आप कारोबार में जितना ज़्यादा मेहनत करते हैं उतना ही कम कमाते हैं

जब आप अपने कारोबार में ज़्यादा मेहनत करते हैं तो उसके दो नुकसान होते हैं, एक तो कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी नेटवर्क को बनाने के साथ-साथ बाकी कारोबार में इन्वेस्ट करने का टाइम नहीं निकल पाते हैं और दूसरा ख़ुद को और परिवार को टाइम कम देने की वजह से क्वालिटी ऑफ लाइफ नहीं जी पाते हैं। अगर जिंदगी में लुत्फ नहीं है तो इसका मतलब अपने रब (बनाने वाले) के शुक्रगुजार नहीं हैं, जिसका असर मेंटल लेवल पर पड़ता है और फिर इसकी वजह से आपकी प्रोफेशनल लाइफ की ग्रोथ  इस स्पीड से नहीं हो पाती है, जितनी ज़रूरत होती है।

इसलिए वक्त के साथ साथ बैलेंस बनाते हुए कारोबार में ख़ुद की मेहनत को कम करते जाइए और कारोबार चलाने और बढ़ाने के लिए ज़रूरी नेटवर्क को मज़बूत करते जाइए... 

खुद अधिक मेहनत करने की जगह टीम बनाने उसे मैनेज करना सीखिए। मेरे एक मित्र का पारिवारिक कारोबार अच्छा चलता था, मैंने उसे समझाया कि आप लोग स्वयं मेहनत में लगे रहते हैं, इसकी जगह आपको काम करने वाले कारीगर लगाने चाहिए। इससे जो समय बचेगा उसे आप व्यसाय बढ़ाने में लगा सकते हैं। पर उसके पिता को यह बात समझ नहीं आई, उन्होंने कहा कि हम हाथ के कारीगर है फिर हम खुद काम करना छोड़कर दूसरों को इस काम पर क्यों लगाए? पर कुछ साल बाद उनका व्यवासय पिछड़ने लगा, क्योंकि उसके क्षेत्र में नए व्यवसायी आने लगे थे, जिन्होंने इन्वेस्टमेंट करके बड़ी फैक्ट्रियां लगाईं। काम बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने ज़्यादा कारीगरों को हायर किया। जिससे वो कम्पटीशन में उनसे कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी उपलब्ध कराने लगे। और इसका परिणाम यह हुआ कि धीरे धीरे उनका कारोबार ठप्प हो गया।   

वैसे भी उसूल यह कहता है कि किसी कारोबार में रात-दिन मेहनत करके आप ज़िंदगी अच्छी तरह से चलाने का इंतजाम तो कर सकते हैं पर अमीर नहीं बन सकते हैं!

अमीर हालांकि अरबी का लफ्ज़ है, जिसका मतलब लीडर होता है, पर अगर पैसे वाले अमीर की बात की जाए तो वो वही व्यक्ति बनता है जो कारोबार को कम से कम मेहनत से मैनेज करना सीख लेता है। जब एक कारोबार कुछ चल जाए तो खर्च निकालने के बाद बचे मुनाफे से बाकी के कारोबारों की तरफ रुख करना ही अमीर बनने का सीधा रास्ता है। एक कमाई से कभी कोई अमीर नहीं बनता है!

और जो यह कहते कि अमीर गलत धंधे करके ही बनते हैं, वो आपको सिर्फ झूठ का सहारा लेकर बेवकूफ ही नहीं बना रहा होता है, बल्कि आपको डिमोटिवेट करके बहुत बड़ा गुनाह भी कर रहे होते हैं। याद रखिए कि पैसे कमाना शैतानी काम नहीं है बल्कि यह एक धार्मिक और समाज का भला करने वाला काम है, बशर्ते सही उसूलों से किया जाए!

इसलिए अमीर या फिर बिलिनियर बनने का लक्ष्य रखिए, खूब सारा पैसा कमाना बेहद ज़रूरी है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि ईश्वर जो हमें सामाजिक नेटवर्क के ज़रिए दे रहा है उसे समाज को वापिस भी किया जाए। यानी कौम, समाज, देश और इंसानियत के फायदे के लिए अपनी कमाई में से परिवार पर खर्च करने के बाद बचे पैसे का आधा हिस्सा खर्च किया जाए। यह पैसा आप शिक्षा, रिसर्च, भोजन, इलाज और लोगों को कारोबार कराने की व्यवस्था के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

विश्वास कीजिए, आप जितना इंसानियत को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च करेंगे आपका रब उसका कई गुना आपको वापिस करेगा। मतलब यह भी एक तरह से ईश्वर के साथ कारोबार हो गया... 😊

और वो बेहतरीन नफा देने वाला है!

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मुस्लिम प्रजनन दर और उसकी आड़ में जनसंख्या वृद्धि के हौव्वे की राजनीति

भारत में मुस्लिम प्रजनन दर 1992 में 4.4 थी जो कि 2019 में गिरकर 2.4 हो गई। वहीं हिन्दू प्रजनन दर जो कि 1992 में 3.3 थी वो 2019 में गिरकर 1.9 हो गई है। अगर सरकार के इस आंकड़ें को देंखेंगे तो मुस्लिम प्रजनन दर में जितनी तेज़ी से गिरावट आई है, उतनी किसी और समाज में नहीं आई है।

अभी सभी समुदायों की प्रजनन दर तक़रीबन 2 के आसपास है। जिसका अर्थ है 2 लोगों (पति-पत्नि) के द्वारा जन्म दिए बच्चों की संख्या 2 के आसपास है और इसका अर्थ है कि भविष्य में जल्दी ही ऐसा समय आने वाला जबकि देश की जनसख्या बढ़ने की जगह घटने लग जाएगी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हर समुदाय में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। आप शिक्षा के असर का इससे अंदाज़ा लगाइये कि शहरों में प्रजनन दर 1.6 रह गई है, जबकि गांवों में यह 2.1 प्रतिशत है। अगर राज्यों की बात करें तो बिहार 3, मेघालय में 2.9, यूपी में 2.4, झारखंड 2.3 और मणिपुर में 2.2 है।

और अगर देखा जाए तो हिन्दू समुदाय की प्रजनन दर (1.9), बौद्ध (1.4), जैन (1.6) और सिख (1.6) समुदाय से ज़्यादा है तो क्या इन समुदायों को हिन्दू समुदाय के विरुद्ध झंडा उठाना चाहिए? 
जन्मदर का ताल्लुक शिक्षा के स्तर से होता है, पर बेशर्मी यह है कि भाजपा इसके हल अर्थात शिक्षा के स्तर को बढ़ाने पर मंथन करने की जगह इसे भी नफरत का हथियार बनाती है।

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