यह तो है कि मैं यहाँ तन्हा नहीं : ग़ज़ल

यह तो है कि मैं यहाँ तन्हा नहीं
तुझसे भी तो पर कोई रिश्ता नहीं

तिश्नगी तो है मयस्सर आपकी
जुस्तजू दिल में मगर रखता नहीं

साज़िशों से जिसकी हों ना यारियां
आज कोई भी बशर मिलता नहीं

नफरतें इस दौर का तोहफा हुईं
दिल किसी का भी यहाँ दुखता नहीं

बन गया है मुल्क का जो हुक्मरां 
ज़ालिमों के साथ वो लड़ता नहीं

इश्क़ जिससे हो गया इक बार जो
रिश्ता दिल में फिर कभी मरता नहीं

फूल के जैसा ही है मासूम यह 
टूटा दिल भी फिर कभी जुड़ता नहीं

खुद को हल्का रख गुनाहों से ज़रा
तूफाँ में घर एक भी बचता नहीं

- शाहनवाज़ 'साहिल'




फ़िलबदीह-185(25-06-2016) साहित्य संगम में लिखी ग़ज़ल

मात्रा:- 2122 2122 212
बह्र :- बहरे रमल मुसद्दस महजूफ
अरकान :- फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
काफ़िया :- बसता(आ स्वर)
रदीफ़ :- नही
क्वाफी (काफ़िया) के उदआहरण
तन्हा खिलता मिलता जलता सहता सस्ता मरता रिश्ता दिखता सकता चुभता मुड़ता कहता सस्ता रखता जँचता बेचा चलता जुड़ता रहता बचता भरता बहता लड़ता प्यारा धागा ज्यादा ताना साया भाया दाना वादा आदि । इसी प्रकार के अन्य शब्द जिनके अंत में " आ "स्वर आये।
इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें⬇
➡ आप के पहलू मे आकर रो दिए
➡ दिल के अरमा आंसुओं मे बह गए

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ग़ज़ल: फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे

मेरी यादों में आके क्या करोगे आस दिल में जगा के क्या करोगे ज़माने का बड़ा छोटा सा दिल है सबसे मिल के मिला के क्या करोगे अगर राहों में ही वीरानियाँ हों इतनी बातें बना के क्या करोगे नफरतें और बढ़ जाएंगी दिल में ऐसी बातों में आ के क्या करोगे जो दिल नाआशना ही हो चुके हों फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे - शाहनवाज़ 'साहिल'


मात्रा:- 1222 1222 122
बह्र :- बहरे हजज  मुसद्दस महजूफ
अरकान :- मुफाईलुन मुफाइलुन फ़ऊलुन
काफ़िया :- क्या(आ स्वर)
रदीफ़ :- करोगे

क्वाफी (काफ़िया) के उदाहरण :-
जागा ऐसा तन्हा खिलता मिलता जलता सहता सस्ता मरता रिश्ता दिखता सकता चुभता मुड़ता कहता सस्ता रखता जचता बेचा चलता जुड़ता जचता रहता बचता भरता बहता कहता लड़ता प्यारा धागा ज्यादा ताना साया भाया दाना वादा आदि । इसी प्रकार के अन्य शब्द जिनके अंत में " आ "स्वर आये।

इसी बह्र पर कुछ गीत:
➡अकेले हैं चले आओ जहां हो
➡ मैं तन्हा था मगर इतना नही था

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ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए - अदम गोंडवी

आज के मौजूं पर अदम गोंडवी साहब की कुछ मेरी पसंदीदा ग़ज़लें:

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे
एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

- अदम गोंडवी


हिन्‍दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

- अदम गोंडवी


काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

- अदम गोंडवी

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