धार्मिक विचारों का विरोध

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • Labels: ,
  • आजकल धर्म के खिलाफ बोलना फैशन समझा जाने लगा है। चाहे बात तर्कसंगत हो अथवा ना हो, लेकिन ऐसे विचारों के सर्मथन में हज़ारों लोग कूद पढ़ते हैं। ऐसे विचारकों को "सुधारवादी" जैसी उपाधियों से अलंकरित किया जाता है। जिस तरह आस्था के मामले में आमतौर पर तर्क को तरजीह नहीं दी जाती है, वैसे ही इस क्षेत्र में भी सिक्के के केवल एक पहलू को देख कर ही धारणा बना ली जाती है। धर्म के अंधविश्वासी समर्थकों की तरह ही धर्म के खिलाफ सोच रखने वालो के अंदर भी यही धारणा घर कर लेती हैं कि "उनकी सोच ही सत्य है"। इसलिए ऐसे लोग धामिर्क पक्ष में तर्क देने वालों की बात को कुतर्क का दर्जा देकर नकार देते है। अक्सर धार्मिक नियमों के खिलाफ बनी धारणा के मुकाबले कोई और बात सोचना गवारा नहीं किया जाता है। अगर कोई किसी ऐसे विचार अथवा सिद्धांत के खिलाफ तर्कसंगत बात करता भी है तो उसे "दकियानूसी" जैसे उच्चारणों से पुकारा जाता है।

    धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ कार्य करना तो समझ में आता है, लेकिन अच्छी बातों के खिलाफ भी आवाज़ उठाना समझ से परे है। हालांकि निजी जीवन में यह तथाकथित नास्तिक स्वयं भी अनेकों धार्मिक कर्मकाण्डों में लिप्त दिखाई देंगे, लेकिन सार्वजनिक जीवन में सेकुलर बनने की कोशिश हृदय में बैठी आस्था की भावना को ज़बरदस्ती दबा देती है। अक्सर ऐसे लोग धर्म के मुकाबले विज्ञान को तरजीह देते हुए ‘ईश्वर के दिखाई ना देने’ अथवा ‘ईश्वर को किसने बनाया’ जैसी बातों पर धर्म का माखौल उड़ते नज़र आते हैं, लेकिन तर्क से निकले प्रश्नों का उत्तर स्वयं उनके पास भी नहीं होता है। यह लोग धर्म पर उत्तर ना होने का तो आरोप लगाते हैं लेकिन स्वयं उत्तर ना होने को भविष्य में होने वाली खोज की संभावना का बहाना देकर टाल देते हैं। या फिर ऐसे कमज़ोर उत्तर देते हैं जिनको कोई भी स्वस्थ मस्तिष्क कुबूल नहीं कर सकता है। इंसानी तर्को पर खुद तो हमेशा पूरा नहीं उतरते हैं लेकिन चाहते हैं कि धार्मिक नियम पूरे उतरें।

    हालांकि विज्ञान और धर्म एक दूसरे के पूरक है, लेकिन हमेशा धर्म को विज्ञान विरोधी घोषित किया जाता है ताकि विज्ञान को पसंद करने वाले लोग नास्तिक बन सकें। यह लोग विज्ञान को अंतिम सत्य मानते हैं और इसी सोच के कारणवश धर्म को महत्त्वहीन करार दे देते हैं। हालांकि विज्ञान को कभी भी अंतिम सत्य नहीं कहा जा सकता है, अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जिनको विज्ञान ने पहले नकारा लेकिन बात में मान लिया। क्योंकि विज्ञान की मान्यताएं खोज और अनुमानों पर आधारित ही होती हैं, इसलिए हर नई खोज के बाद पुरानी मान्यता समाप्त हो जाती है तथा अनुमानों के गलत पाए जाने पर नए अनुमान लगाए जाते हैं। अर्थात अगर किसी एक नियम पर आज सारे वैज्ञानिक एकमत हैं तो यह ज़रूरी नहीं कि कल भी एकमत होंगे। क्या उस ज्ञान को पूरा कहा जा सकता है जिसकी स्वयं की मान्यताएं कुछ समय के उपरांत बदल जाती हो? यह बात इस ओर इशारा करती है कि कहीं ना कहीं कोई पूर्ण ज्ञान अवश्य है और वही धर्म है।

    - शाहनवाज़ सिद्दीकी


    Keywords:
    Religion, धार्मिक विचार

    14 comments:

    1. शाह जी आप के इस कथन में "लेकिन अच्छी बातों के खिलाफ भी आवाज़ उठाना समझ से परे है।"
      किस की और इशारा है मुझे नहीं पता लेकिन कोई भी समझदार व्यक्ति अच्छी बातों के खिलाफ आवाज़
      नहीं उठाता और जो अच्छी बातों के खिलाफ आवाज़ उठाता है वो समझदार नहीं है...
      और जो समझदार नहीं है उस की बातो का बुरा क्यों मानते हो आप !

      इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के !
      लाय है हम तूफान से किश्ती निकल के !

      आपस में लड़ना बंद करो और देश के हित की सोचो !

      ReplyDelete
    2. जनाब क्या धर्म के नाम किसी की हत्यायेँ करना उचीत है?अगर दो लोग साथ रहना चाहते हैँ सादी करना चाहते हैँ तो उन्हे धर्म के नाम पर अलग करना कहाँ तक ठिक है?

      इस प्रस्तुती के लिए आभार ।


      सुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी का इंटरव्यू पढने के लिए यहाँ क्लिक करेँ >>>
      एक बार अवश्य पढेँ

      ReplyDelete
    3. @ Etips-Blog Team
      धर्म के नाम पर हत्याएं अधर्मी अथवा अल्पज्ञान वाले लोग ही करते हैं. आज आवश्यकता है ऐसे लोगो के चेहरे बेनकाब किये जाएं. लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है की धर्म को इसका कारण समझा जाए.

      ReplyDelete
    4. एक अच्छी पोस्ट, ना जाने क्यूँ लोग धर्म का नाम आते ही, शांति और प्रेम की जगह, हत्या का ख्याल आता है.?

      ReplyDelete
    5. एक बेहतरीन पोस्ट के लिये शुक्रिया
      वैज्ञानिक खुद कहते है कि आजतक जो भी खोजा गया है, वह उसका दसवां हिस्सा भी नहीं है, जो हम अब तक खोज नहीं पाये।
      नये सिद्धान्त आते हैं और पुराने गलत साबित हो जाते हैं।
      बाहर की खोज विज्ञान है और अन्दर की खोज धर्म

      आजकी यह पोस्ट बहुत पसन्द आयी जी

      प्रणाम

      ReplyDelete
    6. @ A Indian
      शाह जी आप के इस कथन में "लेकिन अच्छी बातों के खिलाफ भी आवाज़ उठाना समझ से परे है।"

      भाई ऐसे लोग हर तरफ होते हैं, चाहे वह धर्म के मानने वाले हो अथवा नास्तिक. एक धर्म के मानने वाले दुसरे धर्म की अच्छी बातों पर भी इसलिए ध्यान नहीं देते क्योंकि उनके हिसाब से वह दुसरे धर्म की बात है. वहीँ धर्म को ना मानने वाले धर्म नामक फोबिया के शिकार होते हैं. उनको धर्म नाम से ही नफरत होती है, इसलिए अच्छी बातें भी उनके लिए गलत ही होती हैं. अगर वह स्वयं एक अछे चरित्र के स्वामी हैं तो ठीक है, लेकिन ज़रा ध्यान से सोचो कि अगर किसी के अन्दर थोड़ी सी भी बुरे होगी, तो वह किस्से डरेगा? उसके लिए किसी भी इंसान की हत्या करना आसान है, क्योंकि मृत्यु तो सबसे बड़ा सत्य है, और अगर किसी की मृत्यु से किसी दुसरे को कुछ धन की प्राप्ति होती है तो क्या बुरे है? अब उसने यह सोच लिया है कि मुझे देखने वाला तो कोई है नहीं, तो करते रहो जो दिल करे. किस का डर है???

      ReplyDelete
    7. http://haqnama.blogspot.com/
      अंग्रेज़ों के चंगुल से देश तो आज़ाद हो गया लेकिन मानसिक रूप से भारत की जनता और विशेष रूप से संविधान निर्माता उनकी ग़ुलामी से आज़ाद न हो सके और उसके बाद शासन की बागडोर सम्भालने वाले नेता भी किसी न किसी रूप में उसी मानसिकता से दबावग्रस्त रहे जिसके नतीजे में आज का सामाजिक ढांचा बिगाड़ के कगार खड़ा है। संविधान निर्माताओं ने विशेष रूप से इंगलैंड, अमेरिका, फ्रांस व इटली के संविधानों की मदद से अपने देश का संविधान बनाया। मानसिक ग़ुलामी का इससे बढ़कर और क्या सबूत हो सकता है कि जिन गोरी चमड़ी वालों से देश को आज़ाद कराया था, उन्ही के संवैधानिक ढांचे के अनुसार निर्मित संविधान देश पर थोप दिया गया।

      ReplyDelete
    8. धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ कार्य करना तो समझ में आता है, लेकिन अच्छी बातों के खिलाफ भी आवाज़ उठाना समझ से परे है। हालांकि निजी जीवन में यह तथाकथित नास्तिक स्वयं भी अनेकों धार्मिक कर्मकाण्डों में लिप्त दिखाई देंगे, लेकिन सार्वजनिक जीवन में सेकुलर बनने की कोशिश हृदय में बैठी आस्था की भावना को ज़बरदस्ती दबा देती है। अक्सर ऐसे लोग धर्म के मुकाबले विज्ञान को तरजीह देते हुए ‘ईश्वर के दिखाई ना देने’ अथवा ‘ईश्वर को किसने बनाया’ जैसी बातों पर धर्म का माखौल उड़ते नज़र आते हैं, लेकिन तर्क से निकले प्रश्नों का उत्तर स्वयं उनके पास भी नहीं होता है। यह लोग धर्म पर उत्तर ना होने का तो आरोप लगाते हैं लेकिन स्वयं उत्तर ना होने को भविष्य में होने वाली खोज की संभावना का बहाना देकर टाल देते हैं। या फिर ऐसे कमज़ोर उत्तर देते हैं जिनको कोई भी स्वस्थ मस्तिष्क कुबूल नहीं कर सकता है। इंसानी तर्को पर खुद तो हमेशा पूरा नहीं उतरते हैं लेकिन चाहते हैं कि धार्मिक नियम पूरे उतरें।

      ReplyDelete
    9. This comment has been removed by the author.

      ReplyDelete
    10. बहुत सही कहा. आज कल तो अगर आप शांति की बात करें, दूसरों के धर्म की इज्ज़त करने की बात करें, दूसरों के धर्म की बातों को सुने की बात करें, तो भी आप के खिलाफ आवाज़ लोग उठाने लगते हैं. शक पैदा करते हैं. धर्म आया था इंसान को इंसानियत सीखाने, आज इन इंसानों ने धर्म के सहारे इंसानियत को दाघ्दार कर दिया.

      ReplyDelete
    11. धर्म के नाम पर हत्याएं अधर्मी अथवा अल्पज्ञान वाले लोग ही करते हैं. आज आवश्यकता है ऐसे लोगो के चेहरे बेनकाब किये जाएं...

      बेनकाब कीजिये मुझे बड़ी कुशी होगी !
      में आप के साथ हु

      ReplyDelete
    12. एक बेहतरीन पोस्ट के लिये शुक्रिया.........

      ReplyDelete
    13. आजकल धर्म के खिलाफ बोलना फैशन समझा जाने लगा है। चाहे बात तर्कसंगत हो अथवा ना हो, लेकिन ऐसे विचारों के सर्मथन में हज़ारों लोग कूद पढ़ते हैं

      bahut acchi start ko last tak accha rakhne per...
      apko badhai..... :)
      ye ek sacchai hai ajkal ki...

      ReplyDelete

     
    Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.