मज़बूत लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति का संगम विश्व को नई राह दिखा सकता है

यह बेहद फख्र की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। मतलब देश के हर हिस्से में किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती की नहीं बल्कि जनता की मर्ज़ी से चुनी हुई सरकार प्रशासक का काम करती है। देश के किसी भी हिस्से में चाहे किसी भी दल की सरकार हो, वो उस हिस्से के हर नागरिक की सरकार होती है। और हर नागरिक का यह फ़र्ज़ है कि नीचा दिखाने की नीयत की जगह सुधार की नीयत से कमियों को सामने लाए। जो कि किसी भी सरकार के पक्ष की ही बात है, क्योंकि जब तक कमिंयाँ सामने नहीं आएंगी, तब तक सुधार कैसे होगा? ऐसे ही देश की हर सरकार को जनता के हर सवाल का जवाब देना चाहिए, जहाँ सरकार की गलती है उसे ठीक करने की कोशिश होनी चाहिए और जहाँ जनता के तथ्य गलत हैं, वहाँ असली तस्वीर सामने रखनी चाहिए।

लोकतंत्र का मतलब ही यही है कि अगर सरकार जनता के हित में सुधार करती है तो ठीक है, वरना अगले चुनाव में हिसाब कर लिया जाता है। हालांकि लोकतंत्र का असल मक़सद तभी कामयाब होगा जबकि देश में पूर्णत: साक्षरता होगी। तभी देश का हर नागरिक अपने वोट की कीमत समझ पाएगा, धार्मिक, जातीय, आर्थिक प्रलोभनों या फिर भावनाएँ भड़काने वालो के बहकावे में आए बिना अपने भविष्य के लिए वोट करके सक्षम सरकार बनाने में योगदान दे पाएगा।

देश को वापिस विश्वगुरु बनाना है तो देश की जनता में इतनी जागरूकता होना ज़रूरी है। विश्व ने पूंजीवादी और साम्यवादी दोनो तरह के मॉडल फेल हो चुके हैं। विश्व अब किसी नई व्यवस्था की तलाश में है और आज पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है। देश मे विश्व को नई व्यवस्था देने की पूरी काबिलियत मौजूद है। माँ भारती के बेटे-बेटीयाँ मिलकर विश्व को एक ऐसी व्यवस्था दे सकते हैं जो मनुष्य को विकास की एक अलग परिभाषा सीखा सकती है। जिसमें विश्व के हर जीव ही नहीं बल्कि प्रकृति के भी उद्धार की संभावनाएं हों। जो अमीर-गरीब, काले-गोरे, धर्म-जाती के भेदभाव को समाप्त करके सारी मनुष्य जाति को समकक्ष ला सकती है। और ऐसी व्यवस्था बनाने में लोकतंत्र का हमारा मॉडल कामयाब भूमिका बना सकता है, बशर्ते कि हम इसे सही तरह से लागू कर पाएं, अर्थात लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका के प्रति जागरूकता ला पाएं।

विश्व की व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने का कारण उनके अंदर का कट्टरपन है। हर व्यवस्था सिर्फ अपने को ही सर्वोपरि समझती और दूसरे को कुचलती आई है। जबकि छोटी-मोटी कमियों के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में कट्टरता का स्थान कभी नहीं रहा, हम हमेशा ही दूसरे विचारों को सम्मान देते और अपनाते आए हैं, और कारण रहा कि यहाँ कट्टरता की हर कोशिश समय-समय पर हारती आई है। हम कट्टरता की जगह सबको साथ लेकर चलने वाले अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाले लोग हैं, यही हमारी संस्कृति की सच्चाई है।

एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होगा जहाँ अमीर-गरीब का भेद इतना ज़्यादा ना हो कि अमीर बेहद अमीर हों और गरीब को जीना दूभर हो जाए। ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि धरती पर जो भी बच्चा पैदा हुआ है उसे दूसरे बच्चों के बराबर ही आगे बढ़ने का मौक़ा मिले। हमारे देश में प्राकृतिक संसाधन पुरे विश्व से ज़्यादा हैं और इसीलिए हमें ऐसी व्यवस्था बनाई होगी जो प्रकृति की रक्षा करती हो और प्रकृति का फायदा बिना अमीरी-गरीबी के भेदभाव के हर उस बच्चे को मिल सके जो आगे बढ़ने की योग्यता रखता हो।

पूरे विश्व को इस तरह की एक नई व्यवस्था देने के सारे गुण हमारे देश की संस्कृति और आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था के समागम में मौजूद है, आवश्यकता उनमें आई कमियों को दूर करने भर की हैं। जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि लोकतंत्र के मॉडल में आई कमियों को दूर करने के लिए और साथ ही साथ समाज में फैलने शुरू हुए कट्टरपंथ के वायरस को दूर करने के लिए जागरूकता की आवश्यकता है। अगर हम इसमें कामयाबी पा लेते हैं तो नई राह बनाई जा सकती है और विश्व पटल पर एक नया मॉडल पेश किया जा सकता है। कामयाबी अवश्य प्राप्त होगी, पर सामूहिक प्रयास करना होगा, ऐसी कोशिशें अब देश के हर समाज और हर वर्ग को मिलकर करनी होगी।

जय हिंद

We can show a new path to the world through the combination of our rich Indian culture and strong democracy.

Read More...

गुजरात से आए कोरोना आंकड़ों ने चिंता बढ़ाई, कहीं दूसरे राज्यों में भी यही हाल ना हो!

गुजरात में कोरोना का कहर अचानक से बहुत तेज़ी से नज़र आ रहा है, 5 दिन पहले तक देश में छठे नंबर पर चल रहा गुजरात 2400 से ज़्यादा केसेस के साथ दिल्ली को पीछे करते हुए दूसरे नंबर पर आ गया है। हालांकि दिल्ली में कोरोना केसेस की संख्या इसलिए भी अधिक नज़र आती है, क्योंकि यहाँ दिल्ली से बाहर के केसेस ही अधिक हैं, दिल्ली के केसेस बहुत ही कम हैं।

चिंता की बात यह है कि गुजरात में रिकवरी रेट मात्र 6% के आसपास है, जबकि देश का औसत 19% है। गुजरात में 66% लोगों की मृत्यु पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के 1 या 2 दिन के अंदर ही हो रही है।

मुझे लगता है कि इसके पीछे का मुख्य कारण कोरोना जाँच का बेहद कम होना है। मतलब कोरोना संक्रमण की जाँच मरीज़ के अंतिम स्टेज पर पहुंचकर ही हो पा रही है। मुझे आशंका है कि यह स्थिति कई और राज्यों में भी दिखाई दे सकती है। केंद्र सरकार को अभी से इसके लिए चेतना होगा और राज्यों को अधिक से अधिक टेस्टिंग किट उपलब्ध करानी पड़ेगी, वर्ना हालात बेकाबू होते देर नहीं लगेगी। हालांकि केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि अब बहुत ज़्यादा टेस्टिंग किट राज्यों को उपलब्ध करा रही है। दुआ करता हूँ कि यह दावा सही हो और लोगों की अधिक से अधिक जान बचाई जा सके।

हम सभी लोगों को सरकारों का साथ देना चाहिए, हमें लॉक डाउन का पालन सख्ती से करना पड़ेगा। एक बार में अगले 1-2 महीने का राशन लेकर रख लीजिए और उनका इस्तेमाल बेहद सावधानी से कीजिये। रोज़मर्रा की चीज़ें बाहर से लेना तुरंत बंद कर दीजिए, या फिर बहुत ज़्यादा एहतियात बरतिए।

जैसे कि दूध के पैकेट्स से दूध बर्तन में निकालकर फौरन ही पैकेट को सेफ जगह पर फेंककर तुरंत ही हाथों को अच्छी तरह से धोइये और उसके बाद ही किसी चीज़ को टच कीजिये। बाहर से रोज़-रोज़ ऐसी चीज़ों को लेना बंद कर दीजिये जिनके बिना काम चल सकता है।

जब तक यह बीमारी समाप्त नहीं हो जाती है, इलाज की व्यवस्था नहीं हो जाती है, तब तक बाहर निकलना बीमारी को दावत देना है। इसलिए लॉक डाउन का सख्ती से पालन कीजिये।

- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी

Read More...

अपने-पराए हर गलत को गलत कहिए

ना तो सारे मुसलमान जमाती होते हैं और ना ही हर जमाती को कोरोना हुआ है और ना ही जमाती जानबूझकर बीमार हुए हैं। जो गलती मैजमेंट से हुई हो उसकी सज़ा भी उनकी जगह बीमारों को नहीं दी जा सकती है, बल्कि बीमारों के साथ सहानुभूति होनी चाहिये। हालांकि जैसी गलती मरकज़ मैनजेमेंट से हुई, वैसी गलती कम हो या फिर ज़्यादा परंतु उस समय हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में हो रही थी। लॉक डाउन होने तक हर जगह भीड़ जमा हो रही थी, धार्मिक ही नहीं सामाजिक और राजनैतिक कार्यक्रमों में भी...

मरकज़ मैनेजमेंट की बड़ी गलती थी कि एडवाइज़री के बावजूद हज़ारों लोग जुटते रहे। हालांकि लॉक डाउन के बाद जो लोग फंस गए थे, उसमें भी और उससे पहले भी प्रशासन को लिखित जानकारी के बावजूद, रोज़ाना रिपोर्ट लेने के बावजूद अगर लोग आना-जाना कर रहे थे, तो इसमें प्रशासन की भी उतनी ही गलती थी। दरअसल लॉक डाउन से पहले तक प्रशासन स्वयं इतना गंभीर नहीं था।

22 तारीख तक शाहीन बाग जैसे धरने चलते रहे, मध्य प्रदेश में सरकार गिरती-बनती रही, संसद का सत्र चलता रहा, बड़े-बड़े लोगों की शादियों होती रही, अंतिम संस्कार जैसे कार्यक्रमों में हज़ारों लोग जुटते रहे। सभी बड़े मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में भीड़ जुटती रही, कई जगह तो अभी भी भीड़ जुट रही है।

यह अवश्य है कि जमात से जुड़ा हर वह व्यक्ति व्यक्ति गुनहगार है, जिसने मेडिकल स्टॉफ अथवा प्रशासन के साथ दुर्व्यहार किया,  जबकि मेडिकल स्टाफ और प्रशासन इस समय अपनी जान की परवाह किये बिना कोरोना को हारने की लड़ाई में लगे हुए हैं। हालाँकि उनके साथ प्रशासन के वो लोग भी ज़िम्मेदार हैं जो जमात से जुड़े बाकी लोगों से क़्वारन्टाइन में गुनहगारों जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जिसके चलते दिल्ली के सुल्तान पूरी में बने क़्वारन्टाइन सेंटर में टाइम से दवाई और खाना नहीं मिलने के कारण शुगर पेशेंट 2 लोगों की मौत तक हो गई।

सलेक्टिव होकर दूसरों के किसी एक को या एक की वजह से हर एक जो दोष देने की जगह हर गलती को गलत कहिए और अगर अपनों को गलत नहीं कह सकते हैं तो आपको दूसरों पर बोलने का भी कोई अधिकार नहीं है।

मरकज़ भी एक मस्जिद ही है तो अगर मरकज़ में भीड़ जुटने को मैं गलत कह रहा हूँ तो आप बड़े-बड़े मंदिरों और गुरुद्वारों इत्यादि धार्मिक स्थलों में भीड़ जुटने का विरोध कीजिये और हम सब को मिलकर इन सभी धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक कार्यक्रम आयोजित करने वालों पर सख्त कार्यवाही की मांग करनी चाहिए, इनकी हठधर्मिता और स्वयं को सर्वोच्च समझने की सोच इंसानियत के लिए नुकसानदेह है।

Read More...

भारतीय मुस्लिम्स को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा


जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के बाद जापानियों ने कब्जा छुड़वाने के लिए कोशिशें करने की जगह शिक्षा का 20 वर्षीय मॉडल तैयार किया। और उसका परिणाम यह हुआ कि 1971 आते-आते जापान तकनीक में इतना आगे निकल गया कि अमेरिका को स्वयं ही जापान के शहरों से कब्ज़ा हटाना पड़ा।

दूसरी तरफ अगर मैं मुस्लिम समाज की बात करूं तो समाज की 80-90% आबादी आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है और हम आज भी अपने हालात पर फिक्र करने की जगह, पॉज़िटिव अप्रोच से प्लानिंग बनाने की जगह नेगेटिविटी पर जमे हुए हैं, दूसरों की कमिंयाँ ढूंढने में व्यस्त हैं। हमारे पास तो हालात को ठीक करने के काम में से चंद मिनट भी इन फालतू चीज़ों के लिए नहीं होने चाहिए थे।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने दलित और पिछड़े समाज के लिए काम किया, बल्कि असलियत यह भी है कि दलित और पिछड़े समाज ने भी उनका वैसे ही साथ दिया। अगर वो मुस्लिम समाज से होते तो हम में से अधिकतर तो उनके फ़िरक़े या फिर धार्मिक विचारों पर उंगली उठा रहे होते और बाकी बचे हुए लोग उन पर उठी हुई उंगलियों पर बहस कर रहे होते, उन पर विश्वास कर चुके होते। और ऐसा इसलिए है कि जब कोई किसी समाज के शिक्षित होने की कोशिश करता है तो समाज के ठेकेदारों को अपनी मठाधीशी खत्म होते हुए नज़र आती है और इसलिए वो ऐसे प्रयास में लगे लोगों के खिलाफ इमोशंस को भड़काकर धर्म विरोधी या फिर समाज विरोधी ठहराने की कोशिश करते हैं।

इसलिए किसी भी हालत में इमोशंस को भड़कने से बचाना है और किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले या फिर विरोध से पहले ठंडे दिमाग से सिक्के के हर पहलू को परखना ज़रूरी है।

आज अगर हम अपनी हालात सुधारना चाहते हैं तो उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर ध्यान देना होगा। अभी से रुट लेवल पर प्लान बनाकर इम्प्लीमेंट करने की शुरुआत करनी होगी।


- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी


Read More...

मुस्लिम समाज की मुश्किलें और हल

मुसलमानों की आज की हालात के सबसे बड़े गुनाहगार अपने ज़ाती फायदे के लिए इमोशंस को भड़काकर टुकड़ों में बांटने वाले फ़िरको के दलाल हैं, या फिर अपने इमोशंस भड़काकर झूठ फैलाने वाले राजनैतिक दलाल हैं।

इमोशनल तकरीरें देकर बेवकूफ बनाने वालों के चक्कर में पड़कर हमने सब को अपने से दूर कर लिया। आज कोई हमारा नाम नहीं लेना चाहता है। कोई हमारे हक़ में आवाज़ नहीं उठाना चाहता है। और जो आज उठा भी रहे हैं या साथ लेकर चल भी रहें हैं तो लिखकर रख लो कि अगर हम आज भी इमोशंस भड़काने वालों की बातों में आते रहे, तो कल वो भी साथ नहीं आने वाले हैं।

सबसे पहले तो यह सोच दिल से निकाल दीजिये कि कोई हमारा दुश्मन है, दरअसल हम ख़ुद हमारे दुश्मन बने हुए हैं, एक-दूसरे के दुश्मन... इसलिए अपने मिजाज़ को बदलिए, जो दीन पर नहीं चल रहा है, उसको टोकने या बुरा समझने, अपनी सोच को दूसरों पर थोपने की जगह दीन को अपने अंदर उतारिये।

यह उम्मीद मत रखिये कि दूसरे हमेशा आपके हिसाब से फैसला लेंगे, बल्कि यह सोचिये कि सिक्के का हमेशा एक ही पहलू नहीं होता है, इसलिए दूसरे पहलू को देखने/समझने की कोशिश कीजिये और फिर जो गलत सामने आता है उस पर भड़कने या टोंड कसने की जगह अच्छे अखलाक के साथ उसे सामने रखिये। चुप नहीं रहना है, क्योंकि आवाज़ उठाना ज़िंदा होने का सबूत है, पर समझदारी के साथ आवाज़ उठाइये। आज हमारी हालात को अगर कोई संभाल सकता है तो वो अच्छा अखलाक और अच्छी शिक्षा ही है। शुक्र अदा कीजिये कि हमारे बुजुर्गों ने मदारिस का सिलसिला शुरू कर दिया था, वरना हमारे हालात और भी बदतर होते। पर आज हमें ज़रूरत उनके साथ-साथ स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ की है।

फैसला हमारे ही हाथ में है, कि हम अपना कैसा कल चाहते हैं। इसे कोई और तय नहीं कर सकता है, यकीनन हमें ही तय करना है, इसलिए नेगेटिविटी की जगह पॉजिटिविटी से काम लेते हुए क़ौम को मज़बूत करने की फिक्र कीजिये।

- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी

Read More...
 
Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.