आप कारोबार में जितना ज़्यादा मेहनत करते हैं उतना ही कम कमाते हैं

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  • Shah Nawaz
  • जब आप अपने कारोबार में ज़्यादा मेहनत करते हैं तो उसके दो नुकसान होते हैं, एक तो कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी नेटवर्क को बनाने के साथ-साथ बाकी कारोबार में इन्वेस्ट करने का टाइम नहीं निकल पाते हैं और दूसरा ख़ुद को और परिवार को टाइम कम देने की वजह से क्वालिटी ऑफ लाइफ नहीं जी पाते हैं। अगर जिंदगी में लुत्फ नहीं है तो इसका मतलब अपने रब (बनाने वाले) के शुक्रगुजार नहीं हैं, जिसका असर मेंटल लेवल पर पड़ता है और फिर इसकी वजह से आपकी प्रोफेशनल लाइफ की ग्रोथ  इस स्पीड से नहीं हो पाती है, जितनी ज़रूरत होती है।

    इसलिए वक्त के साथ साथ बैलेंस बनाते हुए कारोबार में ख़ुद की मेहनत को कम करते जाइए और कारोबार चलाने और बढ़ाने के लिए ज़रूरी नेटवर्क को मज़बूत करते जाइए... 

    खुद अधिक मेहनत करने की जगह टीम बनाने उसे मैनेज करना सीखिए। मेरे एक मित्र का पारिवारिक कारोबार अच्छा चलता था, मैंने उसे समझाया कि आप लोग स्वयं मेहनत में लगे रहते हैं, इसकी जगह आपको काम करने वाले कारीगर लगाने चाहिए। इससे जो समय बचेगा उसे आप व्यसाय बढ़ाने में लगा सकते हैं। पर उसके पिता को यह बात समझ नहीं आई, उन्होंने कहा कि हम हाथ के कारीगर है फिर हम खुद काम करना छोड़कर दूसरों को इस काम पर क्यों लगाए? पर कुछ साल बाद उनका व्यवासय पिछड़ने लगा, क्योंकि उसके क्षेत्र में नए व्यवसायी आने लगे थे, जिन्होंने इन्वेस्टमेंट करके बड़ी फैक्ट्रियां लगाईं। काम बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने ज़्यादा कारीगरों को हायर किया। जिससे वो कम्पटीशन में उनसे कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी उपलब्ध कराने लगे। और इसका परिणाम यह हुआ कि धीरे धीरे उनका कारोबार ठप्प हो गया।   

    वैसे भी उसूल यह कहता है कि किसी कारोबार में रात-दिन मेहनत करके आप ज़िंदगी अच्छी तरह से चलाने का इंतजाम तो कर सकते हैं पर अमीर नहीं बन सकते हैं!

    अमीर हालांकि अरबी का लफ्ज़ है, जिसका मतलब लीडर होता है, पर अगर पैसे वाले अमीर की बात की जाए तो वो वही व्यक्ति बनता है जो कारोबार को कम से कम मेहनत से मैनेज करना सीख लेता है। जब एक कारोबार कुछ चल जाए तो खर्च निकालने के बाद बचे मुनाफे से बाकी के कारोबारों की तरफ रुख करना ही अमीर बनने का सीधा रास्ता है। एक कमाई से कभी कोई अमीर नहीं बनता है!

    और जो यह कहते कि अमीर गलत धंधे करके ही बनते हैं, वो आपको सिर्फ झूठ का सहारा लेकर बेवकूफ ही नहीं बना रहा होता है, बल्कि आपको डिमोटिवेट करके बहुत बड़ा गुनाह भी कर रहे होते हैं। याद रखिए कि पैसे कमाना शैतानी काम नहीं है बल्कि यह एक धार्मिक और समाज का भला करने वाला काम है, बशर्ते सही उसूलों से किया जाए!

    इसलिए अमीर या फिर बिलिनियर बनने का लक्ष्य रखिए, खूब सारा पैसा कमाना बेहद ज़रूरी है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि ईश्वर जो हमें सामाजिक नेटवर्क के ज़रिए दे रहा है उसे समाज को वापिस भी किया जाए। यानी कौम, समाज, देश और इंसानियत के फायदे के लिए अपनी कमाई में से परिवार पर खर्च करने के बाद बचे पैसे का आधा हिस्सा खर्च किया जाए। यह पैसा आप शिक्षा, रिसर्च, भोजन, इलाज और लोगों को कारोबार कराने की व्यवस्था के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

    विश्वास कीजिए, आप जितना इंसानियत को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च करेंगे आपका रब उसका कई गुना आपको वापिस करेगा। मतलब यह भी एक तरह से ईश्वर के साथ कारोबार हो गया... 😊

    और वो बेहतरीन नफा देने वाला है!

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    मुस्लिम प्रजनन दर और उसकी आड़ में जनसंख्या वृद्धि के हौव्वे की राजनीति

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  • Shah Nawaz
  • भारत में मुस्लिम प्रजनन दर 1992 में 4.4 थी जो कि 2019 में गिरकर 2.4 हो गई। वहीं हिन्दू प्रजनन दर जो कि 1992 में 3.3 थी वो 2019 में गिरकर 1.9 हो गई है। अगर सरकार के इस आंकड़ें को देंखेंगे तो मुस्लिम प्रजनन दर में जितनी तेज़ी से गिरावट आई है, उतनी किसी और समाज में नहीं आई है।

    अभी सभी समुदायों की प्रजनन दर तक़रीबन 2 के आसपास है। जिसका अर्थ है 2 लोगों (पति-पत्नि) के द्वारा जन्म दिए बच्चों की संख्या 2 के आसपास है और इसका अर्थ है कि भविष्य में जल्दी ही ऐसा समय आने वाला जबकि देश की जनसख्या बढ़ने की जगह घटने लग जाएगी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हर समुदाय में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। आप शिक्षा के असर का इससे अंदाज़ा लगाइये कि शहरों में प्रजनन दर 1.6 रह गई है, जबकि गांवों में यह 2.1 प्रतिशत है। अगर राज्यों की बात करें तो बिहार 3, मेघालय में 2.9, यूपी में 2.4, झारखंड 2.3 और मणिपुर में 2.2 है।

    और अगर देखा जाए तो हिन्दू समुदाय की प्रजनन दर (1.9), बौद्ध (1.4), जैन (1.6) और सिख (1.6) समुदाय से ज़्यादा है तो क्या इन समुदायों को हिन्दू समुदाय के विरुद्ध झंडा उठाना चाहिए? 
    जन्मदर का ताल्लुक शिक्षा के स्तर से होता है, पर बेशर्मी यह है कि भाजपा इसके हल अर्थात शिक्षा के स्तर को बढ़ाने पर मंथन करने की जगह इसे भी नफरत का हथियार बनाती है।

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    Ghazal: जहाँ के दर्द में डूबी है शायरी अपनी

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  • Shah Nawaz
  • वो जिसकी याद में कटती है ज़िन्दगी अपनी उसी के साथ में शामिल है हर खुशी अपनी वो लिखना चाहें तो लिक्खे तेरी अदाओं पे जहाँ के दर्द में डूबी है शायरी अपनी नया है दौर ये ज़ालिम बड़ा ज़माना है ज़रा जतन से छुपाना तू मुफलिसी अपनी मिरे कदम से मिलाया है हर कदम उसने हर इक सफर में हुई है यूँ रहबरी अपनी

    - शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'

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    कोरोना मामलों में मीडिया का धार्मिक दुष्प्रचार

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  • Shah Nawaz
  • 24 मार्च तक बहुत सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में लोग सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद आ-जा रहे थे और इस कारण लॉक डाउन होने पर फंस गए। क्योंकि तब तक सरकार ही गंभीर नहीं थी, प्रदर्शन चल रहे थे, सामाजिक-राजनैतिक समारोह / पार्टियाँ आयोजित हो रही थीं, सरकारें गिर रही, बन रही थीं, संसद सत्र चल रहा था। सरकारी गंभीरता अचानक 20-21 मार्च से नज़र आनी शुरू हुई।

    हजूर साहिब, महाराष्ट्र में फंसे ऐसे ही तीर्थयात्री जब पिछले हफ्ते पंजाब वापिस लौटे तो 148 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। ऐसे ही कई और धार्मिक स्थलों में भी फंसे लोगों को निकालकर उनके शहरों में पहुंचाया गया है। कई धार्मिक/सामाजिक अनुष्ठानों में हज़ारों लोग इकट्ठा हुए। मध्य प्रदेश में अंतिम संस्कार में 1500 से ज़्यादा लोग जुटे, ऐसे ही महाराष्ट्र के एक मंदिर के कार्यक्रम में भी 1500 के करीब लोग इकट्ठे हुए, इन मामलों के कारण सैंकड़ों कोरोना पॉज़िटिव केस सामने आए।

    हालाँकि ऐसे मामलों में लापरवाही की जाँच की जाती है और जो ज़िम्मेदार निकलेगा उन्हें सज़ा भी मिलनी चाहिए। पर मरकज़ निज़ामुद्दीन के बहुचर्चित मामले में मीडिया के दुष्प्रचार ने जिन मरीज़ों से सहानुभति होनी चाहिए थी, उन्हें अपराधी ठहरा दिया और मीडिया के इस घृणित व्यवहार पर देश में कहीं कोई चर्चा नहीं हुई!

    जबकि मीडिया ने सरकार से कभीं सवाल नहीं किया कि जो लाखों लोग विदेशों से वापिस आए, उन्हें कोरोना टेस्ट किये बिना या फिर सरकारी क़वारन्टीन सेंटर्स में भेजने की जगह सीधे उनके घर क्यों जाने दिया गया? या फिर उनके घर को उसी समय रेड ज़ोन घोषित किया जाना चाहिए था। इस लापरवाही ने पूरे देश को लॉक डाउन की त्रासदी में धकेल दिया, तो फिर इसका ज़िम्मेदार कौन है? इसमें किसके खिलाफ केस होगा और किसे सज़ा मिलेगी?

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    मज़बूत लोकतंत्र और भारतीय संस्कृति का संगम विश्व को नई राह दिखा सकता है

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  • Shah Nawaz
  • यह बेहद फख्र की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। मतलब देश के हर हिस्से में किसी ज़ोर-ज़बरदस्ती की नहीं बल्कि जनता की मर्ज़ी से चुनी हुई सरकार प्रशासक का काम करती है। देश के किसी भी हिस्से में चाहे किसी भी दल की सरकार हो, वो उस हिस्से के हर नागरिक की सरकार होती है। और हर नागरिक का यह फ़र्ज़ है कि नीचा दिखाने की नीयत की जगह सुधार की नीयत से कमियों को सामने लाए। जो कि किसी भी सरकार के पक्ष की ही बात है, क्योंकि जब तक कमिंयाँ सामने नहीं आएंगी, तब तक सुधार कैसे होगा? ऐसे ही देश की हर सरकार को जनता के हर सवाल का जवाब देना चाहिए, जहाँ सरकार की गलती है उसे ठीक करने की कोशिश होनी चाहिए और जहाँ जनता के तथ्य गलत हैं, वहाँ असली तस्वीर सामने रखनी चाहिए।

    लोकतंत्र का मतलब ही यही है कि अगर सरकार जनता के हित में सुधार करती है तो ठीक है, वरना अगले चुनाव में हिसाब कर लिया जाता है। हालांकि लोकतंत्र का असल मक़सद तभी कामयाब होगा जबकि देश में पूर्णत: साक्षरता होगी। तभी देश का हर नागरिक अपने वोट की कीमत समझ पाएगा, धार्मिक, जातीय, आर्थिक प्रलोभनों या फिर भावनाएँ भड़काने वालो के बहकावे में आए बिना अपने भविष्य के लिए वोट करके सक्षम सरकार बनाने में योगदान दे पाएगा।

    देश को वापिस विश्वगुरु बनाना है तो देश की जनता में इतनी जागरूकता होना ज़रूरी है। विश्व ने पूंजीवादी और साम्यवादी दोनो तरह के मॉडल फेल हो चुके हैं। विश्व अब किसी नई व्यवस्था की तलाश में है और आज पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है। देश मे विश्व को नई व्यवस्था देने की पूरी काबिलियत मौजूद है। माँ भारती के बेटे-बेटीयाँ मिलकर विश्व को एक ऐसी व्यवस्था दे सकते हैं जो मनुष्य को विकास की एक अलग परिभाषा सीखा सकती है। जिसमें विश्व के हर जीव ही नहीं बल्कि प्रकृति के भी उद्धार की संभावनाएं हों। जो अमीर-गरीब, काले-गोरे, धर्म-जाती के भेदभाव को समाप्त करके सारी मनुष्य जाति को समकक्ष ला सकती है। और ऐसी व्यवस्था बनाने में लोकतंत्र का हमारा मॉडल कामयाब भूमिका बना सकता है, बशर्ते कि हम इसे सही तरह से लागू कर पाएं, अर्थात लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका के प्रति जागरूकता ला पाएं।

    विश्व की व्यवस्थाओं के ध्वस्त होने का कारण उनके अंदर का कट्टरपन है। हर व्यवस्था सिर्फ अपने को ही सर्वोपरि समझती और दूसरे को कुचलती आई है। जबकि छोटी-मोटी कमियों के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में कट्टरता का स्थान कभी नहीं रहा, हम हमेशा ही दूसरे विचारों को सम्मान देते और अपनाते आए हैं, और कारण रहा कि यहाँ कट्टरता की हर कोशिश समय-समय पर हारती आई है। हम कट्टरता की जगह सबको साथ लेकर चलने वाले अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाले लोग हैं, यही हमारी संस्कृति की सच्चाई है।

    एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होगा जहाँ अमीर-गरीब का भेद इतना ज़्यादा ना हो कि अमीर बेहद अमीर हों और गरीब को जीना दूभर हो जाए। ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि धरती पर जो भी बच्चा पैदा हुआ है उसे दूसरे बच्चों के बराबर ही आगे बढ़ने का मौक़ा मिले। हमारे देश में प्राकृतिक संसाधन पुरे विश्व से ज़्यादा हैं और इसीलिए हमें ऐसी व्यवस्था बनाई होगी जो प्रकृति की रक्षा करती हो और प्रकृति का फायदा बिना अमीरी-गरीबी के भेदभाव के हर उस बच्चे को मिल सके जो आगे बढ़ने की योग्यता रखता हो।

    पूरे विश्व को इस तरह की एक नई व्यवस्था देने के सारे गुण हमारे देश की संस्कृति और आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था के समागम में मौजूद है, आवश्यकता उनमें आई कमियों को दूर करने भर की हैं। जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि लोकतंत्र के मॉडल में आई कमियों को दूर करने के लिए और साथ ही साथ समाज में फैलने शुरू हुए कट्टरपंथ के वायरस को दूर करने के लिए जागरूकता की आवश्यकता है। अगर हम इसमें कामयाबी पा लेते हैं तो नई राह बनाई जा सकती है और विश्व पटल पर एक नया मॉडल पेश किया जा सकता है। कामयाबी अवश्य प्राप्त होगी, पर सामूहिक प्रयास करना होगा, ऐसी कोशिशें अब देश के हर समाज और हर वर्ग को मिलकर करनी होगी।

    जय हिंद

    We can show a new path to the world through the combination of our rich Indian culture and strong democracy.

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    गुजरात से आए कोरोना आंकड़ों ने चिंता बढ़ाई, कहीं दूसरे राज्यों में भी यही हाल ना हो!

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  • Shah Nawaz
  • गुजरात में कोरोना का कहर अचानक से बहुत तेज़ी से नज़र आ रहा है, 5 दिन पहले तक देश में छठे नंबर पर चल रहा गुजरात 2400 से ज़्यादा केसेस के साथ दिल्ली को पीछे करते हुए दूसरे नंबर पर आ गया है। हालांकि दिल्ली में कोरोना केसेस की संख्या इसलिए भी अधिक नज़र आती है, क्योंकि यहाँ दिल्ली से बाहर के केसेस ही अधिक हैं, दिल्ली के केसेस बहुत ही कम हैं।

    चिंता की बात यह है कि गुजरात में रिकवरी रेट मात्र 6% के आसपास है, जबकि देश का औसत 19% है। गुजरात में 66% लोगों की मृत्यु पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के 1 या 2 दिन के अंदर ही हो रही है।

    मुझे लगता है कि इसके पीछे का मुख्य कारण कोरोना जाँच का बेहद कम होना है। मतलब कोरोना संक्रमण की जाँच मरीज़ के अंतिम स्टेज पर पहुंचकर ही हो पा रही है। मुझे आशंका है कि यह स्थिति कई और राज्यों में भी दिखाई दे सकती है। केंद्र सरकार को अभी से इसके लिए चेतना होगा और राज्यों को अधिक से अधिक टेस्टिंग किट उपलब्ध करानी पड़ेगी, वर्ना हालात बेकाबू होते देर नहीं लगेगी। हालांकि केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि अब बहुत ज़्यादा टेस्टिंग किट राज्यों को उपलब्ध करा रही है। दुआ करता हूँ कि यह दावा सही हो और लोगों की अधिक से अधिक जान बचाई जा सके।

    हम सभी लोगों को सरकारों का साथ देना चाहिए, हमें लॉक डाउन का पालन सख्ती से करना पड़ेगा। एक बार में अगले 1-2 महीने का राशन लेकर रख लीजिए और उनका इस्तेमाल बेहद सावधानी से कीजिये। रोज़मर्रा की चीज़ें बाहर से लेना तुरंत बंद कर दीजिए, या फिर बहुत ज़्यादा एहतियात बरतिए।

    जैसे कि दूध के पैकेट्स से दूध बर्तन में निकालकर फौरन ही पैकेट को सेफ जगह पर फेंककर तुरंत ही हाथों को अच्छी तरह से धोइये और उसके बाद ही किसी चीज़ को टच कीजिये। बाहर से रोज़-रोज़ ऐसी चीज़ों को लेना बंद कर दीजिये जिनके बिना काम चल सकता है।

    जब तक यह बीमारी समाप्त नहीं हो जाती है, इलाज की व्यवस्था नहीं हो जाती है, तब तक बाहर निकलना बीमारी को दावत देना है। इसलिए लॉक डाउन का सख्ती से पालन कीजिये।

    - शाहनवाज़ सिद्दीक़ी

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    अपने-पराए हर गलत को गलत कहिए

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  • Shah Nawaz
  • ना तो सारे मुसलमान जमाती होते हैं और ना ही हर जमाती को कोरोना हुआ है और ना ही जमाती जानबूझकर बीमार हुए हैं। जो गलती मैजमेंट से हुई हो उसकी सज़ा भी उनकी जगह बीमारों को नहीं दी जा सकती है, बल्कि बीमारों के साथ सहानुभूति होनी चाहिये। हालांकि जैसी गलती मरकज़ मैनजेमेंट से हुई, वैसी गलती कम हो या फिर ज़्यादा परंतु उस समय हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में हो रही थी। लॉक डाउन होने तक हर जगह भीड़ जमा हो रही थी, धार्मिक ही नहीं सामाजिक और राजनैतिक कार्यक्रमों में भी...

    मरकज़ मैनेजमेंट की बड़ी गलती थी कि एडवाइज़री के बावजूद हज़ारों लोग जुटते रहे। हालांकि लॉक डाउन के बाद जो लोग फंस गए थे, उसमें भी और उससे पहले भी प्रशासन को लिखित जानकारी के बावजूद, रोज़ाना रिपोर्ट लेने के बावजूद अगर लोग आना-जाना कर रहे थे, तो इसमें प्रशासन की भी उतनी ही गलती थी। दरअसल लॉक डाउन से पहले तक प्रशासन स्वयं इतना गंभीर नहीं था।

    22 तारीख तक शाहीन बाग जैसे धरने चलते रहे, मध्य प्रदेश में सरकार गिरती-बनती रही, संसद का सत्र चलता रहा, बड़े-बड़े लोगों की शादियों होती रही, अंतिम संस्कार जैसे कार्यक्रमों में हज़ारों लोग जुटते रहे। सभी बड़े मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में भीड़ जुटती रही, कई जगह तो अभी भी भीड़ जुट रही है।

    यह अवश्य है कि जमात से जुड़ा हर वह व्यक्ति व्यक्ति गुनहगार है, जिसने मेडिकल स्टॉफ अथवा प्रशासन के साथ दुर्व्यहार किया,  जबकि मेडिकल स्टाफ और प्रशासन इस समय अपनी जान की परवाह किये बिना कोरोना को हारने की लड़ाई में लगे हुए हैं। हालाँकि उनके साथ प्रशासन के वो लोग भी ज़िम्मेदार हैं जो जमात से जुड़े बाकी लोगों से क़्वारन्टाइन में गुनहगारों जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जिसके चलते दिल्ली के सुल्तान पूरी में बने क़्वारन्टाइन सेंटर में टाइम से दवाई और खाना नहीं मिलने के कारण शुगर पेशेंट 2 लोगों की मौत तक हो गई।

    सलेक्टिव होकर दूसरों के किसी एक को या एक की वजह से हर एक जो दोष देने की जगह हर गलती को गलत कहिए और अगर अपनों को गलत नहीं कह सकते हैं तो आपको दूसरों पर बोलने का भी कोई अधिकार नहीं है।

    मरकज़ भी एक मस्जिद ही है तो अगर मरकज़ में भीड़ जुटने को मैं गलत कह रहा हूँ तो आप बड़े-बड़े मंदिरों और गुरुद्वारों इत्यादि धार्मिक स्थलों में भीड़ जुटने का विरोध कीजिये और हम सब को मिलकर इन सभी धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक कार्यक्रम आयोजित करने वालों पर सख्त कार्यवाही की मांग करनी चाहिए, इनकी हठधर्मिता और स्वयं को सर्वोच्च समझने की सोच इंसानियत के लिए नुकसानदेह है।

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    भारतीय मुस्लिम्स को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा

  • by
  • Shah Nawaz

  • जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के बाद जापानियों ने कब्जा छुड़वाने के लिए कोशिशें करने की जगह शिक्षा का 20 वर्षीय मॉडल तैयार किया। और उसका परिणाम यह हुआ कि 1971 आते-आते जापान तकनीक में इतना आगे निकल गया कि अमेरिका को स्वयं ही जापान के शहरों से कब्ज़ा हटाना पड़ा।

    दूसरी तरफ अगर मैं मुस्लिम समाज की बात करूं तो समाज की 80-90% आबादी आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है और हम आज भी अपने हालात पर फिक्र करने की जगह, पॉज़िटिव अप्रोच से प्लानिंग बनाने की जगह नेगेटिविटी पर जमे हुए हैं, दूसरों की कमिंयाँ ढूंढने में व्यस्त हैं। हमारे पास तो हालात को ठीक करने के काम में से चंद मिनट भी इन फालतू चीज़ों के लिए नहीं होने चाहिए थे।

    ऐसा नहीं है कि सिर्फ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने दलित और पिछड़े समाज के लिए काम किया, बल्कि असलियत यह भी है कि दलित और पिछड़े समाज ने भी उनका वैसे ही साथ दिया। अगर वो मुस्लिम समाज से होते तो हम में से अधिकतर तो उनके फ़िरक़े या फिर धार्मिक विचारों पर उंगली उठा रहे होते और बाकी बचे हुए लोग उन पर उठी हुई उंगलियों पर बहस कर रहे होते, उन पर विश्वास कर चुके होते। और ऐसा इसलिए है कि जब कोई किसी समाज के शिक्षित होने की कोशिश करता है तो समाज के ठेकेदारों को अपनी मठाधीशी खत्म होते हुए नज़र आती है और इसलिए वो ऐसे प्रयास में लगे लोगों के खिलाफ इमोशंस को भड़काकर धर्म विरोधी या फिर समाज विरोधी ठहराने की कोशिश करते हैं।

    इसलिए किसी भी हालत में इमोशंस को भड़कने से बचाना है और किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले या फिर विरोध से पहले ठंडे दिमाग से सिक्के के हर पहलू को परखना ज़रूरी है।

    आज अगर हम अपनी हालात सुधारना चाहते हैं तो उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर ध्यान देना होगा। अभी से रुट लेवल पर प्लान बनाकर इम्प्लीमेंट करने की शुरुआत करनी होगी।


    - शाहनवाज़ सिद्दीक़ी


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    मुस्लिम समाज की मुश्किलें और हल

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  • Shah Nawaz
  • मुसलमानों की आज की हालात के सबसे बड़े गुनाहगार अपने ज़ाती फायदे के लिए इमोशंस को भड़काकर टुकड़ों में बांटने वाले फ़िरको के दलाल हैं, या फिर अपने इमोशंस भड़काकर झूठ फैलाने वाले राजनैतिक दलाल हैं।

    इमोशनल तकरीरें देकर बेवकूफ बनाने वालों के चक्कर में पड़कर हमने सब को अपने से दूर कर लिया। आज कोई हमारा नाम नहीं लेना चाहता है। कोई हमारे हक़ में आवाज़ नहीं उठाना चाहता है। और जो आज उठा भी रहे हैं या साथ लेकर चल भी रहें हैं तो लिखकर रख लो कि अगर हम आज भी इमोशंस भड़काने वालों की बातों में आते रहे, तो कल वो भी साथ नहीं आने वाले हैं।

    सबसे पहले तो यह सोच दिल से निकाल दीजिये कि कोई हमारा दुश्मन है, दरअसल हम ख़ुद हमारे दुश्मन बने हुए हैं, एक-दूसरे के दुश्मन... इसलिए अपने मिजाज़ को बदलिए, जो दीन पर नहीं चल रहा है, उसको टोकने या बुरा समझने, अपनी सोच को दूसरों पर थोपने की जगह दीन को अपने अंदर उतारिये।

    यह उम्मीद मत रखिये कि दूसरे हमेशा आपके हिसाब से फैसला लेंगे, बल्कि यह सोचिये कि सिक्के का हमेशा एक ही पहलू नहीं होता है, इसलिए दूसरे पहलू को देखने/समझने की कोशिश कीजिये और फिर जो गलत सामने आता है उस पर भड़कने या टोंड कसने की जगह अच्छे अखलाक के साथ उसे सामने रखिये। चुप नहीं रहना है, क्योंकि आवाज़ उठाना ज़िंदा होने का सबूत है, पर समझदारी के साथ आवाज़ उठाइये। आज हमारी हालात को अगर कोई संभाल सकता है तो वो अच्छा अखलाक और अच्छी शिक्षा ही है। शुक्र अदा कीजिये कि हमारे बुजुर्गों ने मदारिस का सिलसिला शुरू कर दिया था, वरना हमारे हालात और भी बदतर होते। पर आज हमें ज़रूरत उनके साथ-साथ स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ की है।

    फैसला हमारे ही हाथ में है, कि हम अपना कैसा कल चाहते हैं। इसे कोई और तय नहीं कर सकता है, यकीनन हमें ही तय करना है, इसलिए नेगेटिविटी की जगह पॉजिटिविटी से काम लेते हुए क़ौम को मज़बूत करने की फिक्र कीजिये।

    - शाहनवाज़ सिद्दीक़ी

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    केजरीवाल सरकार के पास अभी भी नहीं हैं प्रशासनिक अधिकार

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  • Shah Nawaz
  • दिल्ली की केजरीवाल सरकार के लिए कोई भी विचार बनाने से पहले हमारे लिए यह जानना अति आवश्यक है कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक अधिकार नहीं है। दिल्ली में सर्विस मैटर मोदी सरकार ने 2014 में ही नोटिफिकेशन लाकर LG के अधीन कर दिया था, मतलब दिल्ली सरकार के किसी भी अधिकारी/कर्मचारी की रिपोर्टिंग दिल्ली सरकार को नहीं है बल्कि LG को है। दिल्ली सरकार के अधीन आने वाला कोई भी अधिकारी/कर्मचारी अगर अपने दायित्वों को नहीं निभाता है, कामचोरी या गलत तरीके से काम करता है, रिश्वतखोरी में लीन होता है तो दिल्ली सरकार उसके ऊपर कोई एक्शन नहीं ले सकती है, सिर्फ कार्यवाही के लिए शिकायत ही कर सकती है। उनकी जाँच तक के अधिकार LG को दे दिए गए थे। जिसके लिए दिल्ली सरकार अदालतों में लड़ रही है, फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट की तीन जज की बेंच में है।

    शुरू में अरविंद केजरीवाल इस व्यवस्था के विरुद्ध लड़ता था, तब यह कहते थे कि केजरीवाल लड़ता बहुत है इसलिए दिल्ली वालों के काम नहीं हो रहे हैं। हालाँकि देर से ही सही पर केजरीवाल लड़-झगड़कर और कानूनी बाध्यताओं में बांधकर काम करवा लेता था। फिर जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकारों पर केजरीवाल सरकार के पक्ष में निर्णय दिया, जिसने दिल्ली पुलिस, लॉ एंड ऑर्डर तथा लैड को छोड़कर बाकी अधिकार दिल्ली सरकार को दिए गए, जिससे LG राज कुछ हद तक खत्म हुआ, परंतु सर्विस मैटर पर मामला 2 जज की बेंच के सुपुर्द कर दिया गया।

    फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट की 2 जज वाली बैंच में से एक ने कुुुह हद तक दिल्ली सरकार और दूसरे ने केंद्र के पक्ष में फैसला दिया और इस कारण मामला 3 जज की बड़ी बैंच को ट्रांसफर कर दिया, जिसका फैसला अभी तक नही आया है। यही कारण है कि केजरीवाल ने कामों को करवाने के लिए समन्वय के साथ नियमों की बाध्यताओं के सहारे और अधिक से अधिक काम करने की नीति अपनाई, तो अब यही लोग कहते हैं कि केजरीवाल बोलता नहीं है। 

    मैं भी मानता हूँ कि अब केजरीवाल कम बोलता है और केवल बेहद ज़रूरी मुद्दों पर ही आवाज़ उठाता है, क्योंकि राजनीति के इतने अनुभव के बाद समझ में आ गया है कि आज की परिस्थिति में कम बोलने और ज़्यादा करने से ही जनता के हित पॉसिबल हैं। इसलिए जो अधिकार क्षेत्र में है, उसमें ज़्यादा से ज़्यादा कोशिशें कर लिया जाना सबसे बेहतर तरीका है। और यही वजह है कि दिल्ली में इतने काम पॉसिबल हो पाए।


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