ज़ालिम का विरोध और मजलूम का समर्थन

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  • Shah Nawaz
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  • अगर परिवर्तन चाहते है तो गलत को गलत कहने का साहस जुटाना ही पड़ेगा, ज़ालिम का विरोध और मजलूम का समर्थन हर हाल में करना पड़ेगा। 

    और ऐसा तभी संभव है जबकि तेरा-मेरा छोड़कर इंसानियत के खिलाफ उठने वाले हर कदम का विरोध हो। जैसा कि अजमेर शरीफ दरगाह की कमिटी ने हमारे सेनिकों की बेहुरमती के विरोध में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की यात्रा का बहिष्कार करने का फैसला किया।

    4 comments:

    1. मन सूबे से स्वार्थ से, जुड़े धर्म से सोच ।
      गर्व करें निज वंश पर, रहा अन्य को नोंच ।

      रहा अन्य को नोंच, बढ़ी जाती कट्टरता ।
      जिनकी सोच उदार, मूल्य वह भारी भरता ।

      भारी पड़ते दुष्ट, आज सज्जन मन ऊबे ।
      निष्फल करना कठिन, दुर्जनों के मनसूबे ॥

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    2. लटके झटके पाक हैं, पर नीयत नापाक |
      ख्वाजा के दरबार में, राजा रगड़े नाक |

      राजा रगड़े नाक, जियारत अमन-चैन हित |
      हरदम हावी फौज, रहे किस तरह सुरक्षित |

      बोल गया परवेज, परेशां पाकी बटके |
      सिर पर उत तलवार, इधर कुल मसले लटके ||

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