कोरोना मामलों में मीडिया का धार्मिक दुष्प्रचार

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  • Shah Nawaz
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  • 24 मार्च तक बहुत सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में लोग सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद आ-जा रहे थे और इस कारण लॉक डाउन होने पर फंस गए। क्योंकि तब तक सरकार ही गंभीर नहीं थी, प्रदर्शन चल रहे थे, सामाजिक-राजनैतिक समारोह / पार्टियाँ आयोजित हो रही थीं, सरकारें गिर रही, बन रही थीं, संसद सत्र चल रहा था। सरकारी गंभीरता अचानक 20-21 मार्च से नज़र आनी शुरू हुई।

    हजूर साहिब, महाराष्ट्र में फंसे ऐसे ही तीर्थयात्री जब पिछले हफ्ते पंजाब वापिस लौटे तो 148 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। ऐसे ही कई और धार्मिक स्थलों में भी फंसे लोगों को निकालकर उनके शहरों में पहुंचाया गया है। कई धार्मिक/सामाजिक अनुष्ठानों में हज़ारों लोग इकट्ठा हुए। मध्य प्रदेश में अंतिम संस्कार में 1500 से ज़्यादा लोग जुटे, ऐसे ही महाराष्ट्र के एक मंदिर के कार्यक्रम में भी 1500 के करीब लोग इकट्ठे हुए, इन मामलों के कारण सैंकड़ों कोरोना पॉज़िटिव केस सामने आए।

    हालाँकि ऐसे मामलों में लापरवाही की जाँच की जाती है और जो ज़िम्मेदार निकलेगा उन्हें सज़ा भी मिलनी चाहिए। पर मरकज़ निज़ामुद्दीन के बहुचर्चित मामले में मीडिया के दुष्प्रचार ने जिन मरीज़ों से सहानुभति होनी चाहिए थी, उन्हें अपराधी ठहरा दिया और मीडिया के इस घृणित व्यवहार पर देश में कहीं कोई चर्चा नहीं हुई!

    जबकि मीडिया ने सरकार से कभीं सवाल नहीं किया कि जो लाखों लोग विदेशों से वापिस आए, उन्हें कोरोना टेस्ट किये बिना या फिर सरकारी क़वारन्टीन सेंटर्स में भेजने की जगह सीधे उनके घर क्यों जाने दिया गया? या फिर उनके घर को उसी समय रेड ज़ोन घोषित किया जाना चाहिए था। इस लापरवाही ने पूरे देश को लॉक डाउन की त्रासदी में धकेल दिया, तो फिर इसका ज़िम्मेदार कौन है? इसमें किसके खिलाफ केस होगा और किसे सज़ा मिलेगी?

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