व्यंग्य - जैसे लोग वैसी बातें!

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  • Shah Nawaz
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    इसी कड़ी में मेरा व्यंग्य  आज खबर इंडिया पर प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है:
     


    जैसे लोग वैसी बातें!
     
    दुनिया में लोग भी बड़े अजीब तरह के होते हैं, हमारे देश में अधिकतर लोग तो ऐसे मिलेंगे कि किसी विषय पर जानकारी हो या ना हो मगर अपनी राय देना परमोधर्म! सोचिए ज़रा एक सरकारी बाबू, जिसे अपने कार्यालय की फाईल के स्थान की जानकारी नहीं होती है, किसी पान की दुकान पर खड़े होकर क्रिकेट मैच का लुत्फ लेते समय राय देता है कि अगर फिल्डर गली में ख़ड़ा होता तो कैच ज़रूर लपक सकता था, पता नहीं कैप्टन कैसी कैप्टनशिप कर रहा है? जो लड़का कभी एक भी गर्ल को फ्रैंड नहीं बना पात वह हमेशा दूसरों को सलाह देता है कि फलां लड़की को मनाने के लिए केवल उसका ही आईडिया फिट बैठेगा! और तो और अक्सर लोगों में इस बात पर ही सर-फुटव्वल होता रहता है कि चुनाव में उसकी पसंद का उम्मीदवार ही जीतेगा। अगर किसी ने गलती से दो-चार शेयर ले डाले तो वह समझता है कि शेयर बाज़ार में उससे अधिक किसी को जानकारी हो ही नहीं सकती है।

    अच्छा एक हुनर में तो हमारा पूरा देश ही माहिर है और वह है चिकित्सा! हर परिवार के अधेड़ और बुज़ूर्ग तो पहले ही डॉक्टर थे, लेकिन आजकल के चार जमात पास लोग भी पूरी निपुणता के साथ दवाईयों के बारे में सलाह देते नज़र आएंगे। एक बात तो बहुत चैकाने वाली है, सभी कहते मिलेंगे कि झाड़-फूक बाबा दूसरों को लूटने की दुकान चलाते हैं। लेकिन हर अवसर पर उन्हीं से सलाह लेने पहुंच जाएंगे और कहेंगे कि मेरे महान बाबा के जैसा तो पूरी दुनिया में कोई नहीं है। वहीं उन बाबा महोदय को दूसरे बाबा के भक्त दूनिया का सबसे भ्रष्ट बाबा साबित करने पर तुले नज़र आएंगे! इस सब में बच्चे भी किसी से पीछे नहीं है, (जब माहौल ही ऐसा है तो वह भी क्या करें)। परिक्षा के समय बेचारे किताबों से नहीं बल्कि अपने इष्ट देव से सहायता मांगते और उनको प्रसाद का प्रलोभन देते दिखाई देंगे, "हे ईश्वर! इस बार अच्छे नंबर दिलवा दो, सवा सात रूपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा!

    एक मंत्री महोदय तो राय देने में महान निकले, राष्ट्रमंडल खेलों से पहले सीधे भगवान् को ही सलाह दे रहे थे कि उसको खेलों के बीच में तेज़ बारिश करनी चाहिए, तो वहीं एक टैक्सी चालक की राय थी कि खेल करवाना हमारी सरकार के बस का काम नहीं है। मतलब मंत्री जी को भगवान के और टैक्सी चालक को सरकार के कार्य में निपुणता हासिल होने का यकीन है? वैसे हमारा भारत है बहुत ही महान देश, जहां स्टेडियम की छत का एक टुकड़ा गिरने पर लोग अड़ जाते हैं कि पूरी छत गिरी है और इस बात पर भी शर्त लग जाती है, तो वहीं सट्टा इस बात पर लगता है कि बाढ़ आएगी या नहीं! और अगर आएगी तो कितने घर डूबंगे, कितने लोग मरेंगे? वैसे कुछ लोग तो खेलों की विफलता की प्रार्थना केवल इस लिए कर रहे थे कि सफलता का सेहरा कहीं सरकार को ना मिल जाए! क्या कह रहे हैं.....देश? अब देश का क्या है? उसकी चिंता कौन करे?

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    - शाहनवाज़ सिद्दीकी

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    16 comments:

    1. theek kehte ho,,apne desh mein yahi cheez free mein,, aur bin maange milti he.

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    2. अच्छी और सार्थक आलोचना से भरी पोस्ट ....

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    3. bahut accha, vyang he kataksh he

      sasdhubaad

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    4. सराहनीय पोस्ट

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    5. बढिया व्यंग्य
      अच्छा लगा

      प्रणाम

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    6. लोग अजीब नहीं है, हमारे देश का जनस्वभाव ही कुछ ऐसा है। :) यहाँ 'सलाह' की उपज अनुमानो से कहीं अधिक होती है। बुद्धि की अतिवृष्टि जो है। :)

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