नफरत की सौदागरी

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  • Shah Nawaz
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  • उफ्फ! चारो तरफ नफरत... धमाकों पर धमाकें, देख लो नफरत की सौदागरी का नतीजा! सड़कों पर फैलता गर्म खून, चारो और बिखरे हुए गोश्त के लोथड़े, खुनी रंग से सरोबार होते धार्मिक स्थल, खौफ से सजते बाज़ार, दर्द से चिल्लाते मासूम, अपनों को गंवाने के गम में सिसकती आहें... और क्या-क्या साज़-ओ-सामान चाहिए अय्याशी के लिए इन शैतानो को? और कितनी बलि चाहिए इन्हें अपने देवता को खुश करने के लिए।

    जब तक लोगों में ज़हर घोल जाता रहेगा, तब तक इंसानियत शर्मसार होती रहेगी। इस तरह की सोच का फल देखने के बाद भी इन जैसों का समर्थन करने वालों की ऑंखें ना खुलें और अपनी सोच पर विचार ना करें तो फिर बर्बादी से कौन बचा सकता है?

    आज हर तरफ नफरतों के गीत गाए जा रहे हैं, नफरत फैलाने वालों की तारीफों में खुले-आम कसीदे पढ़े जा रहे हैं। उन्हें और ताकतवर बनाए जाने की कोशिश की जा रही है। शायद शैतानो की तारीफ करने वाले लोगो के लिए भी दूसरों की लाशें सुकून देने वाली ही हैं! उन्हें संतोष हैं कि हमने तो बस लाशों के बदले लाशें बिछाई हैं और गर्व है कि गालियों का बदला लिया है। फिर भूल जाते हैं कि दूसरे भी बस बदला ही तो लेना चाहते हैं। और इस अदला-बदली में इंसानियत ख़त्म होती जा रही है।

    पता नहीं यह मौत के बाज़ार कब तक सजेंगे? बदलों का यह दौर कब तक चलेगा?





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    11 comments:

    1. बैलेंस करने में लगे हुवे हैं आतंकी-
      एक इधर तो एक उधर-

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      1. नफ़रत की सौदागरी, कर *सौनिक व्यापार |
        ना हर्रे ना फिटकरी, आये रक्त बहार |

        आये रक्त बहार, लोथड़े भी बिक जाएँ |
        मस्जिद मठ बाजार, जहाँ मर्जी मरवायें |

        कर लो बम विस्फोट, शान्ति दुनिया को अखरत |
        हथियारों की होड़, भरे यारों में नफरत ||

        *मांस बेंचने वाला / बहेलिया

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      2. बिलकुल सही कहा रविकर जी, आभार...

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    2. इस विश्व को शान्ति का सुख भी मिले..

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    3. नफरत के बीजों से अमन की फसल नहीं उगाई जा सकती है !!
      आभार !!

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    4. जब तक राजनीति होगी तब तक

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    5. यह इंसान हैं ...
      :(

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    6. लहू से प्यास बुझाने वालों का कोई मजहब नहीं होता। आपने कराची का जिक्र किया, ये वही खून के प्यासे है, जो सिर्फ निर्दोषों का खून बहाने का बहाना ढूढ़ते है। पहले हिन्दू बहाना था, वो खत्म हुए तो अहमदी बहाना बने, क्रिश्चियन बहाना बने। अब जब वे भी गिनेचुने बचे तो मुस्लिम-मुस्लिम का खून बहा रहा है।

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    7. धर्म के विकृत अर्थ ही यह सब करवाते हैं !

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    8. सार्थक प्रस्तुति |

      कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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