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गरीबी में लाचार बचपन

गरीबी बचपना आने ही नहीं देती है, बच्चे अपने परिवार का भार उठाने की मज़बूरी में बचपन में ही जवान हो जाते हैं और जवानी से पहले बूढ़े. हालाँकि ध्यान से देखो तो वह बच्चे भी अपने ही लगते हैं, उनमें भी अपने ही बच्चों का अक्स नज़र आता है. कुछ बच्चों के पास सबकुछ है और कुछ के पास है केवल लाचारी...



गरीब बच्चो का
ख्वाब होता है
बचपन

कब पैदा हुए
कब जवान
और कब चल दिये
अनंत यात्रा पर

याद भी नहीं
क्या है ज़िन्दगी

शायद हसरतो का
नाम है,
या फिर उम्मीदों का

हसरतें
कब किसकी पूरी हुई हैं?
और
उम्मीदें तो होती ही
बेवफा हैं


ऊँची इमारतें की
क्या खता है
आखिर ऊँचाइयों से
कब दीखता है
धरातल

'कुछ' कुलबुलाता सा
नज़र आता है
'कीड़ों' की तरह

या कुछ परछाइयाँ
जो अहसास दिलाती हैं
शिखर पर होने का

किसी का बच्चा
कई दिन से भूखा है
तो हुआ करे

ज़िद करके
मेरे बच्चे ने तो
पीज़ा खा लिया है

ठिठुरती ठण्ड को कोई
सहन ना कर पाया
मुझे क्या,
मेरा बच्चा तो
नर्म बिस्तर से रूबरू है

क्यों ना हो,
आखिर 'हम' कमाते
किसके लिए हैं?
'अपने' बच्चो के लिए ही ना!

जब गरीबों की कोई
ज़िन्दगी ही नहीं
तो 'बचपन' कैसा?


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थायरॉइड डिस्ऑर्डर और "ब्लॉग बुलेटिन" पर मेरी पहली ब्लॉग चर्चा

लिखावट में मेरी गरचे, निशाने जुनूँ नज़र आए.
तो मैं समझू फ़क़त, मेहनत मेरी कामयाब हो गयी. 

सभी मित्रों को शाहनवाज़ सिद्दीकी का 'प्रेम रस' में डूबा हुआ आदाब. यह मेरी पहली ब्लॉग्स चर्चा है, कुछ बेहतरीन ब्लॉग-पोस्ट से आप सभी को रु-बरु कराने की कोशिश करूँगा. मेरी इस पहली चर्चा की थीम स्वास्थ्य है, इसलिए सबसे पहले बात करते हैं स्वास्थ्य से जुडी कुछ जानकारियों की.

अगर आपका वज़न अचानक तेज़ी से घट या बढ़ रहा है तो यह थायरॉइड डिस्ऑर्डर का लक्षण हो सकता है, थायरॉइड डिस्ऑर्डर के प्रमुख लक्षणों में वज़न के घटने, बढ़ने के आलावा काम में मन ना लगना, उदास रहना, हड्डियों अथवा जोड़ों में दर्द प्रमुख हैं.

क्या होता है थायरॉइड?
हमारी बॉडी में बहुत-से एंडोक्राइन ग्लैंड्स (अंत: स्रावी ग्रंथियां) होते हैं, जिनका काम हॉर्मोन्स बनाना होता है। इनमें से थायरॉइड भी एक है, जो कि गर्दन के बीच वाले हिस्से में होता है। थायरॉइड से दो तरह के हॉर्मोन्स निकलते हैं : T3 और T4, जो हमारी बॉडी के मेटाबॉलिज्म को रेग्युलेट करते हैं। T3 10 से 30 माइक्रोग्राम और T4 60 से 90 माइक्रोग्राम निकलता रहता है। एक तंदुरुस्त आदमी के शरीर में थायरॉइड इन दोनों हॉर्मोन्स को सही मात्रा में बनाता है, जबकि गड़बड़ी होने पर ये बढ़ या घट जाते हैं। थॉयराइड डिस्ऑर्डर के कारण महिलाओं में बांझपन और पीरियड्स के अनियमित होने की प्रॉब्लम हो जाती है। शरीर में इन दोनों के लेवल को TSH हॉर्मोन कंट्रोल करता है। THS (Thyroid Stimulating Harmone) पिट्यूटरी ग्लैंड से निकलने वाला एक हॉर्मोन है।

क्या है थायरॉइड डिस्ऑर्डर?
थायरॉइड ग्लैंड से निकलने वाले T3 और T4 हॉर्मोन्स का कम या ज्यादा होना थायरॉइड डिस्ऑर्डर कहलाता है।

कैसे होता है
- ज्यादातर मामलों में यह खानदानी होता है।
- खाने में आयोडीन के कम या ज्यादा होने से।
- ज्यादा चिंता करने, अव्यवस्थित खानपान और देर रात तक जागने से।
- कुछ दवाइयों से, जैसे Amiodarone जो कि दिल के मरीजों को दी जाती है और Lithium जो कि मूड डिस्ऑर्डर यानी मानसिक रूप से परेशान मरीजों को दी जाती है। इन दवाइयों को लंबे समय तक लेने से हॉर्मोन्स का लेवल कम-ज्यादा हो जाता है, जिससे थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो जाता है।

कैसे पता चलता है
किसी को थायरॉइड डिस्ऑर्डर है या नहीं, इसके लिए यह चेक किया जाता है कि बॉडी में T3, T4 और TSH लेवल नॉर्मल है या नहीं। पहले लक्षणों और फिर जांच (थायरॉइड प्रोफाइल टेस्ट) से इसका पता चलता है।

कितने तरह का होता है :
मोटे तौर पर थायरॉइड डिस्ऑर्डर को दो भागों में बांटा जाता है :

1. हाइपोथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब T3 और T4 हॉर्मोन लेवल कम हो जाए तो उसे हाइपोथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें TSH बढ़ जाता है।

2. हाइपरथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब T3 और T4 हॉर्मोन लेवल अगर बढ़ जाए तो हाइपरथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें TSH घट जाता है।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर में पहले TSH चेक किया जाता है और अगर उसमें कोई घट-बढ़ पाई जाती है तो फिर T3 और T4 टेस्ट किया जाता है। पहली बार थायरॉइड टेस्ट कराने के बाद दूसरी बार टेस्ट तीन से छह महीने बाद करा सकते हैं। आजकल हॉमोर्न लेवल घटने यानी हाइपोथायरॉयडिज्म के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं। इसमें TSH बढ़ जाता है।

हाइपोथायरॉयडिज्म के कारण
- आयोडीन 131 ट्रीटमेंट से। यह ट्रीटमेंट हाइपरथायरॉइडिज्म के मरीजों को दिया जाता है, जो थायरॉइड के सेल्स को मारता है। इस ट्रीटमेंट में डोज के ज्यादा या कम होने से।

- थायरॉइड की सर्जरी से।

- गले की रेडिएशन थेरेपी से, जो कि ब्लड और गले का कैंसर होने पर दी जाती है।

- दवाइयों जैसे Lithium मानसिक रूप से परेशान मरीजों को दी जाती है, Anti-Thyroid Drugs थायरॉइड डिस्ऑर्डर को नॉर्मल करने के लिए, Interferon-Alfa हेपेटाइट्स और कैंसर के मरीजों को दी जाती है और Amiodarone जो कि दिल के मरीजों को दी जाती है, आदि से। ये दवाएं लंबे समय तक लेने से ही दिक्कत होती है।

- अगर पैदाइशी रूप से थायरॉइड ग्लैंड में हॉर्मोन बनने में गड़बड़ी हो या फिर थायरॉइड ग्लैंड हो ही न।

- अगर कोई पहले से ही थायरॉइड का ट्रीटमेंट ले रहा हो और उसे अचानक से बंद कर दे।

- TSH की कमी से।

- अगर किसी को हाइपोथैलमिक बीमारी हो। हाइपोथैलमस ब्रेन का ही एक पार्ट होता है, जिसमें किसी भी तरह की बीमारी जैसे ट्यूमर, रेडिएशन आदि होने से हाइपोथैलमिक बीमारी होती है, जिससे हाइपोथायरॉइडिज्म हो जाता है।


हाइपोथायरॉइडिज्म के लक्षण

बड़ों में
- भूख कम लगती है, पर वजन बढ़ता जाता है।
- दिल की धड़कन कम हो जाती है।
- गले के आसपास सूजन हो जाती है।
- हर काम में आलस जैसा लगने लगता है, थकावट जल्दी हो जाती है और कमजोरी आ जाती है।
- डिप्रेशन होने लगता है।
- पसीना कम आने लगता है।
- स्किन ड्राई हो जाती है।
- ठंड ज्यादा लगना (गर्मी में भी ठंड लगती है)
- बाल ज्यादा झड़ने लगते हैं।
- याददाश्त में कमी आ जाती है।
- कब्ज
- महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं। कुछ मामलों में पहले पीरियड्स कम होते हैं, फिर धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं।
- कुछ लोगों में सुनने की शक्ति भी कम हो जाती है।

इलाज
पहले लीवोथॉयरोक्सिन (ये हॉर्मोन्स होते हैं) दिया जाता है, जिसकी डोज 50 माइक्रोग्राम से शुरू की जाती है और फिर TSH लेवल और जरूरत के मुताबिक इसकी डोज बढ़ाई जाती है। इसके साथ अगर मरीज की कोई ऐसी दवा चल रही हो, जोकि थायरॉइड के लेवल को घटा रही हो जैसे : Lithium, Amiodarone तो ऐसी दवाओं को रोक दिया जाता है क्योंकि ये दवाइयां हाइपोथायरॉइडिज्म करती हैं। इलाज का असर हो रहा है या नहीं, इसे दो तरह से आंक सकते हैं : पहला : ऐसे सुधार, जिन्हें मरीज खुद देख सकता है जैसे सूजन में कमी आना और दूसरा : जिसमें हॉर्मोन्स में सुधार आता है और जिनकी पहचान सिर्फ डॉक्टर ही कर सकता है।

बच्चों में
हाइपोथायरॉइडिज्म से पीड़ित पैदा नॉर्मल होता है लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसमें लक्षण दिखने लगते हैं। आमतौर पर यह आयोडीन की कमी से होता है।

- बच्चा गूंगा-बहरा पैदा होता है।
- बौना होता है, यानी उसकी उम्र के हिसाब से लंबाई कम होती है।
- लंबे समय तक पीलिया रहने लगता है।
- सामान्य बच्चों की तुलना में उसकी जीभ बड़ी होती है।
- हड्डियों का विकास धीमा होता है।
- नाभि फूलती जाती है।
- आई क्यू सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है।

जब कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो बच्चे को थायरॉइड न हो, इसके लिए मां को आयोडीन नमक वाला खाना दिया जाता है। लेकिन अगर पैदा होने के बाद बच्चे को थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो जाता है तो उसे Iodized Oil दिया जाता है। इसमें एक एमएल में 480 मिली ग्राम आयोडीन होता है। आजकल थॉयरोक्सिन यानी Eltroxin टैब्लेट भी दी जाती हैं। 5 साल से कम के बच्चों को 8 से 12 माइक्रोग्राम से शुरू करते हैं और दिन में एक बार देते हैं। यह तब तक दी जाती है, जब तक बच्चा नॉर्मल न हो जाए।

हाइपरथायरॉइडिज्म
हाइपरथायरॉइडिज्म : इसकी जांच में T3, T4 बढ़ा हुआ और THS घटा हुआ रहेगा। साथ ही इसमें Thyroid Stimulating Immunoglobulin मिलता है। यह एक तरह का प्रोटीन होता है, जोकि थायरॉइड ग्लैंड में जाकर उसे ज्यादा निकालता है। इसी की वजह से यह बीमारी होती है।

कारण
- ग्रेव्स बीमारी से। यह आमतौर पर 20 से 50 साल तक की उम्र के लोगों में पाई जाती है और ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर से होती है। इसमें सारे लक्षण हाइपरथायरॉयडिज्म के होते हैं, जिसके ट्रीटमेंट में एंटी-थायरॉइड ड्रग सर्जरी की जाती है।
- ज्यादा मात्रा में आयोडीन खाने से।
- थायरॉइड हॉर्मोन ज्यादा लेने से।
- टॉक्सिक मल्टिनॉड्युलर ग्वाइटर और टॉक्सिक एडिनोमा हो जाने से। ग्लैंड में बहुत-सी गांठें होती हैं, जिनमें बहुत तेजी से हॉर्मोन्स बनने लगते हैं।

बड़ों में लक्षण
- वजन कम हो जाता है।
- दिल की धड़कन तेज होने लगती है।
- हर काम में जल्दी रहती है।
- चिड़चिड़ापन रहने लगता है।
- पसीना ज्यादा आने लगता है।
- स्किन में नमी ज्यादा रहती है।
- दिमागी तौर पर स्मॉर्टनेस और इंटेलिजेंस बढ़ जाती है।

थायरॉइड की सर्जरी के अलावा आयोडीन 131 और एंटी-थायरॉइड ड्रग्स जैसे Carbimazole, Methimazole और Propranolol आदि दी जाती हैं।

बच्चों में लक्षण
बच्चों में हाइपरथायरॉइडिज्म के मामले लगभग 5 पर्सेंट ही होते हैं, यानी उनमें हाइपरथायरॉइडिज्म के बजाय आमतौर पर हाइपोथायरॉइडिज्म ज्यादा होता है।

- गॉइटर (घेंघा) यानी गर्दन का साइज बढ़ जाना।
- मानसिक रूप से परेशान रहने लगेगा।
- बच्चे का किसी भी काम में, पढ़ाई और खेलकूद में ध्यान न लगना।
- भूख बढ़ जाना लेकिन वजन कम होना। मतलब, बच्चा खाना ज्यादा खाएगा लेकिन उसका वजन घटेगा।
- प्रोप्टोसिस यानी आंखों का ज्यादा बाहर आ जाना।

इसमें एंटी-थायरॉइड ड्रग जैसे Propylthioucacil और Methimazole दी जाती है। एक बार थायरॉइड लेवल नॉर्मल हो जाने पर दवाओं की डोज कम-से-कम स्तर पर ले जाते है। कितने लेवल पर ले जाना है, यह डॉक्टर तय करता है। इन्हें हॉर्मोन्स लेवल को कंट्रोल करने के लिए दिया जाता है।

होम्योपैथ
होम्योपैथ में भी थायरॉइड का इलाज मरीज के लक्षणों जैसे पर्सनैलिटी, बॉडी टाइप (मोटा-पतला), मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, फैमिली मेडिकल हिस्ट्री, मरीज के शरीर की संवेदनशीलता आदि के आधार पर ही किया जाता है। होम्योपैथ में TSH को नॉर्मल करने के लिए दवा दी जाती है।

दवाएं
लांकि लक्षणों को देखकर ही दवा और डोज दी जाती है। लेकिन कुछ दवाएं हैं, जो आमतौर पर थायरॉइड के सभी मरीजों को दी जाती है। वे हैं :

- Calcarea Carb 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Graphites 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Thuja Occ 30 , 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Phosphorus 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

- Lachesis 30, 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।

ध्यान रखें : दवा खाने से 15-20 मिनट पहले और बाद में कुछ भी न खाएं। मुंह में कोई भी तेज खुशबू वाली चीज होगी तो दवा असर नहीं करेगी।

आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी ज्यादा चिंता, शोक में रहना और अव्यवस्थित खानपान को थायरॉइड डिस्ऑर्डर का मुख्य कारण माना गया है।

लक्षणों को देखकर ही इलाज किया जाता है लेकिन सामान्य रूप से इसके लिए आरोग्यवर्द्धनी वटी (एक गोली), गुग्गुल (एक गोली), वातारि रस (एक गोली) और पुनर्नवादि मण्डूर (एक गोली) दवा दी जाती है। ये दवाएं सुबह-शाम गर्म पानी से कम-से-कम तीन महीने लेनी होती हैं। थायरॉइड डिस्ऑर्डर में घरेलू नुस्खों से ज्यादा फायदा नहीं होता।

योग
थायरॉइड डिस्ऑर्डर गले से जुड़ी बीमारी है, इसलिए जो भी प्राणायाम आदि गले में खिंचाव, दबाव या कंपन पैदा करे, उन्हें मददगार माना जाता है।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर होने पर :

- कपालभाति क्रिया के तीन राउंड पांच मिनट तक करें।

- उज्जयिनी प्राणायाम 15 से 20 बार दोहराएं।

- गर्दन की सूक्ष्म क्रियाएं करें, जिसमें गर्दन को आगे-पीछे और लेफ्ट-राइट घुमाएं।

- लेटकर सेतुबंध, सर्वांग और हलासन, उलटा लेटकर भुजंग और बैठकर उष्ट्रासन, जालंधर बंध आसन करें। सभी आसन 2 से 3 बार दोहराएं।

नोट : सर्वांग और हलासन गर्दन, कमर दर्द, हाई बीपी और हार्ट की बीमारियों में न करें। बाकी आसन कर सकते हैं।

थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो ही न, इसके लिए इन सभी आसनों और प्राणायाम को रोजाना करने के साथ ही रोजाना सैर पर जाएं। रेग्युलर ऐसा करने से थायरॉइड डिस्ऑर्डर कुछ ही दिनों में कंट्रोल हो जाता है।

क्या खाएं
- हल्का खाना जैसे दलिया, उबली सब्जियां, दाल-रोटी आदि खाएं।
- हरी सब्जियां और कम घी-तेल और मिर्च-मसाले वाला खाना खाएं।

क्या न खाएं
- बैंगन, चावल, दही, राजमा, अरबी आदि।
- खाने की किसी भी चीज को ज्यादा ठंडा और ज्यादा गर्म न खाएं।
- तला खाना जैसे समोसे, टिक्की आदि न खाएं।

INMAS (Istitute of Nuclear Medicine and Allied Science)
यह मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस का एक इंस्टिट्यूट और खासकर थायरॉइड का बड़ा हॉस्पिटल है।

- यहां जनरल ओपीडी नहीं है। सिर्फ किसी एम. डी. डॉक्टर के रेफर पर ही यहां इलाज किया जाता है।

- सुबह 7:30 से 11 बजे तक नंबर मिलते हैं, 8:30 से 11 बजे तक कार्ड बनाए जाते हैं और सुबह 9 से 11:30 बजे तक डॉक्टर मरीजों को देखते हैं।

- कार्ड 10 रुपये में बनता है और इसी पर इलाज के पूरे होने तक दवाइयां लिखी जाती है, जोकि बाहर से खरीदनी होती हैं।

फोन नंबर : 011- 2390 5327

पता : INMAS, तीमारपुर-लखनऊ रोड, तीमारपुर, दिल्ली-110 054, दिल्ली यूनिवर्सिटी मेट्रो स्टेशन के पास।

एक्सपर्ट्स पैनल :
- डॉ. के. के. अग्रवाल, सीनियर कंसलटेंट, मूलचंद हॉस्पिटल
- डॉ. ओमप्रकाश सिंह, मेडिकल ऑफिसर, ई. एस. आई. हॉस्पिटल
- डॉ. शुचींद्र सचदेवा, सीनियर होम्योपैथ
- एल. के. त्रिपाठी, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक
- सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु

नोट : ऊपर बताई गई एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक किसी भी दवा को डॉक्टर की सलाह के बिना अपने आप न लें। एलोपैथी में बताई गई सभी दवाइयों के नाम उनके जेनरिक नेम हैं। बाजार में ये अलग-अलग नामों से मिलती हैं।

साभार: नवभारत टाइम्स





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मैं स्वयं हाइपरथायरॉइडिज्म का शिकार रहा हूँ, खुदा का शुक्र है कि इससे निजात पा सका...

मैंने भी अपने डॉक्टर की सलाह से इसका इलाज इनमास (INMAS) से ही कराया है. बहुत ही बेहतरीन अस्पताल है. इसलिए तभी सोचा था कि थायरॉइड डिस्ऑर्डर के ऊपर जानकारी इकठ्ठा करके सभी के सम्मुख रखूँगा.


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भ्रष्टाचार का हमाम और वोट की ताक़त!

बाबु सिंह कुशवाहा का नाम लेकर शोर मचाने वाले दलों में सबसे आगे रहने वाली कांग्रेस का दामन भी भ्रष्टाचार में अन्य पार्टियों की तरह ही मैला है। एक ओर तो कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी सीना ठोककर बता रहे हैं कि कैसे उनकी पार्टी ने बाबु सिंह कुशवाहा को उनके भ्रष्टाचार में लिप्तता के चलते पार्टी में शामिल नहीं किया और दूसरी और उनकी ही पार्टी के 215 उमीदवारों में से जिन 75 उमीदवारों अब तक हलफनामा भरा है उसमें से 26 उमीदवार दागी पाए गए हैं। यहाँ तक कि इन 26 में से 13 उमीदवारों पर गंभीर प्रवत्ति के अपराधिक मामले दर्ज हैं।

कमोबेश यही हाल हर एक राजनैतिक दल का है। भारतीय जनता पार्टी के 220 में अभी केवल 91 उम्मीदवारों ने ही हलफनामे दिए हैं और उनमे से भी 26 उम्मीदवार दागी हैं अर्थात यहाँ भी मुकाबला बराबरी का ही है। वैसे यह तो एक बानगी भर है, क्योंकि अभी केवल कुछ ही उम्मीदवारों ने हलफनामे दायर किये हैं।

लोकपाल बिल और भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले राजनैतिक दलों का चाल-चरित्र और चेहरा बड़ी आसानी से चुनावों के समय देखा-पढ़ा जा सकता है। लेकिन यह सब सुनने, देखने, पढने की फुर्सत हमें अर्थात आम जनता को है ही कहाँ? जब भी बात वोट डालने की आती है तो केवल यह ही देखा जाता है कि उसकी पसंद की पार्टी कौनसी है? अथवा उसकी जाती, धर्म, समुदाय से कौन खड़ा हुआ है? जब तक जनता अपनी सोच नहीं बदलेगी राजनैतिक दल भी नहीं बदलेंगे, मतलब भ्रष्टाचार की बयार यूँ ही अविकल बहती रहेगी।

हर एक अगर अपने दिल पर हाथ रख कर विचार करे कि क्या कभी उसने पार्टी, ज़ात-पात, धर्म-समुदाय से ऊपर उठकर केवल और केवल ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति को वोट दिया है? तो उत्तर ना में ही आएगा। हममे से (तक़रीबन) हर एक व्यक्ति इन तथाकथित पार्टी, धर्म, ज़ात-पात के ठेकेदारों की लुभावनी, लच्छेदार बातों पर ही वोट डालता आ रहा है।

कुछ लोग कहते है कि फिर किसे वोट दें? एक ओर नागनाथ है और दूसरी ओर सांपनाथ! जबकि हकीक़त में ऐसा नहीं है, अगर उम्मीदवारों की पूरी सूचि पर नज़र डाली जाए तो उनमे से कोई ना कोई उम्मीदवार ईमानदार और कर्मठ अवश्य मिलेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि वोट डालना तो छोड़ ही दीजिये, उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट को पढ़ा तक नहीं जाता है। और ज़मीनी हकीक़त यह है कि सच्चे, ईमानदार और कर्मठ लोगो को स्वयं उसके घरवाले भी वोट नहीं डालते हैं। यही कारण है कि ईमानदार और देश के लिए कुछ करने का जज्बा रखने वाले लोग राजनीती से दूर भागते हैं। क्या बिना इस हकीक़त को बदले समाज और देश को बदला जा सकता है?

हमें इस बात को समझना होगा कि हमारे हाथ में 'वोट' नामक सशक्त हथियार है और इसी कारण लोकतंत्र हमारे देश की सबसे बड़ी ताक़त है। परेशानी का सबब यह बात है कि  राजनेताओं ने अपनी भावुक बातों में फंसा कर देश की जनता के इस हथियार की धार को कुंद किया हुआ है। आज लोकपाल जैसे हथियारों से भी अधिक आवश्यकता ज़मीन पर उतरकर जनता को वोट के हक की ताक़त का अहसास कराने की है। देश की तकदीर राजनेता नहीं बल्कि यह वोट की ताक़त ही बदल सकती है। 

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मेरी वसीयत - कर्नल गद्दाफी


"यह मेरी वसीयत है. मैं मोहम्मद बिन अब्दुल्लस्सलाम बिन हुमायद बिन अबू मानयर बिन हुमायद बिन नयिल अल फुह़शी गद्दाफ़ी, कसम खाकर कहता हूँ कि दुनिया में अल्लाह़ के अलावा कोई खुदा नहीं, और मोहम्मद ही उस अल्लाह के पैगंबर हैं. उनके नाम पर अमन कायम हो. मैं कसम खता हूँ कि मैं एक सच्चे मुसलमान की तरह मरुंगा.

अगर मैं मारा गया तो जिन कपड़ों में मेरी मौत हो उन्हीं कपड़ों में, मेरी लाश को बिना नहलाए, सिर्त में अपने परिवार और रिश्तेदारों की कब्र के पास, मुस्लिम रस्मो-रिवाज़ के मुताबिक दफ़नाया जाना चाहूँगा.

मैं चाहूँगा कि मेरी मौत के बाद मेरे परिवार, खास तौर पर औरतों और बच्चों के साथ अच्छा सलूक किया जाए.

लीबियाई जनता को चाहिए की वे अपनी पहचान, अपनी कामयाबियां,अपना इतिहास तथा अपने पुरखों और वीर नायकों की गौरव-गाथा की हिफाजत करें. लीबियाई जनता को अपने आज़ाद और बेहतरीन लोगों की कुर्बानियों को कभी भूलना नहीं चाहिए.

मैं अपने समर्थकों का आह्वान करता हूँ कि वे प्रतिरोध-संघर्ष चलाते रहें और विदेशी हमलावरों के खिलाफ आज, कल हमेशा-हमेशा के लिए अपनी लड़ाई जरी रखें.

दुनिया की आज़ाद जनता को हम यह बताना चाहेंगे कि अगर हम चाहते तो अपनी निजी हिफाजत और सुकूनभरी जिंदगी के बदले अपने पवित्र उद्देश्यके साथ समझौता करके उसे बेच सकते थे. हमें इसके लिए कई प्रस्ताव मिले लेकिन हमने अपने कर्तव्य और सम्मानपूर्ण पद के अनुरूप इस लड़ाई के हरावल दस्ते में रहना पसंद किया.
अगर हम तुरंत जीत हासिल न कर पायें तो भी, आने वाली पीढ़ियों को यह सीख दे जाएँगे कि अपने कौम की हिफाजत करने के बजाय उसे नीलाम कर देना इतिहास की सबसे बड़ी गद्दारी है, जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा, भले ही दूसरे लोग इसकी कोई दूसरी ही कहानी गढते और सुनाते रहें.

टिप्पणी: इस्लाम में शहीद की लाश को बिना नहलाए ही दफनाया जाता है, उसी तरह जैसे मक्का की सेना के साथ अहद की लड़ाई में शहीद होने वाले मुहम्मद साहब के अनुयाइयों की लाश को दफनाया गया था.

(मुअम्मर गद्दाफी लीबियाई क्रान्ति के नेता ओर नीति निर्माता थे. वे अपने देश की स्वतंत्रता ओर संप्रभुता की पवित्र उद्देश्य के लिए बलिदान हुए. 20 अक्टूबर 2011 साम्राज्यवादी सैनिक गठबंधन नाटो की चाकरी करने वाले अपने ही देश की गद्दारों के हाथों उनकी राजनीतिक ह्त्या कर दी गयी. उनकी यह वसीहत मंथली रिव्यू से लेकर अनूदित है.)



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अजब सांपला की गज़ब कहानी

यूँ तो हिंदी जगत में ब्लॉगर मिलन अक्सर होते हैं और अक्सर यह चर्चा भी रहती है कि ब्लॉगर मीट सार्थक होती है अथवा नहीं. हालाँकि सार्थकता के मायने हर इक के लिए अलग होते हैं, फिर भी एक सार्थक बात तो हर एक ब्लॉगर मीट में होती ही है और वह है दिलों का मिलना. आज जहाँ हर ओर नफरत के गीत गाए जा रहे हैं ऐसे में मुहब्बत के माहौल में मिलना-मिलाना खुशगवार हवा के झौंको से कम बिलकुल भी नहीं है.

मिलने-मिलाने की आड़ में, 
आपस में दिल मिलते रहे

बस 'प्रेम रस' बढ़ता रहे,
यूँ इश्कियां फूल खिलते रहे.

अगर बात अपनी कहूँ, तो हर एक ब्लॉगर मीट में बहुत कुछ सीखने का मौका मिला है. आभासी दुनिया  से निकल कर असल दुनिया में ब्लॉगर बंधुओं से मिलने पर जिम्मेदारियों का एहसास हुआ. इस बार भी कई साथियों से तकनिकी स्तर पर बहुत सारी सार्थक वार्ताएं हुई. बहुत सी बातें सीखी और बहुत से साथियों को बहुत सारी बातें सिखाने का वादा हुआ. बल्कि मेरे विचार से तो हर एक ब्लॉगर मीट में तकनिकी कार्यशाला का इंतजाम अवश्य होना चाहिए.

चलिए अब चलते 'अजब' सांपला  (के ब्लॉगर मिलन) की 'गज़ब' कहानी की ओर:-



हर एक धांसू कहानी की तरह यहाँ भी, धुरंधर 'अजय कुमार झा' की 'धमाकेदार एंट्री'


डायरेक्शन टीम से अंतर सोहिल तथा  राज भाटिया जी अजय झा को सीन समझाते हुए 


थोड़ी देर बाद ही दूसरी टीम भी लाल कारपेट पर चलने की बेताबी लिए आ पहुंची.



सबसे पहले कैमरों की निगाह  ब्लॉगिंग के रजनीकांत 'महफूज़ अली' पर पड़ी


कैमरों को देखने के बाद इनका 'अंदाज़' देखिये ज़रा


उनके पीछे-पीछे श्रीमती संजू तनेजा तथा मुकेश कुमार सिन्हा भी गर्म जोशी से आते हुए दिखाई दिए


आते ही गलियारों में चर्चा शुरू हो गई, हर कोई महफूज़ भाई की इस बेहतरीन शक्सियत की महफूज़गी  का राज़ जानने को उत्सुक नज़र आ रहा था और 'वह बताने में'!
(बाएँ से) हँसते रहो फेम राजीव तनेजा, श्रीमती राज भाटिया, श्रीमती संजू तनेजा तथा महफूज़ अली.


अंजु चौधरी से बतियाते महफूज़ भाई



कुछ फोटो खींचने में तो खुछ देखने में मशगूल!



और अजय भाई जायज़ा लेने में मशगूल!



हो जाए एक ग्रुप फोटो 




एक और बड़ी सी ग्रुप फोटो!!!



मशहूर चर्चाकार वंदना जी केवल राम से चर्चा करते हुए.


रिश्तों की यह गर्मजोशी तो देखिये



बात और भी आगे बढती हुई...


चेहरों पर मिलने की इतनी ख़ुशी देखने के बाद भी सार्थकता में कुछ कमी रह गयी है क्या?
(जाट देवता के साथ महफूज़)


ब्लॉग्गिंग के गुर सीखते-सीखाते एक छोटी कार्यशाला...


लीजिये नाश्ते का समय हो गया...


हमारे कैमरे की पसंदीदा  डिश 'बिस्कुट्स', हालाँकि हमें तो पकौड़े अधिक पसंद आए.



शायद बताया जा रहा है सौ-सौ टिप्पणियों का राज़ :-)


संजू भाभी राजीव तनेजा को समझा रही है कि ज्यादा खर्चा मत करो, अभी थोड़ी देर पहले तो जेब खर्ची दी थी... क्या सब उड़ा दिया?


और महफूज़ भाई का यहाँ कहना है कि ब्लॉग्गिंग का यही मज़ा है, जितना मर्ज़ी पकौड़े खाओ, सेहत फिर भी तंदुरुस्त रहती है...


यह देखिये, दिखा-दिखा कर खाया जा रहा है.


थोड़ी देर से ही सही खुशदीप भाई की टीम भी आ पहुंची, आते ही उनका स्वागत किया इंतज़ार करते कैमरों के फ्लैश ने. इतने कैमरे चलने लगे कि उनको ऑंखें खोलना भी मुश्किल हो गया है जी...


एक शानदार पोज़ देते हुए... (बाएँ से) खुशदीप सहगल, सर्जना शर्मा जी तथा श्रीमती एवं श्री राकेश कुमार जी


लो जी गन्ना प्रतियोगिता शुरू हो गयी है...


फिर से एक ग्रुप फोटो...


श्रीमती एवं श्री राज भाटिया जी मेहमानों का इस्तक़बाल करते हुए...


परेशान मत होइए, यहाँ कुछ गुस्सम-गुसाई नहीं हो रही है... टिप्पणियों के लेन-देन पर चर्चा भी नहीं हो रही है, बल्कि ब्लोगिंग पर गंभीर चिंतन हो रहा है भय्या!!!


लीजिये हम भी आ गए एक ग्रुप फोटो के लिए...


गर्मजोशी यहाँ भी है...


और यहाँ भी...

यह वाला फोटू तो देखिये ज़रा...



एक ग्रुप बैठ कर भी नज़ारा ले रहा है...




और बाहर गन्ना प्रतियोगिता और फोटो सेशन साथ-साथ


चलिए यहाँ भी चर्चा शुरू हो गयी...


गन्ना प्रतियोगिता चालू है...



गन्ना पकड़ कर ब्लॉग चर्चा कैसे की जा सकती है, यही समझा रही हैं वंदना जी श्रीमती भाटिया जी को...


लीजिये अलबेला खत्री जी भी पहुँच गए. संजय भास्कर स्वागत करते हुए...


और पद्म भाई की पद्मवाली का जायजा लेते हुए अजय भाई...



अब बारी आई अपनी-अपनी बात कहने की...


इंदु जी का प्यार और दुलार देखकर ख़ुशी के आंसू झलकने लगे...


देखिये कैसी तन्मयता से सुना जा रहा है...


दूसरी और का द्रश्य भी देख लीजिये...


ब्लॉगप्रहरी कनिष्क कश्यप अपनी बात रखते हुए....


एक अलग अंदाज़....


यह शायद 'मेरे विचार मेरे ख्याल' ब्लॉग वाले सुशील गुप्ता जी हैं...


और जब खुशदीप भाई बोले तो सब एक सुध होकर सुनते ही रह गए....




राजीव भाई ने कहा..... हँसते रहो



अंजु चौधरी बोल रही है और कई कैमरे उनका पीछा कर रहे हैं...



संजू भाभी ने भी अपनी बात रखी....


वंदना जी के समय लाईट थोड़ी कम हो गयी थी...


सर्जना जी भी ब्लोगिंग और मीडिया के कई राज़ खोले...


केवल और केवल 'केवल' भाई...



और आई अब अजय भाई की बारी....


एक-एक पॉइंट कुछ इस अंदाज़ में बयां हो रहा है...


ज़रा यह अंदाज़ तो देखिये..



लीजिये खाना शुरू हो गया...



महफूज़ भाई की सेहत का राज़ तो लगता है कि बस पापड़ खा कर ही काम चलाने वाले हैं.... :-)



अलबेला जी कह रहे हैं कि 'महफूज़ सिर्फ पापड़ खाने से पेट नहीं भरेगा'



बातें छोडो, खाना खाओ यार...


ब्लॉग-चर्चा


कुंवर जी अकेले ही?



अलबेला-शाह



इतनी गभीरता??? या फिर पोज़ देने में शर्मा रहे हैं?


फोटो खिचवाना हो तो ऐसे खीचवाइए  ना...


या फिर ऐसे....
(व्यंजना शुक्ल के साथ योगेन्द्र मौदगिल)


सिक्योरिटी का भी पूरा इंतजाम था, हर कोने-कोने पर नज़र रखी जा रही थी... ताकि कोई परिंदा भी पर ना मार सके...



विदाई का समय नज़दीक है...


और यह आखीर वाला पोज़...



कीर्ति नगर मेट्रो स्टेशन पर...



अजय भाई अपने कैमरे के फोटो जांचते हुए....


लीजिये मेट्रो आ गयी...



जब इत्ते फोटो झेल ही लिए हैं तो यह अखीर वाला हमारा फोटू भी झेल लो भय्या...

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