धोखा और विश्वास

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  • Shah Nawaz
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  • किसी शहर में एक प्रेमी और उसकी प्रेयसी रहा करते थे, दोनों का एक-दुसरे पर परस्पर विश्वास और प्रेम दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ रहा था। उसी शहर में एक बाबा भी रहते थे, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अपने दायित्वों के निर्वाहन के चलते अक्सर बाबा की उस युवक से मुलाकात होती थी।  सामाजिक कार्यों में युवक की भागदौड़ और उसकी सोच को देखते हुए एक दिन  बाबा ने सोचा कि उसको  उनके साथ उनके आश्रम में रह कर जीवन यापन करना चाहिए। बाबा का मानना था कि इस तरह मानवता की सेवा में पूर्णत: अपना जीवन लगा कर उसका उद्धार हो जाएगा।

    उस युवक से मिलने पर बाबा ने अपने प्रवचनों के द्वारा युवक का मन बनाने की कोशिश की, परन्तु युवक अपना निर्धारित समय समाज सेवा में लगा कर सदैव अपने घर लौट जाया करता था। बाबा को महसूस हुआ कि उसका मन धर्म और समाज की सेवा में पूर्णत नहीं लगता है, उनके अनुभव ने उन्हें आभास कराया कि ज़रूर यह युवक सामाजिक बन्धनों में बंधा हुआ है। गहन छानबीन से बाबा को युवक और उसकी प्रेयसी की प्रेमकथा के बारे में पता चला। यह सुनकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया, उन्हें लगा कि युवक की धर्म-कर्म से इस दूरी का कारण उसकी प्रेयसी ही है। इस पर उन्होंने उन दोनों के रिश्तों में दरार डालने की योजना बना ली। बाबा ने ऐसा जाल बुना जिससे युवती को लगे कि युवक उसको धोखा दे रहा है। बाबा ने युवक के जीवन के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर युवती के पास पहुँचाया, जिससे युवती विचलित हो उठी। युवक यह जानकार बहुत दुखी हुआ, यहाँ तक कि उसका मन सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भी नहीं लग रहा था। वह इस विचार में लीन था कि उसकी प्रेयसी उसके प्रेम और विश्वास का साथ देगी या झूठे बहकावे में आ जाएगी।

    गहन विचार के बाद युवती ने युवक के साथ ही रहने का फैसला किया, क्योंकि उसके ह्रदय ने उत्तर दिया कि प्रेम का दूसरा नाम विश्वास है!

     
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