ग़ज़ल: फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे

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  • Shah Nawaz
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  • मेरी यादों में आके क्या करोगे आस दिल में जगा के क्या करोगे ज़माने का बड़ा छोटा सा दिल है सबसे मिल के मिला के क्या करोगे अगर राहों में ही वीरानियाँ हों इतनी बातें बना के क्या करोगे नफरतें और बढ़ जाएंगी दिल में ऐसी बातों में आ के क्या करोगे जो दिल नाआशना ही हो चुके हों फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे - शाहनवाज़ 'साहिल'


    मात्रा:- 1222 1222 122
    बह्र :- बहरे हजज  मुसद्दस महजूफ
    अरकान :- मुफाईलुन मुफाइलुन फ़ऊलुन
    काफ़िया :- क्या(आ स्वर)
    रदीफ़ :- करोगे

    क्वाफी (काफ़िया) के उदाहरण :-
    जागा ऐसा तन्हा खिलता मिलता जलता सहता सस्ता मरता रिश्ता दिखता सकता चुभता मुड़ता कहता सस्ता रखता जचता बेचा चलता जुड़ता जचता रहता बचता भरता बहता कहता लड़ता प्यारा धागा ज्यादा ताना साया भाया दाना वादा आदि । इसी प्रकार के अन्य शब्द जिनके अंत में " आ "स्वर आये।

    इसी बह्र पर कुछ गीत:
    ➡अकेले हैं चले आओ जहां हो
    ➡ मैं तन्हा था मगर इतना नही था

    10 comments:

    1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-12-2017) को
      "लाचार हुआ सारा समाज" (चर्चा अंक-2820)

      पर भी होगी।
      --
      चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
      जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
      --
      हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
      सादर...!
      डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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      1. धन्यवाद शास्त्री जी...

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    2. सुन्दर रचना

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    3. बेहतरीन ग़ज़ल
      सादर

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    4. आभार श्वेता जी...

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    5. धन्यवाद सुशील जी...

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