उर्दू और हिंदी अलग-अलग नहीं है!

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • Labels:
  • उर्दू उन लोगों के लिए बनाई गयी थी जो या तो फारसी या फिर हिंदी नहीं समझते हो. हिंदी के शब्दों को फारसी का touch दे कर यानि दोनों भाषाओ को मिलाने के बाद जो नया रूप सामने आया उसको उर्दू कहते हैं। उर्दू को हिंदी की आत्मा और फारसी की साज सज्जा पहना कर बनाया गया था। ताकि एक दुसरे की भाषा को न समझने वाले एक दुसरे से बातचीत कर सकें। लेकिन बनने के बाद यह इतनी खुबसूरत और मीठी बन गयी कि आम बोलचाल की भाषा बनती गयी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उर्दू किसी भी तरह से हिंदी से अलग नहीं है।

    मैं हिंदी को प्यार करता हूँ क्योंकि यह मेरी राष्ट्र भाषा है, वही उर्दू को पसंद करता हूँ क्योंकि यह मेरी मातृभाषा है। उर्दू मुझे इसलिय पसंद है क्योंकि यह एक ऐसी हिंदी है जिसका लहजा फारसी मिलने की वजह से (जो मिश्रण बना वह) बहुत ही खुबसूरत एवम कर्णप्रिय हो गया है।

    किसी ने बहुत खूब कहा है कि उर्दू और हिंदी दो बहनों की तरह हैं।

    लोग अक्सर इस दुविधा में रहते हैं की फारसी के कुछ शब्द संस्कृत से लिए गए हैं अथवा संस्कृत के कुछ शब्द फारसी से लिए गएं हैं। परन्तु अगर इतिहास का अध्यन किया जाए तो पता चलता है कि हिंदी और फारसी में बहुत सारे शब्द दोनों भाषाओ को मिलकर बने हैं।

    6000 वर्ष पहले फारसी और हिंदी एक साझी विरासत की तरह प्रयोग होती थी। ताम्र पाषाण युग या कांस्य युग के समय में या इससे भी पहले नवपाषाण युग या पेलिओलिथिक युग में  उस भाषा को लोग PIA कहते हैं यानि प्रोटो-इंडो-यूरोपिंस (Proto-Indo-Europeans) भाषा।

    - शाहनवाज़ सिद्दीकी


    Keywords:
    Hindi, PIA, Proto-Indo-Europeans, Urdu, शाहनवाज़ सिद्दीकी

    46 comments:

    1. बिल्कुल सही कहा आपने ,उर्दू और हिंदी बहनें ही हैं ,दोनों अपनी अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं

      ReplyDelete
    2. शुक्रिया इस्मत जी!

      ReplyDelete
    3. उर्दू और हिंदी दो बदन तो हो सकती हैं लेकिन रूह एक ही हैं!

      ReplyDelete
    4. Urdu wakai bahut hi karnpriye Bhasha hai. Iski Mithas dil mein madhur sangeet sa ghol deti hai. Aur dil chahta hai urdu bolne wale ko sunti rahoon... iski isi khasiyat ki vajah se main Urdu sahity ki Diwani bani hoon.

      ReplyDelete
    5. लेकिन बनने के बाद यह इतनी खुबसूरत और मीठी बन गयी की आम बोलचाल की भाषा बन गयी.

      ReplyDelete
    6. सचमुच शाह भाई, उर्दू हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है. आपने बिलकुल सही लिखा है.

      ReplyDelete
    7. Shah Nawaz ji Urdu mein bahut sare Hindi ke shabd prayog hote hain aur log unhe Urdu ke shabd samajhte hain. Yeh achhi baat nahi hai.

      ReplyDelete
    8. रश्मि जी, लियाकत भाई एवं संजीव भाई आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने अपना कीमती वक्त मेरे ब्लॉग के लिए निकला.

      ReplyDelete
    9. संजीव जी आपने सही कहा, उर्दू में बहुत सारे ऐसे शब्द हैं जो हिंदी से आये हैं, परन्तु उनमें फारसी का लहजा मिला कर बना शब्द ही उर्दू का शब्द कहलाता है. इसलिए शब्द के नए रूप को हिंदी का शब्द न कहकर उर्दू का शब्द कहा जाता है. लेकिन असल में तो वह हिंदी एवं फारसी का मिश्रण ही है.

      ReplyDelete
    10. दो बदन एक रूह इससे बडी बात और कोई नहीं हो सकती ..काश कि हमें भी उर्दू आती तो हम भी कयामत ढाते शेरो शायरी में ..
      अजय कुमार झा

      ReplyDelete
    11. सही है उर्दू और हिन्दी दो अलग अलग भाषाएँ नहीं हैं।

      ReplyDelete
    12. शुक्रिया अजय कुमार झा जी एवं दिनेशराय द्विवेदी साहब! मेरी हौसला अफजाई के लिए.

      ReplyDelete
    13. MLA said...

      सचमुच शाह भाई, उर्दू हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है. आपने बिलकुल सही लिखा है




      बिलकुल सही लिखा है आपने MLA साहब (लियाकत भाई)

      ReplyDelete
    14. जिस प्रकार हमारी दैनिक भाषा में उर्दू के शब्द आ गए हैं ये उचित है?

      बड़ी विडम्बना है की इतनी बड़ी हिंदी राज्य होने के बाद भी हम अंग्रेजी और उर्दू से मात खा रहे हैं.

      कितना भी प्रयास करता हूँ उर्दू घुस ही जाती है वार्ता में. साथ ही साथ "किताब" के स्थान पर "पुस्तक" बोलना भी दैनिक क्रिया मैं अजीब लगता है

      ReplyDelete
    15. There are many hindi words or u can say sanskrit originated, which are always claimed as Urdu words but no body says as hindi words. Like Jigar, chaand, nazar etc

      ReplyDelete
    16. हो सकता है यह शब्द फारसी से आये हों. लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है.

      उर्दू उन लोगों के लिए बनाई गयी थी जो या तो फारसी या फिर हिंदी नहीं समझते हो. हिंदी के शब्दों को फारसी का touch दे कर यानि दोनों भाषाओ को मिलाने के बाद जो नया रूप सामने आया उसको उर्दू कहते हैं

      ReplyDelete
    17. Shah Nawaz bhai there is lots of words, who r originaly from Sanskrit or Hindi but people seems that they are Urdu workds like Bebasi.

      Bebasi is 100% not urdu/persian...but it's 100% moderm hindi word. here is the explaination...

      Bebasi => Be-(prefix) + Basi

      The prefix Be- has originated from Sanskrit prefix Vi- which means "Devoid of" OR "Not having something....as used in Vi-dhawa(Be-wa), Vi-desh,

      -Basi or Bas has originated from Sanskrit "Vash" which mean "control" or "influence"...

      Sanskrit "Vi-vash" => "Be-bas" and it's noun is "Be-basi"

      ReplyDelete
    18. श्रीमान आपकी यह calculation और इसका result ही तो उर्दू है. उर्दू इसके आलावा और कुछ भी नहीं है. इसलिए उर्दू को हिंदी से अलग करके देखना सिर्फ भूल ही नहीं बल्कि बेवकूफी भी है.

      ReplyDelete
    19. But why are you putting a label of urdu on those words. This is the matter of conflict. It's snaskrit originated so offcourse it will be called modern hindi words......and load words in urdu.

      ReplyDelete
    20. यार हिंदी और फारसी में बहुत सारे शब्द दोनों भाषाओ को मिलकर बने हैं. आपकी तरफ से यह बहस बेमानी है. 5000 वर्ष या इससे भी पहले फारसी और हिंदी एक साझी विरासत की तरह प्रयोग होती थी. उस भाषा को लोग PIA कहते हैं यानि Proto-Indo-Europeans.

      "The Proto-Indo-Europeans (PIE) were the speakers of the Proto-Indo-European language, and likely lived around 4000 BC, during the Copper Age and the Bronze Age, or possibly earlier, during the Neolithic or Paleolithic eras. Knowledge of them comes chiefly from the reconstruction of their language, which was the ancestor of the Indo-European languages, including English. Their genetics and phenotypes are a subject of speculation."

      The Proto-Indo-Europeans are defined as the people who spoke the reconstructed Proto-Indo-European language. Thus the basic information about these pre-historic people arises out of the comparative linguistics of the Indo-European languages as well as the historic record of the spread of the Indo-European languages and the histories of the peoples speaking those languages. This may be augmented by comparing what may be deduced from these languages and histories with studies in archaeology and genetics. That is to say given the information present in the Indo-European languages and the reconstructed Proto-Indo-European language, one may attempt to link this information with results arrived at in archaeology and genetics to construct a more complete picture of the Proto-Indo-Europeans themselves.

      ReplyDelete
    21. उर्दू मुझे इसलिय पसंद है क्योंकि यह एक ऐसी हिंदी है जिसका लहजा फारसी मिलने की वजह से बहुत ही खुबसूरत एवम कर्णप्रिय हो गया है.
      Waah!! bahut sundar baat kahi aapane shatpratishat sahamat.....dhanywaad.

      ReplyDelete
    22. हिंदी और उर्दू कैसे घुले मिले है......यह तो पता ही नहीं चलता है....
      ..................
      अब इन पहेलियों को ही लीजिए..क्या इनमे उर्दू नहीं है ?
      ......
      विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
      http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html

      ReplyDelete
    23. जो दिल को अच्छा लगे ऐसी बोली बोल
      हिन्दी ने अंग्रेजी और उर्दू दोनों के शब्दो को अपने में समाहित कर लिया है

      ReplyDelete
    24. bahut achha kaha apne...
      mujhe bhi urdu ke lafzo ka pryog achha lagta hai...khubsurat....

      ReplyDelete
    25. अलग अलग नहीं तो लिपियाँ क्यों अलग हैं ?

      ReplyDelete
    26. उर्दू बहुत मीठी जुबां है...पर ये भी प्रश्न सार्थक है कि फिर लिपि अलग अलग क्यों?
      वैसे हिंदी और उर्दू आपस में इतनी घुल मिल गयीं हैं कि अलग करना मुश्किल है

      ReplyDelete
    27. 'urdu' un tamam jagahon kee bhasha shaili apnayi,jahan se lashkar aage kooch karta rah..
      "Urdu" bhabdka arth hai lashkar!

      ReplyDelete
    28. आप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया अता करता हूँ कि आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरी हौसला अफजाई की. धन्यवाद!

      ReplyDelete
    29. जहाँ तक बात लिपि की है, तो इसमें एक बात यह भी है कि फारसी के कुछ लफ्ज़ देवनागरी लिपि में अपनी ख़ूबसूरती को संभाल नहीं पाते हैं, लेकिन अब तो यह मस'अला भी अब हल हो गया है.... अब तो अधिकतर लोग उर्दू को देवनागरी लिपि में ही लिख रहे हैं.

      ReplyDelete
    30. Aapne bilkul sahi kaha Shah ji ki ab adhiktar log Urdu ko Devnagri lipi arthat Hindi ki tarah likhte hain aur aaj Urdu ke itna prachalit hone ki ek vajah yeh bhi hai.

      ReplyDelete
    31. बहुत ख़ूब दो बहनो के बारे मैं आपने अपने विचार बहुत ही अनोखे ढंग से प्रेषित किए...जय हो....

      ReplyDelete
    32. बढिया, मैं भी इनको दो बहनें मानता हूँ दोनों की अच्‍छी बुरी बातों से वाकिफ दोनों पसन्‍द दोनों के बारे में जो बुरा लिखे यह मुझे मन्‍जूर नहीं

      सफर में था आज देख पाया इस लेख को बहुत अच्‍छा लिखा, इस कमेंटस को तो हाजिरी मानें आगे आता रहूंगा

      आपको ब्‍लागवाणी परिवार में आना भी मुबारक हो
      अल्‍लाह करे जल्‍द आप 'हमारी अन्‍जुमन' में भी नजर आयें

      ReplyDelete
    33. शुक्रिया हिमांशु जी एवं उमर भाई. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने अपनी व्यस्तता के बीच में मेरे ब्लॉग पर आने का समय निकला.

      ReplyDelete
    34. --सारी भाषायें ही बहनें हैं आपस में---सभी एक मानव से विकसित हुईं जब उसने बोलना सीखा, ---५०००--६००० वर्ष पहले न हिन्दी थे न उर्दू न फारसी---संस्क्रत थी---प्रोटो-इन्डो-यूरोपिअन भाषा(वेदिक-अवेस्तन आदि) --उसी से विश्व की समस्त भाषाएं निकलीं हैं, भौगोलिक स्थिति के अनुसार वे बोली जाने लगी---जब लिपि का आविष्कार हुआ वह भी , मौसम, भूगोल व उच्चारण के अनुसार स्थानीय बनी--ध्यान से देखें सारी बोली व लिपियां आपस में मिलतीं जुलतीं हैं--चित्र लिपि, ऊपर नीचे वाली व दायें-बायें वाली भी ।
      ---वेदिक-शास्त्रीय व बोलचाल की संस्क्रत-भाषा भारत में समुन्नत हुई एवम उसकी सरलतम परिणति हिन्दी है।लिपि भी वही है।---वेदिक-अवेस्तन भाषा से एक भूभाग में फारसी-->तम्बू की भाषा,फारसी+ यूरोपियन+ लोकल देशीय भाषायें= उर्दू---> हिन्दुस्तान में हिन्दवी उर्दू, अत: लिपि फारसी ही है।---- वास्तव में तो दोनों भाषायें अलग-अलग ही हैं ।

      ReplyDelete
    35. भाषाए सुविधा और बोली के कारण व्याप्त होती गयी है. उर्दू हिंदी का उदगम क्षेत्र एक ही है.

      एक शेर अर्ज है...

      मैं सुलभ हूँ मेरी पहचान बस इतनी है
      मेरी लेखनी उर्दू और जबान हिंदी है

      शेर पढता हूँ उर्दू में ये हिंदी लगती है
      मौसी को देखता हूँ माँ जैसी लगती है

      प्रसिद्द शायर मुनव्वर राणा ने उर्दू-हिंदी में माँ-मौसी को देखा है.

      अच्छे पोस्ट के लिए शुक्रिया!

      ReplyDelete
    36. हम तो समझते थे की भाषा का इस्तेमाल होता है प्रेम के इज़हार के लिए..,
      आज मगर जाना की ज़बान काम आ गयी शमशीर की तरह..!!

      ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाही,
      सिस उतार भुएँ धर तब बैठ घर माहि..
      कबीरा भाटी कलाल की बहुतक बैठे आये,
      सिस सौंपे सो ही पींवे नहीं तो पिया ना जाए...
      प्रेम ना खेत उपजे ना ही हाट बिकाए,
      राजा प्रजा जो रुचे सिस देई ले जाए...

      ReplyDelete
    37. शाहनावाज़ सहाब,

      बहुत बहुत मुबारक हो...पहले लेख को इतनी अच्छी प्रतिक्रिया और एक लेख के बाद चार फ़ालोवर मिलना बहुत बडी बात है....बहुत बहुत मुबारक हो....

      माशाल्लाह काफ़ी अच्छा लिखते है....ऐसे ही लिखते रहे हमारी दुआयें आपके साथ हैं....

      ReplyDelete
    38. @ Dr. shyam gupta ji, सुलभ § सतरंगी जी, manish badkas ji एवं काशिफ़ आरिफ़ जी.

      आप सभी का भी बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरी हौसला अफजाई के लिए. आपने मेरे ब्लॉग पर आने के लिए समय निकला और कुछ शब्द लिखे.

      धन्यवाद!

      ReplyDelete
    39. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
      कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

      ReplyDelete
    40. शाह नवाज जी व सभी जिन्‍होने हिन्‍दी उर्दू पर अपनी राय व्‍यक्‍त की है

      मैं यह मानता हूं कि कोई भी भारतवासी शायद ही इतनी शुद्ध हिन्‍दी बोलता होगा जिसमे वह उर्दू का कोई भी शब्‍द प्रयोग में न लाता हो और शायद ही कोई इतनी खालिस उर्दू बोलता होगा कि वह हिन्‍दी के शब्‍दों को न बोलता हो, जब यह आपस में इतनी घुल-मिल चुकी हैं तो इस बारे में बहस की न तो कोई जरूरत है और न ही गुंजाइश |

      ReplyDelete
    41. धन्यवाद अजय जी एवं वीरेंदर राय जी.

      अजय जी मैं अवश्य ही कला एवं ज्ञान से ओत-प्रोत अन्य ब्लोग्स को पढने की कोशिश करूँगा.

      वीरेंदर जी, आपके विचार बिलकुल सही हैं, यह दोनों ही भाषाएँ हिंदुस्तान के रग-रग में रहती हैं.

      ReplyDelete
    42. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

      ReplyDelete
    43. sabhi bhasha vicharon ka adan padan karne ka sadan hai., hindi urdu to sike do pahlu hain. beta likhte raho. congaratulations. s.k.arya

      ReplyDelete
    44. जज जैसे आला मंसब पर रहे आनंद नारायण मुल्ला की दो बात ज़ेहन नशीं है आज तक.पुलिस को वर्दी वाला गुंडा उन्होंने ही कहा था.दूसरी बात उन्होंने शे;र में दर्ज कर दी:वही कहने का मन है.

      उर्दू और हिंदी में फ़र्क़ सिर्फ है इतना

      हम देखते हैं ख्वाब वो देखते हैं सपना

      ReplyDelete

     
    Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.