मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया

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  • Shah Nawaz
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  • मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाएँ
    हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश 
    सजाएँ


    मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले
    अपने ख़ुद को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ

    मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में
    उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ

    गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है
    इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएँ

    अपने घर का शोर मचाया, दुनिया के दिखलाने को
    अपने घर को बहुत दिखाया, आओ मिलकर देश दिखाएँ

    नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
    प्रेम से कोई पार न पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ

    मंदिर-मस्जिद पर मत बाँटो, हर इसाँ को जीने दो
    भारत की गलियों में 'साहिल', चलो ख़ुशी के दीप जलाएँ

    - शाहनवाज़ 'साहिल'



    Keyword: bharat, india, mandir, masjid, friendship, love, war

    46 comments:

    1. बेहतरीन रचना
      बहुत-बहुत ज्यादा पसन्द आयी जी
      तस्वीर भी अच्छी लगी


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    2. नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
      प्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ


      आपके देश प्रेम के इस ज़ज्बे को सलाम...लाजवाब लेखन...दाद कबूल करें...

      नीरज

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    3. ज़ज्बे को सलाम...लाजवाब लेखन...
      प्रणाम स्वीकार करें

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    4. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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    5. मत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
      'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं


      बहुत बढ़िया शाहनवाज़ भाई ,ऐसी पोस्ट्स की ही ज़रूरत है इस कठिन समय में


      महक

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    6. संवेदनशील रचना ..आपके जज्बे को सलाम.

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    7. संवेदनशील रचना ..आपके जज्बे को सलाम.

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    8. इस समय देश मेँ सौहार्दपूर्ण माहौल को बनाये रखने के लिए आपके लेखन की बहुत आवश्यकता हैँ। बहुत ही शानदार रचना हैँ। बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOGS :- (1.) ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या हैँ।..........कविता को पढ़कर तथा (2.) क्या आप जानती हैँ कि आपके लिए प्रोटीन की ज्यादा मात्रा हानिकारक हो सकती हैँ।........लेख को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप आमंत्रित हैँ

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    9. जगमगाते मस्जिद -ओ- मंदिर क्या रोशन करें
      चलिए गफलत के मारे किसी घर में उजाला करें

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    10. अमन का पैगाम देती इस रचना के लिए बधाई.

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    11. जय हो मेरे भाई...ऐसे ही संदेशों की जरुरत है आज!!


      नमन करता हूँ...

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    12. दिल को छू लेने वाली कविता

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    13. नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
      प्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ

      बहुत सुन्दर बात कही है ...

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    14. सुलझा संदेश, देश के लिये।

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    15. सच में ....मैं तो मंदिर मस्जिद ही ख़त्म कर देना चाहता हूँ.... दोनों को शौचालयों में बदल देना चाहिए... हगने -मूतने के काम आयेंगे... तो कम से कम ...आमिर खान डांट तो नहीं लगाएगा...

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    16. झगड़े की बुनियाद है हिमाक़त
      हिन्दुस्तान में दीन-धर्म का झगड़ा सिरे से है ही नहीं।
      हिन्दुस्तान में झगड़ा है सांस्कृतिक श्रेष्ठता और राजनीतिक वर्चस्व का। जो इश्यू ईश्वर-अल्लाह की नज़र में गौण है बल्कि शून्य है हमने उसे ही मुख्य बनाकर अपनी सारी ताक़त एक दूसरे पर झोंक मारी। नतीजा यह हुआ कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तबाह हो गए। तबाही सबके सामने है। इस तबाही से मालिक का नाम बचा सकता है लेकिन आज उसके नाम पर ही विवाद खड़ा किया जा रहा है।

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    17. वंदे ईश्वरम् ! अच्छी प्रस्तुति ।

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    18. गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है?
      अपने घर को बहुत चलाया, आओ मिलकर देश चलाएं
      बहुत सुन्दर आह्वान है. रचना भी खूबसूरत

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    19. आओ मिलकर देश बनाये ...
      यही कामना हो प्रत्येक देशवासी की तो देश कैसे ना बनेगा ...
      बेहतरीन रचना !

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    20. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
      मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

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    21. आज की ज़रुरत है ऐसी रचनाओं की शाहनवाज भाई , आपको बधाई !

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    22. नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
      प्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ

      Mahfuj Bhai sahi kah rahe hain,

      Naa rahega Bans aur Naa hi bajegi bansuri.

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    23. मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए
      हर मज़हब को बहुत सजाया,आओ मिलकर देश सजाएं

      वाह वाह बहुत समय बाद ऎसी रचना पढने को मिली, बहुत सुंदर संदेश दे रही है, इसे फ़ेस बुक ओर ओर्कुट पर भी जरुर लगाये, सलाम आप को भाई, इस सुंदर संदेश के लिये

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    24. उत्तम सोच ...उत्तम सन्देश ...

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    25. This comment has been removed by the author.

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    26. ग़ज़ल तो वाकई अच्छी लिखी है आपने शहनवाज़ जी, मगर एक बात यह भी है की देश को मज़हब की भी ज़रूरत है. क्योंकि मज़हब ही इंसान को हक पर चलने की तालीम देता है और लोगों के हक पर चले बिना ना देश सही चल सकता है और ना घर परिवार. बात सिर्फ यह है की मंदिर-मस्जिद के झगडे नहीं होने चाहिए और यह तभी हो सकता है जबकि हम किसी और का हक ना मारें और अपने हक को मुआफ करें.

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    27. भारत की एकता अखंडता का जीवंत उधारण यहाँ पढ़ें

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    28. मत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
      'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं ...

      आमीन .... बहुत ही दिल से निकले हुवे शब्द हैं ....

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    29. ईश्वर एक है, धरती एक है यहाँ पढ़ें

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    30. Bahut behatareen aur tarkik dhang se apne itane samvedansheel mudde ko chhua hai--badhai.

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    31. बहुत खूबसूरत रचना ....
      आप मेरे ब्लॉग पर पधारे उसके लिए भी धन्यवाद ....

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    32. बहुत अच्छी पोस्ट....चित्र भी शानदार .

      ___________________
      'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .

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    33. एक मंदिर-मस्जिद मेरे ब्‍लॉग पोस्‍ट 'राम-रहीमः मुख्‍तसर चित्रकथा' में akaltara.blogspot.com पर है.

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    34. मत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
      'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं
      bahut achchhi dil ko chhoo lene wali prastuti .khaskar uparokta panktiya hridayasparshi hai

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    35. नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
      प्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ

      - ऐसी सोचवाले बहुमत में हो जाएँ तो बात बन जाए |

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    36. 6/10


      सार्थक - प्रशंसनीय

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    37. बहुत बढ़िया एक सुंदर संदेश देती हुई सुंदर रचना..बधाई

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    38. मत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
      'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं
      khoobsurat deshprem ras !!!!!!
      badhaai

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    39. भावपूर्ण अभिव्यक्ति... 'भारत' में आज इसकी बहुत जरुरत है...

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    40. नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
      प्रेम से कोई पार ना पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ.
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      असल धर्म को उदघाटित करती बहुत सार्थक रचना है
      आज ऐसी ही सोच और ऐसे ही सृजन की जरुरत है
      बधाई / आभार

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