राष्ट्रमंडल खेल

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • Labels: ,
  • शर्म का समय                                    या                                 गर्व का समय


    मेहमान घर पर हैं...
    और हम अपने घर का रोना
    दुसरो के सामने रो रहे हैं
    वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और
    हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...


    लड़ते तो हम हमेशा से आएं हैं
    लेकिन समय हमेशा के लिए हमारे पास है
    गलत बातों के विरुद्ध लड़ने के
    नैतिक अधिकार की भी आस है

    लेकिन.......
    हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है,
    क्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
    हमें बदनाम करने पर वह राज़ी हैं

    सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
    'अभी नहीं तो कभी नहीं' हमारा नारा है

    देश का क्या है?
    जब पहले नहीं सोचा
    तो अब ही क्यों?

     जय हो!





    एक नज़र यहाँ भी: राष्ट्रमंडल खेलों के स्थल की तस्वीरें

    21 comments:

    1. Jai ho!!!!!!!! sahi kaha aapne...

      ReplyDelete
    2. देश का क्या है?
      जब पहले नहीं सोचा
      तो अब ही क्यों?



      सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते, देर आयद दुरुस्त आयद , जब जागो वहीँ सवेरा

      ReplyDelete
    3. कारज धीरे धीरे होत,काहे होत अधीर।
      समय आए तरुवर फ़ूले,केतक सींचो नीर॥

      शुभकामनाएं

      ReplyDelete
    4. बहुत बढ़िया ...लेकिन इस गर्व के बीच अभी भी कही कही शर्म नजर आ रही है .....

      ReplyDelete
    5. शर्म का समय या गर्व का समय

      शाह नवाज़ जी,
      आपकी बात से सहमत हूँ, लेकिन

      देश का क्या है?
      जब पहले नहीं सोचा
      तो अब ही क्यों?

      ReplyDelete
    6. हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है,
      क्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
      देश को बदनाम करने पर वह राज़ी हैं
      सच कहा शाहनवाज़ साहब , लेकिन किस को फ़िक्र है?

      ReplyDelete
    7. इस बात की बेहद ख़ुशी है कि मेरा पोस्ट आपकी रचना के लिए कुछ काम आया. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं. सुन्दर कहने का तो जी नहीं करता क्यूंकि हमारी जिस मानसिकता को ये उजागर कर रहा है वो कभी भी सुन्दर नहीं हो सकता. मगर, फिर भी, शब्दों के बहाव के लिए तो सुन्दर कहना ही पड़ेगा.
      http://draashu.blogspot.com/2010/09/blog-post.html

      ReplyDelete
    8. सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
      और अभी नहीं तो कभी नहीं हमारा नारा है
      ... bahut badhiyaa !!!

      ReplyDelete
    9. सच है ऐसे में में तो राजनीति बन्द होनी ही चाहिये.

      ReplyDelete
    10. वाह वाह !
      आनंद आ गया शाहनवाज भाई !क्या गज़ब की रचना है ! इस आवाज को आगे बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

      ReplyDelete
    11. सच कहा है आपने सच मे ये तो शर्म की बात है

      ब्लॉग पर आने को आभार युही मार्गदर्शन करते रहें धन्यवाद

      ReplyDelete
    12. मेहमान घर पर हैं...
      और हम अपने घर का रोना
      दुसरो के सामने रो रहे हैं
      वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और
      हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...
      ...सच में यह बहुत बड़ी बिडम्बना है तो है लेकिन हमें इस समय आयोजन की सफलता की कामना करनी होगी जिससे सारे विश्व में एक सकारात्मक सन्देश पहुंचे

      ReplyDelete
    13. Shahnawaz ji aapne sahi kaha - meri sabhi se yahi gujarish hai ki sabhi log tahe dil se commonwealth game ka joro shoro se swagat karein or apna yogdan de.......or kripiya karke police ki sahayata karein.... kripiya karke apni line main chalain or CWG ke players ko jaldi se jaldi jane or game main participate karne ka moka de....

      ReplyDelete
    14. गर्व में शर्म कैसी ?
      हमें तो गर्व है । समस्याएँ तो आती रहती हैं , उनसे क्या डरना ।

      ReplyDelete
    15. बिलकुल सही कहा आपने हमे यही समझ नही कि जो हम कर रहे हैं उसमे देश की कितनी बदनामी हो रही है\ बस हमे तो मुखालफत करनी है चाहे उस पर देश ही दाँव पर लग जाये। अच्छी लगी रचना बधाई।

      ReplyDelete
    16. घर की बात घर वालो मै निपटानी चाहिये, बाहर वालो से आज तक क्या मिला जो हम उन के सामने घर की बुराई कर रहे है ओर उन के आगे दुम हिला रहे है, उन के सभी नखरे सहन कर रहे है, अजी किस किस को रोये ओर किस किस को समझाये?

      ReplyDelete
    17. लेकिन किस को फ़िक्र है?

      ReplyDelete
    18. बिल्कुल सही फ़रमाया आपने...
      खुशियों के लम्हों में कुछ बातें नज़र अंदाज़ की जानी चाहिए.

      ReplyDelete
    19. मेहमान घर पर हैं...
      इसलिए हमारी परम्परा के अनुरूप अब तो सिर्फ हम जय हो ही बोल सकते है. भारत में राजनीति इस कदर हावी है की
      क्या होता आया है ओर क्या हो रहा है वो हम सब जानते है. लेकिन सच्चाई से मुंह मोड़ते हुए अब देश की इज्जत को बचाना है. इसलिए अब वही बोलना ओर दिखाना होगा होगा जिससे हमारा सिर ऊँचा हो.

      ReplyDelete

     
    Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.