देश की चूलें हिला रहा है धार्मिक भ्रष्टाचार

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  • Shah Nawaz
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  • आज जहाँ सामाजिक भ्रष्टाचार देश को ज़हरीले सांप की तरह डस रहा है वहीँ धार्मिक भ्रष्टाचार भी देश की बुनियाद की चूलें हिलाने का काम कर रहा है। मैं हमेशा से ही मानता रहा हूँ कि भ्रष्टाचार हमारे अन्दर से शुरू होता है. इसके फलने-फूलने में सबसे अधिक सहायक हम स्वयं ही होते हैं बल्कि कहीं ना कहीं हम स्वयं इसका हिस्सा होते हैं। आज सभी चाहते हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए, लेकिन कोई भी यह नहीं चाहता कि उसके अन्दर का भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए।

    धार्मिक भ्रष्टाचार भी आम जनता के कारण ही फलता-फूलता है। आज इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के ज़माने में हर इंसान पैसा कमाने के लिए रात-दिन एक कर देता है, हर इक दूसरों से आगे निकल जाना चाहता है। परन्तु ऐसे समय में भी अपने खून-पसीने से कमाए पैसों को मंदिर, मस्जिद, आश्रमों और दरगाहों में बर्बाद कर देता है। बर्बाद इसलिए कह रहा हूँ, कि ऐसे संस्थानों के कर्ता-धर्ता अधिकतर मामलों में उन पैसों का प्रयोग समाज के उद्धार की जगह स्वयं का उद्धार करने में करते हैं। आज के दौर में धर्म भी एक तरह का नशा हो गया है, या यह कहें कि बना दिया गया है। इस युग में भी लोग बिना सोचे-समझे धार्मिक गुरुओं पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं, जबकि उनके अनैतिक कृत्य खुले-आम नज़र आते हैं। जनता-दिन प्रतिदिन गरीब होती जा रही है और धर्म के यह तथा-कथित सेवक दिन-प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं। रोजाना धार्मिक स्थलों पर करोडो का चढ़ावा  चढ़ाया जाता है और बेशर्मी की हद यह है कि इन धार्मिक स्थलों द्वारा जोर-शोर से चढ़ावे में मिलने वाली अकूत दौलत का गुडगान कर-करके दुनिया को बताया जाता है। गौर करने की बात है कि अगर दान अथवा चढावे का यह पैसा गरीबों के उत्थान, बीमारों के इलाज अथवा अनाथ बच्चों के पोषण तथा शिक्षा जैसी जगह में खर्च हो तो देश और समाज का कितना उद्धार हो सकता है। बल्कि सही मायनों में यही पुन्य की प्राप्ति और पैसे का सदुपयोग है, अन्यथा इस तरह पैसों को बर्बाद करके पुन्य की खुशफहमी में जीने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा।

    धर्म की आड़ में एक और धंधा जोरो पर है, आप इन संस्थानों को  कितना भी दान दीजिए और उसके बदले तीन-चार गुना अधिक की रसीद आपको मिल जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे संस्थानों से कोई कर वसूला नहीं जाता, बल्कि दान देने वालों को भी आयकर में छूट दी जाती है। डेढ़ लाख रूपये तक सालाना कमाने वाले आम नागरिकों पर तो सरकार टेक्स की भरमार कर देती है परन्तु करोड़ों कमाने वाले इन संस्थानों पर कोई टेक्स नहीं?

    गरीब जनता को बीच मंझदार में छोड़ देने वाली सरकार इनके आगे-पीछे घूमती दिखाई देती है। करोड़ों की सरकारी ज़मीन ऐसे संस्थानों को कोडियों के दामों दे दी जाती है, जबकि अनाथालयों के लिए जगह मांगने वाले संस्थान, सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा-लगा कर थक जाते हैं। बल्कि कई राज्यों की सरकारों ने अनाथालयों की ज़मीन ऐसे संस्थानों को बाँट रखी है।

    आज देश में गरीब के लिए स्कूल तथा अस्पतालों की संख्या गिनी जा सकती है जबकि धर्मस्थलों की संख्या अनगिनत है। नैतिकता का ढोल पीटने वाले धार्मिक संस्थान को जगह-जगह सार्वजानिक ज़मीन पर कब्ज़ा जमाए हुए देखा जा सकता है। कोई सरकार इन तथाकथित धार्मिक स्थलों के खिलाफ कुछ नहीं करती। हद तो तब होती है कि अगर सरकार ऐसी अवैध जगहों को ढहाने का काम करती भी है तो आम जनता ही सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने लगती है और सरकार भी वोट बैंक के लालच में इनके आगे झुक जाती है। यह कैसे धर्म हैं, जहाँ ईश्वर अवैध कब्ज़ा करके बनाए गए धार्मिक स्थल पर पूजा करने वालों से खुश होता है? क्या धर्म अनैतिक हो सकता है? आखिर इस दिखावे के साथ कब तक जीते रहेंगे?



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    10 comments:

    1. धर्म का शायद सबसे अधिक फायदा हमारे देश में ही उठाया जाता है ....
      शुभकामनायें !

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    2. आपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
      नयी-पुरानी हलचल

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    3. आप भी धर्म लाभ लीजिये और कोई टिप्पणी नहीं

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    4. यह कोई नई बात नहीं। हमेशा से धार्मिक संस्थाएँ यह भ्रष्टाचार करती आ रही हैं। सोमनाथ में इतनी दौलत क्यों थी कि उसे लूटने के लिए गजनवी ने बार बार हमले किए। वही दौलत जनता के पास होती तो लुटेरे शायद भारत में प्रवेश ही न करते। इतिहास बदल जाता। आज भी दौलत को केंद्रित होने से रोकना और उसे जनता के बीच वितरित होते रहने की व्यवस्था बनाना जरूरी है।

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    5. एक बहुत ही जरूरी मुद्दा है शाहनवाज़ भाई , और मुझे तो लगता है कि अब समय आ गया है कि , भारत सहित विश्व के हर देश में व्याप्त किसी भी तरह के धर्म , जाति ,जैसे समाज फ़ोडू कारकों को सिरे से ही मिटाने की कोशिशें शुरू की जाएं , ताकि कम से कम पचास सौर बरस के बाद ,इन बकवास बातों के बहाने समाज में ज़हर न घोला जा सके । विचारोत्तेजक लेख , आज ये भी बहुत बडी समस्या है और आर्थिक दशा की कुदशा के लिए जिम्मेदार तत्वों में से एक भी

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    6. आपके उपरोक्त विचारों से १००%सहमत
      १-सबसे पहले तो हमें खुद को सुधरना होगा कि हम अपनी मेहनत की कमाई धर्म स्थलों में न चढ़ाएं|
      २- सरकार को भी धर्म स्थलों पर दिए जाने वाले दान पर कर छुट बंद कर देनी चाहिए तथा धर्म स्थल पर आये दान को वैसी ही आय मानना चाहिए जैसे आम नागरिक या व्यापारी की आय मानी जाती है|

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    7. जहां पैसे का आवागमन रहता है भ्रष्टाचार वहीं पहुँच जाता है. इसे धार्मिक भ्रष्टाचार का नाम देना उचित नहीं. हाँ इस भ्रष्टाचार के जिमेदार भी हम और आप जैसे इंसान ही हैं. हम खुद को सुधार लें कम से कम धर्म के नाम पे जो भ्रष्टाचार फैल रहा है यह तो अवश्य बंद हो जाएगा.
      चलिए आप कि टिप्पणी भी खुल गयी अब टिप्पणी देना भी शुरू कर दें

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    8. bilkul sahi likha aapne .maine bhi ye mudda apni post "amir mandir garib desh"per uthayaa hai.bahut achcha aalekh aapkaa.badhaai.




      please visit my blog.thanks.

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    9. अजय भाई,

      इस भ्रष्ट्राचार के लिए ज़िम्मेदार धर्म नहीं बल्कि धर्म के व्यापारी हैं....जिन्होंने धर्म का चेहरा कुरूप बनाने की कोशिश की है... धर्म कभी भी चढ़ावों जैसे दिखावों की प्रेरणा नहीं देता है.... धर्म प्रेरणा देता है मानवता की सेवा की, जो कि इन दिखावा करने वालों की मदद करने के कारण संभव ही नहीं हो पाता है... आज ज़रूरत है चढ़ावों की दुकानों को बंद करने की.... जैसे ही धर्म से पैसों की दुकानदारी करने वालों को दूर किया जाएगा, खुद-बा-खुद असामाजिक तत्व धर्म से दूर हो जाएँगे....

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