्सेना जी
ललित शर्मा जी
नरेश सिंह राठौड़ जी
डॉ अनिल सवेरा जी
डॉ प्रवीण चोपड़ा जी
डॉ अरुणा कपूर जी
अलबेला खत्री जी
अजय कुमार झा
राजीव तनेजा
संजू तनेजा
संजय भास्कर
अंतर सोहिल
नीरज जाट
केवल राम
हरदीप राणा (कुंवर जी)

अगर भूलवश किसी का नाम लिखने से रह गया हो तो कृपया सूचित कर दें.




ब्लोगर्स मिलन की लाइव रिपोर्टिंग

पहली रिपोर्ट जांचते राज भाटिया जी.
 
ललित जी, तनेजा भाई, कुंवर जी और मैं

 
खुशदीप भाई और अनिल 'सवेरा' जी के साथ

अपनी बारी का इंतज़ार, साथ में हैं अंतर सोहिल भाई तथा खुशदीप भाई

केवल राम भाई अपनी बात बताते हुए

अब मेरी बारी

राज भाटिया जी अपनी बात रखते हुए

एक ग्रुप फोटो

विचार मंथन: राजीव तनेजा जी डॉ. अरुणा कपूर एवं उनके पति के साथ

  ब्लोगर्स मस्ती: मेरे साथ संजय भास्कर, योगेन्द्र मौदगिल जी तथा ललित शर्मा जी

नोट: सभी फोटों साभार श्री सतीश सक्सेना जी


Keywords: blogger milan, meet, rohtak, tiryal jheel

Read More...

रोंग नंबर

एक व्यक्ति अपने कार्यालय से घर पर फ़ोन करता है तो एक अजीब महिला जवाब देती है:


व्यक्ति: आप कौन है?
महिला: नौकरानी
व्यक्ति: लेकिन हमारे घर पर तो कोई नौकरानी नहीं है?
महिला: मुझे आज सुबह ही घर की मालिकिन ने रखा है.
व्यक्ति: खैर! मैं उसका पति हूँ, क्या वह वहां पर है?
महिला: उम्म्म्म.... परर्रर.... वह तो ऊपर... अपने बेडरूम में किसी और व्यक्ति के साथ है, उनकी आवाजों से तो मुझे लगा कि वह उसका पति है.

इतना सुनकर व्यक्ति को गुस्से में लाल-पीला हो जाता है.

व्यक्ति: सुनो! क्या तुम 50,000 रूपये कमाना चाहती हो?
महिला: (रोमांचित होते हुए) मुझे इसके लिए क्या करना होगा?
व्यक्ति: मैं चाहता हूँ, कि अलमारी में रखी मेरी गन उठाओ और मेरी पत्नी और उस घटिया आदमी को गोली मार दो.

वह महिला फ़ोन नीचे लटका कर चली जाती है... व्यक्ति उसके पैरों की आवाज़ और दो धमाकों की आवाज़ सुनता है. महिला वापिस आकर फ़ोन पर मालूम करती है:

महिला: मृत शरीरों के साथ क्या करना है?
व्यक्ति: इनको स्विमिंग पुल में फेंक दो!
महिला: क्या? लेकिन यहाँ तो कोई स्विमिंग पुल नहीं नहीं!

बहुत देर तक चुप रहने के बाद
व्यक्ति: उह....मम.... क्या यह 25xx43xx न. है?
महिला: नहीं!
व्यक्ति: ओह्ह.... माफ़ करना.... रोंग नंबर...


keywords: critics, Wrong Number

Read More...

ब्लॉगर बिरादरी और उड़न तश्तरी

दिल्ली में दिखाई दे रहा हर ओर उजाला है
इक मायावी तश्तरी ने यहाँ पहरा डाला है

हर ओर बेकरारी है, दीदार-ए-यार की
आंसू वोह गिर रहे हैं, जिन्हें अब तक संभाला है

अंतरजाल पर होते थे हर रोज़ जिसके दर्शन
महबूब-ए-ब्लोग्गिं रु-बरु, बस होने वाला है

दिल्ली के एक नुक्कड़ पर, नुक्कड़ का है आयोजन
सारी ब्लॉगर बिरादरी को, न्यौता दे डाला है

क्या अजब बिरादरी है, ना कोई हिन्दू ना मुसलमाँ
खुशियों में झूमने का यह अवसर निकाला है



हिंदी संसार एवं नुक्कड़ के द्वारा आयोजित हिंदी ब्लॉग विमर्श का आयोजन स्थल है:
दीवान चंद ट्रस्ट, 2, जैन मंदिर रोड, शिवाजी स्टेडियम के सामने, कनाट प्लेस, नई दिल्ली 
समय: अपराह्न 3.00 बजे से 5 .00 बजे तक, शनिवार, दिनांक 13 नवम्बर, 2010

अधिक जानकारी के लिए यहाँ चटका लगाएँ!



 - शाहनवाज़ सिद्दीकी



Keywords: ब्लॉगर मिलन, blogger meet

Read More...

व्यंग्य - जैसे लोग वैसी बातें!

खबर इंडिया कुछ लोगों के लिए नया नाम हो सकता है, लेकिन ख़बरों को अपने अलग अंदाज़ में प्रस्तुत करने का हम लोगों का प्रयास लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। हमारी पूरी टीम खबर इंडिया के संस्थापक श्री पुष्पेंद्र आल्बे के नेतृत्व में ऑनलाइन हिंदी पत्रिकारिता के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रसार के लिए जी जान से प्रयास कर रही है। आशा है आपको भी यह प्रयास पसंद आएगा।

इसी कड़ी में मेरा व्यंग्य  आज खबर इंडिया पर प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है:
 


जैसे लोग वैसी बातें!
 
दुनिया में लोग भी बड़े अजीब तरह के होते हैं, हमारे देश में अधिकतर लोग तो ऐसे मिलेंगे कि किसी विषय पर जानकारी हो या ना हो मगर अपनी राय देना परमोधर्म! सोचिए ज़रा एक सरकारी बाबू, जिसे अपने कार्यालय की फाईल के स्थान की जानकारी नहीं होती है, किसी पान की दुकान पर खड़े होकर क्रिकेट मैच का लुत्फ लेते समय राय देता है कि अगर फिल्डर गली में ख़ड़ा होता तो कैच ज़रूर लपक सकता था, पता नहीं कैप्टन कैसी कैप्टनशिप कर रहा है? जो लड़का कभी एक भी गर्ल को फ्रैंड नहीं बना पात वह हमेशा दूसरों को सलाह देता है कि फलां लड़की को मनाने के लिए केवल उसका ही आईडिया फिट बैठेगा! और तो और अक्सर लोगों में इस बात पर ही सर-फुटव्वल होता रहता है कि चुनाव में उसकी पसंद का उम्मीदवार ही जीतेगा। अगर किसी ने गलती से दो-चार शेयर ले डाले तो वह समझता है कि शेयर बाज़ार में उससे अधिक किसी को जानकारी हो ही नहीं सकती है।

अच्छा एक हुनर में तो हमारा पूरा देश ही माहिर है और वह है चिकित्सा! हर परिवार के अधेड़ और बुज़ूर्ग तो पहले ही डॉक्टर थे, लेकिन आजकल के चार जमात पास लोग भी पूरी निपुणता के साथ दवाईयों के बारे में सलाह देते नज़र आएंगे। एक बात तो बहुत चैकाने वाली है, सभी कहते मिलेंगे कि झाड़-फूक बाबा दूसरों को लूटने की दुकान चलाते हैं। लेकिन हर अवसर पर उन्हीं से सलाह लेने पहुंच जाएंगे और कहेंगे कि मेरे महान बाबा के जैसा तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है। वहीं उन बाबा महोदय को दूसरे बाबा के भक्त दूनिया का सबसे भ्रष्ट बाबा साबित करने पर तुले नज़र आएंगे! इस सब में बच्चे भी किसी से पीछे नहीं है, (जब माहौल ही ऐसा है तो वह भी क्या करें)। परिक्षा के समय बेचारे किताबों से नहीं बल्कि अपने इष्ट देव से सहायता मांगते और उनको प्रसाद का प्रलोभन देते दिखाई देंगे, "हे ईश्वर! इस बार अच्छे नंबर दिलवा दो, सवा सात रूपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा!

एक मंत्री महोदय तो राय देने में महान निकले, राष्ट्रमंडल खेलों से पहले सीधे भगवान् को ही सलाह दे रहे थे कि उसको खेलों के बीच में तेज़ बारिश करनी चाहिए, तो वहीं एक टैक्सी चालक की राय थी कि खेल करवाना हमारी सरकार के बस का काम नहीं है। मतलब मंत्री जी को भगवान के और टैक्सी चालक को सरकार के कार्य में निपुणता हासिल होने का यकीन है? वैसे हमारा भारत है बहुत ही महान देश, जहां स्टेडियम की छत का एक टुकड़ा गिरने पर लोग अड़ जाते हैं कि पूरी छत गिरी है और इस बात पर भी शर्त लग जाती है, तो वहीं सट्टा इस बात पर लगता है कि बाढ़ आएगी या नहीं! और अगर आएगी तो कितने घर डूबंगे, कितने लोग मरेंगे? वैसे कुछ लोग तो खेलों की विफलता की प्रार्थना केवल इस लिए कर रहे थे कि सफलता का सेहरा कहीं सरकार को ना मिल जाए! क्या कह रहे हैं.....देश? अब देश का क्या है? उसकी चिंता कौन करे?

खबरइंडिया.कॉम पर पढने के लिए यहाँ क्लिक करें!

- शाहनवाज़ सिद्दीकी

Keywords: khabarindia.com, khabar india, khabar indiya

Read More...

दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों

दैनिक जागरण के आज, दिनांक 8 नवम्बर के राष्ट्रिय संस्करण के कॉलम "फिर से" में फिर से प्रकाशित... 
 (यह लेख पहले 14 जुलाई को भी दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है)

पढने के लिए 
कतरन पर क्लिक करें 
हमारी महान मातृभाषा हिंदी हमारे अपने ही देश हिंदुस्तान में रोजगार के अवसरों में बाधक है। हमारे देश की सरकार का यह रुख अभी कुछ अरसा पहले ही सामने आया था। बोलने वालों की संख्या के हिसाब से दुनिया की दूसरे नंबर की भाषा हिंदी अगर अपने ही देश में रोजगार के अवसरों में बाधक बनी हुई है तो इसका कारण हमारी सोच है। हम अपनी भाषा को उचित स्थान नहीं देते हैं, बल्कि अंग्रेजी जैसी भाषा का प्रयोग करने में गर्व महसूस करते हैं।

मेरे विचार से हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। हमें कार्यालयों में ज्यादा से ज्यादा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। कोरिया, जापान, चीन, तुर्की एवं अन्य यूरोपीय देशों की तरह हमें भी अपने देश की सर्वाधिक बोले जाने वाली जनभाषा हिंदी को कार्यालयी भाषा के रूप में स्थापित करना चाहिए और उसी स्थिति में अंग्रेजी प्रयोग करने की अनुमति होनी चाहिए, जबकि बैठक में कोई एक व्यक्ति ऐसा हो, जिसे हिंदी नहीं आती हो। कोरिया का उदहारण लें तो वह बिना इंग्लिश को अपनाए हुए ही विकसित हुआ है और हम समझते हैं की इंग्लिश के बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी भाषा को छोड़कर दूसरी भाषाओं को अधिक महत्व देते हैं। अंग्रेजी जैसी भाषा को सीखना या प्रयोग करना गलत नहीं है, लेकिन अपनी भाषा की अनदेखी करना गलत ही नहीं, बल्कि देश से गद्दारी करने जैसा है।

अपनी भाषा को छोड़कर प्रगति करने के सपने देखना बिलकुल ऐसा है, जैसे अपनी मां का हाथ छोड़ किसी दूसरी औरत का हाथ पकड़ कर चलना सीखने की कोशिश करना। हो तो सकता है कि हम चलना सीख जाएं, लेकिन जब गिरेंगे तो क्या मां के अलावा कोई और उसी तरह दिल में दर्द लेकर उठाने के लिए दौड़ेगी? हम दूसरा सहारा तो ढूंढ़ सकते हैं, लेकिन मां के जैसा प्रेम कहां से लाएंगे? पृथ्वी का कोई भी देश अपनी भाषा छोड़कर आगे बढ़ने के सपने नहीं देखता है।

एक बात और, हिंदी किसी एक प्रांत, देश या समुदाय की जागीर नहीं है, यह तो उसकी है, जो इससे प्रेम करता है। भारत में तो अपने देश की संप्रभुता और एकता को सर्वाधिक महत्व देते हुए वार्तालाप करने में हिंदी को प्राथमिकता देनी चाहिए। कम से कम जहां तक हो सके, वहां तक प्रयास तो निश्चित रूप से करना चाहिए। उसके बाद क्षेत्रीय भाषा को भी अवश्य महत्व देना चाहिए। आज महान भाषा हिंदी रोजगार के अवसरों में बाधक केवल इसलिए है, क्योंकि हमें अपनी भाषा का महत्व ही नहीं मालूम है। 


- शाहनवाज़ सिद्दीकी


मूल लेख को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें:


Keywords:
Rashtra Bhasha, National Language, Hindi, Dainik Jagran, मातृभाषा, हिंदी

Read More...

अमीर ‘नहटौरी‘ की दो ग़ज़लें

पेशे से शिक्षक अमीर 'नहटौरी' उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के अंतर्गत आने वाले कस्बे नहटौर के रहने वाले हैं तथा जिले में उर्दू अदब के अच्छे जानकारों में शुमार होते हैं. एक समारोह में उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने गजलों से समा बाँध दिया. मालूम करने पर बताते हैं कि ब्लॉग जगत का बहुत नाम सुना है वह खुद भी ब्लॉग जगत में आने के बहुत इच्छुक है, परन्तु अभी तक अपना ब्लॉग नहीं बना पाए हैं. पेश-ए-खिदमत है उनकी दो ग़ज़लें :







----------------------------- (1) ------------------------------


तुमने कहा बस रिश्ता टूटा
हमसे पूछो क्या-क्या टूटा


दिल टूटा तो आपको क्या ग़म
जिसका टूटा उसका टूटा


तरक-ए-ताल्लुक यूं लगता है
रूह से जैसे नाता टूटा


दर्द ने ली अंगड़ाई ऐसी
ज़ख्म का इक-इक टांका टूटा


वोह भी पत्थर बनके बरसा
मैं भी शीशे जैसा टूटा


मैं मिट्टी का एक खिलौना
जितना बचाया उतना टूटा


हमसें जूनूं में अक्सर यारो
जो भी टूटा अपना टूटा


देखा अमीर इस राहे वफा में
क्या-क्या छूटा, क्या-क्या टूटा

- अमीर 'नहटौरी'




----------------------------- (2) ------------------------------


अपनों के कुछ ऐसे करम थे बेग़ानों को याद किया
देख के अपने घर की तबाही, वीरानों को याद किया


देखें छलकते आँख से आंसू, पैमानों को याद किया
होश में रहने वालों ने भी, मयख़ानों को याद किया


गुलशन में जब कलियां महकी, भंवरों का भी ज़िक्र छिड़ा
महफिल में जब शम`आ जली तो, परवानों को याद किया


फैलाए जब जाल हवस ने हुस्न को तब एहसास हुआ
सच्चाई ने आँखें खोली, दिवानो को याद किया


प्यार का नग़मा फिर से ज़बां पर, आज हुआ क्या हमको ‘अमीर’
दर्द भरे कुछ भूले बिसरे, अफ़सानों को याद किया।

- अमीर 'नहटौरी'


Keywords: Ameer Nehtauri, Gazal, Urdu Adab

Read More...
 
Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.